भोपाल। प्रदेश में किसी दौर में 19=20 तक विधानसभा क्षेत्रों की दावेदारी, टिकट की प्राप्ति और जीत का परचम लहराने की स्थिति रखने वाली मुस्लिम सियासत सिमटती दिखाई देने लगी है। महज दो विधायक और संगठन में मोर्चा=प्रकोष्ठ के हाशिए पर आ चुके उंगली पर गिने जाने वाले मुस्लिम नेताओं में गुटबाजियां चरम पर पहुंचती जा रही हैं।
हाल ही में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने अपनी प्रदेश कार्यकारिणी घोषित की है। श्योपुर निवासी प्रदेश अध्यक्ष रफत वारसी ने अधिकांश उन चेहरों को अपनी टीम में जगह दी है, जो मोर्चा के पिछले अध्यक्षों हिदायत उल्लाह शेख और डॉ सनवर पटेल की कार्यकारिणी से बाहर थे। पिछले दिनों अध्यक्षों के नजदीकी और उनकी टीम के मेंबर रहे लोगों को हाशिए पर रखकर रफत ने खुद के सबसे अलग होने का अघोषित ऐलान कर दिया है। कमोबेश यही हालत कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग में भी बनते नजर आ रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर इमरान प्रतापगढ़ी की ताजपोशी का असर प्रदेश कार्यकारिणी पर भी होता दिखाई देने लगा है। प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट मुजीब कुरैशी को बाय पास करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष ने राजधानी भोपाल के जिला अध्यक्ष पद पर चौधरी वाहिद अली को नियुक्ति दे है। हालांकि चौधरी का नाम निर्विवाद है लेकिन इस प्रक्रिया को प्रदेश अध्यक्ष के अधिकारों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।
सिमटते मुस्लिम नेता
प्रदेश में मुस्लिम नेताओं के नाम पर कांग्रेस के पास एक लंबी फेहरिस्त हुआ करती थी। रसूल अहमद सिद्दीकी, गुफरान आजम, अजीज कुरैशी, आरिफ अकील, असलम शेर खान जैसे कई नाम प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक पहचान रखते थे। जबकि भाजपा को हसनात सिद्दीकी, आरिफ बेग जैसे नामों का सहारा हुआ करता था। अब भाजपा कांग्रेस के पास उंगली पर गिने जाने जैसे नेताओं का सहारा है, जिनका कद और कार्य प्रदेश की सीमाओं तक भी मुश्किल से पहुंच पाता है। जहां कांग्रेस के खाते में दो मुस्लिम विधायक आरिफ अकील और आरिफ मसूद, मुनव्वर कौसर के आगे की पंक्ति लगभग खाली दिखाई देती है, वहीं भाजपा के खाते में एसके मुद्दीन, शौकत मोहम्मद खान, न्याज मोहम्मद खान, जाफर बेग, कलीम अहमद बच्चा, सनवर पटेल, हिदायत उल्लाह शेख, सलीम कुरैशी, राशिद खान, रफत वारसी जैसे चंद नाम हैं, इनमें भी अधिकांश भाजपा के अच्छे दिनों के साथी हैं।
29 सीटों पर असर, आवाज बेअसर
जानकारी के मुताबिक प्रदेश की करीब 29 विधानसभा सीटें मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती हैं। लेकिन जहां कांग्रेस ने अपने टिकट आंकड़े को समेट कर दो तीन पर कर दिया है, वहीं भाजपा ने पिछले दो चुनाव से मुस्लिम प्रत्याशी भी भरोसा करना शुरू किया है। हालांकि राजधानी में दोनों बार उत्तर विधानसभा की सशक्त कांग्रेस सीट पर इनको मौका दिया गया, जहां इनके हिस्से पराजय आई। मुस्लिम सीटों और समाज के लोगों तक पार्टी की बात पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले मोर्चा और प्रकोष्ठ की आपसी फूट और बेअसर आवाज पार्टी के लिए निरर्थक साबित हो रही है।
मुस्लिम संस्थाओं तक दौड़
भाजपा और कांग्रेस से जुड़े मुस्लिम नेताओं की दौड़ महज मुस्लिम संस्थाओं मप्र वक्फ बोर्ड, राज्य हज कमेटी, मदरसा बोर्ड, उर्दू अकादमी, अल्पसंखयक आयोग, मसाजिद कमेटी तक सीमित है। पर्दे के पीछे से मिल जाने वाली उपकार नियुक्ति से आगे चुनाव का सामना करने में अधिकांश नेताओं की अरुचि ही दिखाई देती है।