नक्सलियों ने एक बार फिर हमारे जवानों को निशाना बनाया है। अपने उसी पुराने मोडस ऑपरेंडी के तहत महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलियों ने बड़ा आईईडी ब्लास्ट किया है, जिसमें 15 कमांडो शहीद हो गए हैं। नक्सलियों ने C60 कमांडो की गश्ती टीम पर घात लगाकर हमला किया। पिछले 2 सालों में महाराष्ट्र में नक्सलियों का यह सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। C60 कमांडो की टीम पर नक्सलियों ने यह हमला कुरखेड़ा-कोरची रोड के पास किया। इस धमाके में 15 कमांडो शहीद हो गए। घटनास्थल पर नक्सलियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच फायरिंग चल रही है।
ऐसा नहीं था की ये हमला अचानक हुआ है। इलाके में पिछले एक हफ्ते से नक्सलियों की गतिविधियां तेज़ हो गईं थी और इसकी जानकारी भी ख़ुफ़िया एजेंसियों की थी, लेकिन इनपुट को गंभीरता से नहीं लिया गया। जबकि आज सुबह ही नक्सलियों ने ज़िले में कई गाड़ियों को आग लगाकर परचा भी छोड़ा था की आज कुछ बड़ा होगा।
एक मजबूत खुफिया तंत्र बड़ी-से-बड़ी लड़ाई में कैसे आपको दुश्मन से दो कदम आगे रखता है और कमजोर तंत्र कैसे हार तय कर देता है, इसका सटीक उदाहरण महाराष्ट्र में देखा जा सकता है, जहां अपने मजबूत तंत्र के बल पर माओवादी सुरक्षाबलों को धूल चटा रहे हैं।
पिछले दिनों, जब से C60 की टीम भामरागढ़ इलाके पेट्रोलिंग पर थी तभी अचानक 12 लाख की इनामी नक्सली रामको ने उन पर घात लगाकर हमला किया था। शनिवार को भी नक्सलियों द्वारा पुलिस जवानों पर घात लगाकर हमला किया किया गया। नक्सलियों ने सुरक्षाबल को निशाने पर लेने के लिए IED से हमला किया था। जिसके जवाब में कार्रवाई करते हुए सुरक्षाबल ने मुठभेड़ में दो कुख्यात महिला नक्सलियों की मौत के घाट उतार दिया था। मारी गई नक्सली की पहचान कुख्यात महिला नक्सली और डिविजनल कमेटी मेंबर और गट्टा दलम की कमांडर रामको नरोटी शिल्पा दुर्वा है। रामको नरोटी पर 12 हत्याओं समेत करीब 45 मामले दर्ज हैं। इस मुठभेड़ में सी-60 कमांडो के किसी जवान को कोई नुकसान नही पहुंचा था।
लेकिन तभी ये साफ़ हो गया था कि अपने दो बड़े कमांडरों की मौत का बदला नक्सली ज़रूर लेंगे। इतना ही नहीं ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास ये इनपुट भी था की गढ़चिरौली में पास के राज्यों से बड़ी संख्या में नक्सलियों का जमावड़ा हो रहा है और वो किसी बड़ी साज़िश को अंजाम देने के फ़िराक में हैं।
गढ़चिरौली में बमुश्किल ही कोई दिन ऐसा गुजरा है जब माओवादियों ने किसी घटना को अंजाम न दिया हो। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि माओवादियों के खिलाफ मोर्चे पर डटे जवानों को अपने कमजोर खुफिया तंत्र की कीमत जान गंवा कर चुकानी पड़ रही है जबकि माओवादी सटीक खुफिया सूचनाओं के बल पर ही कदम-कदम पर उन्हें मात दे रहे हैं और बीते एक माह के भीतर ही छत्तीसगढ़ और गढ़चिरौली में करीब 27 से ज्यादा जवानों को मौत के घाट उतार चुके हैं।
29 अप्रैल की देर रात अपनी मिलिटरी इंटेलीजेंस से मिली सूचना के आधार पर माओवादियों ने माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल पर सवार होकर निकले जवानों को रास्ते में बारूदी सुरंग विस्फोट से उड़ाने की कोशिश थी, लेकिन हमला फेल हो गया था।
माओवादियों का सूचना तंत्र इतना तगड़ा है कि पुलिस उसकी काट नहीं तलाश पा रही है। हालांकि जून 2005 में शुरू हुई सलवा जुड़ूम मुहिम ने दक्षिण और पश्चिमी बस्तर में माओवादियों के सूचना तंत्र को ध्वस्त कर उनके होश फाख्ता कर दिए थे लेकिन जल्द ही उन्होंने नए सिरे से अलग से खुफिया इकाइयों का गठन कर लिया।
पहले एलओएस (लोकल ऑरगनाइजेशन स्क्वाड) और एलजीएस (लोकल गुरिल्ला स्क्वाड) के सदस्य ग्रामीणों, संघम सदस्यों, क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन और बाल संघम के बच्चों के जरिए ही पुलिस की गतिविधियों की जानकारी हासिल किया करते थे लेकिन अब उनका सूचना तंत्र त्रि-स्तरीय हो चुका है। करीब पांच साल पहले अस्तित्व में आई माओवादियों की पीपुल्स सीक्रेट सर्विस (पीएसएस) अपने तौर-तरीकों से सूचनाएं इकठ्ठी करती है। माओवादियों ने अपना मिलिटरी इंटलीजेंस भी खड़ा कर लिया है और अपने अरबन प्रास्पेक्टिव प्लान के तहत टेक्टिकल युनाइटेड फ्रंट और फे्रक्शनल कमेटी का गठन भी किया है।
इनके जरिए वे शहरी क्षेत्रों के मजदूर संगठनों, कर्मचारी संगठनों और सामाजिक संस्थाओं में घुसपैठ कर लोगों को सरकार और संविधान के खिलाफ भड़काने के साथ ही सूचनाएं भी संकलित करते हैं।
इसके ठीक उलट, इधर आंध्रप्रदेश की तर्ज पर माओवादियों की गतिविधियों की सूचना हासिल करने के लिए पुलिस ने स्पेशल इंटलीजेंस ब्रांच (एसआइबी ) नाम की खुफिया एजेंसी का गठन जरूर किया है मगर बीते छह सालों में अधोसंरचना की कमी के चलते इसका ढांचा तक ठीक से खड़ा नहीं हो सका है।