मणिपुर में 23 जुलाई 2009 को संजीत फर्जी मुठभेड़ मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा था. दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका ने इस मुठभेड़ से जुड़ी 12 तस्वीरें छाप कर राज्य के पुलिसकर्मियों की पोलपट्टी खोल दी थी. उन तस्वीरों में साफ-साफ दिखाया गया था कि कैसे इम्फाल में तैनात पुलिस कमांडो द्वारा फर्जी एनकाउंटर को अंजाम दिया गया था. इस फर्जी मुठभेड़ को अंजाम देने वाला मणिपुर पुलिस कमांडो के हेड कांस्टेबल थौनाउजम हेरोजीत ने 2016 में स्वीकार किया था कि इस मुठभेड़ को उन्होंने इंफाल ईस्ट के एएसपी डॉ. अकोइजम झलजीत सिंह के आदेश पर अंजाम दिया था. कांस्टेबल थौनाउजम हेरोजीत की स्वीकृति के बाद अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है.
सात जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट में डिविजनल बैंच में सूचीबद्ध कर कोर्ट ने उनकी बात सुनी. कोर्ट में दाखिल हलफनामे में बताया गया कि राज्य में 2003 से 2009 तक यानी छह साल में मणिपुर पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटरों में वह शामिल था. इन एनकाउंटरों के बारे में वह सभी बात जानता है. उन एनकाउंटरों को उसने अधिकारियों के आदेश पर ही अंजाम दिया था, जिसमें संजीत एनकाउंटर भी शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट में कांस्टेबल हेरोजीत ने स्वीकार किया कि कथित एनकाउंटर में उन्होंने नाइनएमएम पिस्टल का इस्तेमाल किया था. हलफनामा में लिखा है कि अप्रैल 30, 2016 की रात साढ़े आठ बजे बिना नंबर प्लेट की एक गाड़ी ने आकर उनकी गाड़ी को टक्कर मारी और उन्हें मारने की कोशिश की गई. हेरोजीत को शक है कि सीनियर अधिकारियों के बारे में पोलपट्टी खुलने के कारण कहीं वे लोग उसका भी एनकाउंटर ना कर दें. कांस्टेबल हेरोजीत इन छह साल के बीच राज्य में हुए एनकाउंटर, जिसमें वे शामिल हैं, के बारे में अपनी डायरियों में लिखकर रखता था. वह एनकाउंटर में मारे गए लोगों का नाम, पता, उम्र, मां बाप का नाम, घटनास्थल का नाम, लोगों को पकड़ने की तिथि एवं मारने की तिथि, पीड़ित को मारे या पकड़े जाने की मार्किंग और सीनियर अधिकारियों का कोल साइन (वायरलैस कोड) आदि सबका रिकॉर्ड रखता था. लेकिन उनकी डायरियां इंफाल वेस्ट कमांडो कंप्लेक्स, उनके क्वार्टर से सीबीआई ने 2010 में जब्त कर लिया.
कांस्टेबल हेरोजीत ने बताया कि संजीत एनकाउंटर समेत सभी एनकाउंटरों के बारे में उनकी स्वीकृति के बाद भी सीबाआई ने संबंधित कोर्ट में उनके बयान नहीं लिए हैं और अब तक चुप्पी साधे हुए है. हेरोजीत को लगता है कि यह उन मामलों को दबाने की साजिश है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा इसलिए फाइल किया ताकि सीबीआई द्वारा जब्त उनकी डायरियों को सुप्रीम कोर्ट के सामने लाया जा सके. इन डायरियों के सामने आने से मणिपुर में हुए कई फर्जी मुठभेड़ मामलों की गुत्थी सुलझ सकती है, जिनमें सुप्रीम कोर्ट जांच का आदेश दे चुकी है.
गौरतलब है कि एक्सट्रा जुडिशियल एक्जिक्यूशन विक्टिम फैमिलिज एसोसिएशन (ईईवीएफएएम) और ह्यूमन राइट्स अलर्ट ने एक पीटिशन सितंबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट में फाइल की थी. इस पीटिशन में लिखा गया था कि 1979 से 2012 तक मणिपुर में मुठभेड़ की घटने में 1528 लोग मारे गए, जिन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई. इस एसोसिएशन की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में इन मुठभेड़ों की जांच-पड़ताल हो. यह याचिका कोर्ट ने मंजूर कर लिया. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर एवं जस्टिस उदय यू ललित की डिविजन बेंच ने सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था. साथ में 31 दिसंबर 2017 तक जांच पूरी करने और इन 1528 मामलों में से 98 मामले की रिपोर्ट 2018 की जनवरी के पहले सप्ताह तक सौंपने का भी आदेश दिया था. लेकिन अब तक इसका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है.
आंकड़ों पर गौर करें, तो राज्य में 2003 में फर्जी मुठभेड़ों में 90 लोग मारे गए थे. वहीं 2008 में यह संख्या बढ़कर 355 हो गई. राज्य में कुल 60 असम रायफल्स कंपनी, 37 सीआरपीएफ कंपनी और 12 बीएसएफ कंपनी तैनात है. यहां के निवासियों के लिए गोलीबारी, बम धमाका आम बात हो चुकी है.
इस मामले में भाजपा की मणिपुर इकाई ने मार्च 2017 को प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर मांग की है कि इबोबी सिंह के कार्यकाल में हुए सभी फर्जी मुठभड़ों की जांच कराई जाए. यह मांग तब की गई थी, जब राज्य में चुनाव होने थे. पीएमओ को भेजी गई इस चिट्ठी में मणिपुर भाजपा की तरफ से कहा गया था कि 2002 से 2012 तक जब इबोबी सिंह मुख्यमंत्री के साथ-साथ गृहमंत्री भी थे, उस दौरान कई फर्जी मुठभेड़ हुए जिसमें कई निर्दोष लोग मारे गए. उन लोगों के साथ न्याय हो, इसके लिए जरूरी है कि इन मामलों की निष्पक्ष जांच कराई जाए. लेकिन अब राज्य में चुनाव हो चुके हैं. भाजपा की सरकार बन गई है, फिर भी अबतक इस मामले में भाजपा मणिपुर प्रदेश की तरफ से कोई बयान या कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह चुनाव जीतने के बाद पहाड़ की ओर चलो नारा के तहत वहां के लोगों के लिए कार्य कर रहे हैं, लेकिन इन मुठभेड़ों को जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी गलत ठहराया था, के मामलों में मुख्यमंत्री बिरेन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया है. ऐसे में सवाल यह है कि आमतौर पर कहीं भी फर्जी मुठभेड़ मामले सामने के बाद जांच होती है, ताकि सच सामने आ जाए. लेकिन मणिपुर में हुए मुठभेड़ के मामलों में मुठभेड़ को अंजाम देने वाला कांस्टेबल ने खुद कोर्ट के सामने स्वीकार किया, फिर भी इस पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांस्टेबल की डायरी का क्या होगा? क्या उसके आधार पर जांच आगे बढ़ेगी या उसे दबा दिया जाएगा, उस डायरी में आखिर ऐसा क्या दर्ज है, जिसे वो कांस्टेबल सुप्रीम कोर्ट में जमा करवाना चाहता है? इन सवालों का जवाब तो आखिरकार सीबीआई को ही देना है.