इसे पानी की कमी कहें या संसाधनों का अभाव, राजस्थान में खेती को हमेशा से ही घाटे का सौदा माना गया है. लेकिन वर्तमान समय में इस राज्य के एक बड़े क्षेत्र में किसानी मुनाफे का माध्यम बनती जा रही है और यह कारनामा हो रहा है मोरारका फाउंडेशन के प्रयासों से. किसानों को ऑर्गेनिक खेती के प्रति जागरूक कर एम. आर. मोरारका जीडीसी रूरल रिसर्च फाउंडेशन न सिर्फ खेती में क्रांतिकारी बदलाव की दिशा में काम कर रहा है, बल्कि किसानों की जिंदगी को बेहतर बनाने में भी सहयोग कर रहा है.
भारत सरकार के लिए जब कि डबल इनकम महज नारों तक ही सिमित है, ऐसे समय में मोरारका फाउंडेशन डबल-डबल इनकम की दिशा में कार्य कर रहा है. इस बारे में चौथी दुनिया से बात करते हुए मोरारका फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ. मुकेश गुप्ता कहते हैं कि खेती किसानी को जीवित रखना है, तो हमें ऑर्गेनिक के रास्ते पर चलना ही होगा और हम अपने फाउंडेशन के माध्यम से उसी दिशा में प्रयत्न कर रहे हैं. अच्छी बात यह है कि किसान भी इसके लिए खुलकर सामने आ रहे हैं. नवलगढ़ से शुरू हुआ हमारा ऑर्गेनिक फार्मिंग का सफर आज देश की हतर सीमा तक पहुंच गया है.
क्या यह संभव है कि 18 वर्षों तक सउदी अरब में सेल्स मैन के पद पर कार्य करने वाला व्यक्ति अपने गांव लौटकर इस तरह खेती-किसानी में रम जाए कि उसके खेत उसे अरब की नौकरी से ज्यादा पैसे देने लगें? पहली बार सुनने पर यह असंभव लगता है, लेकिन यह संभव हुआ है मोरारका फाउंडेशन के प्रयासों से. बेरी गांव के सुल्तान सिंह के पास 80 बीघा जमीन थी, लेकिन 1998 में 11वीं पास करते ही वे सउदी अरब चले गए, जहां उन्होंने 18 साल तक सेल्स मैन की नौकरी की. हालांकि घर लौटकर अपना काम करने की उनकी चाहत हमेशा रही. यही चाहत 2016 में उन्हें हमेशा के लिए गांव खिंच लाई. खेती की जटिलताओं और इससे जुड़ी समस्याओं के समाधान में सुल्तान सिंह को मोरारका फाउंडेशन का साथ मिला और फिर वे अपनी गाड़ी चल निकली.
फाउंडेशन द्वारा बताए गए तौर-तरीकों से उन्होंने जुलाई 2017 में अपनी 10 बीघा जमीन में 2600 पपीता और 150 थाई एप्पल के पेड़ लगाए. इन 2600 पपीता के पौधों से उन्हें कुल छह लाख आठ हजार चार सौ रुपए की कुल आमदनी हुई. सिर्फ सुल्तान सिंह ही नहीं, ऐसे कई किसान हैं, जो मोरारका फाउंडेशन के दिशा-निर्देश पर खेती कर लाखों रुपए कमा रहे हैं. गत 2 वर्षों से मोरारका द्वारा फलदार फसलों को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण स्तर पर मीटिंग करके किसानों को जागरूक किया जा रहा है. मोरारका फाउंडेशन के इस अभियान से प्रभावित होकर 2016-17 में 29 गांवों के 43 किसानों ने फलदार फसलें, जैसे मौसमी, माल्टा, अनार, नींबू, बेल, आम, थाई एप्पल, किन्नू और पपीता के 11,456 पौधे लगाए थे, वहीं 2017-18 में यह अभियान 30 गांवों के 55 किसानों तक पहुंच गया और उन्होंने 17,340 पौधे लगाए.
घाटे का सौदा नहीं रही खेती
सिर्फ खेती ही नहीं, खेती से जुड़ी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भी मोरारका फाउंडेशन निरंतर प्रयासरत है. खेती के जरिए बिना ज्यादा मेहनत और बिना बड़ी लागत के किस तरह किसान अपने बल पर उद्यमी बन सकते हैं, इसे लेकर मोरारका फाउंडेशन किसानों को ट्रेनिंग भी देता है और आर्थिक सहायता भी. इसका एक बड़ा उदाहरण है, मधुमक्खी पालन. भारत में मधुमक्खी पालन की शुरुआत हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से हुई थी और वही से धीरे-धीरे इसका प्रसार पूरे देश में होने लगा. राजस्थान में पहली बार भरतपुर जिले में 1998 में मधुमक्खी पालन की शुरुआत हुई, लेकिन शेखावटी इलाके में इसकी शुरुआत मोरारका फाउंडेशन द्वारा 2017 में की गई. इसके लिए मोरारका फाउंडेशन ने सात चयनित किसानों को पूना स्थित प्रशिक्षण केंद्र भेजकर उन्हें मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिलवाया.
प्रशिक्षण के बाद मोरारका फाउंडेशन ने भरतपुर से मधुमक्खी पालन वाले 25 बॉक्स मंगाकर किसानों को मुहैया कराए. मधुमक्खी पालन के जरिए भी मोरारका फाउंडेशन किसानों के डबल-डबल इनकम की दिशा में कार्य कर रहा है. इसे एक किसान के उदाहरण से समझा जा सकता है. रघुनाथपुरा गांव के हरिराम सेना में काम करते थे. नौकरी के दौरान ही 2009 में वे मोरारका फाउंडेशन के जैविक खेती कार्यक्रम से जुड़े और उसके बाद से वे रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल करने लगे. 2010 में उन्होंने एक हेक्टेयर में 800 किन्नू के फलदार पौधे लगाए तथा 2011 में एक हेक्टेयर में 400 बेल के पौधे.
इन फसलों के जरिए ही वे विभिन्न प्रकार के जैविक उत्पाद बनाकर उपयोग में लाने लगे. 2015 में उन्होंने सेना से सेवानिवृति ले ली और उसके बाद पूरी तरह से खेती-किसानी में जुट गए. मोरारका फाउंडेशन की मदद से उन्होंने 12 हजार बॉयलर मुर्गी फार्म की शुरुआत की और उसके बाद 2016 में 50 देशी मुर्गी का फार्म खोला जो आज अच्छी आमदनी का माध्यम बना हुआ है. हरिराम उन किसानों में शामिल हैं, जिन्हें मोरारका फाउंडेशन ने मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण के लिए पूना भेजा था.
प्रशिक्षण प्राप् त हरिराम सरसो, तारामोरा, सूरजमुखी, मौसमी, किन्नू और अनार के पौधो के बीच मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. मधुमक्खी पालन के लिए ही उन्होंने डेढ़ बीघे में गुलाब का पौधरोपण किया है. हरिराम बताते हैं कि एक बॉक्स से प्रति वर्ष 60 किलो तक शहद बन सकता है, जिससे 180 रुपए पति किलो के हिसाब से 10,800 रुपए की कमाई आसानी से हो सकती है. यदि कोई किसान चाहे तो इसे व्यापार के रूप में विकसित कर एक लॉट में 50 बॉक्स से शुरुआत करके करीब साढ़े तीन लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा सकता है. मधुमक्खी पालन इस लिहाज से भी फायदेमंद है कि इससे फसलों एवं फलों के उत्पादन में भी करीब 20-25 फीसदी की वृद्धि हो जाती है.
नई तकनीक से आसान होती राह
चारागाहों की घटती संख्या और पानी की कम होती उपलब्धता ने किसानों और पशुपालकों के समक्ष चारे की समस्या खड़ी कर दी है. पशुओं के लिए सालभर हरा चारा उपलब्ध नहीं हो पाता. इस समस्या को ध्यान में रखते हुए मोरारका फाउंडेशन ने ग्रामीण स्तर पर माइक्रोग्रीन पशु आहार उत्पादन की तकनीक विकसित की है. इसके अनुसार, एक किलो मोटे दाने वाले मक्के को करीब डेढ़ लीटर पानी व 2 मिली एंटिफंगल जैविक आदान का घोल बनाकर 12-15 घंटे के लिए भिंगोना होगा. उसके उपरांत भींगे हुए मुलायम मक्के के दानों को दो फिट पांच फिट के गीले जूट के कटटों में 72 घंटे के लिए रखना होगा और उसमें आवश्याक्तानुसार पानी का छिड़काव करते रहना होगा.
फिर उसके बाद एक फिट एक फिट एक इंच के प्रति एक ग्रो बैग में 250 ग्राम अंकुरित दाने लगाने होंगे. इसमें प्रति दो घंटे बाद एक लीटर पानी और दो मिली एंटिफंगल जैविक आदान का घोल बनाकर स्प्रे करना होगा. ऐसा करने पर 12-15 दिनों में 13-15 इंच के माइक्रोग्रीन घास का उत्पादन हो सकता है. इसके जरिए आसानी से डेढ़ से दो किलो हरा चारा प्राप्त हो जाएगा. यदि किसी किसान के पास दो दुधारू पशु हैं, तो वो ऐसे 90 बैग की इकाई स्थापित कर प्रतिदिन 10 किलो हरा चारा उगा सकता है. इस तकनीक से बहुत कम स्थान, कम पानी एवं कम खर्चे में वर्ष भर हरा चारा पशुओं के लिए उपलब्ध रहेगा, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य तो सुधरेगा ही, दूध की मात्रा भी बढ़ेगी.
मोरारका फाउंडेशन गौशाला को लेकर भी नवलगढ़ के किसानों के हित में बेहतर कार्य कर रहा है. खासकर झुंझुनू वासियों के लिए आवारा पशुओं द्वारा फसलों का नुकसान और गांव की गलियों में पशुओं द्वारा बच्चों को मारना एक बड़ी समस्या थी. इससे निजात पाने के लिए ग्रामीणों ने आपस में मिलकर जोहड़ा में गौशाला का निर्माण किया. 14 जनवरी 2014 को स्थापित यह श्री कृष्ण गौशाला आज न सिर्फ पशुओं की आश्रय स्थली बना हुआ है, बल्कि मोरारका फाउंडेशन की सहायता से यहां रोजगार सृजन भी हो रहा है. फरवरी 2018 में नवलगढ़ स्थित ई-लाईब्रेरी में मोरारका फाउंडेशन के चेयरमैन श्री कमल मोरारका की उपस्थिति में गौशालाओं की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने को लेकर सभी गौशाला प्रबंधकों के साथ मीटिंग हुई थी. इसके बाद मोरारका फाउंडेशन की सहायत से गौशालाओं में गौ मूत्र अर्क, गौनायल, धूप बत्ती और गौकास्ट आदि का उत्पादन होने लगा.
शेखावाटी क्षेत्र की प्रतिभा को मिल रहा मंच
सिर्फ खेती-किसानी ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ी को एक बेहतर भविष्य देने की दिशा में मोरारका फाउंडेशन के प्रयास भी उल्लेखनीय हैं. हमारा वर्तमान विज्ञान का दौर है और इस दौर की दौड़ में नवलगढ़ जैसे क्षेत्र के बच्चे पिछड़े नहीं, इसके लिए मोरारका फाउंडेशन साइंस क्विज प्रतियोगिता का आयोजन करता है. इसके अंतर्गत शेखावाटी क्षेत्र के तीन जिलों चुरू, सीकर और झुंझुनूं के सौ स्कूलों के 11वीं और 12वीं कक्षा के विज्ञान के 17,120 विद्यार्थियों के लिए तीन चरणों में प्रतियोगिता आयोजित की गई.
इसमें प्रथम स्थान पाने वाले विद्यालय की टीम को 10 हजार, द्वितीय स्थान वालों को पांच हजार, तृतीय स्थान वाले को 25 सौ और चतुर्थ स्थान पाने वालों को 2000 रुपए का नगद इनाम दिया गया. इसके अलावा मोरारका फाउंडेशन रोजगारपरक शिक्षा को लेकर भी प्रयासरत है. इस वर्ष मोरारका फाउंडेशन द्वारा प्रथम चरण में नवलगढ़ क्षेत्र के आठ सरकारी स्कूलों में 29 अगस्त को लेक्चर आयोजित कराया गया, जिसमें छात्रों को विभिन्न प्रकार के कैरियर ऑप्शंस की जानकारी दी गई.
स्वयं सेवी समूह के माध्यम से महिला उद्यमिता पर ज़ोर
एक सशक्त समाज के लिए महिलाओं का सशक्त होना बेहद जरूरी है और इस दिशा में मोरारका फाउंडेशन बेहतरीन कार्य कर रहा है. ऐसे तो पिछले काफी समय मोरारका फाउंडेशन द्वारा बनाए स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाएं व्यक्तिगत रूप से व्यापार कर रही हैं. लेकिन कई बार इस स्तर पर व्यापार को बढ़ाने के लिए बड़ा लोन उपलब्ध नहीं हो पाता. इसलिए मोरारका फाउंडेशन मई 2017 से बैंक द्वारा महिलाओं को मुद्रा लोन दिलवा रहा है, जिससे महिलाएं अपना व्यापार बढ़ा सकें या कोई नया व्यापार शुरू कर सकें. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि बैंक महिलाओं को जो मुद्रा लोन देते हैं, उसके रि-पेमेंट की शत प्रतिशत गारंटी संस्था की होती है. अभी तक मोरारका फाउंडेशन के सहयोग से 35 महिलाओं को 18 लाख रुपए का मुद्रा लोन दिलवाया जा चुका है और अब तक कुल 5 लाख 36 हजार रुपए महिलाएं बैंकों में वापस जमा कर चुकी हैं.