महाराष्ट्र में सत्तर के दशक में दलित युवाओं मे प्रस्थापित दलित नेतृत्व,और तत्कालीन देश-दुनिया की स्थिति के खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध की प्रतिक्रिया की शुरुआत हुई थी ! और मै भी राष्ट्र सेवा दल के सिर्फ शारीरिक कवायदें और गीत गाकर तंग आकर ,बडेही आशा से इस उफान को देख रहा था ! हालाकि उस समय मागोवा (कुछ मार्क्सवादी मित्र मुख्यतः मुंबई आई आई टी के ! )युवक क्रांति दल है तो समाजवादी, पर उनके संस्थापकों में से एक है ! डॉ कुमार सप्तर्षि का सबसे ज्य?जादा समय सिर्फ समाजवादी लोगों को और मुख्यतः राष्ट्र सेवा दल को , कोसने मे जाता था ! और अभिभि जा रहा है ! सर्वोदयी मित्रों का तरुण शांति सेना ,इस तरह के चार विभिन्न धाराओं के युवा संगठन अपनी तरह से युवाओं को तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक,और आर्थिक स्थिति को लेकर संगठन का प्रयास कर रहे थे ! और मै उम्र के पंद्रह साल का राष्ट्र सेवा दल की शाखा और अभ्यास मंडल चलाता था !
और मेरे अभ्यास मंडल मे युवक क्रांति दल से लेकर मागोवा, तरूण शांति सेना तथा दलित पैंथर बराबरी मे आते रहते थे ! कुमार सप्तर्षि की सेवा दल के और समाजवादी लोगों की आलोचना सुनकर भी उनके कुछ हुनर के कारण मैंने बर्दाश्त किया ! मागोवा के साथी मार्क्सवादी होने के बावजूद बहुत ही बेहतरीन व्यवहार करते थे ! (काश यही काॅमन सेन्स डॉ कुमार सप्तर्षि मे हुआ होता तो वह समाजवादी आंदोलन के हीरो रहे होते !) और वैसे ही तरूण शांति सेना के भी साथी राष्ट्र सेवा दल से ,कभी अलग-थलग नहीं लगे ! सिर्फ संगठन के नाम अलग-अलग थे ! लेकिन उसके बावजूद सत्तर के दशक में दलित पैंथर मुझे ज्यादा आकर्षित कर रहा था ! क्योंकि जो जोश और आग मुझे उनके अंदर दिखती थी उस तुलना मे अन्य सभी बहुत फिके लगते थे ! क्योंकि तत्कालीन परिस्थितियों देखकर मै बारह महीनों चौबीसों घंटे सतत खुद एक आग की तरह अंदर ही अंदर उबल रहा था !
मैंने अमरावती, वर्धा, अकोला और नागपुर के दलित पैंथर के स्थापना मे नामदेव ढसाल, लतिफ खाटिक और शांताराम दिवेकर (पूर्व मेयर पुणे)के साथ-साथ पैंथर को खडा करने के लिए समय और उस समय पाँच हजार रुपये का कर्ज सरपर लेकर इन सभी लोगों को मदद की ! लेकिन जितनी क्रांतिकारी कविता नामदेव ढसाल लिखता था ! उसके विपरीत उसका व्यक्तिगत जीवन देखकर मै दलित पैंथर जाॅइन करते-करते रुक गया ! क्योंकि कुछ भी किया तो भी वह स्टार लीडर के स्तर पर चला गया था ! तो मैंने तय किया कि कुछ भी हो अपना सेवा दल ही ठीक है ! इस तरह के मानसिक अवस्था में सत्तर के दशक में मै सतत दोलायमान मनस्थिती से गुजरते-गुजरते जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से सही राह पकड कर, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की महाराष्ट्र इकाई के स्थापना ! और पस्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण मे संगठन फैलाने की कोशिश में लग गया ! दलित पैंथर के स्थापना मे मेरे करीब के दोस्त लतिफ खाटिक के कारण थोड़ा बहुत संबंध बना रहा! लेकिन नामदेव ढसाल ने आपातकाल में इंदिरा गाँधी के पार्टी ,फिर शिवसेना और उसके अन्य पतन खुद उसकी पत्नी मालिका अमरशेख (मला उध्व्स्त व्हायचय = मुझे बरबाद होना है !) नाम के आत्मकथन मे पर्याप्त मात्रा में नामदेव ढसाल के गुनाहो की तफसीलसे जानकारी लिख रखी है !
और मेरे लिए किसी इझम के साथ उसके आचरण करने वाले लोगों के उपर भी ज्यादा ध्यान ज्याता है ! और वह राष्ट्र सेवा दल के भी क्यों न हो ! मेरे नजर में ऐसे लोगों की किमत समाप्त हो जाती है ! जैसे नामदेव ढसाल ने काफी साहित्यिक नाम कमाया है ! लेकिन उसके व्यक्तिगत जीवन को देखकर मै विरक्त हो गया ! और आपातकाल के बाद मेरा उससे संबंध समाप्त हो गया था ! लेकिन अशोक शहाणे और सतीश काळसेकर यह दो दोस्त उसके साथ लगातार संपर्क में रहने के कारण वह मुझे अपटूडेट करते रहते थे ! लेकिन मुझे कोई भी व्यक्ति कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हो उसके व्यक्तिगत जीवन में अमानवीय व्यवहार और उसकी कला विषयक निर्मीती और व्यवहार में परस्पर विरोधी बात मुझे बर्दाश्त नहीं होती है ! और उसके प्रतिभावान होने को लेकर शक-शुभा लगते रहता है ! फिर वह कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हो !
नागपुर में भी मराठी कविता मे जिसकी सबसे ज्यादा नकल की जा रही है ! और दर्जनों लोगों दिलों पर वह राज करते हुए ! आदमी के रूप मे उनकी क्षुद्रता और कवि के रूप मे कविताओ मे लिखा तत्वज्ञानी कवि व्यक्तिगत जीवन में अमानवीय, पागलपन की हद तक जाने वाला देखकर मैंने उसके साथ अपनी दोस्ती तौबा कर ली ! उसी तरह नागपुर के ही ! भारतीय नाट्य लेखन में बहुत बडा नाम बन चुके महाशय के, सिर्फ अपने आपमें व्यस्त और(नार्सिस्ट) अन्य सभी दुनिया के प्रति तुच्छता का भाव ! सतत चेहरे पर देख कर मैं दूर हट गया ! अन्यथा जेपी आंदोलन के समय उन्होंने जबरदस्ती मेरे किसी दूसरे मित्र के घर से अपने घर लेजाकर, अपने आप को खुब कोसकर मुझे अपने घर ठहरते जाने का आग्रह किया लेकिन उनके इस तरह के अचानक बदले व्यवहार से मै आश्वस्त नहीं हो पाया और जिस मित्र के घर पर ठहरा हुआ था वही रहा ! उनके दिये नाटकों से भी बढकर डायलाग और प्रत्यक्ष व्यवहार मे कितना अंतर ? मेरा सबसे प्रिय अभंग संत तुकाराम महाराज का (बोले तैसे चाले, त्याची वंदावी पाऊले != जो जैसा बोलता है वैसा ही व्यक्तिगत जीवन में व्यवहार करता है उसके पाँव छुना चाहिए !)
सतीश काळसेकर मेरे जीवन मे नब्बेके दशक में कलकत्ता वासी होने के कारण आये ! शायद उस समय कलकत्ता कम्यूनिस्टो की मक्का होने के कारण या काॅलेज स्ट्रीट के किताब के मार्केट फुट पाथ वाले ! क्योंकि सतीश जूनून की हदे पार करने वाले बुक कलेक्टर था ! मुंबई के मित्रों मे नवीं क्षितिजे के विश्वास पाटील के बाद मेरे परिचय मे यह दूसरा दोस्त था जो बेतरतीब किताब कलेक्सन करता था ! सचमुच उनमेसे उसने कितनी किताबों को पढने के लिए समय निकाला पता ही नहीं चला ! सबसे पहले बहुत ही बेहतरीन इन्सान ! और बाद में कवि, लेखक और सामाजिक सरोकार ,अपनी सीपीआई के फ्रेम से बाहर आकर निभाते रहे ! फिर नर्मदा आंदोलन की बात हो या सांप्रदायिक राजनीति और पर्यावरण के सवालों को लेकर खुद अपनी बैंक की नौकरी में से समय निकाल कर भाग लेते रहे ! और पार्टी के कारण काफी लोग अंधभक्त हो जाते हैं ! (रेजिमेंटेशन! )लेकिन सतीश पार्टी से बडा था !
इसलिए कभी भी आपातकाल का समर्थन नहीं किया !(क्योंकि आज भी पार्टी ने अधिकृत रूप से माफी मांगी है कि आपातकाल में हमने गलती की है !) लेकिन आज भी मुझे मिलते-जुलते हैं तो सी पी आई के पुराने मित्र गाहे-बगाहे समर्थन करने से बाज नहीं आते!लेकिन सतीश काळसेकर ने कभी भी नहीं समर्थन किया ! और विकास की अवधारणा की बात को बहुत ही बेहतरीन तरीके से वह समझता था ! कभी भी उसके सोच और व्यवहार में परस्पर विरोधी बात मुझे तो नहीं दिखाई दी ! पेण के हाऊसिंग प्रोजेक्ट में मुझे भी इन्वॉल करने की कोशिश की ! लेकिन नीलू दामले ने आगाह किया कि हम तो फस बैठे तुम मत फसो ! अन्यथा में सतीश, अशोक शहाणे और अन्य प्रतिभाओं के सोहबत मे होता ! पेण के हाऊसिंग प्रोजेक्ट के सभी दोस्तों की उम्र कमअधिक आसपास की ही है ! और सतीश काळसेकर के साथ अब अन्य लोगों के लिए भी मै सतीश काळसेकर आज सुबह हमारे बीच से चले जाने के कारण, मानसिक रूप से तैयार हो रहा हूँ !
सतीश काळसेकर को भावपूर्ण श्रद्धांजलि