सचिन तेंदुलकर से भुवनेश्‍वर  का पुराना नाता है. भुवनेश्‍वर भारत के चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक हैं. जिनका जन्म सचिन तेंदुलकर के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू करने के बाद हुआ और उन्हें उनके साथ खेलने का सौभाग्य भी मिला. लेकिन यह महज़ एक इत्तेफाक ही है कि भुवनेश्‍वर को पहली बार राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में जगह सचिन तेंदुलकर की वजह से ही मिली थी. आज भुवनेश्‍वर को वह पुरस्कार मिला है जिसे जीतने वाले सचिन पहले क्रिकेटर थे. 24 वर्षीय भुवी यह पुरस्कार जीतने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हैं. 
sachinउत्तर प्रदेश का मेरठ विश्‍वस्तरीय खेल उत्पादों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. लेकिन समय के साथ मेरठ को यहां के खिलाड़ियों की वजह से भी पहचाना जाने लगा है. सबसे पहले भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होकर प्रवीण कुमार ने मेरठ को पहचान दिलाई. इसके बाद प्रवीण की विरासत को आगे लेकर चल रहे युवा गेंदबाज भुवनेश्‍वर कुमार उनसे भी एक कदम आगे निकल गए हैं. इस साल के आईसीसी पुरस्कारों में भुवी को एलजी पीपुल्स च्वाइस अवार्ड से नवाजा गया है.
भुवनेश्‍वर यह पुरस्कार पाने वाले चौथे खिलाड़ी हैं. 2010 में शुरू हुआ यह पुरस्कार सबसे पहले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को दिया गया था. इसके बाद श्रीलंका के पूर्व कप्तान कुमार ने लगातार दो बार(2011 और 2012) यह पुरस्कार जीता. पिछले साल यह पुरस्कार टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को दिया गया था. भुवनेश्‍वर ने इस पुरस्कार की दौड़ में शामिल आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के अनुभवी तेज गेंदबाजों मिशेल जॉनसन और डेल स्टेन को पीछे छोड़ दिया. इस पुरस्कार की दौड़ में इंग्लैंड की महिला क्रिकेट टीम की कप्तान चार्लेट एडवर्ड और श्रीलंका के कप्तान एंजिलो मैथ्यूज़ भी शामिल थे.

एलजी पीपुल्स च्वाईस पुरस्कार जीतने की खबर पाने के बाद भुवनेश्वर कुमार ने कहा कि सबसे पहले मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने एलजी पीपुल्स च्वाइस अवार्ड के लिए मुझे वोट किया. इस पुरस्कार के मेरे लिए बहुत मायने हैं यह पुरस्कार मुझे केवल मेरे व्यक्तिगतप्रदर्शन के लिए नहीं मिला है इसके पीछे प्रशंसकों के प्यार और समर्थन का भी योगदान है. आज मैं जहां हूं वह मैं अपने माता-पिता और प्रशिक्षकों की वजह से हूं. उन्होंने मुझे जीवन में जो सिखाई गई बातों की वजह से हूं. मैं अपनी टीम के साथियों को भी धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि उनके सहयोग के बिना यह संभव नहीं था, इसलिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से भुवनेश्‍वर का पुराना नाता है. भुवनेश्‍वर भारत के चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक हैं जिनका जन्म सचिन तेंदुलकर के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू करने के बाद हुआ और उन्हें उनके साथ खेलने का सौभाग्य भी मिला. लेकिन यह महज़ एक इत्तेफाक ही है कि भुवनेश्‍वर को पहली बार राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में जगह सचिन तेंदुलकर की वजह से ही मिली थी. आज भुवनेश्‍वर को वह पुरस्कार मिला है जिसे जीतने वाले सचिन पहले क्रिकेटर थे. 24 वर्षीय भुवी यह पुरस्कार जीतने वाले सबसे युवा खिलाड़ी हैं. 17 साल की उम्र में फर्स्ट क्लास करियर शुरु करने वाले भुवी पहली बार सुर्खियों में तब आये थे जब उन्होंने सचिन तेंदुलकर को घरेलू क्रिकेट में बिना खाता खोले पवेलियन भेजने का कमाल कर दिखाया था. वाकया जनवरी 2009 का है. हैदराबाद में हुए रणजी ट्रॉफी फाइनल में भुवनेश्‍वर का सामना क्रिकेट इतिहास के महानतम बल्लेबाज़ों में से एक सचिन तेंदुलकर से हुआ था. उस वक्त घरेलू क्रिकेट में किसी गेंदबाज में इतनी ताकत नहीं थी कि वह सचिन को लगातार 12 गेंदों तक परेशान करे और एक भी रन न बनाने दे. लेकिन भुवी ने ऐसा किया और स्पेल के तीसरे ओवर की पहली गेंद पर उन्होंने तेंदुलकर को आउट करके भारतीय ज़मीं पर फर्स्ट क्लास मैच में पहली बार शून्य से उनकी मुलाकात करवाई. भारतीय टीम में सेलेक्ट होने से ठीक पहले साल 2012-13 में दिलीप टॉफी के सेमीफाइनल में आठवें पायदान पर बल्लेबाजी करते हुए भुवनेश्‍वर ने128 रनों की बेहतरीन पारी खेल कर अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाया था.
भुवी भारतीय क्रिकेट की एक बड़ी खोज हैं. उन्होंने अभी अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू किया है. छोटे से करियर में ही नई गेंद से विकेट लेना उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गया है. उन्होंने अपनी सधी हुई गेंदबाज़ी से एक अलग पहचान बनाई है. एक तेज़ गेदबाज़ के रूप में टीम इंडिया को शुरुआती कामयाबी दिलाने में उन्होंने बेहतरीन भूमिका निभायी है. सबसे अच्छी बात यह है कि भुवी ने दाएं और बायें दोनों हाथ के बल्लेबाज़ों के ख़िलाफ बराबर सफलता हासिल की है. भुवनेश्‍वर शुरू से ही ऑस्ट्रेलिया से तेज़ गेंदबाज़ ग्लेन मैक्ग्रा के मुरीद रहे हैं. वह मैक्ग्रा की तरह एक ही स्पॉट पर लगातार गेंद गिराने के हुनर को अपना बनाने की हसरत रखते थे. उन्होंने मैक्ग्रा के नक्शे कदम पर चलते हुए गति से ज्यादा लाइन लेंथ और स्विंग पर काम किया. मैक्ग्रा की जगह गेंद को एक ही स्पॉट से अंदर और बाहर ले जाने की क्षमता उन्हें एक बेहतरीन गेंदबाज बनाती है.
सचिन की ही तरह उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ भुवी को पहली बार टीम इंडिया के लिए खेलने को मौका मिला.उन्होंने जश्‍न मनाने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया अंतरराष्ट्रीय करियर की पहली गेंद पर ही विकेट झटक लिया. टी-20 और वन-डे की कामयाबी के बाद भुवनेश्‍वर को टेस्ट टीम के लिए भी बुलावा मिला. अपने करियर के पहले टेस्ट मैच की दो पारियों में हुए 226 ओवर में से भुवनेश्‍वर को महज़ 13 ओवर डालने का मौका मिला और उनके हाथ कोई सफलता नहीं लगी. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2013 के हैदराबाद टेस्ट के पहले दिन अपने पहले 9 ओवर के स्पेल में भुवनेश्‍वर ने दिखा दिया कि वो टेस्ट क्रिकेट में भी प्रभावशाली होने की काबिलियत रखते हैं. भुवनेश्वर कुमार का पहला टेस्ट विकेट बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनका पहला विकेट, जब उन्होंने पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाज नासिर जमशेद को बाहर जाती गेंदों से छकाने के बाद अंदर आती गेंद पर क्लीन बोल्ड कर दिया था. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के हर फॉर्मेट में पहला विकेट बोल्ड के रुप में लेकर एक अनोखी हैट्रिक बनाई. अपने पहले टी-20 मैच में भुवी ने 4 ओवर में 9 रन देकर तीन विकेट लिए थे. यह पदार्पण टी-20 मैच का प्रदर्शन का नया विश्‍वरिकॉर्ड था.
क्रिकेट के हर फॉर्मेंट में उन्हें जैसे-जैसे कामयाबी मिलती गई, भुवनेश्‍वर का हौसला बढ़ता गया. इंग्लैंड में खेली गई आईसीसी चैंपिंयस ट्रॉफी में टीम इंडिया को चैंपियन बनाने में भुवनेश्वर की भूमिका बेहद अहम रही. इसके बाद वेस्टइंडीज़ में हुई त्रिकोणीय वन-डे सीरीज़ में भुवनेश्‍वर मैन ऑफ द सरीज भी बने. इसके बाद भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे में टेस्ट सीरीज में उन्होंने बल्ले और गेंद दोनों से बेहतरीन प्रदर्शन किया. इंग्लैंड दौरे पहले टेस्ट मैच की दोनों पारियों में अर्धशतक लगाया और इसके बाद टेस्ट करियर में पहली बार एक पारी में पांच विकेट लिए. इसके बाद अगले टेस्ट में भी उन्होंने अपना करिश्माई प्रदर्शन जारी रखा और दूसरी बार पारी में पांच विकेट लिए. साथ ही सीरीज में तीसरी बार अर्धशतकीय पारी खेली. भारतीय टीम को सीरीज में 1-3 से हार मिली. बावजूद इसके भुवी को मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. छोटे से करियर में भुवी की अब तक इस बात के लिए काफी तारीफ हुई है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के बड़े-बड़े नामों को अपनी गेंदों से पस्त किया है. भुवी अब तक करियर में 11 टेस्ट, 39 वनडे और 9 टी-20 मैच खेल चुके हैं. उन्होंने तीन फॉर्मेट में क्रमशः 28,42 और 11 विकेट भी चटकाए हैं. उनके प्रदर्शन में लगातार सुधार भी आ रहा है.
जहीर खान के टीम से बाहर रहने के बाद भुवी ने मोहम्मद शमी के साथ भारतीय टीम की गेेंदबाजी को संभाल लिया है. 2015 में ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड की संयुक्त मेज़बानी में होने वाले विश्‍वकप में वह भारतीय गेंदबाजी की सबसे बड़ी ताकत होंगे. वहां की तेज पिचों में उनकी स्विंग होती गेंदों टीम इंडिया को खिताब बचाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित होंगी. विश्‍वकप से ठीक पहले टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जा रही है. 24 नवंबर से 1 फरवरी तक भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई धरती पर चार टेस्ट मैच और त्रिकोणीय श्रृंखला खेलेगी. इसके बाद 14 फरवरी को विश्‍वकप का आगाज़ होगा. यह दौरा भुवनेश्‍वर के लिए पहला ऑस्ट्रेलियाई दौरा होगा. जहां की परिस्थितियों से तालमेल बैठाने के लिए उन्हें जरूरत से बहुत ज्यादा वक्त मिलेगा. दो साल से भी छोटे से करियर में भुवनेश्‍वर तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ी हैं. एकदिवसीय रैंकिंग में वह सातवें पायदान पर हैं. इतने ही कम समय में वह भारतीय टीम की सबसे मजबूत कड़ी बन गए हैं. उनके बारें उनके टीम मेट्स और कोच भी कहते हैं कि वह एक अनुशासित खिलाड़ी हैं. वह सीखने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं और अपनी सीमाओं को बखूबी जानते हैं यही उनकी सफलता का राज है. अगर उन्हें दूसरे छोर से सहयोग मिले तो वह टीम को निश्‍चित तौर पर सफलता दिलाते हैं. यदि परिस्थितियां स्विंग के लिए अनुकूल हों तो कप्तान धोनी भी उनसे विकेट की आशा करते हैं वह उन्हें मैच के आखिरी समय के लिए बचाकर नहीं रखते हैं. यह धोनी उनके प्रति विश्‍वास को दिखाता है.
मेरठ मेल चल पड़ी है और वह अंततः सफलता के किस मुकाम पर पहुंचकर रुकेगी, यह तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल मेरठ मेल जिस गति से आगे बढ़ रही है और सफलता के जिन से होकर गुजर रही है उससे तो लगता है वह देश के लिए सफलता की नई इबारत लिखेंगे और भारतीय तेज़ गेदबाजी को एक नए मुकाम तक लेकर जाएंगे.

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