बिहार विधान परिषद के चार क्षेत्रों में हुए चुनाव के परिणाम ने राजद और कांगे्रस को निराश किया है. वहीं जदयू, भाजपा और रालोसपा के प्रत्याशियों की सफलता ने आने वाले समय में बिहार की राजनीति का एक तरह से संकेत कर दिया है. बिहार की राजनीति में जिसने भी अपने को सुप्रीम माना, जनता ने समय आने पर इन नेताओं को खामोशी से जवाब दिया है.
जनता ने किसी को सिर आंखों पर बैठाया तो बौराए नेताओं को नीचे उतारने में देर भी नहीं की. बिहार विधान परिषद के गया स्नातक, शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र, कोशी शिक्षक व सारण स्नातक क्षेत्र के चुनाव परिणाम ने देश-प्रदेश के बदलते राजनीतिक परिवेश में बिहार के निवासियों की सोच को उजागर किया है. इस चुनाव की सबसे बड़ी बात यह है कि एनडीए और महागठबंधन में शामिल सभी दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए थे. किसी एक ने भी गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया. अपने-अपने प्रत्याशी खड़े कर सभी दलों ने अपने-अपने तर्क भी दिए, लेकिन जनता सब जानती है, की तर्ज पर मतदाताओं ने इसका जवाब दे दिया. इसमें सबसे अधिक घाटा कांगे्रस और राजद को हुआ है.
बिहार विधान परिषद के सभापति और गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की. इन्हें शिकस्त देने के लिए कई राजनीतिक दलों समेत 16 प्रत्याशियों ने जबरदस्त घेराबंदी की थी. मतगणना के अंत-अंत तक चुनाव परिणाम को लेकर सस्पेंस बना रहा, क्योंकि मतगणना के नियम के अनुसार जादुई आंकड़ा प्राप्त करने में अवधेश नारायण सिंह को कुछ मतों की कमी आ रही थी.
वैसे राजद प्रत्याशी पुनित कुमार सिंह से भाजपा प्रत्याशी को दोगुने मत मिले थे, लेकिन अवधेश नारायण सिंह सभी दलों के प्रत्याशियों के चक्रव्यूह को तोड़कर अभिमन्यु की तरह निकले और गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से लगातार तीसरी बार जीत हासिल की. स्थानीय स्तर पर भाजपा के लोगों का भी कुछ अंतर्विरोध था, तो जातीय स्तर पर भी जहां-तहां विरोध हो रहे थे. चुनाव प्रचार के दौरान यह भी कहा जा रहा था कि महागठबंधन के दोनों दलों कांग्रेस और राजद ने अवधेश नारायण सिंह की जाति के ही एक दिग्गज व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारा है, इसलिए उनकी जीत आसान नहीं है.
यह प्रचार एक जाति विशेष के कुछ नेताओं द्वारा अपनी जाति के प्रत्याशी के पक्ष में मत प्राप्त करने के लिए किए जा रहे थे. राजद ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जगतानंद सिंह के पुत्र डॉ. पुनित कुमार सिंह को, तो कांग्रेस ने सहकारिता आंदोलन के महान नेता, पूर्व सांसद स्व. तपेश्वर सिंह के पुत्र डॉ. अजय कुमार सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था.
अवधेश नारायण सिंह की जीत में जदयू ने भी मौन रहकर एक तरह से इनका मौन समर्थन किया था. अब राजनीतिक विश्लेषक चाहे इसे जिस रूप में लें. हालांकि जीत के बाद विधान परिषद सभापति अवधेश नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति भी आभार व्यक्त किया, तो महागठबंधन में भूचाल सा आ गया.
भारतीय जनता पार्टी के लिए भी गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था. प्रदेश नेताओं के साथ-साथ केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद व गिरिराज सिंह तक ने अवधेश नारायण सिंह के लिए चुनाव प्रचार किया. नतीजा यह है कि गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव परिणाम ने तमाम अटकलों को दरकिनार कर बिहार विधान परिषद के सभापति और भाजपा प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह की जीत पर मुहर लगा दी.
गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से रालोसपा के प्रत्याशी संजीव श्याम सिंह लगातार दूसरी बार विजयी हुए. इन्होंने कांग्रेस के हृदय नारायण सिंह को हराकर जीत हासिल की. संजीव श्याम सिंह को 5674 मत मिले तो उनके प्रतिद्वंद्वी हृदय नारायण सिंह को 1953 मत मिले. ऐसे तो रालोसपा के संजीव श्याम सिंह एनडीए के प्रत्याशी थे, लेकिन एनडीए में शामिल लोजपा ने भी अपने प्रत्याशी प्रो. डीएन सिन्हा को चुनाव मैदान में उतार दिया था. इन्हें करारी शिकस्त मिली.
यहां महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और राजद दोनों ने गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भी अपने-अपने प्रत्याशी दिए थे. राजद ने प्रो. दिनेश प्रसाद सिन्हा को अपना प्रत्याशी बनाया था. राजद प्रत्याशी ने अपनी हार पर कहा कि महागठबंधन में बिखराव मेरी हार का मुख्य कारण रहा. कांग्रेस प्रत्याशी हृदय नारायण सिंह ने भी कुछ ऐसे ही बातें कही. ज्ञात हो कि पिछले चुनाव में प्रो. डीएन सिन्हा मात्र 36 वोट से हारे थे. इस बार रालोसपा प्रत्याशी संजीव श्याम सिंह प्रथम राउंड से ही भारी लीड लिए हुए थे. मगध के दोनों क्षेत्रों से एनडीए प्रत्याशी की लगातार जीत ने बिहार में बदलते राजनीतिक समीकरण और लोगों की बदलती सोच का एहसास राजनीतिक दलों के नेताओं को करा दिया है.
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में विधान परिषद का यह चुनाव परिणाम बिहार की राजनीति की दिशा को तय करने में एक महत्वपूर्ण कारण बनेगा. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि विधान परिषद के चार क्षेत्रों में हुए चुनाव में कांग्रेस और राजद को निराशा हाथ लगी है. सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से जदयू के विरेन्द्र नारायण यादव और कोशी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जदयू के संजीव सिंह की जीत ने बिहार की राजनीति में अंदर ही अंदर एक हलचल पैदा कर दी है.
हालांकि कोशी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के महागठबंधन समर्थित जदयू प्रत्याशी संजीव सिंह ने एनडीए समर्थित जगदीश चंद्रा को 6013 मतों से मात दी. संजीव सिंह को कुल 8309 मत मिले, जबकि जगदीश चंद्रा को 2296 मत मिले. संजीव सिंह की यह लगातार जीत रही. सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से जदयू प्रत्याशी विरेन्द्र नारायण यादव का जीतना भी एक बड़ा संदेश दे गया. जदयू प्रत्याशी विरेन्द्र नारायण यादव ने यहां के निर्वतमान विधान पार्षद और एनडीए समर्थित हम के प्रत्याशी महाचंद्र प्रसाद को हराकर इस सीट पर कब्जा किया.
विरेन्द्र नारायण सिंह को 28385 और डॉ. महाचंद्र सिंह को 23271 मत मिले. बिहार की राजनीति में, या यूं कहें कि उत्तर बिहार की राजनीति में महाचंद्र सिंह का तीन दशक से अधिक समय से दबदबा था, लेकिन अपना दल लगातार बदलते रहने के कारण उनकी प्रतिष्ठा में कमी आती गई और परिणाम ये रहा कि इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
बिहार विधान परिषद के दो शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव परिणाम ने बिहार की राजनीति में कुछ गरमाहट ला दी है. राजद और कांग्रेस ने मगध में शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों में अपने प्रत्याशियों की हार पर गठबंधन में शामिल जदयू पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है. इस बयानबाजी में बड़े से लेकर छोटे नेता तक शामिल हो गए हैं.
बिहार विधान परिषद के चार निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणामों से मिले संकेत को अगर राजनीतिक दलों ने नहीं समझा, तो आने वाले समय में वैसे दलों को मतदाताओं की बदलती सोच का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. देश और प्रदेश के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में बिहार विधान परिषद के गया स्नातक और शिक्षक तथा कोशी शिक्षक व सारण स्नातक क्षेत्र का चुनाव परिणाम राजनीतिक दलों को चुप-चाप बहुत कुछ कह दे रहा है.