एक तो गरीबी और बचपन से ही विकलांगता की मार झेल रहे व्यक्ति के लिए न तो कोई सरकारी योजना बनाई जाती हैं और न ही उनकी मदद के लिए कोई आगे आता है. गरीबों के लिए सरकारे बड़े-बड़े वायदे, तो करती हैं, लेकिन न उन पर अमल होता है और न गरीबों को उसका लाभ मिल पाता है. कुछ लोग गरीबी के कारण शहर जाते हैं और मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन जो विकलांग है वह शहर भी नहीं जा सकता उसे गांव में ही गरीबी के कारण मुफलिसी का जीवन व्यतीत करना पड़ता है. ऐसी ही कहानी थी राजस्थान के झुनझुनू जिला के शेखावती क्षेत्र नवलगढ़ के गांव घोरीवारा कलां में रहने वाली विकलांग नीलम कंवर और गांव चैनगढ़ के किसान धुड़ाराम की. वह भी गांव में गरीबी के कारण मुफलिसी का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर थे, लेकिन मोरारका फाउंडेशन की महत्वाकांक्षा सोलर लालटेन परियोजना उनके जीवन में एक रोशनी लेकर आई. मोरारका फाउंडेशन की सोलर लालटेन परियोजना की शुरूआत 2010 में हुई थी. सूरज की रोशनी को रात में भी लोगों के घरों तक पहुंचाने एवं उससे लोगों को रोजगार प्रदान के इरादे से मोरारका फाउंडेशन ने शेखावटी क्षेत्र में सौर उर्जा के इस्तेमाल के प्रति लोगों को जागरूक कर अपनी भूमिका को पांच सालों से सफलता पूर्वक निभा रहा है. जब हम घोड़ीवारा कलां गांव में रहने वाली नीलम कंवर की दास्ता सुनते हैं, तो एक अनोखी तस्वीर उभर कर सामने आती है. नीलम कंवर के पास न कोई जमीन है और न परिवार चलाने के लिए उसके पास कोई रोजगार था. उसके पास रहने के लिए केवल एक छोटा सा मकान था. नीलम उसी मकान मेंअपने तीन बच्चों और मजदूर पति के साथ गरीबी और अपंगता से लड़ रही थी. मोरारका फाउंडेशन ने अपने इसी योजना के तहत नीलम कंवर का चयन कर सौर उर्जा पैनल एवं अन्य संसाधन लगाए और उसको 25 सौर उर्जा से चलित लालटेन वर्ष 2011 में प्रदान किए. नीलम को इसके व्यावसायिक उपयोग से रोजगार मिल गया और उसका जीवन खुशियों से भर गया. वह इन लालटेनों को शादियों, समारोह, विद्यार्थियों और रात में खेतों में काम करने वाले किसानों को किराए पर देती हैं. बिजली न होने पर लोग इसका प्रयोग करते हैं और यह कम पैसे में लोगों को किराए पर प्राप्त हो जाता है. नीलम कंवर ने बताया कि वह अपने खर्चे बावजूद एक साल में 18 हजार रुपये की बचत की, जो कि एक गांव में विकलांगता की मार झेल रही महिला के लिए बहुत बड़ी बात है. इस रोजगार से अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने वाली नीलम कहती हैं कि अगर किसी में कार्य के प्रति जुनून हो तो किसी प्रकार की बाधा क्यों न आ जाए अर्थात मेहनत के प्रति सफलता अपने आप झुकती है. मेरे रोजगार के प्रचार-प्रसार हेतु मोरारका फाउंडेशन केंद्र पर रोजगार से संबंधित सारी सूचनाएं लिखवा रखा है तथा पम्पेलेट्स भी छपवा कर दे रखे हैं, जिन्हें आस-पास के गांवों में बांटकर अपने व्यवसाय का प्रचार कर इसके उपयोग से जो आय अर्जित होती है, उससे एक खुशहाल परिवार के रूप में जीवनयापन कर रही हूं. नीलम के चेहरे की खुशी बताती है कि उसके नि:शक्त जीवन को मोरारका फाउंडेशन ने सोलर लालटेन के जरिए रोजगार प्रदान कर एक नया आयाम दिया है.
मोरारका फाउंडेशन ने सौर उर्जा के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है और इसके इस्तेमाल द्वारा रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है. धुड़ाराम कहता है कि मोरारका फाउंडेशन न केवल रोजगार बल्कि मेरे अंधकारमय जीवन को एक सुनहरा अवसर भी प्रदान किया और अब मैं इस रोजगार के साथ-साथ सौर उर्जा के उपयोग के बारे में अधिक से अधिक जानाकरी जुटाकर क्षेत्र के लोगों को इसके प्रति जागरूक करूंगा और लगन से कार्य कर आय अर्जित करूंगा.
आगे बात करते हैं शेखावती क्षेत्र के चैनगढ़ गांव के किसान धुड़ाराम की जो एक सीमेंट फैक्टरी में काम करता था और कार्य के दौरान अपना एक हाथ गंवा बैठा. हाथ कटने के बाद कंपनी ने उसे बेसहारा छोड़ दिया. फिर क्या था एक हाथ गंवा बैठे धुड़ाराम गरीबी में जीवन-यापन करने लगा, लेकिन मोरारका फाउंडेशन ने इस वर्ष विकलांग धुड़ाराम जो गरीबी और बेरोजगरी से जुझ रहा था. धुड़ाराम का चयन कर सौर उर्जा पैनल व अन्य संसाधन लगाने एवं 25 सौर उर्जा से स्वचलित लालटेन प्रदान किए. फाउंडेशन इसके प्रचार-प्रसार हेतु क्रेंद्र पर पूरी सूचना दिया है और पम्पलेट्स छपवा कर दिया है, जिन्हें वो आस-पास गांवों में बांट कर प्रचार-प्रसार कर सके. फाउंडेशन ने धुड़ाराम को इसके उपयोग के बारे में बताया. फाउंडेशन ने सौर उर्जा के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है और इसके इस्तेमाल द्वारा रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है. धुड़ाराम कहता है कि मोरारका फाउंडेशन न केवल रोजगार बल्कि मेरे अंधकारमय जीवन को एक सुनहरा अवसर भी प्रदान किया और अब मैं इस रोजगार के साथ-साथ सौर उर्जा के उपयोग के बारे में अधिक से अधिक जानाकरी जुटाकर क्षेत्र के लोगों को इसके प्रति जागरूक करूंगा और लगन से कार्य कर आय अर्जित करूंगा. इसी प्रकार फाउंडेशन ने कई विकलांगों की जिंदगियां सवारी है और कटराथाल गांव निवासी कालू भट, कोलसिया गांव निवासी राधेश्याम, कोलिडा गांव निवासी मुरारी शर्मा और बसावा गांव निवासी दीपक यादव इन सभी विकलांगों को सौर उर्जा लालटेन के द्वारा रोजगार प्रदान कर इनके सपनों को साकार किया है. फाउंडेशन ने अपने इस अभियान से गांव-गांव केवल प्रचार-प्रसार ही नहीं कर रहा है गरीबी की मार झेल रहे विकलांगों को इसके जरिए रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है, जिससे वे अपने परिवार के साथ खुशी भरा जीवन जी सकते हैं. सरकार इस योजना को यदि पूर देश में लागू करे, तो विकालंाग लोगों को गरीबी से झुटाकारा मिल सकता है, वे नीलम कवंर की तरह अपने परिवार का पालन पोषण कर भविष्य भी संवार सकते हैं. विकलांगों के लिए बनाई गई सरकारी योजनाएं, तो उन तक नहीं पहुंच पाती हैं, सरकार को मोरारका फाउंडेशन से सीखना चाहिए. मोरारका फाउंडेशन अपनी सौर लालटेन परियोजना से गरीबों के जीवन में रोशनी भर रहा है