पिछले कुछ समय में ऐसी कई घटनाएं हुईं जहां लोगों ने दोषी को खुद सजा दे दी. इस तरीके की शिक्षित तबके ने बहुत निंदा की और ये सही भी है कि देश की कानून व्यवस्था और न्यायव्यवस्था के सम्मान के साथ कोई समझौता होना भी नहीं चाहिए. लेकिन जब हमारे जनप्रतिनिधि ही खुद कानून अपने हाथ में लेने लगें तो इसे आप क्या कहेंगे? कुछ दिन पहले ऐसा ही नजारा मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के एक टोल नाके पर देखने को मिला.
जहां एक सांसद और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार सिंह ने एक टोल पर टोल कर्मचारी को सरेआम पीटा. वीडियो वायरल होने के 24 घंटे बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. यह बात अलग है कि मानवाधिकार आयोग ने इसका संज्ञान लिया है. नंद कुमार सिंह के अनुसार, शिवपुरी के एक टोल पर उन्होंने अपना परिचय पत्र दिखाया, लेकिन कर्मचारी टोल लेने पर अड़ा हुआ था. उसने कहा कि हमारे टोल पर सांसद वांसद नहीं चलते.
इस बातचीत से उत्तेजित होकर नंद कुमार सिंह ने कर्मचारी को पीटना शुरू कर दिया. नंद कुमार सिंह ने आरोप लगाया कि इस टोल पर पहले भी लोगों के साथ बदतमीजी होती आ रही है और कुछ लोगों से तो पैसे भी छीने गए हैं.
नंद कुमार सिंह एक सांसद हैं. संविधान के किस कानून ने उन्हें कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं दिया है. यदि टोल का कर्मचारी बदतमीजी करता है, तो वे उसके खिलाफ कम्पलेन कर उसे सस्पेंड भी करवा सकते थे. उसे नौकरी से निकलवा सकते थे. लेकिन खुद कानून हाथ में लेकर उसे मारना कहां तक ठीक है. उन्होंने प्रदेशाध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को इस बात की जानकारी दी और अपने आप को जस्टीफाई करने का प्रयास किया.
उनका ये आरोप है कि यहां पहले भी लोगों के साथ बदतमीजी होती आ रही है और कई लोगों के साथ पैसे भी छीनने के प्रकरण हुए हैं. यह हास्यास्पद लगता है. यदि पहले लोगों के साथ बदतमीजी हुई है और लोगों से पैसे छीने गए हैं, तो उस टोल पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई. यदि नंद कुमार को ये सारी बातें पता थी, तो वे अबतक क्यों चुप थे.
यदि पहले ही कार्रवाई होती, तो शायद उनके साथ ये बदतमीजी नहीं होती. हमारे देश में कानून का राज चलता है, लेकिन मध्य प्रदेश में जिस हिसाब से सांसद कानून अपने हाथ में लेते हैं, उससे पता चलता है कि मध्य प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी बुरी हो चुकी है.