राजनाथ सिंह अपनी कार्यशैली के कारण हमेशा सुर्खियां बटोरते रहते हैं. जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सामाजिक न्याय समिति गठित करके दलितों में अति दलित और पिछड़ों में अति पिछड़ों के लिए कोटे में कोटे का प्रयास किया था. किसानों के प्रति उनकी हमदर्दी कभी छिपी नहीं रही.
भारतीय जनता पार्टी में अटल-आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का अंत होता दिख रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी पहले ही राजनीति से संन्यास ले चुके हैं. लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी ने राजनीति को अलविदा तो नहीं कहा है, लेकिन भाजपा की नई दूसरी पीढ़ी की तमन्ना यही है कि ये दोनों नेता भी सक्रिय राजनीति से दूरी बना लें. भाजपा का नए कर्ताधर्ता (खासकर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह) आडवाणी-जोशी को शो पीस की तरह तो पार्टी में देखना चाहते हैं, लेकिन यह कतई नहीं चाहते कि उनकी किसी मामले में दखलंदाजी हो. यही वजह थी, लालकृष्ण आडवाणी को न चाहते हुए भी 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग होकर नरेंद्र मोदी नाम पर हामी भरनी पड़ी. आडवाणी को साइड में लगाने के बाद अब भाजपा का भावी नेतृत्व मुरली मनोहर जोशी के ख़िलाफ़ जाता दिख रहा है. वाराणसी के सांसद मुरली मनोहर जोशी से उम्मीद की जा रही है कि वह नरेंद्र मोदी के लिए वाराणसी से चुनाव न लड़ने की घोषणा करके बलिदान दें. कुछ ऐसे ही हालात से भाजपा के दिग्गज नेता एवं खुद को अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराधिकारी बताने वाले लखनऊ के सांसद लाल जी टंडन को भी गुजरना पड़ रहा है. उनसे भी उम्मीद लगाई जा रही है कि वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह का लखनऊ से सांसद बनने का सपना पूरा करने के लिए रिटायर हो जाएं. कभी भाजपा के ताकतवर नेताओं और आरएसएस के प्रिय रहे आडवाणी और जोशी की बढ़ती उम्र के कारण संघ का इन पुराने नेताओं से मोहभंग हो गया है. यही हाल लखनऊ के सांसद लाल जी टंडन का है.
राजनीति की बिसात पर इस तरह का खेल अक्सर देखने को मिलता रहता है. कमजोर को सहजोर दबाता रहा है. कभी अटल-आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी ने जो किया था, अब वही राजनाथ-मोदी की टीम कर रही है. उत्तर प्रदेश भाजपा में जो मौजूदा उठापटक दिखाई पड़ रही है, उसके लिए मोदी से अधिक राजनाथ की महत्वाकांक्षा ज़िम्मेदार है. हालांकि राजनाथ सिंह सीधे तौर पर तो प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं शामिल हैं, लेकिन मौक़ा मिलने पर वह उसे गंवाना भी नहीं चाहते. इसीलिए वह रास्ते के सभी अवरोधक हटाते जा रहे हैं. मान लीजिए, भाजपा को उतनी सीटें न मिलीं, जितनी नरेंद्र मोदी उम्मीद लगाए हैं. ऐसे में नरेंद्र मोदी के नाम पर उनकी कट्टर छवि के चलते समर्थन जुटाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. तब राजनाथ सिंह तुरंत मजबूत विकल्प के रूप में फ्रंट पर आ जाएंगे. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी वरिष्ठता के हिसाब से दावेदार हो सकते थे, लेकिन वे राजनाथ की सियासत का पहले ही मोहरा बन चुके हैं.
दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, इसलिए राजनाथ की कोशिश है कि यहां भाजपा को अधिक से अधिक सीटें मिलें. इससे एक तरफ़ उनकी राजनीति चमकेगी, तो दूसरी तरफ़ उनकी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी भी मजबूत होगी. राजनाथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी दुलारे हैं. जोड़-तोड़ की राजनीति राजनाथ तब भी करते रहे, जब वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुआ करते थे. आज भले ही राजनाथ के चलते बागी नेता रहे कल्याण सिंह की पार्टी में वापसी हो गई हो, लेकिन जब तक कल्याण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, राजनाथ से उनकी कभी नहीं बनी. राजनाथ की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के चलते 1999 में कल्याण को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. उसके बाद कुछ समय के लिए राम प्रकाश गुप्ता को सूबे की कमान सौंपी गई, लेकिन यह सब रणनीति के तहत हो रहा था. राजनाथ नहीं चाहते थे कि कल्याण से इस्ती़फे के बाद वह सीधे तौर पर मुख्यमंत्री बनकर विवाद को जन्म दें. कल्याण के इस्ती़फे की आग जब थोड़ी ठंडी पड़ गई, तो ऐन दीवाली के दिन राम प्रकाश गुप्ता को चलता कर दिया गया. माहौल ऐसा बनाया गया, मानों राम प्रकाश की याद्दाश्त कमजोर पड़ गई हो और ऐसी हालत में उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाए रखा जा सकता. राम प्रकाश के हटते ही राजनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. भाजपा के अंदरखाने में चर्चा यह भी है कि राजनाथ के कारण ही नरेश अग्रवाल एवं अशोक यादव जैसे कई नेता पार्टी से दूर चले गए. राजनाथ की क्षत्रिय वोट बैंक पर अच्छी-खासी पकड़ है. वह कांगे्रस के वंशवाद पर हमला करते हैं, लेकिन अपने बेटे पंकज सिंह को पार्टी में आगे बढ़ाने से नहीं चूकते.
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में 10 जुलाई, 1951 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे राजनाथ मात्र 13 वर्ष की उम्र में आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे थे. वह प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे. गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद राजनाथ मिर्जापुर के केबी पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में भौतिक के लेक्चरार बन गए. 5 जून, 1971 को उनका विवाह सावित्री सिंह से हो गया. दो पुत्रों एवं एक पुत्री के पिता राजनाथ का व्यवसाय कृषि और अध्यापन रहा. आरएसएस से जुड़े होने के कारण उनके लिए राजनीति के रास्ते स्वत: खुलते चले गए. संघ से लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के शीर्ष पदों पर रहते हुए राजनाथ ने अपनी अनूठी कार्यशैली से सबको प्रभावित किया. वह चाहे भाजयुमो के अध्यक्ष (1988) रहे हों या अब भाजपा के अध्यक्ष, उन्होंने युवाओं को हमेशा पार्टी से जोड़े रखने का काम किया. वह 1972 में मिर्जापुर शहर के संघ कार्यवाहक बने. 1967 से लेकर 1971 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद गोरखपुर संभाग के संगठन सचिव रहे.
सर्वप्रथम जून 1977 के सामान्य निर्वाचन में जनता पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से, दूसरी बार अप्रैल 2001 में हुए उपचुनाव और तीसरी बार फरवरी 2002 के सामान्य निर्वाचन में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. 18 नवंबर, 2002 को राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद राजनाथ ने 19 नवंबर को विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. देश में लागू आपातकाल में राजनाथ 1975 में गिरफ्तार हुए और मिर्जापुर एवं नैनी जेल में बंद रहे. वर्ष 1988 से 1994 तक वह भाजपा से उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य और वर्ष 1991 से 6 दिसंबर, 1992 तक उत्तर प्रदेश सरकार में बेसिक, माध्यमिक एवं प्राविधिक शिक्षा विभाग के मंत्री रहे. अप्रैल 1994 में प्रथम बार और अप्रैल 2000 में दूसरी बार वह भाजपा से राज्यसभा के सदस्य रहे. 22 नवंबर, 1999 से 27 अक्टूबर, 2000 तक वह केंद्र सरकार में जल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे. राजनाथ वर्ष 1969 से 1971 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद गोरखपुर मंडल के संगठन सचिव, 1972 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मिर्जापुर के कार्यवाहक, 1974 में भारतीय जनसंघ मिर्जापुर शाखा के सचिव एवं जेपी क्रांति के जिला संयोजक और 1975 में जनसंघ के जिला अध्यक्ष रहे. राम प्रकाश गुप्ता के इस्ती़फे के बाद राजनाथ 28 अक्टूबर, 2000 से 8 मार्च, 2002 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इससे पहले उन्हें 1999 में अटल बिहारी सरकार में कृषि एवं भूतल मंत्री बनाया गया. 2005 से लेकर 2009 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राजनाथ 2014 के आम चुनाव की तरह 2009 के लोकसभा चुनाव के समय भी भाजपा के अध्यक्ष पद पर विराजमान थे.
राजनाथ सिंह अपनी कार्यशैली के कारण हमेशा सुर्खियां बटोरते रहते हैं. जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सामाजिक न्याय समिति गठित करके दलितों में अति दलित और पिछड़ों में अति पिछड़ों के लिए कोटे में कोटे का प्रयास किया था. किसानों के प्रति उनकी हमदर्दी कभी छिपी नहीं रही. उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री रहते एंटी-कापिंग एक्ट उन्होंने ही लागू कराया था. सफेद धोती-कुर्ता और चमड़े की चप्पल पहन कर राजनाथ ठेठ हिंदुस्तानी लगते हैं. राजनाथ ने कभी भी संघ की अवहेलना नहीं की, इसलिए संघ उन पर कई बार मेहरबान रहा. हाल में मुरली मनोहर जोशी और लाल जी टंडन प्रकरण में भी ऐसा ही होता दिखा. वाराणसी के सांसद मुरली मनोहर और लखनऊ के सांसद लाल जी टंडन ने जब राजनाथ को अर्दब में लेना चाहा, तो उन्होंने संघ की शरण में जाकर दोनों नेताओं की जुबान बंद करा दी. भाजपा के भीतर-बाहर कई बार राजनाथ संकट मोचक रह चुके हैं. आजकल वह नरेंद्र मोदी के साथ खड़े होकर उनके रास्ते की सभी बाधाएं दूर करने में लगे हैं. पहले आडवाणी और अब मुरली मनोहर से बेहतर यह बात शायद ही कोई समझ पाए. वैसे कहने वाले यही कह रहे हैं कि राजनाथ ने मोदी को आगे करके अपने लिए बिसात बिछाई है.
मिर्जापुर से दिल्ली वाया लखनऊ
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