bundelkhand-ke-sattebaajविकास को परिभाषित करने के लिए आज हम जिस आधुनिक तकनीक का हवाला देते हैं, उसी आधुनिकता को आधार बनाकर अपराधी गिरोह समाज को सट्‌टे की सौगात परोस रहे हैं. टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल के सहारे खेले जाने वाले इस खेल का वैसे तो समूचा देश ही शिकार है, पर बुंदेलखंड में इसकी जड़ें कुछ ज्यादा ही गहराई तक धंस चुकी हैं. बीते दिनों झांसी में हुआ गैंगवार, उसमें हुई एक सट्‌टा माफिया की मौत और इस हत्या में शामिल आरोपियों की अबु सलेम तक पहुंच होने जैसा खुलासा इस बात की पुष्टि के लिए पर्याप्त है कि सूबे का सर्वाधिक पिछड़ा यह क्षेत्र अब सटोरियों की चंगुल में है. सट्‌टा कारोबार से जुड़े लोग यहां की

मुफलिसी को कैश करा रहे हैं और तंगहाली के शिकार लोगों को रातों-रात लखपति बनाने का सब्ज़बाग दिखाकर उन्हें कंगाल कर रहे हैं.इसमें कोई दो राय नहीं कि तरक्की में आधुनिक तकनीक का अहम रोल है, लेकिन आपराधिक तत्वों ने सोशल मीडिया जैसी तकनीक का सहारा लेकर जुए और सट्‌टे को नई पहचान दे दी है. इसके आकर्षण में फंसकर लोग अपना सब कुछ गंवा रहे हैं. जुए के गर्भ से पैदा हुए सट्‌टा कारोबार ने जिस तेजी से कदम आगे बढ़ाए हैं, वह चौंकाने वाला है. दुबई और मुम्बई से चला यह सट्‌टा कारोबार कब और कैसे बुंदेलखंड में जड़ें जमा गया, किसी को नहीं पता, लेकिन आज बुंदेलखंड में सट्‌टा कारोबार की एक बड़ी मंडी बन गई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. झांसी जैसे शहर से लेकर चित्रकूट के बीहड़ों तक इस खेल का बोलबाला है. यह खेल यहां किस पैमाने पर खेला और खिलाया जाता है, इसका खुलासा तब हुआ जब बीते छह अप्रैल को बुंदेलखंड का सट्‌टा किंग ठाकुर सुंदर मारा गया.

देर रात झांसी शहर के थाना प्रेमनगर के अंतर्गत धुबियाना मुहल्ले में हुए घटनाक्रम को शुरुआती जांच में आपसी रंजिश बता रही पुलिस तब भौंचक्की रह गई जब इस गैंगवार के पीछे सट्‌टा कारोबार अहम वजह निकली. स्थानीय पुलिस के उस समय तो होश ही उड़ गए जब पकड़े गए हत्यारोपियों में से एक ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के दाहिने हाथ कहे जाने वाले और सट्‌टा के जन्मदाता अबु सलेम से खुद की नजदीकी का खुलासा किया. बताते हैं कि अबु सलेम का यह करीबी तौफीक अहमद उर्फ आशिक उर्फ मराठा वर्ष 2006 से 2011 तक मुम्बई में उसकी कारिंदगी कर चुका है. मौजूदा समय में झांसी के सिलबटगंज में रह रहा मराठा मुम्बई से आने के बाद यहां के एक सट्‌टा माफिया जीशान खान के साथ जुड़ गया.

वही जीशान खान जो इस शहर के सट्‌टा किंग कहे जाने वाले ठाकुर सुंदर सिंह को पटखनी देकर खुद झांसी में इस कारोबार पर अपना आधिपत्य कायम करना चाहता था और उसने अपने पांच साथियों के साथ मिलकर अपना लक्ष्य साध ही लिया.झांसी में घटी यह घटना नजीर है इस बात की कि बुंदेलखंड में सट्‌टा कारोबार किस पैमाने पर अपने पैर पसार चुका है और इस हत्याकांड में सत्ताधारी दल के प्रदेश सचिव उमाशंकर यादव के भाई किशन यादव की नामजदगी और अब तक उसका पकड़ा नहीं जाना साबित करता है कि इसमें सत्ताधारी नेताओं का संरक्षण और स्वीकृति शामिल है. लिहाजा, इस धंधे को पुलिस की शह भी स्वाभाविक है. पुलिस को इस खेल की आमदनी से एक बड़ा हिस्सा दिया जाता है. सट्‌टे के इस अवैध खेल का दायरा झांसी तक ही सीमित नहीं है. ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा जनपदों में भी यह खेल बड़े पैमाने पर खेला और खिलाया जा रहा है.

आज बुंदेलखंड के हर शहर और कस्बे में ढेरों सट्‌टा बूकी मौजूद हैं. महोबा जनपद में तो कुछ बूकी बाकायदा ऑफिस खोलकर अपने इस घिनौने कृत्य को अंजाम दे रहे हैं. इस खेल की समझ रखने वाले लोगों की मानें तो सटोरिये मौसम पर, गाड़ियों के आवागमन टाईम पर, रास्ते पर चलते लोगों की एक्टीविटीज़ पर और क्रिकेट पर जब जहां जो मौका मिला उसपर दांव लगाने से नहीं चूकते. हालाकि क्रिकेट इनकी पहली पसंद है. सट्‌टा बूकी बताते हैं कि एशिया कप और टी-20 में अकेले बुंदेलखंड से लगभग सौ करोड़ का सट्‌टा कारोबार हो चुका है. वर्तमान में चल रहे आईपीएल में भी इतना ही होने की उम्मीद है. हालांकि उनके द्वारा बताया जाने वाला यह आंकड़ा कोई आधिकारिक रिकॉर्ड तो है नहीं, फिर भी इससे धंधे के फैलाव का अंदाजा तो मिल ही जाता है.

जिस बुंदेलखंड में तंगहाली और भुखमरी अपने चरम पर हो, वहां इस प्रकार के खेल को बढ़ावा दिया जाना क्या सही है? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब एक बड़ा सन्नाटा है. आम जनता में और इस खेल की बलिवेदी में चढ़कर तबाह हो रहे युवकों के अभिभावकों में बेचैनी देखी जा सकती है. लेकिन स्वार्थी नेता और खुदगर्ज पुलिस के चेहरे पर शर्म का कोई भाव नहीं दिखता. यही वजह है कि बुंदेलखंड में सट्‌टे का कारोबार अब गैंगवार की शक्ल अख्तियार करने लगा है.

बड़े बड़े लगा रहे हैं दांव

सट्‌टा ऐसा खेल है जिसमें खेलने वाले खिलाड़ियों के जीतने की संभावनाओं का प्रतिशत बेहद कम होता है. बूकी और उनके एजेंट पुराने और अनुभवी खिलाड़ियों की तुलना में नए लोगों को अधिक तरजीह देते हैं. नए खिलाड़ी अनुमान पर खेलते हैं जबकि पुरानों की पैनी नजर इस खेल के आंकड़ों पर होती है. सट्‌टे का शौक केवल बिगड़ैल युवकों का नहीं बल्कि नेता, सरकारी बाबू, व्यापारी और राजपत्रित अधिकारियों तक का है जो इस खेल में बड़े-बड़े दांव लगा रहे हैं. बुंदेलखंड में करीब दो हजार से अधिक बूकी और पांच हजार से भी ज्यादा उनके एजेंट सक्रिय हैं जो लाखों लोगों को अपना शिकार बना चुके हैं. बूकियों का ही अनुमान है कि बुंदेलखंड में ही प्रतिमाह दो से तीन करोड़ के बीच का सट्‌टा कारोबार होता है.

मेहनतकश फाकाकशी में करोड़पति हो गए शोहदे

हाड़तोड़ मेहनत और इमानदारी से काम करने वालों की तुलना में जब शोहदों को आप लग्जरी कारों में देखें तो समझ लें कि वे सट्‌टा के धंधे से जुड़े हैं. सट्‌टा कारोबार से जुड़े लोगों की बुंदेलखंड में यही पहचान है. महोबा, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, ललितपुर, जालौन और झांसी में वातानुकूलित और लग्जरी कारों पर घूमते ऐसे न जाने कितने लोग आसानी से देखे जा सकते हैं जो कल तक दाने-दाने को मोहताज़ थे, पर आज शानदार इमारतों के मालिक बन चुके हैं. हैरत इस बात की नहीं कि ये रातों-रात पूंजीपति कैसे हो गए, बल्कि विचार करने योग्य बात यह है कि आम जनता और साधारण व्यापारियों को नियम तथा कानून का पाठ पढ़ाने वाले प्रशासनिक अधिकारी ऐसे धंधेबाजों पर निगाह क्यों नहीं रखते. बुंदेलखंड के शहर और कस्बों में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो इस प्रशासनिक मिलीभगत की खुलेआम तस्दीक करते हैं

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