1980 के बाद से गोपालगंज की जनता लोकसभा में नये चेहरे को भेजती रही है. इसके पीछे मतदाताओं के अपने तर्कहै. 60 वर्षीय मिथलेश राय किसान हैं. उनका कहना हैं कि उन्होंने कई लोकसभा और विधानसभा में वोट किया हैं. जब चुनाव आते हैं तो नेता घर घर घुमकर वोट मांगते हैं. वादा करते हैं. लेकिन जीतने के बाद पांच साल में कभी भी गरीबों का हालचाल जानने नहीं आतें हैं.
पालगंज पहले सारण जिला का अंग था. जनसंख्या बढ़ने के बाद इसे अलग जिले का दर्जा मिला, जो सारण प्रमंडल में पड़ता है. हालांकि आरंभिक वर्षों में कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले गोपालगंज में बाद में समता पार्टी, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल और भाजपा को जीत हासिल हुई. 17 लाख 69 हजार 603 मतदाता हैं, जिसमे पुरुष मतदाता 9 लाख 22 हजार 224 और महिला 8,73,361, थर्ड जेंडर 65 मतदाता हैं.
गंडक, गन्ना और ग़ुंडा
इन तीन समस्याओं से घिरे गोपालगंज संसदीय क्षेत्र का इतिहास कांटे के संघर्ष का रहा है. यहां की सियासत को देखा जाय तो 1996 लोकसभा चुनाव के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने नये चेहरे को संसद में भेजा. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की आहट आते ही जहां सीट बटंवारे को लेकर भाजपा और जदयू में तकरार चल रही हैं, वहीं कांग्रेज,राजद, जाप जैसी पार्टियों के कार्यकर्ता अपनी जमीन तलाशने में जुट गये हैं. वर्ष 2009 में निर्वाचन आयोग ने गोपालगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को सुरक्षित कर दिया था. उसके बाद भाजपा और जदयू गठबंधन ने बगहा के पूर्णमासी राम को अपना उम्मीदवार बनाया था.
वहीं राजद और कांग्रेस ने अनिल कुमार राम को उम्मीदवार बनाया था. पूर्णमासी राम लोकसभा पहुंचने में कामयाब जरूर हो गए, लेकिन दोबारा नहीं दिखे. वर्ष 2014 के चुनाव में जदयू के खाते से गोपालगंज लोकसभा की सीट भाजपा के खाते में चली गई. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की आहट होते ही सभी दल अपने अपने पक्ष में कार्यकर्ताओं को गोलबंद करने में जुट गये हैं.
दिग्गज नेताओं की हैं नज़र
जिले में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में कार्यकर्ताओं की मांग पर जीतन राम मांझी ने गोपालगंज से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. हम पार्टी के जिला अध्यक्ष पंकज कुमार राणा ने कहा कि कार्यकर्ता सम्पर्क अभियान में गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर जीतन राम मांझी को लाने की मांग उठने लगी हैं. गोपालगंज की जनता की मांग हैं कि जिला का विकास बड़े नेता ही कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पांच वर्ष में सांसद जनक राम ने जिस गांव को गोद लिया था, उस गांव का कायाकल्प नहीं हुआ. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि जिले में कितना विकास हुआ होगा.
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र में 6 विधान सभा सेत्र हैं, जिसमें से भोरे अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. वहीं लोजपा नेता अनिल कुमार मांझी ने कहा कि कार्यकर्ताओं की मांग हैं कि चिराग पासवान गोपालगंज से चुनाव लड़े. जब कार्यकर्ता सम्मेलन में चिराग पासवान गोपालगंज आये थे तो कार्यकताओं ने यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर जोरदार मांग की थी. अनिल कुमार मांझी ने कहा कि कार्यकताओं की मांग हैं और उन्होंने मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया हैं.
जनसम्पर्क अभियान में जुटे नेता
जनसम्पर्क अभियान में जुटे नेताओं का अपना-अपना तर्क हैं. राजद राजद, कांग्रेस, जदयू, बसपा और भाजपा के अनुसूचित जाति प्रकोष्ट के जिलाअध्यक्ष राजाराम मांझी लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर जनता के बीच जाने लगे हैं. उनका कहना हैं कि पिछले 15 वर्षो से राजद की सेवा करते आ रहे हैं. हमारे काम को राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने देखा हैं. आने वाले लोकसभा चुनाव में राजद सब पर भाड़ी रहेगा. वहीं राजद के प्रदेश महासचिव प्रमोद राम जनसम्पर्क कर अपने पक्ष में जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. कांग्रेस पार्टी के नेताओं की दावेदारी अन्य पार्टी से कम नहीं हैं. भोरे विधान सभा के कांग्रेस विधायक अनिल कुमार राम को पार्टी टिकट देती हैं तो वे भी लोकसभा चुनाव लड़ने में पीछे नहीं रहेंगे. पिछले चुनाव में वे जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. इनके अलावा, ज्योती पासवान, जो वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रही, भी अपनी जमीन तलाशने में जुटी हुई हैं. सुरेन्द्र राम, गोरख राम भी पीछे नहीं हैं. बसपा के चंदिका राम को बसपा ने अपना उम्मीदवार बना दिया हैं.
भाजपा नेता भी पीछे नहीं
भोरे विधान सभा के पूर्व विधायक इंद्रदेव मांझी, भाजपा नेता सुदामा मांझी, राजू बैठा और डॉ आलोक कुमार सुमन भी भाजपा से टिकट मिलने की उम्मीद पर जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं. भाजपा के बड़े नेताओं के जिले में आने पर वे अपने दमखम दिखाने में पीछे नहीं हैं. भाजपा के कुछ नेताओं ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पिछले कई वर्षो से गोपालगंज की जनता नये चेहरे को संसद में भेज रही हैं, इस बार लोकसभा चुनाव में नये चेहरे ही संसद में जायेंगे.
जनता कहती है…
1980 के बाद से गोपालगंज की जनता लोकसभा में नये चेहरे को भेजती रही है. इसके पीछे मतदाताओं के अपने तर्कहै. 60 वर्षीय मिथलेश राय किसान हैं. उनका कहना हैं कि उन्होंने कई लोकसभा और विधानसभा में वोट किया हैं. जब चुनाव आते हैं तो नेता घर घर घुमकर वोट मांगते हैं. वादा करते हैं. लेकिन जीतने के बाद पांच साल में कभी भी गरीबों का हालचाल जानने नहीं आतें हैं. 55 वर्षीय रविन्द्र सिंह कहते हैं कि चुने गये जनप्रतिनिधि जनता का विकास कम अपने विकास में पांच वर्ष लगा देते हैं और जब दोबारा वोट मांगने आते हैं तो जनता नकार देती हैं. 47 वर्षीय संजीव कुमार पिंकी बताते हैं कि देश के विकास की चिंता नेताओं को कम हैं, उन्हें अपने विकास की अधिक चिंता हैं. जनता से झूठे वादे कर वोट लेने के बाद फिर वे पांच साल बाद ही दिखाई देते हैं. इसीलिए हम उन्हें बदल देते है.