हमारे कर्नाटक – महाराष्ट्र के सिमा के भगीरथ ! संघर्ष और रचनात्मक काम का अनुठी मिसाल !
यह कट्टनभावी नाम का गांव के बेलगांव जिला और तालुका के, तालाब की फोटो है ! आजसे तीस साल पहले इस गांव के लड़कों के साथ अन्य गांव के लोग अपनी लड़की की शादी नहीं करते थे ! क्योंकि लड़की के अभिभावकों को पानी के अभाव वाले गांव में अपनी लड़की दुर – दुरसे बेटी को पानी लाने के लिए कष्ट उठाने पडेंगा इस डर से !
हमारे मित्र शिवाजी कागणीकर और उसके साथियों के भगीरथ प्रयास से यह तालाब की जगह की खुदाई शुरू किये थे ! और चंद दिनों में वहां पर निचे से झरने मिले ! और सौ फिट लंबे और अस्सी फीट चौड़ा और बारह फीट खाई खोदने के पस्चात आज यह तालाब नजर आ रहा है !
और अब कट्टनभावी के चारों ओर प्रचुर मात्रा में पानी की उपलब्धता होने से ! विरान बस्ती आज हरी भरी नजर आ रही है ! जिसमें पचहत्तर प्रतिशत काजू और अन्य बीस मे आम, नारियल के पेड़ो से संपूर्ण परिसर में हरियाली और समृद्धि नजर आई ! काजू के दाम बढ़ने का सिलसिला जारी होने से ! जिस कट्टनभावी में सभी मकान झुग्गी – झोपड़ी की जगह आज पक्की दो – तीन मंजिला इमारतें ! नजर आ रही है ! और लगभग हरेक मकान के आहाते में मोटरसाइकिल तथा किसी – किसी के घर के आंगन में मोटर गाड़ी भी दिखाई दे रही है !
इसी तरह के छ तालाब जनसहयोग से निर्माण किये हैं ! शिवाजी खुद गडरिया (धनगर) परिवार में पैदा होने के कारण ! उसने भेडो की बालों से घोंगडी (यहां की भेडो के बाल मोटे होने के कारण खुरदरे ब्लेंकेट बनाने की शुरुआत की !)
इस परिसर में उनके और साथीयो के प्रयास से बारह महीनों घास की उपलब्धता कारण पशुपालन के व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए बहुत सुविधाजनक है ! अन्यथा दर – दर भटकर अपने पशुओं को चराने के लिए भटकते रहते थे !
अब मनरेगा के अंतर्गत महिलाओं के छत्तीस समुह बनाने के बाद ! कर्नाटक सरकार के सबसे निचले कर्मचारियों से लेकर ! कलक्टर – कमिश्नर के साथ साथ महिलाओं को लेजाकर अपने साल में सौ दिनों के काम देने के अधिकार को अमल में लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं ! कल हजारों की संख्या में महिलाओं का मोर्चा बेलगांव के कलक्टर और कमिश्नर के सामने लेकर आये थे ! और महिलाओं तथा गांव के नागरिकों को उन्हें, ग्रामपंचायत के द्वारा कौन – कौन सी योजनाएं होती है ! उनकी जानकारी देकर उन्हें अमल में लाने के लिए ! जनसंघर्ष के रास्ते, और कुछ पत्राचार या वार्तालाप के जरिए,
आज मै सुबह के दस बजे से मुन्नुर में उनके साथ बातचीत करने हेतु गया था ! अपनी मांगों को लेकर काफी उत्साहित दिखे ! और सबसे महत्वपूर्ण बात ! महीलाओ के साथ आज चार घंटे मुन्नुर नाम के गांव में हमारे साथ लंबे वार्ता के पस्चात आग्रह पूर्वक दोपहर का भोजन नाचणी की भाकरी और सब्जियों के साथ टिपिकल कानडी रसम का भोजन करने का लाभ मिला है ! तो मैंने अपने परिचय देते हुए कहा कि मैं भी आप ही की बीरादरी से हूँ ! क्योंकि आप सभी ने अपने परिचय देते हुए कहा कि हम गृहणियां है ! तो मैंने भी कहा कि मै भी गृह कार्य करने वाले लोगों में से हूँ ! (हाऊस हजबंड!)
फिर मैंने उनके महिला गुट बनाकर शासन के साथ संघर्ष के काम में घरके पुरूषों की क्या भूमिका है पुछा तो शिवाजी ने कहा कि एक घर में उसके पति ने शराब के नशे में कहा कि तुम्हे यह सब करने की जरूरत नहीं है ! चुपचाप घर में रहो तो उस महिला ने कहा कि तुम तो अपनी कमाई शराब में बर्बाद करते हो तो बच्चों का और तुम्हारे पेट के लिए तो मेरी ही मेहनत की कमाई काम में आती है तो उसने घर से बाहर निकाल दिया तो उस महिला ने किसी के जानवर बांधने की जगह पर आसरा लिया और पतीदेव को कहा कि मै बच्चों के लिए खाना बनाती हूँ तो साथ में तेरे लिए भी कुछ चावल बना दुंगी ! भले तू अपने घर में रह पर खाने के लिए मै जहाँ पर रह रही हूँ, वहां पर आकर तू खाना खाकर जा सकता ! यह है एक माँ का दिल ! कुछ दिनों पस्चात उस आदमी को पछतावा हुआ तो खुद ही गांव वासियों की सहायता से अपने पत्नी की माफी मांग कर मनमुनौवल कराने के बाद अपने घर वापस ले आया ! मैंने कल की मेरी उन महिलाओं के साथ की मुलाकात में देखा कि संघर्ष और निर्माण के कार्य करते हुए उनके व्यक्तित्व में भी आत्मविश्वास आया है और वह अपनी बात बहुत ही अच्छी तरह से रखने की आदी हो गई है ! अज्ञेय का नदी के द्विप नाम के उपन्यास में एक बहुत ही सुंदर वाक्य लिखा है कि दु:ख आदमी या औरत को मांजता है !
डॉ सुरेश खैरनार, बेलगांव 30 मार्च 2022