जनसंख्या की बढ़ती दर के हिसाब से बहुमूल्य वस्तुओं के अभाव से मटीरियल मैनेजमेंट इन दिनों तेज़ी से बढ़ता हुआ आशाजनक करियर विकल्प है. चूंकि विश्व भर में चल रही आर्थिक मंदी से भारत भी प्रभावित हुआ है. इसलिए घरेलू कंपनियों में इस समय सबसे अधिक मांग मटीरियल मैनेजर्स की है. इस वजह से जॉब की असीम संभावनाओं के साथ यह एक बेहतरीन करियर के रूप में उभर रहा है और अच्छे वेतन की वजह से यह क्षेत्र युवाओं को आकर्षित भी ख़ूब कर रहा है. दिल्ली विश्वविद्यालय के अर्तगत आनेवाले फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में ऑपरेशंस व सप्लाई मैनेजमेंट विभाग के रीडर डॉ. देवद्युति दास बताते हैं कि इस कोर्स में एजेंसियों व कंपनियों के लिए ख़रीद का काम, सरप्लस प्रॉपर्टी और उसके अधिग्रहण, ठेका, खरीददारी, भंडारण, रख-रखाव व सेवाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है. इसके साथ ही कंपनी में अवतरण विश्लेषण व भौतिक अभिलेख का कार्य भी करना पड़ता है. किसी प्रकार की चूक के बिना कंपनी की वास्तविक ज़रूरत के हिसाब से सप्लाई के स्तर को उच्चतम होना चाहिए. इसी वजह से मटीरियल मैनेजर का विश्लेषनात्मक नज़रिया होना चाहिए. हर व़क्त यह ध्यान रखना होता है कि कंपनी की मूल मटीरियल मैनेजमेंट व सप्लाई चेन का काम किसी भी उद्योग की संपूर्ण सफलता में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है. इस कोर्स में बेहतर परिणाम पाने के लिए विद्यार्थी को मूलत: कंप्यूटर की व्यापक जानकारी होना अनिवार्य है. इसके अलावा परिमाण तकनीक, माणक परिमाण और लागत, उत्पाद कार्यकलाप और अनुसंधान की जानकारी हो तो सोने पर सुहागा ही कहा जाएगा. साथ ही मटीरियल मैनेजर का संपर्क दफ़्तर के दूसरे विभाग और सप्लाई करने वाली कंपनियों के साथ मधुर होना चाहिए, ताकि किसी भी व़क्त, कैसी भी स्थिति में बिना किसी अवरोध के कार्य संपन्न हो सके.
इस विभाग में कई ब्रांच होते हैं-
1. डवलपिंग मटीरियल मैनेजमेंट सिस्टम
2. ऑप्टिमल लॉजिस्टीक्स एंड ट्रांसपोटेशन स्ट्रेटजीज
3. इंटीग्रेटेड इंवेन्ट्री मैनेजमेंट सिस्टम
4. प्रॉपर्टी डिस्पोजिसन
5. स्क्रैप डिसपोजल
इस कोर्स को करने से कई लाभ मिलते हैं. जैसे, यह व़क्त की बचत और लागत को कम करता है. इसके अलावा मैनेजमेंट की जानकारी प्रदान करता है. चीज़ों को संभाल कर रखने की क्षमता बढ़ाता है. सबसे आख़िरी और महत्वपूर्ण यह कि इससे पैसों की काफी बचत होती है.
कोर्स विन्यास- मटीरियल मैनेजमेंट विशेष तरह का करियर मैनेजमेंट प्रोग्राम है. इसकी शिक्षा देश के कई संस्थानों में दी जाती है. इस कोर्स में प्रवेश के लिए किसी भी विषय से स्नातक की डिग्री होना आवश्यक है. हालांकि कुछ संस्थानों में इस कोर्स में प्रवेश पाने की योग्यता इंजीनियरिंग है. इस कोर्स की तकनीकी संरचना को दखते हुए वे केवल इंजीनियरिंग के छात्रों को ही प्रवेश देते हैं.
संस्थान- इस कोर्स के लिए देश में ऐसे कई संस्थान हैं, जो एमबीए के अन्य कार्यक्रम जैसे फाइनेंस, मार्केटिंग इत्यादि के साथ ही एक शाखा के तौर पर इसे पढ़ाते हैं. जबकि इंस्टीट्यूट ऑफ मटीरियल मैनेजमेंट में यह अलग से एक कोर्स के रूप में उपलब्ध है. इस इंस्टीट्यूट की कई छोटे-बड़े शहरों को मिलाकर लगभग 40 शाखाएं हैं. इसके अलावा यह कोर्स दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, कॉलेज ऑफ मटीरियल मैनेजमेंट, जबलपुर- मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय-भोपाल, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज, दिल्ली व अन्य संस्थान में भी कराए जाते हैं. यह कोर्स उन छात्रों के लिए भी बहुत ़फायदेमंद हैं जो एमबीए में दाख़िला लेने के बावजूद फाइनेंस, मार्केटिंग या दूसरे खंड में अव्वल नहीं हो पाते हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में ऊंची कामयाबी हासिल की जा सकती है.
करियर संभावनाएं- इस कोर्स को करने के बाद पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर में अनगिनत संभानाएं हैं. मटीरियल मैनेजर किसी भी कंपनी के परचेज, स्टोर और सप्लाई डिपार्टमेंट में काम कर सकते हैं. इस तरह के मैनेजर की ज़रूरत ख़ास तौर पर डिफेंस, रेलवे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट इत्यादि विभागों में होती है. इसके अलावा औद्योगिक प्रतिष्ठानों, कॉरपोरेट दफ़्तरों, सप्लाई चेन इंडस्ट्रीज और निजी परिवहन विभाग में भी इनकी ज़रूरत पड़ती है.
अनुमानित वेतन- इस जॉब में वेतन निर्धारित नहीं होता है, ख़ास कर निजी कंपनियों में. इस विभाग में काम के आधार पर ही वेतन तय किया जाता है. कंपनियों के कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एफएमसीजी, स्टोर्स इत्यादि में काम कर रहे सप्लाई चेन मैनेजर या मटीरियल मैनेजरों के लिए अलग-अलग मासिक राशि निश्चित की जाती है. इसके अलावा काम कर रहे व्यक्ति के तकनीकी ज्ञान पर भी ख़ास ध्यान होता है, जो व्यक्ति की वेतन का ग्राफ ऊपर-नीचे करने में अहम रोल अदा करता है. सरकारी दफ़्तरों में शुरुआती दौर में वेतन दस हज़ार रुपये हो सकता है.
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