अर्जुन मुंडा की इस मुलाकात ने मुख्यमंत्री रघुवर दास की नींद उड़ा दी. मुख्यमंत्री भी दिल्ली रवाना हुए, पर उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं हो सकी. उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कुछ दिग्गज नेताओं से मुलाकात कर ही संतोष करना पड़ा. झारखंड में भाजपा को पहली बार बहुमत मिला और यहां बहुमत की सरकार बनी, पर श्री दास भाजपा विधायकों के साथ ही गठबंधन वाले दलों के विधायकों का विश्वास जीतने में असफल रहे हैं, इसलिए अभी तक पूर्ण मंत्रिमंडल नहीं बन सका. राज्यपाल ने इस पर ऐतराज जताया था और विधि विशेषज्ञों ने भी इस अपूर्ण मंत्रिमंडल को असंवैधानिक बताया था, पर बारहवें मंत्री की नियुक्ति अभी तक नहीं हो सकी. बहुमत में आने के बाद भी रघुवर दास को अपने विधायकों पर विश्वास नहीं है, इसी कारण उन्हें दूसरे पार्टी को तोड़ अपनी पार्टी में शामिल करा उन्हें मंत्रिपरिषद में मलाईदार विभाग देना पड़ा.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुलाकात क्या हुई, झारखंड का सियासी पारा गरमा गया. इस मुलाकात के अलग-अलग मायने निकाले जाने लगे. राजनीतिक शतरंज की बिसातें बिछनी शुरू हो गईं और शह-मात की बातें होने लगीं. आखिर इस तरह की बातें उठनी भी लाजिमी है, क्योंकि यह मुलाकात तब हुई, जब लिट्टिपाड़ा विधानसभा उपचुनाव का परिणाम आया. मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी चुनाव हार जाने की घटना ने भाजपा के आला नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया. भाजपा नेताओं को यह अहसास होने लगा कि आदिवासी बहुल राज्य में पार्टी के कद्दावर नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को दरकिनार कर नहीं चला जा सकता.
2019 में लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री ने अर्जुन मुंडा को बुलावा भेजा. मुंडा उस समय धनबाद दौरे पर थे. अपने सभी कार्यक्रम छोड़ मुंडा जब दिल्ली पहुंचे, तो प्रधानमंत्री मोदी ने उनका गर्मजोशी से स्वागत करते हुए एक घंटे तक बातचीत की. इस दौरान वे झारखंड की ताजा राजनीतिक स्थिति से भी अवगत हुए. भाजपा के शीर्ष नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की प्रधानमंत्री के साथ इतनी लंबी मुलाकात कभी नहीं हुई. इस मुलाकात के बाद यह कयास लगाया जाने लगा कि अब सत्ता परिवर्तन की तैयारी शुरू हो चुकी है. इस मुलाकात ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह संकेत दिया है कि वे झारखंड में संभलकर सियासत करें.
अर्जुन मुंडा की इस मुलाकात ने मुख्यमंत्री रघुवर दास की नींद उड़ा दी. मुख्यमंत्री भी दिल्ली रवाना हुए, पर उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं हो सकी. उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कुछ दिग्गज नेताओं से मुलाकात कर ही संतोष करना पड़ा. झारखंड में भाजपा को पहली बार बहुमत मिला और यहां बहुमत की सरकार बनी, पर श्री दास भाजपा विधायकों के साथ ही गठबंधन वाले दलों के विधायकों का विश्वास जीतने में असफल रहे हैं, इसलिए अभी तक पूर्ण मंत्रिमंडल नहीं बन सका. राज्यपाल ने इस पर ऐतराज जताया था और विधि विशेषज्ञों ने भी इस अपूर्ण मंत्रिमंडल को असंवैधानिक बताया था, पर बारहवें मंत्री की नियुक्ति अभी तक नहीं हो सकी.
बहुमत में आने के बाद भी रघुवर दास को अपने विधायकों पर विश्वास नहीं है, इसी कारण उन्हें दूसरे पार्टी को तोड़ अपनी पार्टी में शामिल करा उन्हें मंत्रिपरिषद में मलाईदार विभाग देना पड़ा. आपात स्थिति में बाहर से समर्थन लेने के लिए वे झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का भी बार-बार आशीर्वाद लेते रहे. मुख्यमंत्री के कार्यकलाप और उनके रूखे व्यवहार से अधिकतर भाजपाई नाराज हैं. विकास की बातों को वे बढ़ा-चढ़ाकर भले पेश करें, पर जमीनी हकीकत कुछ और है. रघुवर के कार्यकाल में भाजपा का जनाधार घटा है और राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम है कि अगर रघुवर दास पांच वर्षों तक सत्ता में रहे तो अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को दहाई का आंकड़ा पार करने में पसीना छूट जाएगा.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी मुंडा मुलाकात सत्ता परिवर्तन के ही संकेत हैं. झारखंड में आदिवासी और महतो मतदाताओं की बहुलता है और इन दोनों समुदाय के मतदाता रघुवर दास की स्थानीय नीति और सीएनटी एसपीटी में संशोधन के फैसले से नाराज चल रहे हैं. इन मुद्दों को लेकर राज्य में कई बार हिंसात्मक आंदोलन भी हो चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा सहित अधिकतर आदिवासी विधायक रघुवर के इस फैसले से नाराज हैं, एक तरह से कहा जाए तो मुण्डा रघुवर विरोधियों का नेतृत्व कर रहे हैं.
भाजपा के अधिकतर आदिवासी विधायक मुंडा के साथ हैं, साथ ही आदिवासी एवं महतो मतदाताओं पर मुंडा की पकड़ अच्छी है. मुंडा की पहचान एक कद्दावर नेता के रूप में है. वे किसी भी सरकार को गिराने और बनाने का दम-खम रखते हैं. कुछ सरकारों को गिराने में इन्होंने अहम भूमिका भी निभाई थी, जबकि झारखंड राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले सरयू राय भी रघुवर दास से खासे नाराज चल रहे हैं और मुंडा को इनका साथ मिलना तय है. मार्च 2003 में बाबुलाल की सरकार इन्हीं दोनों नेताओं ने मिलकर गिरा दी थी, उस समय मुंडा को राजनाथ सिंह का पूरा साथ मिला था. इस बार भी उसी तरह की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है.
प्रधानमंत्री का आशीर्वाद मिलते ही फिर वे राजनीति में सक्रिय हो गए हैं और उनकी नजर एक बार फिर सत्ता के शीर्ष पर टिक गई है. गौरतलब है कि मुंडा और रघुवर का छत्तीस का आंकड़ा है और इन दोनों के बीच शह और मात का खेल भी चलता रहता है. इस बार मुंडा फिर भारी दिखाई पड़ रहे हैं, वैसे यह तय माना जा रहा है कि अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री का ताज नहीं मिलेगा, पर इन्हीं के पसंद का?व्यक्ति मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा, यह तय माना जा रहा है. इसमें राज्य के पूर्व आईएएस अधिकारी एवं भाजपा के प्रवक्ता जेबी तुबिद का नाम सबसे ऊपर है.
दरअसल लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में रघुवर दास ने अर्जुन मुंडा को कोई तरजीह नहीं दी थी. स्टार प्रचारक के रूप में भी मुंडा का नाम नहीं था, जबकि भाजपा प्रत्याशी हेमलाल मुर्मू को मुंडा ही झामुमो से भाजपा में लेकर आए था. मुख्यमंत्री दास को यह मालूम था कि मुंडा की पकड़ इस क्षेत्र में अच्छी है, फिर भी उन्होंने उनका दौरा नहीं कराया. दरअसल रघुवर को यह अहसास था कि अगर वे यह चुनाव जीत जाएंगे, तो झारखंड में उनका कद सबसे बड़ा हो जाएगा और इसी गलतफहमी ने उन्हें कहीं का नहीं रखा. रघुवर दास द्वारा अर्जुन मुंडा को तरजीह नहीं दिए जाने से पार्टी आलाकमान भी नाखुश है. ऐसे में झारखंड की चुनावी नैया पार कराने की जिम्मेदारी मुंडा पर थोपने का मन पार्टी आलाकमान बना चुकी है.
दरअसल, पिछले महीने ओडीशा में पंचायत चुनाव के परिणाम से प्रधानमंत्री काफी उत्साहित हैं, इसकी वजह है कि ओडीशा में आदिवासियों की संख्या अच्छी-खासी है, जहां अर्जुन मुंडा का जादू चला और पंचायत चुनाव में कामयाबी मिली. लेकिन मुंडा झारखंड में अपने को पूरी तरह से उपेक्षित महसूस कर रहे थे. पार्टी आलाकमान आने वाले ओडीशा विधानसभा चुनाव में मुंडा का पूरा सहयोग लेने को आतुर है और इस बात का संकेत प्रधानमंत्री स्वयं अर्जुन मुंडा को दे चुके हैं. आलाकमान ने उनसे झारखंड से सटे ओडीशा विधानसभा क्षेत्रों में पूरी ताकत झोंक देने को कहा है. झारखंड में आदिवासियों के बीच पार्टी की पकड़ मजबूत करने की बात भी प्रधानमंत्री ने की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान आने वाले लोकसभा चुनाव पर भी है.
2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 14 में से 12 सीटें मिली थी और मुंडा ने इसमें अहम् भूमिका निभाई थी. रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनते ही वे अचानक पर्दे से गायब हो गए. अब देखना है कि झारखंड में पार्टी अपनी साख बचाने के लिए किस पर दांव लगाती है, वैसे लगातार गिर रहे जनाधार से भाजपा आलाकमान चिंतित है. वह आने वाले चुनाव में एक ऐसा चेहरा पार्टी के सामने लाना चाहती है, जिसकी पकड़ आदिवासियों पर मजबूत हो, क्योंकि भाजपा को यह विश्वास है कि सवर्ण और वैश्य मतदाता तो उनके परम्परागत वोटर हैं, पर जरूरत है आदिवासी और महतो मतदाताओं को गोलबंद करने की. अर्जुन मुंडा सबसे शक्तिशाली आदिवासी नेता के रूप में जाने जाते हैं और ऐसे में पार्टी मुंडा को ही आगे कर चुनाव लड़ सकती है. इससे अब इंकार नहीं किया जा सकता है.
झारखंड में आदिवासियों की अनदेखी नहीं की जा सकती : मुंडा
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई मुलाकात ने झारखण्ड का सियासी पारा चढ़ा दिया है. विधानसभा चुनाव में अपनी हार के बाद मुण्डा झारखण्ड राजनीति में अलग-थलग पड़ गए थे, पर अचानक ढाई वर्षों के बाद इस मुलाकात से शह-मात का खेल शुरू हो गया है. पर्दे के पीछे से रघुवर विरोधियों ने सरकार गिराने और बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. वैसे मुण्डा इसे सियासी मुलाकात नहीं, बल्कि शिष्टाचार भेंट बताते हैं, पर सियासी गलियारों में इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
इधर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा का यह मानना है कि आदिवासियों और मूलवासियों की लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती है. रघुवर सरकार ने सीएनटी और एसपीटी में जो संशोधन लाया है, उसमें इस सरकार को सुधार करना चाहिए. स्थानीय नीति से यहां के लोग खासे नाराज है, खासकर एसएनटी में हुए संशोधन से आदिवासी समुदाय में बहुत आक्रोश है. आदिवासी समुदाय की अनदेखी पार्टी हित में नहीं है. मुख्यमंत्री को इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहिए और इस संशोधन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री से अचानक भेंट के मायने पर कुछ भी बताने से इंकार करते हुए वे कहते हैं कि कोई सियासत की बात नहीं, यह मात्र शिष्टाचारवश मुलाकात थी. इतनी लंबी अवधि के बाद इस मुलाकात के पीछे कोई राज है, इस पर वे कुछ भी नहीं बोलते और इस सवाल को टालने की कोशिश करते हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मुलाकात के पीछे कई राज छिपे हैं, इस मुलाकात ने कई राजनेताओं के चेहरे की मुस्कान छीन ली है.
मुस्कान ग़ायब हो गई है रघुवर दास की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की मुलाकात ने मुख्यमंत्री रघुवर दास की नींद और मुस्कान दोनों छीन ली है. यह मुलाकात उस समय हुई, जब लिट्टिपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की करारी हार हुई. राजनीति के गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि उपचुनाव में मिली हार से भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री दास से नाराज है. वहीं यह भी चर्चा है कि पहाड़िया जनजाति बटालियन के जवानों को प्रधानमंत्री के हाथों दोबारा नियुक्ति-पत्र बंटवाने की बात को प्रधानमंत्री कायार्र्लय ने गंभीरता से लिया है और राज्य सरकार से इस संबंध में पूछताछ भी की है.
बहुमत की सरकार होने के बाद भी ढाई वर्षों तक बारहवें मंत्री की नियुक्ति नहीं होने पर भी भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री से नाराजगी जाहिर की है. मुख्यमंत्री रघुवर दास भी भाजपा के विरोधी खेमों द्वारा रचे गए चक्रव्यूह में फंसते दिख रहे हैं, उन्हें भी यह अहसास होने लगा है कि अब वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं, उनकी कुर्सी छिन जाने का खतरा मंडराने लगा है. वैसे तो अपने को गंभीर दिखाने की कोशिश में मुख्यमंत्री दास के चेहरे पर मुस्कान शायद ही कभी आती है, पर दोनों की मुलाकात ने सचमुच उनके चेहरे का रंग उड़ा दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा की जिस दिन प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात हुई, उस दिन ही आनन-फानन में रघुवर दास भी नई दिल्ली पहुंच गए और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया.
मुख्यमंत्री की बैचेनी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमित शाह से मुलाकात के बाद जब वे रांची लौटे, तब कार्यों में तेजी लाने के लिए विभागीय समीक्षा बैठक कर नए-नए फैसले लेने शुरू कर दिए. इसमें उन्होंने आधी आबादी को खुश करने के लिए कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने पर निबंधन शुल्क माफ करने की घोषणा की. तूफानी समीक्षा बैठक में उन्होंने अधिकारियों को भी हड़काया और काम नहीं करने वाले अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की बात भी कह डाली. ये सभी बातें उनके अंदर की बैचेनी को दिखाने के लिए काफी हैं.
वैसे मुख्यमंत्री दास का यह मानना है कि जितना काम उन्होंने ढाई साल में किया, उतना किसी के शासनकाल में नहीं हुआ. उनके काम से पार्टी के आला नेता खुश हैं. वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के दो फैसले सीएनटी एसपीटी एक्ट और स्थानीय नीति के कारण झारखंड में भाजपा की छीछालेदर हो रही है और इन फैसलों से भाजपा की साख गिरी है.