बन्दूक की नली से सत्ता की राह निकालने की बात करने वाले नक्सली अब अपने तमाम सिद्धांतों को दरकिनार कर उच्चवर्गीय लोगों की तरह जीवन यापन करने में लगे हैं. पुलिस की नजर में भले ही शीर्ष नक्सली नेता फरार हैं, लेकिन इन नक्सलियों का परिवार ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जी रहे हैं. नक्सली अपने बेटे-बेटियों को प्रतिष्ठित और महंगे निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ा रहे हैं. झारखंड पुलिस की विशेष शाखा ने दो वर्षों तक नक्सलियों की सम्पत्ति का ब्यौरा एकत्र करने की खुफिया तरीकों से जांच शुरू की.
इस जांच में जो रिपोर्ट सामने आई उसमें गरीबों-निम्नवर्गीय किसान-मजदूरों का समर्थन प्राप्त कर पुलिस-प्रशासन को चुनौती देने वाले और विकास कार्यों में लेवी वसूलने वाले नक्सलियों की सच्चाई सामने आ गई. झारखंड में अपने संगठन के शीर्ष पद पर काबिज नक्सली गरीबों-मजदूरों का शोषण कर खुद और अपने परिवार को समृद्ध कर रहे हैं और अपने समर्थकों को पुलिस-प्रशासन के निशाने पर छोड़ समाज की मुख्य धारा से वंचित कर रहे हैं. झारखंड के बड़े नक्सली नेता और हार्डकोर ने अपने गृह जिले या राज्य के बड़े शहरों के अलावा राज्य से बाहर सम्पत्ति बनाने में लगे हैं.
उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ के नक्सली भी झारखंड में सम्पत्ति खरीद कर रखे हुए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर नक्सलियों की सम्पत्ति की जांच में झारखंड के सभी शीर्ष नक्सली नेताओं की सम्पत्ति का पता चला है. झारखंड के अनेक शीर्ष नक्सली बिहार के बड़े शहरों में अकूत सम्पत्ति खरीद कर रखे हुए हैं. इस संबंध में झारखंड पुलिस ने बिहार पुलिस से पूरी जानकारी मांगी है. झारखंड पुलिस ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके अनुसार प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के एरिया कमांडर कुंदन पाहन एवं उसके परिजनों के नाम झारखंड के बूंडू-तमाड़ में करीब पांच सौ एकड़ खूंटकटी जमीन है, जिसका मूल्य ढाई करोड़ रुपये है.
हार्डकोर माओवादी श्यामलाल यादव उर्फ धनंजय का बालूमाथ में दो मंजिला मकान, करीब तीन एकड़ खेती योग्य भूमि, ट्रैक्टर व अन्य वाहन हैं. रातू के सिमलिया में चार डिसमील में बना मकान है जिसकी कीमत करीब 15 लाख है. रांची के कांके क्षेत्र से गिरफ्तार किए गए पलामू के पंकी निवासी भाकपा माओवादी के हार्डकोर नान्हों मोची उर्फ प्रभात के पास करोड़ों की सम्पत्ति है. उसके दो बच्चे रांची के प्रतिष्ठित निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई पर प्रति महीने तीस हजार रुपये खर्च होते हैं. पलामू में जमीन और मकान भी है, जिसकी कीमत करोड़ों में है.
उसी प्रकार रांची जिले के राम मोहन सहित 6 हार्डकोर, खूंटी के पांच हार्डकोर, गुमला के बु़द्धेश्वर उरांव सहित 12 हार्डकोर, लोहरदगा के शिव नंदन भगत सहित तीन, लातेहार के अजीत उर्फ चार्लिस सहित दस, जमशेदपुर के कान्हू राम मुंडा सहित दो, गिरिडीह के मिसिर बेसरा सहित 17, पलामू के उमेश यादव सहित चार, बोकारो के लालचंद हेंब्रम सहित दो, धनबाद के प्रयाग उर्फ विवेक सहित तीन, चतरा के संजय गंझू सहित आठ, हजारीबाग के उदय गंझू सहित चार, दुमका के पंंचान्न राय समेत तीन हार्डकोर माओवादी अपने गृह जिले के अलावा अन्य स्थानों पर अकूत सम्पत्ति बनाने में लगे हैं.
इन नक्सलियों को सरकार के द्वारा मुख्य धारा में लाने की बात कही जा रही है. झारखंड पुलिस और सरकार का दावा है कि नक्सली कमजोर हो रहे हैं. लेकिन स्थिति यह है कि समाज से लूटी गई सम्पत्ति और वसूले गए लेवी से नक्सली समाज की मुख्य धारा में शामिल ही नहीं हो रहे बल्कि समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर रहे हैं. गरीबों और मजदूरों के हितैषी बनने का दावा करने वाले नक्सली नेताओं की सच्चाई को पुलिस ने उजागर कर गरीबों-मजदूरों को नक्सलियों की हकीकत से अवगतकराया है.