dgmoमहाराष्ट्र में मराठा क्रांति मोर्चा की चर्चा इन दिनों काफी तेज है. मराठा समुदाय अपनी मांगों के साथ राज्य के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कर रहा है. मूल रूप से यह आंदोलन कोपर्डी में एक लड़की के बलात्कार के बाद शुरू हुआ था. धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे राज्य में फैल गया और अब यह राज्यव्यापी आंदोलन बन चुका है. बलात्कारी को फांसी देने की मांग के साथ-साथ अब एट्रोसिटी एक्ट रद्द करने की मांग भी हो रही है. मराठा आंदोलनकारियों का मानना है कि एट्रोसिटी कानून का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल मराठा लोगों के खिलाफ हुआ है. सबसे महत्वपूर्ण मांग ये है कि आर्थिक व सामाजिक तौर पर पिछड़े मराठाओं को आरक्षण दिया जाए. आंदोलनकारियों का कहना है कि उनके बच्चों को अच्छे स्कूल-कालेज में प्रवेश नहीं मिलता है और नौकरी में भी उनकी हिस्सेदारी घट रही है. यदि इस आंदोलन को गौर से देखा जाए तो पता चलेगा कि इस आंदोलन से मूलत:  खेती-किसानी करने वाले लोग ज्यादा जुड़े हैं. यह बात सही है कि मराठा समाज मूल रूप से खेतिहर समाज रहा है. लेकिन, धीरे-धीरे महाराष्ट्र में मराठा किसानों की हालत खराब होती गई. इस आंदोलन में अब स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों (लागत मूल्य पर अतिरिक्त 50 फीसदी मूल्य को मिलाकर समर्थन मूल्य दिया जाए) को लागू किए जाने की भी बात की जा रही है.

इस आंदोलन की मुख्य विशेषता यह है कि इस रैली का नेतृत्व कोई भी राजनीतिक दल नहीं कर रहा है. हालांकि, रैली में विभिन्न पार्टियों के मराठा नेता शामिल होकर अपना समर्थन दे रहे हैं. यह रैली बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से चल रही है. इस रैली में सबसे आगे लड़कियां होती हैं और सबसे पीछे ऐसे स्वयंसेवक जो रास्ते में गिरे कचरे को साफ करते हुए चलते हैं. रैली के समापन में लड़कियां जिले के कलेक्टर को जाकर अपना मांग पत्र सौंपती हैं और रैली समाप्त हो जाती है. महाराष्ट्र के तकरीबन हरेक जिले में पिछले एक महीने से इस तरह की रैली हो रही है. मराठा क्रांति मोर्चा की योजना नवंबर महीने में मुंबई में 1 करोड़ लोगों की रैली निकालने की है. इस आंदोलन ने निश्‍चित तौर पर महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों में बेचैनी पैदा कर दी है.

इस मोर्चे की मुख्य मांग अब 16 फीसदी आरक्षण दिए जाने को लेकर है. महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की जनसंख्या करीब 33 फीसदी है. यहां यह समुदाय हमेशा शासन में मुख्य भूमिका निभाता रहा है, लेकिन यह भी सच है कि इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा गरीबी-अशिक्षा और बेरोज़गारी से जूझ रहा है. इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा खेती से जुड़ा हुआ है. पिछले 25-30 वर्षों में महाराष्ट्र के किसानों का क्या हाल हुआ है, इसे पूरी दुनिया ने देखा है. यहां के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. नतीजतन, मराठा समुदाय की हालत भी दिनोंदिन खराब होती चली गई. कोपर्डी की घटना इस मराठा आंदोलन की तात्कालिक वजह जरूर बनी, लेकिन इस आंदोलन के पीछे और भी कई वजहें हैं, जो एक लंबे अंतराल के बाद मुखर होकर सामने आई हैं. गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस की सरकार ने जल्दी में मराठा आरक्षण पर एक अध्यादेश जारी कर दिया था. लेकिन कानूनी खामियों की वजह से यह अध्यादेश अदालत से निरस्त हो गया. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या मराठा समुदाय की बदहाली का एकमात्र उपाय आरक्षण ही है? क्या इस पर बात करने की जरूरत नहीं है कि आरक्षण का मूल मकसद क्या था और अब क्या हो गया है? आरक्षण आर्थिक बदहाली दूर करने का एकमात्र समाधान नहीं हो सकता. आरक्षण जब दिया गया था, तब इसका मकसद सत्ता और नौकरी में समाज के वंचित तबकों की हिस्सेदारी को बढ़ाना था यानी, आरक्षण हिस्सेदारी बढ़ाने का औजार था और अब भी है. इससे आर्थिक बदहाली दूर होनी होती, तो आज देश की सत्तर फीसदी आबादी रोजाना 20 रुपए पर गुजारा नहीं कर रही होती. जाहिर है, आर्थिक बदहाली के लिए देश में आर्थिक विकेंद्रीकरण की जरूरत है, ऐसी आर्थिक नीति बनाने की जरूरत है, जिससे देश के आम लोगों तक आर्थिक विकास का फायदा पहुंच सके. सवाल है कि नई आर्थिक नीति (उदारवादी और नवउदारवादी आर्थिक नीति) को लागू हुए 25 साल से ज्यादा हो गए हैं. क्या इसका सकारात्मक असर समाज पर, वंचित तबकों पर पड़ा? नहीं, अगर पड़ा होता तो आज जाट, गुर्जर, पटेल और अब मराठा समुदाय को अपने लिए आरक्षण मांगने के लिए आंदोलन नहीं करना पड़ता.

मोटे तौर पर आज अगर दलितों की बात करें तो उनकी स्थिति में आरक्षण की वजह से कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. उल्टे नई आर्थिक नीति की वजह से उनकी हालत और भी दयनीय हुई है. पूरे आर्थिक व्यवस्था में आज आम लोगों, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और किसानों की हिस्सेदारी न्यूनतम स्तर पर है. हां,  इस देश में नई आर्थिक नीतियों की वजह से कुछ नए औद्योगिक घराने जरूर पैदा हुए हैं, कुछ नए अरबपति जरूर बने हैं, लेकिन आम लोगों के जीवन में कोई बड़ा बदलाव आया हो, ऐसा नहीं है. मराठा आंदोलन को भी ध्यान से देखें, तो इसमें ऐसे लोग अधिक हैं, जो मूल रूप से कृषि क्षेत्र में आई बदहाली के शिकार हैं. विदर्भ से लेकर मराठवाड़ा तक के किसानों की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है. यह आंदोलन बताता है कि क्यों आज देश की आर्थिक नीतियों की समीक्षा करने की जरूरत पड़ रही है? आज मराठा आंदोलन है, कल किसी और राज्य में कोई अन्य समुदाय अपने लिए आरक्षण की मांग करता नजर आ जाए तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here