झारखंड में भाजपा-आजसू की गठबंधन सरकार जहां निवेशकों को आकर्षित करने के लिए जगह-जगह रोड शो कर रही है, वहीं विपक्ष ने भूमि अधिग्रहण और जनजातियों के अधिकारों की सुरक्षा वाले दो कानूनों में किए गए बदलाव के खिलाफ विरोध तेज कर दिया है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने हाल में देश की राजधानी नई दिल्ली में रोड शो किया, जबकि पकरी-बरवाडीह कोयला खनन परियोजना के लिए नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध में अदालत में गिरफ्तारी देने के लिए विपक्षी पार्टियों के नेता हजारीबाग गए. विपक्षी नेताओं के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसके जवाब में वे अदालत में गिरफ्तारी देने गए थे. हालांकि पुलिस ने इस आधार पर उन्हें गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया कि मामले की जांच चल रही है. अध्यादेश के जरिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी (एसपीटी) अधिनियम में बदलाव करने की सरकारी पहल का विरोध करने के लिए विपक्षी पार्टियां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (झाविमो-प्र) और कांग्रेस एकजुट हो गई हैं.
हजारीबाग के बड़कागांव में एनटीपीसी की कर्णपुरा (पकरी-बरवाडीह) कोल परियोजना के तहत जबरन ज़मीन अधिग्रहण के विरोध में किसानों का संघर्ष जारी है. किसानों के विरोध को दबाने के लिए पुलिस दमन का रास्ता अख्तियार कर रही है. पुलिस-प्रशासन द्वारा किये जा रहे दमन की जांच के लिए एआईपीएफ, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की टीम घटनास्थल पर गई थी. इस टीम में फादर स्टेन स्वामी, अरविंद अविनाश, प्रशांत राही, अनिल अंशुमन व शिखा राही थे.
टीम ने हजारीबाग स्थित पकरी-बरवाडीह कोल परियोजना के मुख्य इलाके बड़कागांव प्रखंड में विभिन्न गांवों का दौरा किया. उन्होंने पुलिसिया दमन के शिकार ग्रामीणों से मिलकर घटना की विस्तृत जानकारी ली. साथ ही जबरन ज़मीन अधिग्रहण व विस्थापन के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों व विभिन्न जन संगठनों के साथियों पर फ़र्ज़ी मुकदमों के संबंध में भी जानकारी ली.
जांच टीम ने बड़कागांव प्रखंड के सोनबरसा,सिंदुआरी, चुरचू तथा डाड़ीकला के ग्रामीणों तथा संघर्षरत जन संगठनों से जानकारी हासिल की. एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा ज़मीन अधिग्रहण के प्रयासों का क्षेत्र के किसानों ने लगातार विरोध किया है. इसके बावजूद कोयला खनन का ठेका 2 निजी कंपनियों को देकर चिरुडीह तिलैया टांड़ में काम शुरू करा दिया गया, तब आसपास के किसानों (रैयतों) ने भी 31 मार्च 2016 से खननस्थल के समीप शांतिपूर्ण ढंग से अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया. 16 मई को जब खनन कंपनियों ने पोकलेन और बुलडोज़र लेकर खनन कार्य शुरू किया, तो विरोध करनेवाले
रैयत-किसानों की संख्या भी बढ़ने लगी. 17 मई को जब सैकड़ों किसान धरने पर बैठे थे, तभी बड़कागांव थाना प्रभारी राम दयाल मुंडा वहां पहुंचे और किसानों से पूछा कि जब शांतिपूर्ण धरना दे रहे हो तो पास में ये लाठियां क्यों रखे हो? यह सुनकर किसानों ने अपनी लाठियां हटा दीं. इसके बाद अचानक बिना किसी चेतावनी के पुलिसवालों ने किसानों पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसानी शुरू कर दी. इस लाठी चार्ज में सैकड़ों किसान घायल हुए. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, चिरुडीह तिलैया टांड़ में निहत्थे ग्रामीणों पर लाठी-चार्ज के बाद करीब 400 हथियारबंद पुलिसवालों ने आस-पास के गांवों पर हमला बोल दिया. बच्चे, बूढ़े, किशोर और महिला जो जहां मिला, उन्हें बुरी तरह से पीटा गया. दरवाजे तोड़कर पुलिसवाले घरों में घुसे. महिलाओं को गंदी-गंदी गालियां दीं और उनके साथ मार-पीट भी की. घर के सभी सामान तहस-नहस कर दिये गये. कई लोगों के सिर फूटे तो कइयों के हाथ-पांव तोड़ दिए गए, यहां तक कि गर्भवती महिला व नयी बहू को भी नहीं छोड़ा गया. जांच टीम को हर जगह पुलिस की दरिंदगी के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले.
सोनबरसा गांव में छात्र मुकेश कुमार ने बताया कि पुलिस ने हमारे साथ जैसा अत्याचार किया वैसा तो अंग्रेजों ने भी कभी नहीं किया होगा. बासो देवी ने क्षुब्ध स्वर में कहा कि कंपनी से मोटा पैसा लेकर पुलिस हमें मारने आई थी. मीना, चमेली देवी, दीपक साव, कौलेसर साव, दीपक साव व देव प्रसाद महतो समेत सबने एक स्वर में गहरे दर्द और क्षोभ के साथ पुलिसिया करतूत के बारे में जांच टीम को आपबीती सुनाई.
डाड़ीकला की सुकरी देवी, चाहो खातून, 70 वर्षीय रामेश्वर भुईया समेत वहां जुटे सभी महिला-पुरुषों ने बताया कि घटना के दिन जब टोले में लोग रसोई बना रहे थे, तभी सैकड़ों पुलिसवालों ने उनपर हमला बोल दिया. सिंदुआरी गांव की रेशमी महतो, यदुवीर साव व छात्रा संगीता और सभी ने पुलिसिया हमले की घटना बताई. चुरचू गांव के निवासियों ने कहा कि कई दिनों तक हमलोग डर से घर भी नहीं लौटे. कई रात गांव से बाहर इधर-उधर सोना पड़ा. पुलिसवाले हमें यह धमकी देकर गए थे कि जल्दी से इलाका खाली कर दो, नहीं तो फिर आकर ऐसे ही मारेंगे. गांव के लोगोंे का कहना है कि हमारी पुश्तैनी ज़मीन हमसे छीनी जा रही है. हमारे बाल-बच्चे कहां जाएंगे? हमलोगों के जीने-खाने का क्या होगा? सरकार हमारी ज़मीन लेना चाहती है तो पहले यहां आकर देखे कि ज़मीन बंजर है या उपजाऊ. यहां बहुत अच्छी फसल होती है. सब्जियां, धान, मक्का, गन्ना सब कुछ उगाते हैं और यहां का गुड़ तो दूर-दूर तक भेजा जाता है.
गौरतलब है कि बड़कागांव प्रखंड के दाड़ीकला, सोमवर्षा, सिंदवारी, दाड़ी, नगड़ी, इतीज, सिरया, चुरचू, उरूल समेत कई गांवों के करीब 150 पुरुष व महिलाएं तिलैयाटांड (चिरूडीह) में 54 दिनों से धरने पर बैठे हैं. ग्रामीण सरकार द्वारा तय किए गए मुआवजे को कम बता रहे हैं. एमओयू के तहत बिजली उत्पादन के लिए हजारीबाग जिले के बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र के 37 गांवों की करीब 17 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना है. अभी तक सभी प्रभावित किसान परिवारों को मुआवजा नहीं दिया गया है. इतना ही नहीं, जिन्हें मुआवजा मिला भी है, उसमें करीब 200 एकड़ जमीन के मुआवजे का भुगतान जमीन के वास्तविक मालिक को नहीं किया गया है. ऐसे कई फर्जी मामले अदालत में दायर किये गये हैं. बड़कागांव में अधिग्रहण से प्रभावित होनेवाले 36 गांवों में करीब 3000 परिवार रहते हैं. यहां की जमीन उपजाउ होने के कारण अधिकतर परिवारों का मुख्य पेशा खेती है. यहां किसान खेत से साल में तीन फसल लेते हैं.
85 बरस के सुगन साव कहते हैं कि हमलोग 12 साल से जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हम कोयला खनन के विरोधी नहीं हैं, लेकिन इस परियोजना में हमारा घर, जमीन, खेत सबकुछ चला जा रहा है. वहीं सरकार हमारे 25 कट्ठा जमीन का मुआवजा मात्र 10 लाख रुपए दे रही है, जबकि दूसरी जगह जमीन की कीमत 20 लाख रुपया कट्ठा है. हमें यह मुआवजा मंजूर नहीं है. जब तक हमें हमारा हक नहीं मिलेगा, हम विरोध करते रहेंगे. बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र के 35 से ज्यादा गांवों के किसानों को बेघर होने की चिंता सता रही है. वे किसी भी कीमत पर आंदोलन से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि हमारी लड़ाई पुलिस से नहीं, कंपनी से है. 10 साल पहले 25 एकड़ जमीन के लिए 10 लाख रुपया मुआवजे की बात हुई थी. अब 20 लाख देना चाहते हैं. हम एक करोड़ रुपए मुआवजे और एक नौकरी की मांग कर रहे हैं. हमारे गांव के कुछ लोगों ने बेटी की शादी करने या बीमारी का इलाज करवाने के लिए मुआवजा ले लिया है. ये उनकी मजबूरी थी. लेकिन 75 प्रतिशत लोगों ने अपनी जमीन नहीं दी है. जिन्होंने अपनी जमीन दे भी दी है, वे अब दलाल की झूठी बातों में फंसकर अब पछता रहे हैं.
सीएनटी अधिनियम (1908) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की जमीन के हस्तांतरण पर रोक लगाता है. हालांकि एक जनजाति बिक्री, विनिमय, उपहार या इच्छापत्र के जरिए अपने थाना क्षेत्र के निवासी को अपनी जमीन हस्तांतरित कर सकता है. इसी तरह एसपीटी अधिनियम झारखंड की संथाल जनजातियों के भूमि अधिकार को संरक्षण देता है.
विपक्ष का आरोप है कि रघुवर दास एक गैर जनजातीय मुख्यमंत्री हैं. वे प्रतिबंधित जनजातीय इलाकों में अपने घनिष्ठ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए इन दोनों कानूनों में बदलाव करना चाहते हैं, ताकि भूमि अधिग्रहण को आसान बनाया जा सके. इस मुद्दे पर राज्य विधानसभा की कार्यवाही पहले कई बार बाधित हो चुकी है. झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा कि इन दोनों कानूनों में बदलाव के लिए राष्ट्रपति के पास भेजे गए अध्यादेश के खिलाफ उनकी पार्टी विश्व जनजातीय दिवस पर आंदोलन करेगी.
झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने भी राष्ट्रपति से मुलाकात की और उनसे अध्यादेश राज्य को वापस लौटा देने की मांग की. बड़कागांव ब्लॉक में पकरी-बरवाडीह कोयला खंड 2010 में एनटीपीसी को आवंटित किया गया था, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के कारण काम शुरू नहीं हो सका. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई थीं, जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी.
अदालत में गिरफ्तारी देने के लिए हजारीबाग जाने वाले नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, जनता दल (यू) के प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा और कांग्रेस की स्थानीय विधायक निर्मला देवी शामिल थीं. प्रतिबंधित खनन क्षेत्र में अनाधिकार प्रवेश करने के आरोप में इन नेताओं और अन्य चार सौ लोगों के खिलाफ गत 24 जुलाई को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. ये नेता भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे ग्रमीणों से मिलने गए थे. मरांडी ने कहा कि साल 2004 से चल रही लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक हम जीत नहीं जाएंगे. पूर्व केंद्रीय मंत्री सहाय ने कहा कि 2004 से 2016 के बीच भूमि अधिग्रहण के लिए एक बार भी ग्राम सभा की बैठक नहीं बुलाई गई. एक बार उपायुक्त के चेंबर में बैठक हुई, जिसका पूर्व मंत्री योगेंद्र साव ने विरोध किया तो उनकी पिटाई की गई. विरोध-प्रदर्शन के कारण ही उनकी पत्नी एवं विधायक निर्मला देवी समेत अन्य पर कई केस दर्ज कर दिये गये हैं, जबकि योगेंद्र साव पर सीसीए लगाने के बाद उन्हें जिलाबदर कर दिया गया. उन्होंने कहा कि जबरन भूमि अधिग्रहण के कारण बड़कागांव ही नहीं बल्कि चांडिल एवं संथाल परगना के कई इलाकों में भी ग्रामीण संषर्घरत हैं. कांग्रेस विधायक दल के नेता आलम ने कहा कि पार्टी विस्थापितों के संघर्ष के साथ है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल में ही वर्ष 2013 में नया भूमि अधिग्रहण कानून केंद्र में आया, लेकिन राज्य सरकार इसका भी पालन नहीं कर रही है.