पिछले दिनों नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. क़रीब तीन दशकों के बाद आम चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट जनादेश मिला है. बहुमत से बनी सरकार पर भी इसका सकारात्मक असर देखा जा सकता है. पिछली गठबंधन की सरकारों में जहां बड़ा मंत्रिमंडल हुआ करता था, वहीं नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार में मंत्रिमंडल का आकार काफ़ी छोटा है. निश्चित रूप से इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे, क्योंकि बड़े मंत्रिमंडल के गठन का मक़सद सरकारी कामकाज़ में तेज़ी लाना नहीं, बल्कि अपने सहयोगी दलों को खुश करना होता था. हालांकि, मोदी सरकार में राजग के घटक दलों के नेताओं को भी मंत्री बनाया गया है, लेकिन यह मंत्री पद रेवड़ियों की तरह नहीं बांटा गया है, जैसा कि पिछली सरकारों में देखने को मिला.
भारत के पंद्रहवें प्रधामंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों शपथ ग्रहण की. राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ समेत सार्क देशों के कई शीर्ष नेता भी शामिल हुए. शपथ ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा कि वह भारत की विकास यात्रा को नई ऊंचाइयों तक लेकर जाना चाहते हैं. नरेंद्र मोदी के साथ उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी शपथ दिलाई गई. मंत्रिमंडल में राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी और वेंकैया नायडू समेत कुल 45 मंत्रियों ने शपथ ली. इनमें से 23 केंद्रीय मंत्री और 22 राज्य मंत्री हैं. पिछली मनमोहन सिंह सरकार के मुक़ाबले मोदी सरकार में मंत्रिमंडल का आकार काफ़ी छोटा है.
मोदी के मंत्रिमंडल के आकार में क़रीब 45 फ़ीसद की कटौती हुई है, इसलिए इस खर्च में भी क़रीब 45 फ़ीसद की कमी आएगी. वर्ष 2009 में यूपीए-2 की सरकार के 77 मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण की तुलना में मोदी के मंत्रिमंडल में महज़ 45 मंत्री ही हैं. दरअसल, मोदी के मंत्रिमंडल में 23 कैबिनेट, 10 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 12 राज्य मंत्री हैं. वहीं पिछली यूपीए-2 सरकार में 32 कैबिनेट, 7 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 38 राज्य मंत्री शामिल थे. बाद में कई बार हुए फेरबदल में भी मंत्रियों की संख्या घटती-बढ़ती रही है. वर्ष 2004 में यूपीए-1 सरकार में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 31 कैबिनेट, 8 स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्रियों और 40 राज्य मंत्रियों के साथ शपथ ली थी. एक अनुमान के मुताबिक़, प्रधानमंत्री समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल पर क़रीब आठ सौ करोड़ रुपये सालाना ख़र्च होते हैं. इनमें यात्रा, वेतन भत्ते और स्वागत सत्कार की राशि भी शामिल है. एक केंद्रीय मंत्री को 15, स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों को 14 और राज्य मंत्रियों को 13 लोगों का निजी स्टाफ प्राप्त है. इस प्रकार एक मंत्री के कर्मचारियों पर कम से कम दस लाख रुपये महीने का ख़र्च आता है. मंत्री के कार्यालय, आवास, वाहनों आदि का ख़र्च भी जोड़ दिया जाए, तो कम से कम दस लाख रुपये प्रति माह ख़र्च होते हैं. ग़ौरतलब है कि गठबंधन सरकारों का दौर शुरू होने की वजह से केंद्रीय मंत्रिमंडल का आकार बढ़ता गया. वर्ष 1989 से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल का आकार काफ़ी सीमित होता था. मिसाल के तौर पर नरसिंह राव की सरकार में 44 मंत्री थे, जिनमें 12 कैबिनेट, 8 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 24 राज्य मंत्री थे. नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार में संप्रग सरकार की तुलना में कई ख़ास बातें देखने लायक हैं. नरेंद्र मोदी सरकार में वंशवाद पर लगाम लगाने की कोशिश भी की गई है. संप्रग सरकार के दौरान वंशवाद अपनी चरम सीमा पर था. कांग्रेस के कई सांसदों को पारिवारिक विरासत की वजह से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, जिनमें दीपेंद्र सिंह हुड्डा, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नाम शामिल हैं. उन्हें मनमोहन सरकार में कई अहम पद दिए गए. इन सबसे अलग नरेंद्र मोदी सरकार में वंशवाद की झलक देखने को नहीं मिली. हालांकि मोदी के मंत्रिमंडल में स़िर्फ दो ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है. इनमें से अकाली दल की हरिसिमरत कौर बादल और पीयूष गोयल को राजग सरकार में मंत्री बनाया गया है. वैसे पीयूष को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने को वंशवाद से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि पीयूष पिछले 27 वर्षों से भाजपा में शामिल हैं.
ग़ौरतलब है कि क़रीब तीन दशकों में पहली बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला है. भाजपा ने वर्ष 2014 के आम चुनाव में लोकसभा की कुल 543 में से 282 सीटें हासिल कीं. माना जा रहा है कि मोदी सरकार 23 साल पहले शुरू हुए आर्थिक और वित्तीय सुधार नीतियों को पुनः स्थापित करेगी. पिछली मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार की तस्वीर काफ़ी अलग है. जिस तरह से उन्होंने सरकार का आकार छोटा रखा है, उससे उद्योग जगत बेहद खुश है. उद्योग जगत के लोग इसे केंद्र के स्तर पर बेहतर गवर्नेंस के रूप में देख रहे हैं. उद्योग जगत मान रहा है कि यह मोदी सरकार के आर्थिक सुधार का पहला क़दम है. सरकार के छोटे आकार की वजह से बेहतर गवर्नेंस स्थापित की जा सकेगी. कई मंत्रालयों को एक साथ लाने से जहां सरकारी कामकाज में तेज़ी लाने और बेहतर समन्वय में मदद मिलेगी, वहीं इससे सरकारी ख़जाने पर बोझ भी कम होगा.
मंत्रिमंडल में इन नेताओं को नहीं मिली जगह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 45 मंत्रियों के साथ शपथ लेकर कई परंपराओं को तोड़ते हुए एक नई शुरुआत की है. यह देश के इतिहास में अब तक का सबसे छोटा मंत्रिमंडल है. नरेंद्र मोदी ने स़िर्फ 23 कैबिनेट मंत्री बनाए हैं, जबकि 10 स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री हैं और 12 राज्य मंत्री. पिछली वाजपेयी सरकार में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, हुक्मदेव नारायण यादव, राजीव प्रताप रूडी और शाहनवाज हुसैन जैसे भाजपा के प्रमुख नेताओं को मंत्रिमंडल में अहम स्थान मिला था, लेकिन मोदी सरकार में इन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है.
टीम मोदी में आरएसएस के चहेतों को मिली तरजीह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में इस बार कई नए चेहरे भी शामिल हुए, जिन्हें संघ की सरपरस्ती का फ़ायदा मिला. राजनाथ सिंह, उमा भारती, राधा मोहन सिंह, नितिन गडकरी, संतोष गंगवार और डॉ. जितेंद्र सिंह इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं, जिनका आरएसएस से पुराना नाता रहा है. इस लिहाज़ से टीम मोदी में सुषमा स्वराज ही एकमात्र वरिष्ठ भाजपा नेता हैं, जिनका संघ से कोई क़रीबी रिश्ता नहीं रहा है. मोदी मंत्रिमंडल में जिस तरह आरएसएस की छाप है, उसे देखकर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि उनकी अगुवाई वाली भाजपा सरकार अपने पुराने एजेंडे को पूरी तरह भूली नहीं है. शपथ ग्रहण समारोह के अगले दिन उधमपुर से भाजपा सांसद डॉ. जितेंद्र सिंह ने अनुच्छेद 370 का मुद्दा उठाकर इसकी झलक दिखा दी है. दरअसल, संघ भी यही चाहता है कि भाजपा अपने पुराने मुद्दे की ओर लौटे, तभी आरएसएस की प्रासंगिकता भी बची रहेगी. इस बार लोकसभा चुनाव में संघ ने भाजपा के पक्ष में जिस तरह अभियान चलाया, उसकी एक-एक पाई वसूल करने में वह भी कोई कोताही नहीं बरतेगा. यह बात नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने से लेकर लालकृष्ण आडवाणी के मामले में भी देखी जा सकती है. इतना ही नहीं, नितिन गडकरी के स्थान पर भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष किसे बनाया जाए, यह ़फैसला भी आरएसएस ने ही किया. चूंकि राजनाथ सिंह अब गृहमंत्री बन गए हैं, ऐसे में उनकी जगह भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा, यह निर्णय भी संघ की मर्ज़ी से ही होगा.