भारत देश को एक ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री के तौर पर मिला है जिसे आप आराम से कुछ भी कह सकते हैं वह बुरा नहीं मानता । इतना ही नहीं वह स्वयं यहां तक कहता है कि रोज मुझे कई किलो गालियां पड़ती हैं । लेकिन दूसरी ओर वही व्यक्ति स्वयं को भगवान भी कहलवा देता है। उसकी पार्टी के लोग जब उसे खुद में देश बता देते हैं तो वह उस पर भी गुदगुदाता है। उसने किसी योजना पर काम नहीं किया पर सौ से ज्यादा योजनाएं उसके नाम पर हैं । अमीरों को देश धोने के फायदे बता कर उनसे गलबहियां करता है लेकिन गरीबों को अपना हमदर्द बता कर राबिन हुड भी बन जाता है । गांधी को गाली देने वालों को पोसता भी है तो गांधी गांधी का गान करते हुए चरखा भी चलाता है । सबका साथ सबका विश्वास कहते कहते उसी पर हथौड़ा चलाने लगता है । गुजरात दंगों में मुसलमानों के कत्लेआम का तमाशबीन बन कर यूक्रेन रूस युद्ध में शांति की अपील करता नोबल पुरस्कार की तड़प दिखाता है । दुनिया भर में अपना नाम कमा कर अपने देश के बच्चे बच्चे से गाली खाकर भी निश्चिंत रहता है । इतिहास भूगोल का ज्ञान नहीं फिर भी सबसे बड़ा इतिहासकार बन जाता है । बच्चों को शिक्षा के गुर सिखा कर हर तरह की नौटंकी में माहिर हो जाता है। ये आदमी देश का नेता है और उसी कुर्सी पर विराजमान है जिस पर कभी पं नेहरू हुआ करते थे । हमें यकीन है कि जितनी ‘तारीफ’ हमने इनकी फिलहाल की है उससे ये प्रसन्न ही होंगे और हम पर कोई विपत्ति नहीं आएगी । यह सारा प्रसंग हमने कल के ‘लाउड इंडिया टीवी’ के अभय दुबे शो से उधार लिया । दरअसल संतोष भारतीय ने अभय दुबे से पूछा था कि बीजेपी वाले दो राज्यों के चुनाव के मद्देनजर मोदी जी को देश बता रहे हैं इस पर आपकी टिप्पणी क्या है । अभय दुबे ने यह कहते हुए कि मोदी जी भी आलोचना से परे नहीं हैं, उनकी लंबी चौड़ी लेकिन एकदम सही तारीफ भी कर डाली और कहा कि यह सब मैं मोदी जी की तारीफ में कह रहा हूं। कोई भी व्यक्ति जिसमें तानाशाही प्रवृतियां बढ़ती हैं और वह खुद को देश का पर्याय हो जाने की चाह रखता है हाड़ तोड़ मेहनत तो करता ही है । काश अभय दुबे तारीफ के साथ यह भी बता देते कि इस सारी मेहनत के पीछे मंशा क्या है। यों हर किसी को यहां तक कि बीजेपी के भी हर शख्स को पता है मंशा क्या है । एक सवाल का अच्छा जवाब अभय दुबे ने दिया । सवाल यह है कि इतने कोलाहल के बावजूद मोदी की हर बार जीत कैसे हो जाती है । जवाब है जब तक समस्या संकट में नहीं बदलती तब तक मोदी की जीत होती रहेगी । मोदी के सामने कांग्रेस की फिसलन पर भी अभय दुबे ने कांग्रेस का चरित्र सामने ला दिया । आप मानें न मानें मोदी अजूबा तो हैं ही ।
लेकिन हम तारीफ करें या कोसें यह जान लेना बहुत जरूरी है कि मोदी के शासन में देश धीरे धीरे आदिम युग में जा रहा है और देश में जाहिलपन बढ़ रहा है । देश सभ्य नहीं हो रहा एक मखौल के साथ कंगाल हो रहा है या कंगाली की तरफ धकेला जा रहा है । बहुत बड़ा भ्रम है आरएसएस और स्वयं मोदी को कि यह देश एक दिन हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। हैरानी तो यह है कि देश की नब्ज को समझने वाले मोदी को इतना बड़ा भ्रम है। पर इसका दूसरा पहलू भी है कि सम्भव है मोदी को यह समझ आ गयी हो कि हिन्दू राष्ट्र के लिए हाथ पैर मारना बिना तैराक हुए पानी में उतरना ही जैसा है इसलिए न सही हिंदू राष्ट्र पर सत्ता का नशा और चस्का चरम पर रहने की उम्र तो बढ़ाता ही है । मोदी किसी भी हाल में परास्त होना नहीं चाहते । कहा जाता है ऊंचाइयां बहुत खतरनाक होती हैं । कल्पना कीजिए कि मोदी एक के बाद एक विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा चुनाव भी हार जाते हैं तो वे किस हाल में होंगे । वे इंदिरा गांधी की शासन शैली और व्यक्तित्व से बहुत आगे निकल आये हैं । इंदिरा लोकसभा चुनाव हारी थीं लेकिन लोकप्रिय थीं । उन्होंने गालियां नहीं खायी थीं। दुश्मन नहीं बनाए थे । इसीलिए दोबारा लड़ीं और जीतीं । पर मोदी अपनी कुर्सी हारे तो मोदी युग समाप्त समझिए और तब मोदी को मोदी के लोग ही नोंच खाएंगे क्योंकि मोदी की तानाशाही से बीजेपी के भीतर ही हालात सामान्य नहीं बहुत खराब हैं । यह बात मोदी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं इसीलिए वे किसी कीमत पर गुजरात और किसी कीमत पर लोकसभा चुनाव नहीं हारना चाहते । यह कैसे हो सकता है कि गुजरात का बेटा देश में लोकप्रिय हो अपना ही राज्य हार जाए । इस समय मोदी बौराये हुए हैं कारण केजरीवाल की पार्टी से जबरदस्त चुनौती है । कांग्रेस की बदकिस्मती है कि राहुल गांधी की यात्रा भी चुनाव जिताऊ साबित नहीं हो रही । इसलिए कांग्रेस की तरफ से मोदी एकदम निश्चिंत हैं यह कोई बच्चा भी स्वीकार करेगा । कांग्रेस के बारे में पिछली बार हमने विस्तार से लिखा था अब सिर्फ इतना ही कहना है कि अब तक कि यात्रा यही साबित करती है कि राहुल गांधी पप्पू नहीं रहे और उनका व्यक्तित्व जबरदस्त तरीके से निकला है । लेकिन न तो कांग्रेस में उबाल आया है न आपसी सिरफुटव्वल दूर हुई है और न ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री के ‘कैंडिडेट’ बने हैं ।
मोदी हारेंगे या नहीं हारेंगे । सट्टा लगाने वाले इस पर खुल कर सट्टा लगा सकते हैं । देश की चिंता करने वालों को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोकसभा चुनाव बीजेपी ने जीते । हजारों बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सिविल सोसायटी के लोगों, बेरोजगार युवाओं और वामपंथियों के होते हुए भी यदि मोदी जीतते हैं तो इन सब पर लानत भेजिए । होना तो यह चाहिए कि आज के बाद से बीजेपी एक भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव न जीत सके । बहुत हो चुका।
आरफा खानम शेरवानी को ‘कुलदीप नैयर सम्मान’ मिला । वे हकदार हैं । उन्हें बधाई ! रवीश कुमार का कुछ समझ नहीं आ रहा । पिछले दिनों तो वे छठ की छुट्टी पर थे और उन्होंने अपने गांव में छठ का भरपूर आनंद भी लिया । लेकिन उसके बाद वे नियमित नहीं हैं इससे उनके चाहने वाले परेशान हैं । कुछ स्थिति स्पष्ट हो तो अच्छा है । अडानी और एनडीटीवी की कुछ खबरें फिर आयी हैं, जो दिमाग में हलचल पैदा करने के लिए काफी हैं। पिछले दिनों एक रेप केस की खबर आयी जिसमें हाईकोर्ट से फांसी पाये आरोपी सुप्रीम कोर्ट से बाई इज्जत बरी हो गये। देश हिल गया इस घटना से पर सोशल मीडिया के लिए यह खबर खबर ही नहीं बनी । आश्चर्य है ।
कल अमिताभ का कार्यक्रम ‘सिनेमा संवाद’ समझ ही नहीं आया कि कार्यक्रम हिंदी का है या इंग्लिश का। कार्यक्रम का संचालन कर रहे एंकर के पास कार्यक्रम की लगाम होती है । एक व्यक्ति अंग्रेजी में बोलता है तो सभी का हौसला बढ़ता है और सब अंग्रेजीदां हो जाते हैं । कार्यक्रम यदि हिंदी का है तो उसे हिंदी में ही होना चाहिए । सारे पैनलिस्ट हिंदी जानते थे लेकिन एक से भी एंकर ने नहीं कहा कि हमारे श्रोताओं के लिए कृपया हिंदी में अपनी बात कहें । निश्चित ही इस हफ्ते जो हमको फोन आएंगे उनमें यह बात शिकायत के तौर पर जरूर कही जाएगी । हो सकता है अमिताभ ने एंकरिंग पहली बार की हो यदि ऐसा है तो उम्मीद है भविष्य में इस बात का विशेष खयाल रखेंगे । बेहतरीन विषय था । अंग्रेजी में कार्यक्रम होता तो शिकायत का कोई सवाल ही नहीं था। यह अच्छा कार्यक्रम है जिसे लोग चाव से सुनते हैं ।
आजकल सोशल मीडिया की चर्चाओं में भी लोगों की रुचि नहीं रही । लोग थोड़ा देखते हैं फिर चैनल बदल देते हैं । वजह कि कुछ नयापन नहीं है । वही भीड़ जिसे आलोक जोशी वाकई ‘भीड़’ कहते हैं । अब जनता की भीड़ तमाशा बन कर तमाशा देखना चाहती है । इस साल के बाद अगले साल भी कई राज्यों में चुनाव हैं । मजा आने दीजिए लोकतंत्र की तो ‘वाट’ लग ही रही है ।

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