spa-govबेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह फिर समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे. इन दिनों यह चर्चा समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व के स्तर पर सरगर्म है. मुलायम सिंह यादव के अस्वस्थ होने पर बेनी प्रसाद वर्मा उनसे उनके घर पर जाकर मिले थे. मुलायम का हाल-चाल लेने अमर सिंह गुड़गांव के मेदांता अस्पताल तक गए थे. स्वस्थ होने के बाद घर लौटे मुलायम सिंह ने अमर सिंह की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की. बेनी पर अभी मुलायम चुप हैं. इस चुप्पी के तकनीकी कारण भी हैं. 2017 का विधानसभा चुनाव दरवाजा खटखटाए, उसके पहले ही सपाई परिवार के पुराने सदस्यों को घर में दाखिल करा लेना चाहते हैं अभिभावक मुलायम सिंह यादव. अमर सिंह की प्रशंसा तब हुई, जब पार्टी के अन्य नेताओं के बारे में मुलायम अपनी नकारात्मक राय रख रहे थे. मसलन, सपा नेता पढ़ते-लिखते नहीं, उन्हें कोई जानकारी नहीं रहती, वे खुद चापलूस हैं और चापलूसों से घिरे रहते हैं, वे पार्टी कार्यकर्ताओं के कामकाज पर न नज़र रख सकते हैं और न उन्हें कोई सीख देने की क्षमता रखते हैं. ऐसे नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को महत्वपूर्ण जानकारियां या सलाह कैसे दे सकते हैं, वगैरह-वगैरह. मुलायम ने यह कहते हुए अमर सिंह की खूब तारी़फ की. यानी अमर सिंह में वे सारी खूबियां हैं, जो अन्य नेताओं में नहीं हैं.
स्वाभाविक है कि इस तारी़फ का ताप कई नेताओं के ऊपर चढ़ा होगा. उनमें से कई नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व मंडल में अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा को सपा में वापस लाने के बारे में हुए विचार और सहमति की जानकारी नहीं है. जानकारी होती, तो उन्हें समझ में आ जाता कि लोहिया जयंती के मा़ैके पर अमर सिंह की सार्वजनिक प्रशंसा और उसके तीन दिन बाद ही अमर सिंह और मुलायम की लखनऊ में हुई मुलाकात आकस्मिक नहीं, बल्कि सोची-समझी थी. अब अमर-जयाप्रदा और बेनी की पार्टी में वापसी के तौर-तरीकों के बारे में मंथन हो रहा है. इसके पहले अमर सिंह ने प्रोफेसर राम गोपाल यादव और आजम खान के प्रति मुलायमियत भरे शब्दों का सार्वजनिकीकरण करना शुरू कर दिया है. सपा प्रमुख मुलायम से मिली सराहना के चौथे दिन अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव की मुलाकात क़रीब घंटे भर चली. स्वाभाविक है कि घंटे भर की मुलाकात में केवल कुशलक्षेम ही नहीं पूछा गया होगा. यह सियासी ज़रूरत है कि दोनों के बीच हुई बातचीत फिलहाल जग-जाहिर न हो, लेकिन पार्टी में चर्चाओं को कौन रोक सकता है. मुलायम से मिलकर बाहर निकले अमर ने इतना ही कहा कि लोहिया जयंती पर मुलायम ने उनकी जो सराहना की थी, वह उनके उस बड़प्पन का शुक्रिया अदा करने गए थे. अखिलेश से मुलाकात के बारे में उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री से नहीं, बल्कि अपने भतीजे से मिलने गए थे. अगर मुख्यमंत्री से मिलने जाते, तो घंटा भर नहीं रुकते, 10-15 मिनट में ही लौट आते. सपा में वापसी के बारे में अमर ने चुप्पी साध ली. इन सब बातों-संवादों के अपने निहितार्थ हैं.

राजनीतिक प्रेक्षक भी यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सरकार होने के बावजूद समाजवादी पार्टी संक्रमण की स्थितियों से गुजर रही है, इसलिए पार्टी के विभिन्न रंग पटल पर आ रहे हैं. सरकार में शामिल मंत्रियों के भ्रष्टाचार का मसला हो या सपा नेताओं की गद्दारी का, भ्रष्ट मंत्रियों के ़िखला़फ कोई कार्रवाई न करने की मुख्यमंत्री अखिलेश की जिद हो या पार्टी में नेतृत्व के स्तर पर गहरा रही खेमेबंदी हो, यह सारी स्थिति पार्टी का भीषण नुक़सान कर रही है.

फरवरी 2010 में सपा से निष्कासित होने के बाद अमर सिंह पांच अगस्त, 2014 को जनेश्वर मिश्र की जयंती पर सपा के सार्वजनिक मंच पर प्रकट हुए थे. छोटे लोहिया कहे जा रहे जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने पार्क के लोकार्पण समारोह में अमर सिंह खास तौर पर न्यौते गए मेहमान थे. उन्हें यह न्यौता खुद मुलायम सिंह यादव ने दिया था. इस आमंत्रण पर आजम खान एवं प्रोफेसर राम गोपाल यादव जैसे दिग्गज नाराज़ भी हो गए थे और कार्यक्रम में शरीक नहीं हुए थे. तब कहा गया था कि अमर सिंह राज्यसभा की सांसदी बचाने के लिए व्याकुल हैं, लेकिन उस कथित व्याकुलता का कोई नतीजा नहीं निकला. अमर सिंह राज्यसभा की सांसदी नहीं बचा पाए, लेकिन उसके बाद भी उनकी सपा प्रमुख से मुलाकातें होती रहीं. सपा नेताओं का एक खेमा अमर सिंह को पार्टी में फिर से शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व को कुछ नेताओं की नहीं, बल्कि पार्टी के भविष्य की चिंता है. मुलायम अब समाजवादी पार्टी के तमाम अनुत्पादक तत्वों को किनारे करना चाहते हैं, इसलिए वह पार्टी को बार-बार यह एहसास करा रहे हैं कि अमर सिंह जब पार्टी में थे, तो उन्होंने पार्टी के लिए क्या-क्या किया था. लोकसभा चुनाव में स्वनामधन्य दिग्गजों ने क्या प्रदर्शन किया और उसका क्या नतीजा निकला, उसे सब देख चुके हैं. लिहाजा पार्टी में यह समय आ गया है कि ग़ैर-उत्पादक नेताओं और उत्पादक नेताओं के बीच स्पष्ट लाइन खींची जाए. मुलायम यही चाहते हैं. उनके स्वास्थ्य ने उनकी इस चिंता को और प्रगाढ़ किया है.
अमर सिंह ने पिछले दिनों चौथी दुनिया से बात करते हुए कहा था, भूतकाल व्याकुल करे या भविष्य भरमाए, वर्तमान में जो जिए तो जीना आ जाए. लिहाजा वर्तमान यही है कि अमर सिंह की सपा में वापसी की तैयारियां शुरू हैं. सपा में आने की फिर से शुरू चर्चा पर अमर सिंह ने कहा था, मैं क्या करूं, अगर चर्चा होती है तो. मैं कुछ भी करता हूं, तो चर्चा होती है और बहुत लोग बहुत कुछ करते हैं, तो चर्चा नहीं होती. यही तो मलाल है लोगों को, तो इसके लिए मैं क्या करूं? लेकिन, इन चर्चाओं के बरक्स अमर सिंह अगर यह भी कहते हैं कि सियासत की अपनी ज़ुबान होती है, लिखा हो इंकार तो इकरार पढ़ना, तो उसके गहरे मायने हैं ही. सियासत की इस ज़ुबान के गहरे अर्थ के नज़रिये से देखें, तो अमर की बातें समझ में आती हैं. इस बार आजम खान और राम गोपाल यादव के लिए अमर सिंह का सुर पूरी तरह बदला हुआ था, लेकिन पिछली बार उन्होंने ही कहा था, आजम खान जैसे लोग देश, समाज और राजनीति की विसंगति हैं. मैं आजम की दुनिया का कभी हो नहीं सकता. जो शख्स यह कहता हो कि करगिल के युद्ध में केवल मुसलमानों ने शहादत दी, वह किसी भी स्तर पर नीचे गिर सकता है. ऐसा कहना शहीदों और देश का अपमान है. शहीद का कोई धर्म नहीं होता, वह केवल हिंदुस्तानी होता है. अल्लामा इकबाल ने भी कहा कि हिंदी हैं हम, वतन है

स्वाभाविक है कि इस तारी़फ का ताप कई नेताओं के ऊपर चढ़ा होगा. उनमें से कई नेताओं को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व मंडल में अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा को सपा में वापस लाने के बारे में हुए विचार और सहमति की जानकारी नहीं है. जानकारी होती, तो उन्हें समझ में आ जाता कि लोहिया जयंती के मा़ैके पर अमर सिंह की सार्वजनिक प्रशंसा और उसके तीन दिन बाद ही अमर सिंह और मुलायम की लखनऊ में हुई मुलाकात आकस्मिक नहीं, बल्कि सोची-समझी थी.

हिंदोस्तां हमारा. और, यह आजम खान देश और सेना पर कटाक्ष कर रहा है! तो यह किसे छोड़ देगा! क्या यह मुलायम, अखिलेश और शिवपाल को छोड़ देगा! खैर, अब यह समय पर है कि सपा की सियासत किसे छोड़ती है और किसे पकड़ती है.
राजनीतिक प्रेक्षक भी यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सरकार होने के बावजूद समाजवादी पार्टी संक्रमण की स्थितियों से गुजर रही है, इसलिए पार्टी के विभिन्न रंग पटल पर आ रहे हैं. सरकार में शामिल मंत्रियों के भ्रष्टाचार का मसला हो या सपा नेताओं की गद्दारी का, भ्रष्ट मंत्रियों के ़िखला़फ कोई कार्रवाई न करने की मुख्यमंत्री अखिलेश की जिद हो या पार्टी में नेतृत्व के स्तर पर गहरा रही खेमेबंदी हो, यह सारी स्थिति पार्टी का भीषण नुक़सान कर रही है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाहे जितना भी कहें कि उत्तर प्रदेश में जनता की सरकार है और जनता के विचारों पर सरकार काम कर रही है, लेकिन उनका यह बयान छद्म है, ज़मीनी हक़ीक़त उससे अलग और विद्रूप है. मुख्यमंत्री चाहे कितना भी कहते रहें कि समाजवादी पार्टी की सरकार नेताजी के रास्ते पर चल रही है, लेकिन मुख्यमंत्री का यह बयान छद्म है, क्योंकि मुलायम बार-बार भ्रष्ट मंत्रियों की करतूतों का जिक्र करते रहे, सार्वजनिक मंचों से मुख्यमंत्री को ललकारते रहे, लेकिन अखिलेश पर इसका कोई ़फर्क़ नहीं पड़ा और उन्होंने भ्रष्ट एवं चाटुकार मंत्रियों पर कोई कार्रवाई नहीं की. मुलायम के यह कहते-कहते तीन वर्ष बीत गए. परेशान मुलायम ने पिछले दिनों यह भी कह दिया कि पार्टी के कुछ लोग उनकी निगरानी कर रहे हैं, उनकी जासूसी करा रहे हैं. वे यह जानकारी लेने में लगे रहते हैं कि लखनऊ से दिल्ली तक मैं किनसे मिल रहा हूं, क्या बातें कर रहा हूं. संपूर्ण विपक्ष ने मुलायम के इस बयान को अत्यंत गंभीर बताया. बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा कि यदि सत्ताधारी दल के मुखिया अपने ही लोगों पर जासूसी का आरोप लगा रहे हैं, तो यह एक गंभीर मामला है. इस पर सपा सरकार को शर्मिंदा होना चाहिए. इससे ज़्यादा शर्मनाक हालत अखिलेश सरकार के लिए कुछ और नहीं हो सकती. मौर्य ने कहा कि सपा सरकार की अराजकता अब मुलायम सिंह यादव के मुंह से अभिव्यक्त हो रही है और इसकी जांच कराई जानी चाहिए कि उनकी जासूसी कौन करा रहा है. भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने भी कहा कि सपा प्रमुख खुद कह रहे हैं कि पार्टी के कुछ लोग उनकी निगरानी कर रहे हैं. उनका यह बयान दर्शाता है कि पार्टी में परस्पर विश्वास की कमी है. भाजपा ने आशंका जताई कि जब सपा प्रमुख की निगरानी हो रही है, तो विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक के नेताओं की भी हो रही होगी. पाठक ने कहा कि जब मुलायम को मालूम है कि उनकी निगरानी कौन कर रहा है, तो उन लोगों के ़िखला़फ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है?


…तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेगी सपा

समाजवादी पार्टी में तमाम अंदरूनी खींचतान के बीच जनता दल परिवार को एक छत के नीचे लाने की तैयारी को औपचारिक शक्ल देने की कवायद चल रही है. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव इस परिवार के नेता तो होंगे ही, लेकिन नेतृत्व का विकेंद्रीकरण कैसे होगा और समाजवादी पार्टी के नेता-कार्यकर्ता किस-किसको अपना नेता मानेंगे, इसे लेकर भीषण पचड़ा फंसा हुआ है. जनता परिवार का नाम क्या होगा, इस पर भी मतभेद है. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सपा का नाम बदले जाने को लेकर कतई सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि जिस नाम को इतने संघर्षों के बाद स्थापित किया गया, उसे बदलना अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा. तब, जबकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सामने है. पार्टी का चुनाव चिन्ह (सिंबल) और झंडा जैसे महत्वपूर्ण मसले भी फंसे हुए हैं. पहले तय हुआ था कि सपा के साइकिल चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ा जाए और जनता दल परिवार का भी यही अधिकारिक सिंबल हो, लेकिन दक्षिण में तेलगुदेशम पार्टी का भी चुनाव चिन्ह यही है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में नेशनल पैंथर्स पार्टी, केरल में केरल कांग्रेस और मणिपुर में मणिपुर पीपुल्स पार्टी का चुनाव चिन्ह भी साइकिल है. इससे जनता दल परिवार के राष्ट्रीय पार्टी होने पर चुनाव चिन्ह का मसला खड़ा होगा. जनता परिवार का झंडा कैसा हो, इस पर भी तमाम परस्पर विरोध और अंतर्विरोध के बीच प्रयास जारी है. नई पार्टी के संविधान और राजनीतिक एजेंडे पर भी अभी ़फैसला होना बाकी है.


राज करने वाले को चुभता है बब्बर का कांटा

समाजवादी पार्टी की अंदरूनी गतिविधियों पर गहरी नज़र और जानकारी रखने वाले वरिष्ठों का कहना है कि अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा को सपा में शामिल करने पर हुए विचार में एक प्रस्ताव राज बब्बर को भी वापस लाने के बारे में था. तब राज बब्बर उत्तराखंड से राज्यसभा के लिए चुने नहीं गए थे या कहें, तब तक कांग्रेस आलाकमान ने इस बारे में विचार नहीं किया था. लेकिन, जैसे ही कांग्रेस को यह भनक मिली कि राज बब्बर को सपा में लाने की सुगबुगाहटें चल रही हैं, उत्तराखंड से उनका राज्यसभा में जाना फाइनल हो गया. पर उधर बब्बर का नाम प्रस्तावित करने वाले नेता की तो वाट लग गई. फिरोजाबाद चुनाव में डिंपल यादव की राज बब्बर के हाथों हुई हार का कांटा इस कदर चुभा हुआ है कि वह नाम पार्टी में मिसाइल का असर दिखा रहा है.


जया बच्चन पर गुस्सा निकल ही आया
राम गोपाल और आजम के लिए संयत शब्दों का इस्तेमाल करने वाले अमर सिंह जया बच्चन पर अपना गुस्सा रोक नहीं पाए. अमर ने कहा कि जया बच्चन जैसे लोग केवल एसी में बैठकर राजनीति करते हैं और एमपी बन जाते हैं. इन जैसे लोगों ने गांव-गांव जाकर काम किया होता, तो नतीजे कुछ और होते. अमर सिंह ने आजम खान से मतभेद से इंकार किया और कहा कि आजम से उनका कोई बैर नहीं है. आजम से उनका मतभेद केवल रामपुर के चुनाव तक ही सीमित था, जयाप्रदा वहां से चुनाव लड़ रही थीं और अब उन्होंने रामपुर छोड़ दिया, तो कोई विवाद ही नहीं बचा.


सपा से टिकट चाहिए, तो लोहिया को पढ़ो
मुलायम सिंह यादव ने कहा कि पार्टी का टिकट लेने वालों के लिए शर्त होगी कि वह लोहिया को पढ़ें. जो लोहिया को पढ़ेगा, उसे ही टिकट मिलेगा. मुलायम ने कहा कि स़िर्फ नारेबाजी और तारी़फों से काम नहीं चलेगा. समाजवादी पार्टी में पदाधिकारियों और टिकटार्थियों के लिए पहले लोहिया को पढ़ने और समझने की शर्त होगी. समाजवादी आंदोलन बड़े संघर्ष और कुर्बानियों से आगे बढ़ा है. इसके इतिहास और नेतृत्व के बारे में नौजवानों को जानना चाहिए. बड़े संघर्ष के बाद पार्टी सत्ता में आई है. हमें लोहिया के सिद्धांतों पर चलना होगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here