महान प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल जो बर्कले के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से दो वर्षों में पीएच.डी. करने के बाद विख्यात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर में सीधे लेक्चरर से प्रोफेसर प्रोन्नत किए गए थे और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सदस्य-सचिव के रूप में उन्होंने भारत में प्रदूषण नियंत्रण हेतु कई महत्वपूर्ण मानक तय किए, अंत में अपनी सरकार को गंगा को पुनर्जीवित करने के अपने आग्रह और उपाय को न समझा पाए, जिसकी कीमत उन्हें अपनी जान गवां कर देनी पड़ी. हरिद्वार में 112 दिनों तक सिर्फ नीबू पानी और शहद पर आमरण अनशन करने और आखिरी के तीन दिन निराजल रहने के बाद 11 अक्टूबर 2018 को ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका प्राणांत हो गया.
यह अचरज का विषय है कि हिन्दुत्व के मुद्दे पर चुनाव जीत कर आई सरकार ने प्रोफेसर से साधु बने त्यागी पुरुष की गंगा जैसे परिस्थितिकीय और धार्मिक विषय पर कही गई बात और दी गई सलाह नरेंद्र मोदी ने नहीं सुनी, जबकि वाराणसी चुनाव प्रचार के समय अविरल गंगा का विषय ही केंद्र में था. संन्यासी बनने के उपरांत स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से मशहूर हुए प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने ही राष्ट्रीय नदी गंगा (संरक्षण एवं प्रबंधन) अधिनियम-2012 का मसौदा तैयार किया था.
सरकार भी राष्ट्रीय नदी गंगा (संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रबंधन) बिल-2017 को कुछ बदलाव के साथ 2018 में लेकर आई, लेकिन स्वामी सानंद और सरकार के मसौदे में नजरिए का फर्क है. पांच अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में स्वामी सानंद ने कहा है कि मनमोहन सिंह की सरकार के समय राष्ट्रीय पर्यावरणीय अपील प्राधिकरण ने उनके कहने पर लोहारी नागपाला पन बिजली परियोजना, जिसपर कुछ काम हो चुका था, को रद्द किया और भागीरथी नदी की गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक की सौ किलोमीटर से ज्यादा लम्बाई को पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया था. इसका अर्थ है कि अब वहां कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता, लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में कुछ भी नहीं किया.
स्वामी सानंद ने अनशन शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री को जिन चार मांगों से अवगत कराया था, उसे फिर से दोहराया; (1) स्वामी सानंद, एडवोकेट एम.सी. मेहता और परितोष त्यागी द्वारा तैयार गंगा के संरक्षण के मसौदे को संसद में पारित कर कानून बनाया जाए, (2) अलकनंदा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर और मंदाकिनी मिलकर गंगा बनती है.
लिहाजा, गंगा और गंगा की सहायक नदियों पर निर्माणाधीन और प्रस्तावित सभी पनबिजली परियोजनाओं को निरस्त किया जाए. भागीरथी पर पहले से ही रोक लागू है, (3) गंगा क्षेत्र में वन कटान और किसी भी प्रकार के खनन पर पूर्णतया रोक लगाई जाए, (4) गंगा भक्त परिषद का गठन हो, जो गंगा के हित में काम करेगी.
लेकिन विडंबना यह है कि प्रधानमंत्री की ओर से स्वामी सानंद की मृत्यु तक कोई जवाब नहीं आया. वर्ष 2013 में स्वामी सानंद का पांचवां अनशन तब खत्म हुआ था, जब भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें पत्र लिखकर आश्वासन दिया था कि नरेंद्र मोदी की दिल्ली में सरकार बनने के बाद गंगा से जुड़ी उनकी सारी मांगें मान ली जाएंगी.
स्वामी सानंद गंगा को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में घोषित करवाना चाहते थे. गंगा के संरक्षण हेतु उनका मुख्य जोर इस बात पर था कि गंगा को उसके नैसर्गिक, विशुद्ध, अबाधित स्वरूप में बहने दिया जाए, जिसे उन्होंने अविरल की परिभाषा दी थी और उसका पानी अप्रदूषित रहे, जिसे उन्होंने निर्मल की परिभाषा दी.
वे गंगा में शहरों का गंदा पानी या औद्योगिक कचरे को गंदा या साफ किसी भी तरह से डालने के खिलाफ थे. उन्होंने गंगा किनारे ठोस अपशिष्ट को जलाने, कोई ऐसी इकाई लगाने जिससे प्रदूषण होता हो, वन कटान, अवैध पत्थर व बालू खनन, रिवर फ्रंट बनाने या कोई रसायनिक, जहरीले पदार्थ के प्रयोग पर प्रतिबंध की मांग की थी.
असल में किसी भी नदी को बचाने के लिए ये आवश्यक मांगें हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल की यह समझ उत्तर प्रदेश राज्य सिंचाई विभाग के लिए रिहंद बांध पर अभियंता के रूप में काम करते हुए बनी थी, जिसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की नौकरी छोड़ दी थी.
एक सही वैज्ञानिक होने का परिचय देते हुए उन्होंने अविरल की ठीक-ठीक परिभाषा दी. उनका मानना था कि नदी की लम्बाई में सभी स्थानों पर, यहां तक कि कोई बांध है, तो उसके बाद भी, सभी समय न्यूनतम प्राकृतिक या पर्यावरणीय या परिस्थितिकीय प्रवाह बने रहना चाहिए. नदी के अबाध प्रवाह के साथ-साथ उसकी वायुमंडल से और भूमि से तीनों तरफ, तली और दोनों तटोंसे सम्पर्क बना रहना चाहिए. उनका मानना था कि गंगा की विशेष गुणवत्ता, मसलन उसकी सड़न-मुक्तता, प्रदूषण-नाशकता, रोग-नाशकता और उसके स्वास्थ्यवर्धक अवयव तभी संरक्षित और सुरक्षित रह पाएंगे, जबतक गंगा का प्रवाह अविरल बना रहेगा.
इसी तरह निर्मल का मतलब सिर्फ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय किए गए मानकों के अनुरूप अथवा आर.ओ. या यू.वी. का पानी नहीं होता. गंगा में स्वयं को साफ करने की शक्ति है, जिसकी वजह, उसके पानी में बैक्टीरिया मारने वाले जीवाणु, मानव शौच को पचाने वाले जीवाणु, नदी किनारे पेड़ों से प्राप्त पॉलीमर तत्व, भारी धातु एवं रेडियोधर्मी तत्व, अति सूक्ष्म गाद, आदि की मौजूदगी है.
कुल मिलाकर गंगा के ऊपरी हिस्से की चट्टानें, साद, वनस्पति जिसमें औषधीय पौधे भी शामिल हैं, यानि परिस्थितिकी के कारण गंगा में निर्मल होने का विशेष गुण है. स्वामी सानंद का इस बात पर पूरा भरोसा था कि गंगा का संरक्षण तभी हो सकता है जब गंगा को निर्मल व अविरल बनाए रखा जाए.
जल संसाधन, नदी घाटी विकास व गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि उन्हें निर्मल की अवधारणा तो समझ में आती है, लेकिन अविरल की नहीं. क्योंकि यदि वे स्वामी सानंद की गंगा को अविरल बनाने की बात मान लेंगे तो नदी पर बांध कैसे बनवाएंगे? एक दूसरी बात शासक दल भाजपा से सुनने को यह मिली है कि उन्हें न तो देश से मतलब है, न धर्म से और न ही लोगों से, उन्हें तो सिर्फ विकास करना है.
विकास यानि ऐसा जिसमें पैसा कमीशन के रूप में वापस आता हो, ताकि अगले चुनाव का खर्च निकाला जा सके. स्वामी सानंद गंगा के व्यवसायिक दोहन के सख्त खिलाफ थे. इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक के एक वरिष्ठ सज्जन, जो स्वामी सानंद के मामले में मध्यस्थता के लिए तैयार हुए थे, का कहना था कि सिद्धांततः तो वे स्वामी सानंद की बातों को अक्षरशः मानते हैं किंतु सरकार चलाने की अपनी मजबूरियां होती हैं.
स्वामी सानंद के निधन के साथ-साथ गंगा का भी भविष्य उसी समय अंधकारमय हो गया. दूसरी नदी घाटियों, जिनपर लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन और उनकी आजीविका निर्भर है, उस पर भी यह खतरा मंडरा रहा है.
स्वामी सानंद ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के समय भी पांच बार अनशन किया था. किंतु एक बार भी उनके जीवन के लिए संकट नहीं उत्पन्न हुआ. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार में एक बार ही अनशन करना उनके लिए जानलेवा बन गया. इससे यह भी स्पष्ट है कि विकास की प्रचलित अवधारणा सामाजिक-सांस्कृतिक विचारधारा, जिसमें धर्म और पर्यावरणीय चितंन शामिल है, के प्रति भाजपा सरकार कतई संवेदनशील नहीं है.
वर्तमान सरकार कारपोरेट जगत के पक्ष में है और कम मानवीय है. स्वामी सानंद की मौत के लिए सरकार जिम्मेदार है, क्योंकि उनकी मांग को मान कर स्वामी सानंद की जान ही नहीं, बल्कि गंगा को भी बचाया जा सकता था. किंतु अब स्वामी सानंद हमारे बीच नहीं रहे और इसी तरह एक दिन गंगा भी नहीं रहेंगी. देश की बहुत सारी नदियां सूख चुकी हैं, जिसमें साबरमती नदी भी शामिल है. गंगा का भी यही हाल होने वाला है.
देश के सामने गंभीर सवाल है कि स्वामी सानंद के जाने से जो स्थान रिक्त हुआ है, उसे कैसे भरा जाएगा? देश में कौन है गंगा को बचाने की बात करने वाली दूसरी दमदार आवाज? धार्मिक आस्था वाले कुछ लोगों के लिए स्वामी सानंद तो भागीरथ की तरह थे, जिन्होंने अकेले अपने दम पर गंगा का मुद्दा उठाया.
प्रकृति का विनाश करने वाले विकास की अवधारणा रखने वाली और प्राकृतिक संसाधनों को लूटने वाली कम्पनियों और ठेकेदारों को बढ़ावा देने वाली और जनता के प्रति अमानवीय रवैया अपनाने वाली सरकार के खिलाफ जनता का कठोर विरोध ही स्वामी सानंद के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. गंगा को बचाने की लड़ाई का अभी अंत नहीं हुआ है. जिस मातृ सदन आश्रम को स्वामी सानंद ने अपना अनशन स्थल चुना था, उसके प्रमुख स्वामी शिवानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेतावनी देते हुए घोषणा की थी कि स्वामी सानंद के बाद वे और उनके शिष्य अनशन की श्रृंखला को कायम रखेंगे.
स्वामी सानंद के 22 जून 2018 को अनशन शुरू करने के तुरंत बाद ही स्वामी गोपाल दास ने भी अनशन शुरू कर दिया था. 2011 में मातृ सदन के ही नौजवान साधु स्वामी निगमानंद का गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन के 115वें दिन प्रणांत हो गया था. तब यह खुला आरोप लगा था कि उत्तराखंड की तत्कालीन भाजपा सरकार से मिले हुए खनन माफिया ने निगमांनद की हत्या कराई थी. विकास के वेदी पर पता नहीं अभी और कितनी बलियां चढ़ेंगी?
गंगा की ह़िफाज़त देश की आपात्कालिक-अनिवार्यता
अरविंद त्रिपाठी
- भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्टॉकहोम स्वीड्न में वर्ष 1972 में हुए पहले पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में कहा था कि स्वीडन ने जिस प्रकार स्टॉकहोम नदी को स्वच्छ बनाया है, उसी तरह हम भी भारत की पवित्र नदी गंगा को स्वच्छ बनाएंगे.
- वर्ष 1984 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा की स्वच्छता का संकल्प लिया था.
- वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर गंगा एक्शन प्लान शुरू किया गया था.
- भारत के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव के तौर पर प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद) और अध्यक्ष परितोष त्यागी ने गंगा के लिए कई तकनीकी जल शोधक संयंत्र तैयार कराए, जिसमें बनारस मुख्य है.
- वर्ष 2007 में प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद) ने गंगा की अविलरता-निर्मलता के लिए उत्तरकाशी में भागीरथी बचाओ आंदोलन शुरू किया था.
- भारत सरकार ने वर्ष 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था.
- फरवरी 2008 में राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया था.
(क) 20 अगस्त 2009 में लुहारी नागपाला, पाला मनेरी और भैंरो घाटी बांध परियोजनाओं के काम स्थाई रूप से रद्द कर दिए गए थे.
(ख) गंगा पर हिमालय क्षेत्र में प्रस्तावित 268 बांधों पर रोक लगा दी गई थी.
(ग) गौ-मुख से लेकर उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के दोनों तरफ के क्षेत्रों को संवेदनशील घोषित करके भागीरथी के पुराने पवित्र प्रवाह को वैसा ही अविरल-निर्मल बनाने के लिए काम शुरू हुआ. जिससे भारत की अगली पीढ़ियां मां-गंगा को अपने प्राचीन पवित्र रूप में देख और जान सकें. इस कल्पना के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पर्यावरण वन मंत्री जयराम रमेश और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मिलकर कई ऐतिहासिक निर्णय लिए थे और काम शुरू भी हुआ, लेकिन कालांतर में अधर में चला गया.
- वर्ष 2012-13 में भागीरथी की तरह ही अलकनंदा और मंदाकिनी नदी पर भी भागीरथी नदी जैसी व्यवस्था बनाने का गंगा बचाओ आंदोलन प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद) के आमरण अनशन से पुनः आरम्भ हुआ. यह आंदोलन 2013-14 तक खूब जोर-शोर से चला.
- वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने बढ़-चढ़ कर प्रचार किया, मैं गंगा का बेटा हूं, गंगा ने मुझे बुलाया है. आपने मुझे कुछ बनाया तो गंगा को अविरल-निर्मल बनाएंगे. उन्होंने अधिकतर चुनावी सभाओं में यही भाषण दिया. इसका असर देश की जनता पर पड़ा और मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए.
- मोदी सरकार ने गंगा को लेकर स्वतंत्र मंत्रालय बनाया. नमामि गंगा के नाम पर मंत्रालय के लिए 20 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया.
- वर्ष 2018 तक गंगा बजट का चार प्रतिशत से भी कम खर्च हुआ. गंगा के काम के लिए उच्चतम न्यायालय, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और भारत के महालेखा परीक्षक जैसी संवैधानिक संस्थाओं ने सरकार से कठोर शब्दों में पूछा कि 20 हजार करोड़ का बजट घोषित होने के बावजूद गंगा निर्मल क्यों नहीं हुई? इतने बड़े बजट की घोषणा क्यों की गई, जबकि उसका चार प्रतिशत भी खर्च नहीं हुआ?
- फरवरी 2018 को प्रो. जी.डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की कि उन्होंने सरकार बनाने से पहले गंगा के काम के लिए जो घोषणाएं की थीं, वो पूरी नहीं हुईं और इस प्रकार उन्होंने गंगा मां को धोखा दिया.
- स्वामी सानंद ने दूसरा पत्र 13 जून 2018 को लिखा. आप इन दोनों पत्रों को देखें, जिनमें स्वामी सानंद ने लिखा कि गंगा को लेकर की गई घोषणाओं को पूरा करने के लिए तत्काल काम शुरू कराएं. अन्यथा वे अपना पूर्व से चला रहे आंदोलन को आमरण-अनशन में तब्दील कर देंगे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी के दोनों पत्रों की अमानवीय-अनदेखी कर दी.
- स्वामी सानंद ने 22 जून 2018 से हरिद्वार के मातृ-सदन में आमरण अनशन शुरू कर दिया.
- 30 जून 2018 को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और एक जुलाई 2018 को उमा भारती ने स्वामी को पत्र लिखकर अनशन रोकने की अपील की. स्वामी सानंद ने उमा भारती को बड़ा ही भावुक पत्र लिखा. लेकिन इस पर भी नरेंद्र मोदी की भावनाओं पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा. आखिरकार स्वामी सानंद ने इस क्रूर-उपेक्षा में प्राण त्याग देना ही उचित समझा और 11 अक्टूबर 2018 को महानिर्वाण पर निकल पड़े.
- गंगा नदी विश्वभर में अपनी शुद्धीकरण-क्षमता के कारण जानी जाती है. लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं और अन्य हानिकारक सूक्ष्म-जीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं. नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा बनाए रखने की असाधारण क्षमता रही है, किन्तु इस क्षमता का तेजी से क्षरण हुआ है. एक समय था जब हैजा और पेचिश जैसी बीमारी की रोकथाम में गंगा-जल काम आता था. गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से प्रदूषण गहन चिंता का विषय बना हुआ है. औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है. विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है. यह घोर चिंताजनक है कि गंगाजल अब न नहाने के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न सिंचाई के योग्य रहा. गंगा के विनाश का मतलब हमारी समूची सभ्यता का अंत होना. गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करना और गंगा एक्शन प्लान, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और नमामी गंगे जैसी योजनाएं पूरी तरह फेल हो चुकी हैं. गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हैं. वर्ष 2007 में ही संयुक्त राष्ट्र की एक अध्ययन-रिपोर्ट ने कहा था कि हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद 2030 तक समाप्त हो जाएंगे. गंगा नदी का बहाव वर्षा-ऋतु पर आश्रित होकर महज मौसमी रह जाएगा. इस घोर संकट का समाधान अब देश की आपात्कालिक-अनिवार्यता है.
गंगापुत्र की शहादत पर लामबंद हो रहा बनारस
प्रदीप कुमार
स्वामी सानंद की गंगा की अविरलता व निर्मलता के सवाल पर लम्बे अनशन के दौरान हुई मौत के विरोध में प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी लामबंद हो रहा है. 22 अक्टूबर को बनारस में निकली संकल्प पद यात्रा और श्रद्धांजलि सभा से इसकी शुरुआत हुई. संकल्प यात्रा में सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के साथ-साथ गंगा की सफाई के लिए सक्रिय स्वयंसेवी संस्थाओं और धर्माचार्यों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया.
यह सम्भावना है कि 2019 के चुनाव में असली गंगा-पुत्र बनाम नकली गंगा-पुत्र प्रमुख चुनावी मुद्दा बन सकता है. दशाश्वमेध घाट पर हुई श्रधांजलि सभा में प्रोफेसर अग्रवाल को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एक स्वर से झूठ हटाओ-देश बचाओ, स्वामी सानंद की मौत नहीं हत्या है, हत्या के दोषी को दंडित करो और गंगा को अविरल निर्मल बनाओ की मांग उठी. सब ने काशी से ऋषिकेश तक व्यापक जन अभियान शुरू करने का भी संकल्प लिया.
जिसकी शुरुआत काशी के ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर पर और शहरी क्षेत्रों में वार्ड स्तर पर गंगा पंचायतों के क्रमबद्ध आयोजन से होगी. स्वामी सानंद की शहादत को लेकर तकलीफ और नाराजगी का इजहार करते हुए गंगा भक्तों ने घोषणा की कि जनवरी में बनारस में गंगा पर महापंचायत आयोजित की जाएगी. उसी समय भारत सरकार के आमंत्रण पर दुनियाभर से प्रवासी भारतीय बनारस आ रहे हैं.
श्रद्धांजलि सभा में स्वामी सानंद के गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, संकटमोचन के महंत व बीएचयू के प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्र, बनारस के पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्र, यूपी के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र पटेल, किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह, समाजवादी नेता कुंवर सुरेश सिंह, आम आदमी पार्टी के पूर्वाचल संयोजक संजीव सिंह मौजूद थे.
सब ने केंद्र सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना की और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास का झूठ फैला रहे हैं. स्वामी सानंद के गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि मोदी सरकार के झूठ का पर्दाफाश करके ही दम लेंगे. उन्होंने कहा कि बनारस के पक्कामहाल में विकास के नाम पर मंदिर और घर तोड़े गए हैं. विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है. अब यह आंदोलन रुकने वाला नहीं है. स्वामी सानंद की लड़ाई आगे बढ़ती जाएगी.
गंगा के मुद्दे पर 25 से 27 नवम्बर तक बनारस में आयोजित धर्म संसद में भी विमर्श होगा, जिसमें आंदोलन का आगे का कार्यक्रम तैयार किया जाएगा. संकटमोचन के महंत प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्र ने कहा कि स्वामी सानंद मां गंगा के प्रति समर्पित थे. वे सच्चे गंगापुत्र थे. सच बोलने वालों को धमकी देकर उनकी आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन स्वामी सानंद की शहादत बेकार नहीं जाएगी. उनके सपने को पूरा करने के लिए सब मिल कर लड़ेंगे.
गंगा को सिर्फ निर्मल नहीं, बल्कि अविरल भी बनाना है, पानी ही नहीं रहेगा, तो गंगा अविरल कैसे होंगी? उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल ने स्वामी सानंद की मौत के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सरकार ने जानबूझ कर स्वामी सानंद के अनशन की अनदेखी की और उनकी मांगों की उपेक्षा की. स्वामी जी के अनशन के दौरान प्रधानमंत्री दो बार उत्तराखंड की यात्रा पर गए, लेकिन स्वामी को देखने नहीं गए. यहां तक कि उनके तीन पत्रों का जवाब भी नहीं दिया. यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है.
किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह ने इस लड़ाई को धारदार बनाने के लिए स्वामी सानंद की हत्या और गंगा के सवाल पर काशी से ऋषिकेश तक संघर्ष यात्रा निकालने की स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से अपील की. उन्होंने इस मुद्दे पर विपक्ष को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि स्वामी सानंद के अनशन के दौरान हम लोगों ने विपक्ष के सभी नेताओं से मुलाकात कर इस मसले को संसद में उठाने की अपील की थी, किसी ने कुछ नहीं किया.
अगर स्वामी जी के संघर्षों को पूरा करने के लिए राजनीतिक जमात अब भी आगे नहीं आई, तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा. पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्र ने कहा कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी बनारस आए थे, तो गंगा तट पर कहा था, न मैं लाया गया हूं, न आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है. खुद को गंगा पुत्र होने का दावा करने वाले मोदी ने आज तक मां गंगा के लिए कुछ नहीं किया. गंगा पहले से ज्यादा मैली हो गईं. अब काशी वासी स्वामी सानंद की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे.
आम आदमी पार्टी के पूर्वांचल संयोजक संजीव सिंह ने भी सरकार पर हमला बोला और स्वामी सानंद की मौत के साथ-साथ संत निगमानंद फिर बाबा नागनाथ की मौत को सुनियोजित हत्या बताया.
संकल्प यात्रा और श्रद्धांजलि सभा ने वाराणसी को एक बार फिर अविरल और निर्मल गंगा के लिए संघर्ष की भूमिका में खड़ा कर दिया है. जबकि सोची समझी योजना के तहत गंगा के निर्मलीकरण को घाटों के सौंदर्यीकरण और सफाई की तरफ मोड़ दिया गया था. संकल्प यात्रा जिन रास्तों से होकर गुजरी, बनारस के लोगों ने उससे खुद को जोड़ा. सब यही चर्चा करते दिखे कि एक संत का इस तरह जाना अनुचित नहीं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना था कि इस संघर्ष को व्यापक स्वरूप दिया जाएगा. श्रद्धांजलि सभा में लिए गए संकल्प भी इसी की पुष्टि कर रहे हैं. इस आयोजन में लोगों ने जिस तरह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया उससे भी यही ध्वनित हो रहा था.