भारत के शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता पहले से ही कोई बेहतर नहीं थी, तो उनमें भाजपा सरकार ने अपात्र लोगों की नियुक्तियां कर और चौपट कर दी है. माना जाता है कि भाजपा शिक्षित वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, किंतु इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि भाजपा के कुछ बड़े नेताओं जैसे नरेंद्र मोदी, स्मृति इरानी व मनोहर लाल खट्टर की डिग्रियां संदिग्ध हैं. मालूम नहीं कि इनकी डिग्रियां सही तरीके से निकली हैं या नहीं? यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का खुला माखौल उड़ाने जैसी बात है. प्रधानमंत्री के ताबड़तोड़ विदेशी दौरों का एकमात्र मकसद यह रहा कि किसी तरह पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवा उसे अलग थलग किया जाए. इससे ज्यादा उन्होंने कुछ प्रयास भी नहीं किया. अब दुनिया यह मानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का स्रोत नहीं, उसका शिकार है.
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को साढ़े तीन वर्ष पूरे हो गए हैं. यह मध्यम वर्ग व सवर्णों की चहेती सरकार है. लोगों को इससे काफी उम्मीदें थीं. ऐसा माना जा रहा था कि जातिवादी राजनीति के दिन पूरे हुए व भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी. राष्ट्रवाद की राजनीति के प्रति युवाओं का आकर्षण था व भारत के अतीत के गौरवशाली दिनों की वापसी का इंतजार था. इस परिवर्तन के नायक होने वाले थे नरेंद्र मोदी.
इस दौर में क्या बदला? जो अपराध होते थे व जिन कारणों से लोगों की मौतें होती थीं जैसे किसानों की आत्महत्या अथवा कुपोषण सम्बन्धी मौतें, उनमें तो कोई कमी आई नहीं बल्कि अन्य नई वजहें जुड़ गईं. अब यदि आप पर गाय का मांस खाने का शक है, आप गाय को कहीं वाहन से ले जा रहे हैं, अंतर्जातीय अथवा अंतर्धार्मिक विवाह, खासकर मुस्लिम लड़के व हिन्दू लड़की की शादी करने वाले हैं, हिन्दुत्व की विरोधी विचारधारा को मानने वाले हैं, आप खुले में शौच जाते हैं, क्योंकि आपके घर में शौचालय नहीं है, भारत माता की जय, वंदे मातरम या जय श्री राम के नारे लगाने से मना करते हैं, तो कोई भी गुंडों का समूह अपने आप को किसी हिन्दुत्ववादी संगठन का सदस्य बता कर आपको पीटने आ सकता है या कुछ मोटरसाइकिल सवार आपकी जान लेने के इरादे से भी प्रकट हो सकते हैं. देश के बहुसंख्यकों का धर्म हिन्दू सहिष्णु धर्म माना जाता था. अब वास्तविक या निर्मित विवाद पर आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले हिन्दू धर्म का स्वरूप निकल कर आया है. गौरवशाली अतीत का तो पता नहीं किंतु एक ऐसी भीड़-संस्कृति को बढ़ावा मिला है, जो मौके पर ही दोषी माने गए को फैसला सुना सजा देने में विश्वास रखती है. इस सबका सबसे बुरा पहलू यह है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन साधे रहता है, मानों उसी की छत्रछाया में सब कुछ हो रहा है.
भारत के शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता पहले से ही कोई बेहतर नहीं थी, तो उनमें भाजपा सरकार ने अपात्र लोगों की नियुक्तियां कर और चौपट कर दी है. माना जाता है कि भाजपा शिक्षित वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, किंतु इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि भाजपा के कुछ बड़े नेताओं जैसे नरेंद्र मोदी, स्मृति इरानी व मनोहर लाल खट्टर की डिग्रियां संदिग्ध हैं. मालूम नहीं कि इनकी डिग्रियां सही तरीके से निकली हैं या नहीं? यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का खुला माखौल उड़ाने जैसी बात है. प्रधानमंत्री के ताबड़तोड़ विदेशी दौरों का एकमात्र मकसद यह रहा कि किसी तरह पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवा उसे अलग थलग किया जाए. इससे ज्यादा उन्होंने कुछ प्रयास भी नहीं किया. अब दुनिया यह मानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का स्रोत नहीं, उसका शिकार है. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, श्री लंका, म्यांमार व मालदीव सभी चीन के नजदीक चले गए हैं और उसके साथ दीर्घकालिक अनुबंध कर लिए हैं. वे भारत से ज्यादा भरोसेमंद चीन को मानते हैं. इससे बड़ी असफलता भारतीय विदेश नीति की क्या हो सकती है?
नोटबंदी ईमानदारी से नहीं की गई. वह नोटबंदी तो थी ही नहीं. वह तो नोटबदली थी. 500 व 1000 के नोट वापस कर कुछ ही दिनों में 500 व 2000 के नए नोट लाकर नोटबंदी के उद्देश्य पर ही पानी फेर दिया गया. बड़े नोट हटाने की मुख्य वजह यह थी कि बड़ा भ्रष्टाचार करना मुश्किल हो. यानि नकद में कोई बहुत बड़ी राशि इधर से उधर न जा पाए. नए नोट लाने से जो पहले के नोटों से हल्के हैं, यह काम तो और आसान हो गया. भारत में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है, चुनाव में काले धन कर इस्तेमाल. लेकिन न तो किसी राजनीतिक दल के दफ्तर पर न ही किसी बड़े नेता के यहां छापा पड़ा. इसी तरह किसी उद्योगपति के घर भी छापा नहीं पड़ा, जो काले धन के दूसरे सबसे बड़े रखने वाले होते हैं. नरेंद्र मोदी ने तो भ्रष्ट लोगों की मदद ही की उनका सारा काला धन सफेद करने में. जबकि आम जनता बेचारी लम्बी कतारों में खड़ी होकर परेशान हुई. उसकी आय भी पहले से कम हो गई. धीरे धीरे यह भी स्पष्ट हो गया कि मोदी आम इंसानों के नहीं बल्कि अडानी व अम्बानी के मित्र हैं.
उत्पाद एवं सेवा शुल्क अथवा जीएसटी तो ऐसे लागू किया गया, मानो देश की आजादी जैसी कोई बड़ी घटना हो रही हो. आधी रात संसद का सत्र हुआ. जिस तरह से नोटबदली व जीएसटी लागू करने के बाद कई निर्णय बदलने पड़े, उससे साफ है कि बिना ठीक से सोचे विचारे ये बड़े कदम उठा लिए गए, जिनसे अर्थव्यवस्था की कमर ही टूट गई. तमाम व्यवसाय व व्यापार बंद हो गए. आम तौर पर माना जाता है कि सरकार लोगों के लिए रोजगार पैदा करेगी, किंतु मोदी सरकार तो लोगों से राजगार छीनने का काम कर रही है.
यह दिखाता है कि मोदी सरकार लोगों से कितनी दूर है. मोदी ने आते ही सांसदों से अपने चुनाव क्षेत्र में विकास का मॉडल दिखाने के लिए एक-एक गांव गोद लेने को कहा. फिर कुछ विशेष शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में चुना गया. ऐसे में जो गांव या शहर छूट गए, उनका क्या दोष है? इस तरह की बातों से सिर्फ लोगों को भ्रमित किया गया. जो गांव या शहर अलग से चुने गए, वहां भी कुछ नहीं हुआ, जो छूट गए उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी. जिन गांवों में लोग अभी भी खुले में शौच जा रहे हैं, उन्हें खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है. विकलांगों का नाम बदल कर दिव्यांग रख दिया गया. लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ क्या? यह विकास का श्रेय लेने की हड़बड़ी कुछ समझ में नहीं आती.
मोदी सरकार एयर इंडिया बेचने की बात कर रही है. ग्राहक विदेशी कम्पनियां भी हो सकती हैं. कल रेलवे को बेचने की बात भी कर सकते हैं. इस सरकार ने कोई निर्माण का काम तो किया नहीं, पिछली सरकारों, जिनकी वह कटु आलोचक है, द्वारा बनाई गई चीजों को बेचने की तैयारी में है. सरकार की काबिलियत तो इसमें है कि घाटे में चल रहे उद्यम को फायदे में पहुंचाए न कि आसान रास्ता निकाल चीजों को बेच दें.
नरेंद्र मोदी ने पिछली सरकारों द्वारा निर्मित सरदार सरोवर बांध को अपने जन्मदिन पर राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया. बिना इस बात की परवाह किए कि बांध निर्माण से विस्थापित लोगों का पुनर्वास नहीं हुआ. मेधा पाटकर ने उससे पहले व उस दिन भी प्रदर्शन किया, अनशन पर बैठीं व जेल गईं किंतु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. इसी तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धूमधाम से नर्मदा परिक्रमा यात्रा निकाली, लेकिन विस्थापितों की सुध तक न ली.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकता अयोध्या में राम मंदिर निर्माण लगती है, बजाए उन बच्चों की चिंता करने के, जो उनके गोरखनाथ मठ के समीप मेडिकल कालेज के चिकित्सालय में जापानी दिमागी बुखार की चपेट में आ जाते हैं. योगी ने खुलेआम घोषणा की है कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता सबसे बड़ा झूठ है. भाजपा ने जातिवादी राजनीति का विकल्प देने के बजाए जाति व धर्म की भावना को उभारने का काम किया है.
धर्म के नाम पर नफरत व हिंसा और जाति के नाम पर पद्मावती फिल्म का विरोध प्रदर्शन होने देने से भाजपा ने धर्म व जाति के आधार पर समाज में जो बंटवारा किया है, उसे और चौड़ा बना दिया है. यदि दलित अथवा पिछड़े जाति के नाम पर संगठित होते हैं, तो समझा जा सकता है कि जाति के आधार पर उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित हो रहे हैं. किंतु भाजपा शासन में सवर्णों के समूह आक्रामक तेवर के साथ बिना सोचे समझे विवाद खड़े कर देते हैं, जिसमें से कई हिंसक भी हो जाते हैं. यह दुर्भाग्य की बात है कि तथाकथित शांतिप्रिय हिन्दू धर्म के लोग उपर्युक्त किस्म की आक्रामकता व हिंसा पर खुश होते हैं.
दोषपूर्ण केतली, बनारस में पिटते चाय वाले और मृत साबरमती
वर्ष 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद जब नरेंद्र मोदी देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे थे, तो देश के लोगों को बताया गया कि वे अपने शुरू के दिनों में चाय बेचा करते थे, ताकि यह दिखाया जा सके कि वे कहां से कहां पहुंच गए. वडनगर रेलवे स्टेशन के रूप में वह स्थान चिन्हित किया गया, जहां वे चाय बेचा करते थे. लेकिन हकीकत यह है कि मोदी ने जवानी के दिनों में कुछ दिनों के लिए अहमदाबाद शहर के गीता मंदिर सड़क परिवहन डिपो पर अपने चाचा की कैन्टीन संभाली थी. उस वडनगर पर पैसा खर्च कर अब भारतीय रेल उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहती है.
अखबार नगर अहमदाबाद का एक प्रसिद्ध चौराहा है, जो वर्तमान में देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति व मोदी के खासमखास अमित शाह के विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है (जब वे विधायक थे). वहां पर एक बड़े आकार की केतली बनी हुई है, जिसे स्थानीय सिल्वरओक अभियांत्रिकी व प्रौद्योगिकी संस्थान के लोगों ने बनाया है. यह केतली देखने में आकर्षक लगती है, लेकिन ध्यान से देखने पर इसका दोष पकड़ में आ जाता है. इसका हैंडल ऐसा लगा हुआ है कि आप इसे झुका कर उसमें से चाय नहीं निकाल सकते. आप हैंडल को चाहे जितना झुका लें, केतली का शरीर नहीं झुकेगा. यदि यह केतली हमारे अभियांत्रिकी व प्रौद्योगिकी संस्थानों की काबिलियत का प्रतीक है, तो समझा जा सकता है कि हमारे संस्थानों का स्तर क्या है. केतली का दोषपूर्ण मॉडल नरेंद्र मोदी की राजनीति की तरह है. देखने में आकर्षक लेकिन उपयोगी नहीं.
नरेंद्र मोदी ने कभी चाय नहीं बेची, यह तो उससे ही स्पष्ट हो गया था, जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अस्पताल के बाहर चाय बेचने वालों को मोदी के अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे से पहले ही पुलिस हटा देती थी. चूंकि मोदी का हेलिकॉप्टर विश्वविद्यालय परिसर के अंदर उतरता था, तो चाय बेचने वालों को मोदी के लिए खतरा मान कर उन्हें कई दिनों पहले ही हटा दिया जाता था. ठेला गुमटी व्यवसाइयों के संगठन के अध्यक्ष चिंतामणि सेठ ने नरेंद्र मोदी की वाराणसी यात्राओं के दौरान उनकी आजीविका के नुकसान का हिसाब लगाकर उसका मुआवजा उनके संसदीय क्षेत्र कार्यालय से मांगा था. मोदी के वाराणसी में रहते हुए, वे अपनी दुकानें नहीं लगा सकते थे.
जिस व्यक्ति ने चाय बेची हो, वह दूसरे चाय बेचने वालों के प्रति क्या इतना संवेदनहीन हो सकता है? चिंतामणि सेठ को अपने ज्ञापन का नरेंद्र मोदी के स्थानीय कार्यालय से कोई जवाब नहीं मिला. उल्टे पुलिस का दमन और तेज हो गया. आमतौर पर मोदी के वाराणसी से प्रस्थान के बाद वे अपने ठेले-दुकानें पुनः लगा लेते थे, किंतु योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह मुश्किल हो गया. एक बार उनकी दुकानें हटाईं गईं, तो फिर उन्हें दोबारा नहीं लगाने दिया गया. अतः दुकानदारों को धरना प्रदर्शन करना पड़ा. चाय बेचने वालों का भविष्य वाराणसी में अनिश्चित हो गया है और मोदी-योगी शासन में वे पहले से ज्यादा असुरक्षित हो गए हैं.
नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार में यह भी वायदा किया था कि जैसे अहमदाबाद में उन्होंने साबरमती नदी की सफाई की है, वैसी ही वाराणसी में गंगा की करेंगे. साढ़े तीन वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है. शहर के सीवर का पानी बिना परिष्कृत किए भी गंगा में डाला जा रहा है. अभी नितिन गडकरी विदेश से गंगा की सफाई के लिए धन एकत्र करने गए थे. अहमदाबाद शहर में प्रवेश से पहले साबरमती का पानी एकदम सूख गया है.
सरकार ने नर्मदा नहर से पानी लाकर साबरमती में अहमदाबाद शहर की 10-11 किलोमीटर की लम्बाई में डाल दिया, जिससे आभास होता है कि जैसे नदी लबालब भरी हो, परन्तु यह बहता हुआ पानी नहीं है. गुजरात सरकार ने नदी को एक लम्बे सरोवर में तब्दील कर दिया है. शहर के दूसरे छोर पर अहमदाबाद के सारे कारखानों का गन्दा पानी नदी में डाल दिया जाता है, जिससे यहां उसका रंग काला हो गया है. यहां भी कोई परिष्करण नहीं किया जा रहा. नदी कराह रही है, किंतु उसे साफ करने की कोई योजना नहीं है.