हरेक सत्ताधारी दल करते आ रहे है ! और आर एस एस की देश की संकल्पना को लेकर 1925 से ही हमारे आजादी के मुल्यो के विपरित सोच रहा हैं ! और इसलिये वह आजादी के आंदोलन में सोच-समझकर शामिल नहीं थे !
फिर आजादी के बाद देश के संविधान की घोषणा के बाद संघ के अंग्रेजी मुखपत्र अॉर्गनाईजर के उसके बाद ही हमारे देश के नये संविधान के बारे में संघ के विचारों को देखते हुए लगता नहीं कि संघ भारत के संविधान को मानता नहीं है ! देखिये संघने संविधान की घोषणा के बाद क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है ! (“Our Constitution too is just a cumbersome and heterogeneous piecing together of various articles from various Constitutions of Western countries. It has absolutely nothing which can be called our own. Is there a simple word of reference in its guiding principles as to what our national mission is and what our keynote in life is ”
” But in our Constitution there is no mention of the unique constitutional development in ancient Bharat. Manu’s Laws were written long before Lycurgus of Sparta or Solon of Persia. To this day his laws as enunciated in the Manusmruti excite the admiration of the world and elicit spontaneous obedience and conformity. But to our Constitutional pundits that means nothing. “) और राष्ट्रध्वज,(Golvalkar while addressing a Gurupurnima gathering in Nagpur on July 14th 1946 stated : it was saffron flag which in totality represented Bhartiyta (Indian) culture. It was the embodiment of God. We firmly believe that in the end the whole nation will bow before this saffron flag) राष्ट्रगीत तथा हमारे राष्ट्रीय प्रतिक भी संघ को मंजूर नहीं थे ! और यह सब दस्तावेज गोलवलकर के समग्र वाङ्मय तथा उनके दो बहुचर्चित किताबों (1, Bunch of Thoughts,2, We or our Nationhood Defined,) मे संविधान, राष्ट्रगीत, राष्ट्रध्वज, तथा हमारे राष्ट्रीय प्रतिको के बारे में हमेशा से ही हिंदुराष्ट्र के उनके सपनों के अनुसार सभी बातों पर पुर्णतः अलग राय रही है ! और श्री माधवराव सदाशिव गोलवलकर, संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यू 21 जून 1940 के दिन होने के बाद लगभग तैतीस साल संघप्रमुख के पद पर दिर्घकाल संघप्रमुख पदाधिकारी रहने के कारण उन्होंने आजादी के पहले पांच साल ! और आजादी के बाद सत्ताईस साल, संघ के प्रमुख रहने के कारण वर्तमान संघ के निर्माण में सब से बड़ा योगदान रहा है ! (1940 -5 जून 1973 के दिन मृत्यू होने के कारण ! ) उन्होंने अपने भाषणों तथा लेखों में सांस्कृतिक हिंदुराष्ट्रवाद की संकल्पना को स्पष्ट किया है ! और सच कहा जाए तो वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के उपर सबसे ज्यादा प्रभाव गोलवलकर गुरूजी का ही है !
इसलिए संघ की राजनीतिक ईकाई बीजेपी सिर्फ संघ के सपनों के सांस्कृतिक हिंदुराष्ट्रवाद के हिसाब से, संविधान और हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों को बदलने में तेजी से लगे हुए हैं ! इसलिये नयी संसद भवन के वर्तमान कार्यक्रम में विरोधी दलों को नहीं बुलाया गया ! क्योंकि संघ के एकचालकानुवर्ती सिध्दांत में, हमारे देश में आजादी के बाद से जारी संसदीय परंपरा, तथा विभिन्न राज्यों की जनतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करने के प्रयास गत आठ साल से लगातार जारी है !


और सारनाथ के स्तंभों के उपर के चारों सिंह जो शांत है ! उन्हें आक्रमक बताना, बाबरी मस्जिद – रामजन्मभूमी विवाद के चलते ! महात्मा गाँधी जी के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जानबूझकर हाथों में तीरकमान के साथ, उन्हें बाहुबली के रूप में प्रचार – प्रसार करने के कार्यक्रम का ही भाग है ! क्योंकि महात्मा गाँधी जी के रामराज्य की संकल्पना की, धज्जियाँ उडाने की राजनीति का ही भाग है !
लेकिन वही कोई अन्य कलाकारों ने या विरोधी दलों के लोगों द्वारा ! फिर मॉं काली, या किसी अन्य विषयों पर अपनी प्रतिक्रिया, या अलग अभिव्यक्ति की तो ! तुरंत आस्था के आड में हंगामा मचा कर उन्हें डराने – धमकाने का काम शुरू कर देते हैं ! जैसे सौ करोड़ हिंदुओं के मालिक ये चंद हिंदुत्ववादी स्वघोषित बन बैठे हैं !

डॉ राम मनोहर लोहिया ने इसी संदर्भ अपनी छोटी पुस्तिका “हिंदु बनाम हिंदु” नाम से के अंतमे साफ-साफ लिखा है कि ” उदार और कट्टर हिंदु धर्म की लड़ाई अपनी सबसे उलझी हुई स्थिति में पहुंच गई हैं और संभव है उसका अंत नजदीक ही हो ! कट्टरपंथी हिंदु अगर सफल हुए तो चाहें उनका उद्देश्य कुछ भी हो, भारतीय राज्य के टुकड़े कर देंगे ! न केवल हिंदु – मुस्लिम दृष्टि से बल्कि वर्णों और प्रांतों की दृष्टि से भी ! केवल उदार हिंदु ही राज्य को कायम रख सकता है !
कट्टरपंथियों ने अक्सर हिंदु धर्म में एकरूपता की एकता कायम करने की कोशिश की है ! उनके उद्देश्य हमेशा संदिग्ध नहीं रहे ! उनकी कोशिशों के पिछे अक्सर शायद स्थायित्व और शक्ति की इच्छा थी, लेकिन उनके कामों के नतीजे हमेशा बुरे हुए हैं ! मै भारतीय इतिहास का एक भी ऐसा काल नही जानता जिसमें कट्टरपंथी हिंदु धर्म भारत में एकता या खुशहाली ला सका हो ! जब भी भारत में एकता या खुशहाली आई, तो हमेशा वर्ण, स्री, संपत्ती, सहिष्णुता आदि के संबंध में हिंदु धर्म में उदारवादियों का प्रभाव अधिक था ! हिंदु धर्म के कट्टरपंथी जोश बढने पर, हमेशा देश सामाजिक और राजनीतिक दृष्टियों से टूटा है, और भारतीय राष्ट्र में, राज्य और समुदाय के रूप में बिखराव आया है ! मैं नहीं कह सकता कि ऐसे सभी काल, जिसमें देश टूटकर छोटे – छोटे राज्यों में बट गया, कट्टरपंथी प्रभुता के काल थे, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि देश में एकता तभी आई जब हिंदु दिमाग पर उदार विचारों का प्रभाव था !


आधुनिक इतिहास में देश में एकता लाने की कोशिशे असफल हुई ! ज्ञानेश्वर का उदार मत शिवाजी और प्रथम बाजीराव के काल में अपनी चोटी पर पहुंचा, लेकिन सफल होने के पहले ही पेशवाओ की कट्टरता में गिर गया! फिर गुरु नानक के उदारमत से शुरू होने वाला आंदोलन रणजित सिंह के समय अपनी चोटी पर पहुचा, लेकिन जल्द ही सिख सरदारों के कट्टरपंथी झगडो में पतित हो गया ये कोशिशें, जो एक बार असफल हो गई, आजकल फिर से उठने की बड़ी कोशिशे करती है, क्योंकि इस समय महाराष्ट्र और पंजाब से कट्टरता की जो धारा उठ रही है, उसका इन कोशिशों से गहरा और पापपूर्ण आत्मिक संबंध है! इन सबमें भारतीय इतिहास के विद्यार्थियों के लिए पढ़ने और समझने की बड़ी सामुग्री है ! जैसे धार्मिक संतो और देश में एकता लाने की राजनीतिक कोशिशों के बीच कैसा निकट संबध है, या कि पतन के बीज कहाँ हैं, बिल्कुल शुरू में या बाद की किसी गडबडी में या कि इन समूहों द्वारा अपनी कट्टरपंथी सफलताओं को दुहराने की कोशिशों के पिछे क्या कारण है ? इसी तरह विजय नगर की कोशिश और उसके पीछे प्रेरणा निम्बार्क की थी या शंकराचार्य की, और हम्पी की महानता के पीछे कौन- सा सडा हुआ बीज था, इन सब बातों की खोज से बड़ा लाभ हो सकता है ! फिर शेरशाह और अकबर की उदार कोशिशों के पिछे क्या था ? और औरंगजेब की कट्टरता के आगे उसकी हार क्यों हुई !


देश में एकता लाने की भारतीय लोगों और महात्मा गांधी की एकदम हाल की कोशिश कामयाब हुई है ! लेकिन अंशिक रुप से ही ! इसमें कोई शक नहीं है कि पांच हजार वर्षों से अधिक की उदारवादी धाराओं ने इस कोशिश को आगे बढ़ाया, लेकिन इसके तत्कालीन स्रोतो में युरोप के उदारवादी प्रभाव के अलावा क्या है ? तुलसी या कबीर और चैतन्य और संतों की महान परम्परा या अधिक हाल के धार्मिक, राजनीतिक नेता जैसे राममोहन राय और फैजाबाद के विद्रोही मौलवी! फिर, पिछले पांच हजार सालों की कट्टरपंथी धाराये भी मिलकर इस कोशिश को असफल बनाने के लिए जोर लगा रही है, और उसमें संघ की स्थापना और उसकी कारगुजारी भी एक कारक तत्व है ! और अगर इस बार कट्टरता की हार हुई तो वह फिर नही उठेगी !


केवल उदारता ही देश में एकता ला सकती है ! कट्टरपंथी हिंदुत्व अपने स्वभाव के कारण ही ऐसी इच्छा नहीं पैदा कर सकता, लेकिन उदार हिंदुत्व कर सकता है, जैसा इतिहास में कई बार कर चुका है ! हिंदु धर्म संकुचित दृष्टि से, राजनीतिक धर्म, सिध्दांतों और संघठन का धर्म नहीं है ! लेकिन राजनीतिक देश के इतिहास में एकता लाने की बड़ी कोशिशों को इससे प्रेरणा मिली है, और उनका यह प्रमुख माध्यम रहा है ! हिंदु धर्म में उदारता और कट्टरता के महान युद्ध को देश की एकता और बिखराव की शक्तियों का संघर्ष भी कहा जा सकता है ! लेकिन उदार हिंदुत्व पूरी तरह समस्या को हल नहीं करसका ! विविधता में एकता के सिद्धांत के पिछे सडन और बिखराव के बीज छिपे हैं ! कट्टरपंथी तत्वों के अलावा जो हमेशा ऊपर से उदार हिंदु विचारों में घुस आते हैं, और हमेशा दिमागी सफाई हासिल करने में रुकावट डालते हैं, विविधता में एकता का सिद्धांत ऐसे दिमाग को जन्म देता है, जो समृद्ध और निष्क्रिय दोनों ही है ! हिंदु धर्म का बराबर छोटे – छोटे मतों में बांटते रहना बडा बुरा है, जिसमें से हर एक अपना अलग शोर मचाये रहता है, और उदार हिंदुत्व उनकों एकता के आवरण में ढकने की चाहे जितनी कोशिश करे, वे अनिवार्य ही राज्य के सामुहिक जीवन में कमजोरी पैदा करते हैं ! एक आस्चर्यजनक उदासीनता फैल जाती है ! कोई इन बराबर होने वाले बटवारो की चिंता नहीं करता, जैसे सबको यकीन हो कि वे एक-दूसरे के अंग है ! इसी से कट्टरपंथी हिंदुत्व को अवसर मीलता है, और शक्ति की इच्छा के रूप में चालक शक्ति मिलती है, हालांकि उसकी कोशिशों के फलस्वरूप और भी ज्यादा कमजोरी पैदा होती है !
उदार और कट्टरपंथी हिंदुत्व के महायुद्ध का बाहरी रूप आजकल यह हो गया है, कि मुसलमानों के प्रति क्या रूख हो ! लेकिन हम एक क्षण के लिए भी यह न भूलें की यह बाहरी रूप है, बुनियादी झगड़े जो अभितक हल नहीं हुए, कहीं अधिक निर्णायक है ! महात्मा गाँधी की हत्या, हिंदु – मुस्लिम झगड़े की उतनी नहीं थी जितनी हिंदु धर्म की उदार और कट्टरपंथी धाराओं के युद्ध की ! इसके पहले कभी किसी हिंदू ने वर्ण, स्री, संपत्ती और सहिष्णुता के बारे मे कट्टरता पर इतनी गहरी चोटें नही की थी ! इसके खिलाफ सारा जहर इकठ्ठा हो रहा था ! उनका खुला और साफ उद्देश्य यही था कि, वर्ण व्यवस्था की बचाकर हिंदु धर्म की रक्षा की जाय ! आखिरी और कामयाब कोशिश का उद्देश्य उपर से यह दिखाई पड़ता था कि इस्लाम के हमले से हिंदू धर्म को बचाया जाय, लेकिन इतिहास के किसी भी विद्यार्थी को कोई संदेह नहीं होगा कि सबसे बड़ा और सबसे जधन्य हुआ था, जो हारती हुई कट्टरता ने उदारता से अपने युद्ध में खेला ! गांधी जी का हत्यारा, वह कट्टरपंथी तत्व था जो हमेशा हिंदु दिमाग के अंदर बैठा रहता है, कभी दबा हुआ, और कभी प्रकट, कुछ हिंदुओं में निष्क्रिय और कुछ मे तेजी से ! जब इतिहास के पन्ने गांधी जी की हत्या कट्टरपंथी उदार हिंदुत्व के युद्ध की एक घटना के रूप में रखेंगे और उन सभी पर अभियोग लगायेंगे जिन्हें, वर्णों के खिलाफ और स्त्रियों के हक में, और संपत्ति के खिलाफ और सहिष्णुता के हक में, गांधी जी के कामों से गुस्सा आया था, तब शायद हिंदु धर्म की निष्क्रियता और उदासीनता नष्ट हो जाए !


अब तक हिंदु धर्म के अंदर कट्टरता और उदार एक- दूसरे में जूडे, क्यों रहे ? और अभितक उनके बीच कोई साफ और निर्णायक लड़ाई क्यों नहीं हुई ? यह एक ऐसा विषय है, जिस पर भारतीय इतिहास के विद्यार्थि खोज करे तो बडा लाभ हो सकता है ! अब तक हिंदु दिमाग से कट्टरता कभी पूरी तरह दूर नहीं हुई, इसमें कोई शक नहीं ! जब तक हिंदुओं के दिमाग से वर्णभेद बिल्कुल ही खत्म नहीं होती, या स्रि को बिलकुल पुरूष के बराबर ही नहीं माना जाता, या संपत्ति और व्यवस्था के संबंध को पूरी तरह तोडा नही जाता तब तक कट्टरता भारतीय इतिहास में अपना विनाशकारी काम करती रहेंगी और उसकी निष्क्रियता को कायम रखेंगी ! अन्य धर्मों की तरह हिंदु धर्म सिद्धांतों और बंधे हुए नियमों का धर्म नहीं है, बल्कि सामाजिक संगठन का ढंग है, और यही कारण है कि उदारता और कट्टरता का युद्ध कभी समाप्ति तक नहीं लडा गया, और ब्राह्मण – बनिया मिलकर सदियों से देश पर अच्छा या बुरा शासन करते आये हैं ! जिनमें कभी उदारवादी ऊपर रहते हैं, कभी कट्टरपंथी ! आज कट्टरपंथी गत आठ साल से लगातार शासन में है तो हमारे देश की जितनी भी उदार, सर्वसमावेशी परंपरा और प्रतिको को बदलने का प्रयास जारी हैं ! और यह जबतक सत्ता में रहने वाले हैं तबतक वह विध्वंसात्मक काम करते रहेंगे !
डॉ सुरेश खैरनार 15 जुलै 2022, नागपुर

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