भारत में पहला आम चुनाव 1951 में हुआ, लेकिन हमारे लोकतंत्र को पहला विपक्षी नेता मिला 1977 में और वो थे यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण. वाईबी चव्हाण महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री और भारत के पांचवे उप प्रधानमंत्री थे. वे एक मजबूत नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे. जनहित के लिए सदैव आगे रहने की प्रतिबद्धता ने उन्हें आम लोगों के नेता के रूप में स्थापित किया. उन्होंने अपने भाषणों और लेखों में समाजवादी लोकतंत्र की पुरजोर वकालत की. महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री रहते हुए उनके द्वारा स्थापित की गईं सहकारी समितियां कृषि कल्याण के क्षेत्र में मिल का पत्थर साबित हुईं.

वाईबी चव्हाण का जन्म 12 मार्च 1913 को महाराष्ट्र के सतारा जिले (वर्तमान सांगली) के देवराष्ट्रे नामक गांव के एक मराठा किसान परिवार में हुआ था. बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया. मां ने उनके चाचा के सहयोग से उनका पालन-पोषण किया. आत्मनिर्भरता और देशभक्ति का सबक वाईबी चव्हाण को विरासत में मिला. बचपन से ही वे भारत के स्वतंत्रता संघर्ष से प्रभावित थे. प्रतिकूल पारिवारिक स्थिति के बावजूद यशवंतराव अपनी शिक्षा पूर्ण करने में सफल रहे. उन्होंने 1938 में बंबई विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में बीए की पढ़ाई पूरी की. इस अवधि के दौरान वे कई सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल रहे. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भागीदारी रही.

1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए जाने वाले असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उनपर जुर्माना लगाया गया. 26 जनवरी 1932 को यशवंतराव ने सतारा में भारतीय ध्वज फहराया, जिसके कारण उन्हें 18 महीने के कारावास की सजा सुनाई गई.  यशवंतराव 1940 में सतारा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 1941 में उन्होंने एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की. अगले साल ही यानि 1942 में सतारा जिले के फल्टन में वेनूताइ से उनका विवाह हो गया. इसी साल हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक मुंबई अधिवेशन में उन्होंने बतौर प्रतिनिधि भाग लिया. इसी अधिवेशन में भारत छोड़ो का नारा बुलंद किया गया था. इसमें भाग लेने के कारण यशवंतराव को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर वे 1944 में जेल से रिहा हुए.

यशवंतराव 1946 में दक्षिण सतारा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए. उसी वर्ष उन्हें बम्बई राज्य के गृह मंत्री के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. 1953 में वे नागपुर समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे, जिसमें महाराष्ट्र के सभी क्षेत्रों के समान विकास का आश्वासन दिया गया था. 1957 में यशवंतराव कराड निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधाई पार्टी के नेता के रूप में निर्वाचित हुए और द्विभाषी बम्बई राज्य के मुख्यमंत्री बने. 1957 से 1960 तक उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य के रूप में चुना गया. संयुक्त महाराष्ट्र की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. 1 मई 1960 को यशवंतराव महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री बने. संपूर्ण महाराष्ट्र का औद्योगिक व कृषि विकास उनका सपना था. उन्होंने सहकारी आंदोलन के माध्यम से इस सपने को पूरा करने की दिशा में काम किया. मुख्यमंत्री के रूप में उनके शासन के दौरान लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकृत निकायों तथा कृषि भूमि सीमांकन अधिनियम के संबंध में कानून पारित किए गए.

यशवंतराव चव्हाण केन्द्र की सरकार में कई बार कैबिनेट मंत्री भी रहे. गृह, रक्षा, वित्त तथा विदेश मामलों का मंत्रालय संभालने के बाद वे भारत के उप प्रधानमंत्री भी बने. 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद जब तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन ने इस्तीफा दे दिया, तब पंडित नेहरू ने यशवंतराव को महाराष्ट्र से दिल्ली बुलाया और उन्हें रक्षा मंत्री का पदभार सौंपा गया. युद्ध के बाद की नाजुक स्थिति का दृढ़ता से सामना करते हुए उन्होंने सशस्त्र बलों के सशक्तिकरण हेतु कई निर्णय लिए और पंडित नेहरू के साथ मिलकर चीन के साथ युद्ध विराम पर वार्ता की. सितम्बर 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी यशवंतराव रक्षा मंत्री थे.

अगले आम चुनाव में यशवंतराव चव्हाण नासिक निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य के रूप में निर्विरोध चुने गए. 14 नवम्बर 1966 को उन्हें देश का गृह मंत्री नियुक्त किया गया. इसके बाद 26 जून 1970 को वे भारत के वित्त मंत्री और 11 अक्टूबर 1974 को विदेश मंत्री बनाए गए. आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया. 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बनने पर यशवंतराव विपक्ष के नेता बने. यशवंतराव भारतीय ससंद के इतिहास में पहले विपक्ष के नेता थे, क्योंकि उससे पहले किसी भी दल को उतनी सीटें नहीं मिल सकी थीं कि उसे विपक्ष के नेता का दर्जा मिल सके.

1978 के अंत में बैंगलोर के वार्षिक सत्र में कांग्रेस दो हिस्सों में विभाजित हो गई. कांग्रेस (इंदिरा) तथा कांग्रेस (उर्स). देवराज उर्स, कासू ब्रह्मानंद रेड्डी, एके एंटनी और शरद पवार जैसे नेताओं के साथ यशवंतराव कांग्रेस उर्स में शामिल हुए. इंदिरा गांधी से अलग होने का निर्णय लेने के बाद यशवंतराव के राजनीतिक करियर को एक बड़ा झटका लगा. जल्द ही कांग्रेस (उर्स) विघटित हो गई और देवराज उर्स स्वयं जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद कांग्रेस (उर्स) का नाम बदलकर भारतीय कांग्रेस (समाजवादी) रख दिया गया. प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के मंत्रीमंडल में यशवंतराव भारत के गृह मंत्री तथा उप प्रधानमंत्री बने. 1980 के आम चुनाव में कांग्रेस (आई) ने संसद में बहुमत प्राप्त किया और इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी की. इस चुनाव में यशवंतराव एक सांसद के रूप में महाराष्ट्र से निर्वाचित होने वाले एकमात्र ऐसे उम्मीदवार थे, जो कांग्रेस (समाजवादी) के टिकट पर जीत कर आए थे. 1981 में यशवंतराव चौहान कांग्रेस (आई) में वापस आए और 1982 में उन्हें भारत के आठवें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

यशवंतराव चव्हाण साहित्य में भी दिलचस्पी लेते थे. उन्होंने मराठी साहित्य मंडल की स्थापना की और मराठी साहित्य सम्मेलन का समर्थन किया. वे कई कवियों, संपादकों और लेखकों के साथ काफी करीब थे. उन्होंने तीन खंडों में अपनी आत्मकथा लिखने की योजना बनाई थी, जिनके नाम भी तय हो गए थे. पहले खंड में उनके बचपन से शुरुआती दिनों का जिक्र था, चूंकि उनका घर कृष्णा नदी के किनारे था इसलिए उन्होंने पहले खंड को कृष्णा कथ नाम दिया था. दूसरे खंड का नाम सागर तीर था, क्योंकि यह उनके महाराष्ट्र में बिताए गए समय पर आधारित था. अंतिम दिनों में वे दिल्ली में रहे थे और आत्मकथा का तीसरा खंड उनकी इन्हीं दिनों की जिंदगी के बारे में था, इसलिए उसे यमुना कथ नाम दिया जाने वाला था. लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी आत्मकथा का केवल प्रथम खंड ही पूरा हो पाया. 25 नवम्बर 1984 को 71 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से यशवंतराव चव्हाण का दिल्ली में निधन हो गया. उनके सम्मान स्वरूप 1985 में मुंबई में यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान स्थापित किया गया. वहीं 1989 में उनके नाम पर यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गई.

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