दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोनों ही तरफ से खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान काफी कठिन था. युद्ध में शामिल देशों के लिए खुफिया सूचनाओं के बगैर युद्ध लड़ना मुश्किल था. ऐसे में दोनों तरफ के देश गोपनीय सूचनाएं पहुंचाने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया करते थे. महिलाओं पर कोई जल्दी शक भी नहीं करता था. जिससे सूचना पहुंचाने में आसानी होती थी. हालांकि ऐसा नहीं था कि महिलाओं के लिए यह बहुत आसान काम था.

Gulovich-300-dpiमारिया गुलोविच लियू स्लोवाकिया की रहने वाली थीं. उनका जन्म 19 अक्टूबर, 1921 को हुआ था. वे स्कूल टीचर थीं, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के खिलाफ विद्रोही सेना के लिए जासूसी का काम किया था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्हें अपनी बेहतर सेवाओं के लिए अमेरिका के ब्रांज स्टार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी की तरफ से भी पुरस्कार दिया गया था.
गुलोविच का जन्म स्लोवाकिया के जाकूबनी में हुआ था. वे एक पादरी पिता की औलाद थीं. उनकी मां एक प्राथमिक स्कूल में टीचर थीं. उन्होंने वहीं पर अपनी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की. इसके बाद वह भी वहीं पर एक स्कूल में शिक्षक पद पर चयनित हो गईं. जब स्लोवाकिया पर जर्मनी की सेनाओं ने कब्जा कर लिया, उसके बाद भी गुलोविच ने अपने स्कूल में बच्चों को शिक्षा देना जारी रखा. जबकि उनके स्कूल के कई टीचर अपनी नौकरियां छोड़कर किसी अन्य जगह पर चले गए थे. इसी दौरान एक अजीब घटना घटी. उनके पास एक आदमी आया जिसने उनसे कहा कि मेरी बहन और उसकी बेटी को अपने स्कूल में छिपा लीजिए. इस घटना के बारे में गुलाविच ने एक किताब के जरिेये खुद बताया कि किसी को छिपाकर रखना उनका ध्येय नहीं था. मतलब वे नहीं चाहती थीं कि देश जर्मनी की सेना के किसी भी चक्कर में फंसें. लेकिन जब उन्होंने उस महिला और उसकी छोटी बच्ची को देखा तो उन्हें लगा कि अगर वे इन दोनों की जिंदगी नहीं बचाती हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल होगी. उन्होंने उन दोनों को अपने स्कूल के क्वार्टर में रहने की जगह दी, और खुद स्कूल की कक्षाओं में ही सोने लगीं. कुछ दिनों बाद वह आदमी अपनी बहन और भांजी को सुरक्षित स्थान पर लेकर चला गया. उनकी इस गतिविधि की जानकारी स्लोेवाकिया के अधिकारियों को हो गई. उन्होंने इसकी जानकारी लेने के लिए एक अधिकारी को गुलोविच के पास भेजा.
किस्मत से स्लोवाकिया के अधिकारियों ने उनसे पूछताछ के लिए जो फोर्स भेजा था, वह फासीवाद का विरोधी था. गुलोविच भी फासीवाद को पसंद नहीं करती थीं. उनका मानना था कि तानाशाही के साथ दुनिया का भला नहीं किया जा सकता है. उन्होंने उस अधिकारी को पूरी बात बताई. इसके बाद स्लोवाकिया के अधिकारियों ने गुलोविच के पास यह प्रपोजल भेजा कि क्या वह उनके लिए सूचनाएं पहुंचाने का काम कर सकती हैं. गुलोविच ने इसे स्वीकार कर लिया. गौर करने वाली बात यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोनों ही तरफ से खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान काफी कठिन था. युद्ध में शामिल देशों के लिए खुफिया सूचनाओं के बगैर युद्ध लड़ना मुश्किल था. ऐसे में दोनों तरफ के देश गोपनीय सूचनाएं पहुंचाने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया करते थे. महिलाओं पर कोई जल्दी शक भी नहीं करता था. जिससे सूचना पहुंचाने में आसानी होती थी. हालांकि ऐसा नहीं था कि महिलाओं के लिए यह बहुत आसान काम था. इसी तरह के काम करने के लिए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान न जाने कितनी महिला जासूसों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. गुलोविच को पहला मिशन यह मिला कि उन्हें जर्मनी के खुफिया अधिकारियों के बीच से जानकारियां निकाल कर लानी थीं. उन्होंने इस काम को बहुत बहादुरी के साथ किया. इसके अलावा उन्हेंं अधिकारियों ने एक काम सौंपा कि एक शॉट वेव रेडियो देश में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना था. गुलोविच के लिए मुश्किल उस समय खड़ी हो गई जब जर्मनी के गेस्टागपो अधिकारियों ने ट्रेन को रुकवाकर उसकी जांच करना शुरू कर दिया. गुलोविच ने किसी तरह जान बचाकर इस काम को पूरा किया और यह दिखा दिया कि जर्मनी के अधिकारियों की नजर से बचकर निकलने में अब उन्हें महारथ हासिल होने लगी है.
गुलोविच को कई भाषाओं की जानकारी होने के कारण अनुवादक काम भी दिया गया. वे जर्मन भाषा के दस्तावेजों का अनुवाद किया करती थीं. इसके कारण स्लोवाकिया के अधिकारियों को काफी मदद मिलती थी. कुछ महीनों बाद वे अमेरिका चली गईं और उन्हें वहां फिर एक बार खुफिया जासूसी का काम सौंपा गया. अमेरिकी अधिकारियों द्वारा दिए गए मिशन को गुलोविच ने बहुत ही बहादुरी के साथ पूरा किया इसी वजह से युद्ध के बाद उन्हेंं सम्मानित किया गया.
गुलोविच ने मानवता की सेवा के लिए काम किया. उनका मानना था कि अगर दुनिया को चलाना है तो सभी को साथ लेकर चलना होगा. इसके लिए बहुत जरूरी है सभी देश एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें.

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