आज ही के दिन एक सौ बत्तीस साल पहले महात्मा ज्योतिबा फुले इस दुनिया से विदा हो गऐ है ! कुल मिलाकर बहत्तर सालों की जीवन यात्रा में शुरूआती पंद्रह – बिस साल छोड़ दें तो उन्होंने अर्धशताब्दी से अधिक समय तत्कालिन समाज की विषमता तथा छुआछूत के खिलाफ अपनी लेखनी और कृती से जो काम किया वह पांच हजार साल पुरानी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में का पहला विद्रोह कहा जा सकता है !
मुख्यतः चातुर्वर्ण्य के कारण चली आ रही जातीव्यवस्था के खिलाफ, एल्गार पुकारने वाले, ज्योतिबा फुले पहले भारतीय हैं ! जिन्होंने अपने उम्र के इक्कीसवे साल में लड़कियों के लिए पहली पाठशाला शुरू कर के ! अपनी पत्नी सावित्रीबाई और फातिमा शेख की मदद से उन पाठशालाओं को चलाने की कोशिश की है ! आज भारत की समस्त महिलाओं के लिए, शिक्षा की शुरुआत, आजसे ढेढ सौ साल पहले करने वाले महात्मा फुले और सावित्रीबाई तथा उनकी सहयोगी फातिमा शेख वर्तमान समय की, सांप्रदायिक स्थिति को देखते हुए और महत्वपूर्ण है !
उसी तरह 1851 में दलित समुदाय के लिए भी पाठशाला शुरू की है ! वह भी समस्त भारत के इतिहास में मनुस्मृति के अनुसार स्रि – शुद्रो को अक्षरज्ञान देना महापाप लिखा हुआ था ! और शायद ज्योतिबा फुले पहले भारतीय समाज सुधारक है ! जिन्होंने यह साहसिक कदम उठाने की कोशिश की है ! कुल मिलाकर उन्होंने छ के उपर पाठशालाओं की शुरुआत की थी ! इसलिए डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी उन्हें अपने गुरू मानते थे ! हालांकि बाबा साहब का जन्म महात्मा फुले के मृत्यू के बाद ! गिनकर एकसौ छत्तीस दिनों के पस्चात हुआ है ! (14 अप्रैल 1891) मतलब मुलाकात होने का सवाल ही नहीं है !
लेकिन उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति तत्कालीन लोकभाषा में लिखी थीं ! आज दलित साहित्य का काफी बोलबाला हो रहा है ! लेकिन आजसे ढेढ दो सौ साल पहले तथाकथित प्रस्थापित मराठी भाषा में ब्राह्मण साहित्यकार लिखने के समय ! शायद तथागत गौतम बुद्ध के बाद, (पाली तत्कालीन लोकभाषा ! ) महात्मा ज्योतिबा फुले दुसरेही द्रष्टा पुरूष होंगे ! जिन्होने तत्कालीन लोगों की बोली भाषा में ! अपने साहित्य की संपदा निर्माण कीया है ! उदाहरण के लिए विशेष रूप से सार्वजनिक सत्यधर्म, शेतकर्यांचा आसुड, गुलामगिरी, ब्राह्मणों की चतुराई, सत्सार, शिवाजी महाराज के उपर लिखा पोवाडा (मराठी लोकगीत) अपने साहित्य के द्वारा ! पहली बार किसी भारतीय भाषा में ! सदियों से ब्राम्हणों के द्वारा चल रहे स्त्री – शुद्रो के शोषण के खिलाफ ! तर्कशुद्ध लिखने वाले ! महात्मा फुले पहले क्रांतिकारी है ! और साहित्यिक भी ! इसलिये अनुवादक काफी समय बाद ( राजा राम मोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर के तुलना में ! ) अभि – अभी उनके साहित्य का अनुवाद, अन्य भारतीय भाषाओं में कर रहे हैं ! हालांकि ज्योतिबा फुले, पुणे के स्कॉटिश स्कूल में पढ़ने के कारण ! उन्होेंने अंग्रेजी भाषा सीखने का प्रयास किया है ! और 1882 के शिक्षा संबंधी, हंटर कमेटी के सामने अपना निवेदन ज्योतिबा फुले ने अंग्रेजी में ही लिखकर दिया है ! लेकिन उनके बहुसंख्यक पाठक मराठी भाषी होने के कारण ! उनका ज्यादा तर साहित्य मराठी में ही लिखा गया है ! अब भारत की अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद होने लगा है ! मुखतः हिंदी और अंग्रेजी में !
वर्ष 1848 विश्व के लिए विशेष रूप से क्रांतिकारी वर्ष रहा हैं ! ज्योतिबा फुले ने स्रि – शुद्रो के शिक्षा कार्य की शुरुआत इसी साल की है ! उधर योरपीय देशों में कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने, अपने कम्युनिस्ट घोषणा पत्र नाम से अपने ऐतिहासिक निबंध को भी इसी वर्ष प्रकाशित किया था ! स्रिमुक्ति आंदोलन की शुरूआत न्यूयार्क स्थित वेल्सियन चर्च में भी इसी वर्ष शुरू हुआ था . एक तरफ अमेरिकन स्री गुलामी से मुक्ति की कोशिश कर रही थी ! और दुसरी तरफ भारतीय स्री हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सबसे निचले स्तर पर की शूद्र के दर्जे में जिने के लिए मजबूर थी ! और यह सब देखकर ज्योतिबा फुले ने, अगस्त 1948 में पुणे के भिडेवाडा बुधवार पेठ में, पहले लडकियो के स्कूल की शुरुआत की है ! जिसमें शुद्र से अतिशूद्र जाती की लडकियों का समावेश करने के कारण ! कट्टरपंथियों के दृष्टि से बड़ा अपराध था ! और इस कारण प्रधानाध्यापक सावित्रीबाई फुले के उपर, कट्टरपंथी किचड, गोबर तथा कंकडोकी बौछार करते थे ! लेकिन वह सावित्रीबाई ही थी ! जो अपने साथ थैले में अलग से एक साडी लेकर जाति थी ! और उसे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के पहले बदलकर ! अपने शिक्षा का काम शुरू करती थी ! रोजमर्रे के इस प्रकार की तकलीफ को सहकर भी ! सावित्रीबाई ने अपने शिक्षा संबंधी कार्य को करने के लिए ! कितनी बड़ी हिम्मत ! और जिवट के कारण, आज कोई स्री राष्ट्रपति या राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री ! और जीवन के हर क्षेत्र में नजर आती है ! क्या सही मायने में शिक्षा दिवस सावित्रीबाई फुले के स्मृति में नहीं मनाया जाना चाहिए ?
मै आज हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के फैसले के कारण आजसे एक सौ चालिस साल पहले महात्मा ज्योतिबा फुले ने भारत के पहले शिक्षा के संबंध में नियुक्त विल्यम हंटर कमिशन को सौंपा निवेदन जानबूझकर देने की कोशिश कर रहा हूँ ! आजसे एक सौ चालिस साल पहले और आज की परिस्थितियों में कौन-सी प्रगति हुई है ? यह भी देखना होगा !
महात्मा ज्योतिबा फुले ने 1882 में अंग्रेज सत्ताधारियों के तरफसे भारत की शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए विशेष रूप से नियुक्त पहले कमिशन जिसे विल्यम हंटर नाम के व्यक्ति की अध्यक्षता में नियुक्त कमिशन को अपनी ओर से सुझावों का एक निवेदन 19 अक्तुबर 1882 को सौपा था ! जिसमें उन्होंने लिखा था कि ” मै एक व्यापारी, किसान और नगरपिता हूँ ! उन्होंने अपने द्वारा स्थापित विद्यालयों तथा शैक्षिक कार्य का भी निवेदन में उल्लेख किया है ! शिक्षक के रूप में इतने वर्षों तक किए गए कार्य का भी उल्लेख किया था ! गुलामगिरी नाम के अपने ग्रंथ के कुछ परिच्छेद देकर उन्होंने निवेदन का प्रारंभ किया है ! अपने निवेदन में वह कहते हैं कि ” सरकार यह सपना देख रही है की उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग में शिक्षा का प्रसार करेंगे और इसी सपने को मद्देनजर देखते हुए गरीब किसानों से लगान वसुल करती है ! उस लगान को सरकार उच्च वर्गों की शिक्षा पर खर्च कर रही है ! विश्वविद्यालय अमिरो के बच्चों को शिक्षा देती है ! और उन्हें ऐहिक उन्नति करने में सहायता करता है ! परंतु इन विश्वविद्यालयों से निकलने वाले पढे – लिखे लोगों ने अपने देशवासियों की उन्नति के कार्य में थोड़ा भी हाथ बटाया नही है !
विश्वविद्यालय से उपाधि लेकर निकलने वाले युवाओं ने सामान्य जनता के लिए क्या किया ? अपने जीवन की सार्थकता उन्होंने कहा तक साबित की ? इन अभागो की शिक्षा के लिए अपने घर में या दूसरी ओर कही उन्होंने विद्यालय खोले हैं ?
फिर किस कारण ऐसा कहा जाता है कि यदि लोगों का बौद्धिक और नैतिक स्तर उपर उठाना हो, तो उच्च वर्गों के लोगों की शिक्षा का स्तर बढाना होगा ? राष्ट्र कल्याण मे वृद्धि हुई है अथवा नहीं यह जानने के लिए, महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों की संख्या और विश्वविद्यालयीन उपाधियों की सूची ही एकमात्र साधन नहीं है, जिस प्रकार जंगल के शिकार के संबंध में कानून बनाने से या 10 पौंड कर अदा करनेवाले को मतदान का अधिकार देने से संविधान की कल्याणकारीता साबित नहीं होती, उसी प्रकार विश्वविद्यालय से निकलनेवाले रंगरूटों या वहाँ देशी व्यक्तियों की ‘संकायाध्यक्ष’ और डाक्टर के रूप में नियुक्ति करना इस देश के लिए हितकारी है ऐसा साबित नहीं होता ”
महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपने निवेदन में कहा है कि ” उच्च वर्गों की सरकारी शिक्षा- पद्धति की प्रवृति इस बात से दिखाई देता है कि सरकारी वरिष्ठ पदों पर इन ब्राम्हणों का वर्चस्व स्थापित हो चुका है, सरकार यदि जनता का सचमुच कल्याण करना चाहती है, तो इन अनेक दोषों का निवारण करना सरकार का प्रथम कर्तव्य है ! दुसरी जाति के थोड़े – थोडे लोगों की नियुक्ति करके दिन – ब – दिन बढ रहे ब्राम्हणों के वर्चस्व को सिमित किया जाना चाहिए! कुछ लोग कहते हैं कि यह इस परिस्थिति में संभव नहीं है ! इसपर हम जवाब देते हैं कि सरकारने यदि अधिक ध्यान नहीं दिया, तो निति और बर्ताव से अच्छे लोग पढ – लिखकर नौकरी करने लायक बनाने में कोई कठिनाई महसूस न होगी ! उच्च वर्गों के लोग उच्च शिक्षा का प्रबंध स्वयं ही कर लेंगे ! ”
साथियों मैंने महात्मा फुले ने हंटर कमेटी को आजसे एक सौ चालिस साल पहले सौपै हुए हमारे देश की शिक्षा तथा नौकरियों के संबंध में दिए गए निवेदन में और आज की स्थिति में क्या कोई विशेष प्रगति हुई है ? 1947 तक कि स्थिति छोड़ दिजीए, पचहत्तर साल के आजादी के बाद की स्थिति को देखते हुए क्या परिस्थितियों में सुधार हुआ है ? मै आप सभी के समझदारी के उपर सौप कर महात्मा ज्योतिबा फुले को विनम्र अभिवादन करते हुए इस मनोगत को विराम देता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 28 नवंबर 2022, नागपुर