भोपाल। अब दिन, हफ्ते, महीनों की गिनती नहीं रही, बात सालों पर जा पहुंची है। सूबे के मुस्लिम ईदारे दिन ब दिन बदहाली की गर्त में पहुंचते जा रहे हैं। न जिम्मेदार और न सरकार की तवज्जो, नतीजा मप्र वक्फ बोर्ड, हज कमेटी, अल्पसंख्यक आयोग, मदरसा बोर्ड, उर्दू अकादमी, मसाजिद कमेटी अपने वजूद को खोते जा रहे हैं। इनसे जुड़ी मुस्लिम समुदाय की जरूरतें, अपेक्षाएं, राहतें छिटकती जा रही हैं।
नारद मुनि ने आज इन मुस्लिम इदारों की तरफ नजर दौड़ाई तो यहां से वहां तक बेहाली नजर आई। हमारे विशेष संवाददाता खान आशु की खास रिपोर्ट…
अधिनियम हो रहा धूमिल
अल्लाह की जायदाद मानी जाने वाली अरबों रुपए की संपत्ति की देखभाल के लिए काम करने वाले मप्र वक्फ बोर्ड का निजाम वक्फ अधिनियम 1995 से संचालित होता है। लेकिन अजब एमपी=गजब एमपी में हालात ये हैं कि यहां इस अधिनियम को बला ए ताक पर रख दिया गया है। लंबे समय से अधिनियम के मुताबिक इसकी प्रबंधन कमेटी (बोर्ड) का गठन हो पा रहा है और न ही तय मापदंडों के मुताबिक यहां सरकारी अधिकारी की नियुक्ति हो रही है। सियासी दखल से नाममात्र की कमेटी और काम चलाऊ अफसर अरबों रुपए की जायदाद पर अपनी कम अक्ली और अल्पज्ञान के साथ संपत्तियों को खुर्दबुर्द करने में जुटे हैं।
अकीदत की राह मुश्किल
इस्लामी मान्यताओं में शामिल एक खास कर्म (फरीजा) हज को पूरा कराने में मदद के लिए बनी राज्य हज कमेटी पिछले कई सालों से ओहदेदारों से खाली है। भाजपा, कांग्रेस और फिर भाजपा शासनकाल के आने तक यहां की कमेटी नहीं बन पाई है। नतीजा प्रभार के अधिकारी कर्मचारियों के जिम्मे यहां के इंतजाम हैं। अकीदतमंदों के फॉर्म जमा होने से पराए देश में हज के इंतजाम होने तक में इस स्थिति से मुश्किलें फैली हुई हैं। सरकारों की बेरुखी से ज्यादा अधिकारी कर्मचारियों के अपने निहित स्वार्थ इस कमेटी को वजूद में नहीं आने दे रहे हैं।
कहां करें गुहार
अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी समस्याओं और जरूरतों को सरकार तक पहुंचाने वाला आयोग पिछले कई सालों से खाली पड़ा है। यहां ओहदेदारों के नाम पर महज एक सदस्य है, वह भी कांग्रेसी। हालात ये हैं कि लम्बे समय से यहां न कोई अपना दुखड़ा लेकर पहुंचा, न उस पर कोई सुनवाई और न ही सरकार की तरफ कोई सिफारिश रवाना हो सकी है।
तालीम के रास्ते बाधित
मुस्लिम बच्चों को आसान तालीम मुहैया कराने वाला मप्र मदरसा बोर्ड लगातार तीसरी सरकार आने तक भी पदाधिकारी नहीं पा सका है। बोर्ड गठित न हो पाने का नतीजा यह है कि यहां की व्यवस्था लंबे समय से उधार के एक अफसर के हवाले है, जो बोर्ड कार्यालय से कई किलोमीटर दूर डीपीआई दफतर में बैठकर सारी व्यवस्था सम्हाल रहे हैं। सारा दिन फाइलों की शहर दौड़ और विभागीय गोपनीयता को धता दिखाने के बीच शिक्षा के सारे रास्ते इस बोर्ड से बंद जैसे हो चुके हैं।
कुछ बंद, कुछ कगार पर
मुस्लिम समुदाय से जुड़े विभागों से सरकारों की बेरुखी ने कुछ विभागों में तालाबंदी के हालात बना दिए हैं तो कुछ के बंद होने के हालात बन चुके हैं। मप्र अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम बरसों से मरणासन्न अवस्था में है। मप्र उर्दू अकादमी का वजूद संस्कृति विभाग में सिमट गया है। ओकाफ़ ए अम्मा को मप्र वक्फ बोर्ड में मर्ज करने की तैयारी कर दी गई है। इमाम मुअज्जिन की तनख्वाह और मस्जिदों की देखरेख करने वाली मसाजिद कमेटी से इससे जुड़े लोगों की अपेक्षाएं पूरी होने में बाधाएं खड़ी हुई हैं।