जिस तरह पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं और बादशाहों को लेकर कहानियां फैलती थीं कि बादशाह भेष बदल कर अपनी प्रजा के हालात जानने के लिए निकला करते थे और पता करते थे कि उनका शासन कैसा चल रहा है, उससे मिलती-जुलती कहानियां आजकल दिल्ली के साउथ ब्लॉक और नॉर्थ ब्लॉक के गलियारों में घूम रही हैं. ये कहानियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न केवल प्रशासन को, बल्कि मंत्रिमंडल के काम के तरीके को सुधारने के सिलसिले में कही जा रही हैं. उनमें से कुछ कहानियां हम आपके सामने रख रहे हैं.
पहली कहानी नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली आने के समय की है. हिंदुस्तान के मशहूर उद्योगपति मुकेश अंबानी नरेंद्र मोदी के पास गए और उन्होंने नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें एक 1200 करोड़ रुपये की कंपनी का अधिग्रहण करना है और उसमें वह उनकी मदद चाहते हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंख उठाकर मुकेश अंबानी की तरफ़ देखा और कहा, मुकेश भाई, मैं तो सोच रहा था कि आप दस हज़ार करोड़ रुपये का इंवेस्टमेंट गुजरात में करना चाहते हैं, इसलिए मुझसे मिलने आए हैं. कहां आप यह हज़ार-बारह सौ करोड़ रुपये की कंपनी के अधिग्रहण की बात कर रहे हैं. आप अपनी बात कीजिए, दूसरे के ऊपर उंगली मत उठाइए. जाहिर था, मुकेेश अंबानी वहां से बैरंग लौट आए.
दूसरा किस्सा भी मुकेश अंबानी को लेकर है. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए. उन्होंने अपने मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को मिलने के लिए बुलाया और उनसे कहा, आप मुकेश अंबानी के साथ काफी मिल रहे हैं और लंच करने उनके यहां जा रहे हैं. धर्मेंद्र प्रधान ने कुछ कहा होगा कि यह बात करनी थी, वह बात करनी थी. नरेंद्र मोदी ने कहा, यदि आपको बात करनी थी, तो आप मुकेश अंबानी को अपने ऑफिस में बुला सकते थे, उनके यहां जाने की क्या ज़रूरत है? खैर जाइए, आपके यहां एक फाइल पड़ी है, उसमें दस्तखत कर दीजिए. धर्मेंद्र प्रधान प्रधानमंत्री के पास से लौटे और जब आए, तो उनकी टेबल पर एक फाइल पड़ी थी, जिस पर उन्हें दस्तखत करने थे. वह मुकेश अंबानी के ऊपर 579 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाने की फाइल थी. धर्मेंद्र प्रधान को उस फाइल के ऊपर दस्तखत करने पड़े और मुकेश अंबानी के ऊपर 579 मिलियन डॉलर का जुर्माना लग गया.
नरेंद्र मोदी अपनी सरकार के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने का संकेत दे रहे हैं. उन्होंने लेह में कहा, न मैं खाऊंगा, न मैं खाने दूंगा. नरेंद्र मोदी इस बात से वाकिफ हैं कि देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार भयानक तौर पर असर दिखा रहा है. शायद इसलिए उन्हें यह कहना पड़ा. लेकिन स़िर्फ कहने से न कामकाज सुचारू रूप से चल सकता है और न भ्रष्टाचार रुक सकता है. इसके लिए आवश्यक है कि सारे फैसले कैमरे की निगरानी में हों और यह घोषित किया जाए कि तीन साल के बाद ये सारी रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की जा सकती है या तीन साल के बाद अगर कोई इस रिकार्डिंग को देखना चाहे कि कौन-सा फैसला क्यों और किस तर्क के आधार पर लिया गया, तो सूचना के अधिकार के माध्यम से देख सकता है.
नरेंद्र मोदी से जुड़ी तीसरी कहानी श्री राजनाथ सिंह को लेकर घूम रही है. उन्होंने अपने यहां राजनाथ सिंह को मिलने के लिए बुलाया. उससे ठीक 15 मिनट पहले उन्होंने राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह को मिलने के लिए बुलाया. पंकज सिंह बहुत खुशी-खुशी बुके हाथ में लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने गए. नरेंद्र मोदी ने उन्हें 15 मिनट इंतज़ार कराया, तब तक राजनाथ सिंह भी उनसे मिलने पहुंच चुके थे. नरेंद्र मोदी ने पंकज सिंह से कहा, आपके पिता को मैंने जानबूझ कर बुलाया है. पंकज सिंह ने गुलदस्ता देने की कोशिश की, लेकिन नरेंद्र मोदी ने गुलदस्ता नहीं लिया. स़िर्फ इतना कहा, आपने परसों जिस आदमी से पैसे लिए हैं, उसे उसके पैसे आज ही वापस कर दीजिए. पंकज सिंह सिर झुकाकर प्रधानमंत्री कार्यालय से निकल गए. इसके बाद प्रधानमंत्री ने राजनाथ सिंह से क्या कहा, इसकी जानकारी सत्ता के गलियारों में नहीं है. चौथी कहानी श्री रामविलास के इर्द-गिर्द चल रही है कि रामविलास पासवान दिल्ली से पटना के लिए चले और उनके साथ बहुत सारे लोग ट्रेन में चल पड़े. टूंडला पर नरेंद्र मोदी को इसका पता चल गया. टूंडला स्टेशन के ऊपर पुलिस और रेलवे अधिकारियों ने घेर लिया और जिनके पास यात्रा का वैध टिकट नहीं था, उन सबको ट्रेन से उतार लिया.
नरेंद्र मोदी से जुड़ी ये कहानियां अपने साथ कड़ी से कड़ी जोड़ती जा रही हैं. सांसदों को आय-संपत्ति का ब्यौरा देना है. सांसद कहते हैं कि जो मंत्री हुए, उनका आय-व्यय-संपत्ति का ब्यौरा तो ठीक है, लेकिन हम तो मंत्री भी नहीं हुए. ऐसे में यदि हम अपनी, पत्नी, बेटे, माता-पिता एवं भाई-बहन की आय-संपत्ति का ब्यौरा नरेंद्र मोदी को दें, तो हम सवालों के घेरे में आ जाते हैं और भविष्य में मंत्रिमंडल या किसी ज़िम्मेदारी की जगह पर पहुंचने में यह हमारे लिए रुकावट बन सकता है. कई मंत्रियों के निजी सचिवों को नियुक्त करने से पहले नरेंद्र मोदी जी के दफ्तर ने उनकी नियुक्ति रोक दी. किसी के ऊपर सीबीआई की जांच चल रही थी, किसी के ऊपर अन्य तरह के आरोप थे. कुल मिलाकर इसमें सबसे ज़्यादा सवाल उत्तर प्रदेश और बिहार से जुड़े नौकरशाहों का रहा, जिनके ऊपर नरेंद्र मोदी की सख्त निगाह रही.
नरेंद्र मोदी अपनी सरकार के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने का संकेत दे रहे हैं. उन्होंने लेह में कहा, न मैं खाऊंगा, न मैं खाने दूंगा. नरेंद्र मोदी इस बात से वाकिफ हैं कि देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार भयानक तौर पर असर दिखा रहा है. शायद इसलिए उन्हें यह कहना पड़ा. लेकिन स़िर्फ कहने से न कामकाज सुचारू रूप से चल सकता है और न भ्रष्टाचार रुक सकता है. इसके लिए आवश्यक है कि सारे फैसले कैमरे की निगरानी में हों और यह घोषित किया जाए कि तीन साल के बाद ये सारी रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की जा सकती है या तीन साल के बाद अगर कोई इस रिकार्डिंग को देखना चाहे कि कौन-सा फैसला क्यों और किस तर्क के आधार पर लिया गया, तो सूचना के अधिकार के माध्यम से देख सकता है. यह पहला फैसला है, जो निर्णय लेने वाले व्यक्तियों, चाहे वे मंत्री हों या सचिव स्तर के अधिकारी, को सही फैसले लेने के लिए विवश करेगा. यह बंधन नहीं है, यह नियम बनना चाहिए, ताकि देश के लोगों को पता चल सके कि उनके संदर्भ में लिए गए निर्णय के पीछे सचमुच कौन-से तर्क रहे, जिनका उन्हें फ़ायदा हुआ या नुक़सान भुगतना पड़ा.
नरेंद्र मोदी से संबंधित ये सारी कहानियां अगर सही हैं, तो इनका स्वागत किया जाना चाहिए. अगर यह कहानियां सही नहीं हैं, तो इन कहानियों को सही होना चाहिए. साउथ और नॉर्थ ब्लॉक के गलियारों में यह बात तेजी से घूम रही है कि हर मंत्री और हर बड़ा अधिकारी इंटेलिजेंस ब्यूरो की नज़र में है. सवाल इंटेलिजेंस ब्यूरो की कार्य प्रणाली पर भी है, क्योंकि पिछले 15-20 सालों में हमारी सारी खुफिया एजेंसियों को लकवा मार गया है और उनसे कोई भी सही रिपोर्ट मिल पाना लगभग असंभव है. लेकिन, अगर उनका इस्तेमाल मंत्रियों और सचिवों के लिए होने लगा, तो वे बाकी काम छोड़कर, जिनमें आतंकवाद को रोकना प्रमुख ज़िम्मेदारी है, इसी काम में लग जाएंगी और एक नए तरह का भ्रष्टाचार पैदा होने लगेगा. इसीलिए ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सख्त हिदायत अपने मंत्रियों और सचिवों को दें कि उनके ऊपर कोई जासूसी नहीं हो रही है, लेकिन अगर कभी कोई किसी भी तरह की गड़बड़ी में लिप्त पाया गया और पकड़ा गया, तो फिर उसके साथ कोई भी रहमदिली नहीं दिखाई जाएगी.
यह देश सचमुच अच्छे प्रशासन और अच्छे फैसलों के लिए तरस रहा है. नरेंद्र मोदी की विचारधारा से हमारा कोई लेना-देना नहीं. आज हम देश के प्रधानमंत्री से यह अनुरोध कर रहे हैं कि अब जबकि स्वतंत्रता दिवस बीत गया है, उन्होंने लाल किले के ऊपर झंडा फहरा दिया है, उन्हें सचमुच स्वच्छ और क्रियाशील प्रशासन देने की दिशा में क़दम बढ़ाने चाहिए और देश को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि अब जो सरकार काम कर रही है, वह पिछली सरकारों से अलग है. यह सरकार विचारधारा के ऊपर जब जोर देगी तब देगी, लेकिन यह लोगों की ज़िंदगी में सुधार लाने के लिए संपूर्ण प्रशासन को लगा देगी, यह इसका संकल्प है. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस देश के आम जन को, ग़रीब को और मध्यम वर्ग सहित संपूर्ण वर्ग को यह विश्वास दिला पाएंगे कि अब सरकार निहित स्वार्थ के लिए कम, लोगों की ज़िंदगी में बदलाव आए, उसके लिए ज़्यादा सचेत ढंग से काम करेगी. आशा तो यही करते हैं. देखते हैं, अगले साल पंद्रह अगस्त तक क्या होता है.