राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा के आदेश पर कुंभ मेला अधिकारी सह लोक सूचनाधिकारी ने आवेदक रमेश चंद्र शर्मा को जो सूचनाएं मुहैया कराई हैं, उनसे सा़फ है कि शासन महाकुंभ-2010 में हुई 180 करोड़ रुपये की अनियमितताओं के प्रति बेपरवाह रहा. 54 अधूरे निर्माण कार्यों की लागत के 180.07 करोड़ रुपये नोडल अधिकारियों की लापरवाही के चलते तब मेलाधिकारी कार्यालय में जमा नहीं कराए गए और न शहरी विकास विभाग ने शासन की किसी भी एजेंसी से इसकी जांच कराने की ज़िम्मेदारी निभाई.
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पर उनके कार्यकाल में संपन्न हुए हरिद्वार महाकुंभ घोटाले की जांच की आंच पड़नी तय मानी जा रही है. राज्य सूचना आयोग ने 2010 के हरिद्वार महाकुंभ घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश की है. राज्य सूचना आयुक्त इसके पहले राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की दवाओं के मामले में भी राज्य सरकार से सीबीआई जांच की सिफारिश कर चुके हैं, जिसे सरकार ने मान लिया था. महाकुंभ घोटाले को 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुद्दा भी बनाया था. 2010 में प्रदेश में भाजपा सत्ता में थी. सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने महाकुंभ घोटाले से जुड़े मामले में मुख्यमंत्री के सचिव को भेजे गए अपने पत्र में कहा है कि कुंभ आयोजन के लिए आवंटित 565 करोड़ रुपये के इस्तेमाल की केंद्र सरकार के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि 180.07 करोड़ रुपये की लागत के कार्य निर्माण के अभाव में 31 जुलाई, 2010 तक अपूर्ण रहे थे. इन 180.07 करोड़ रुपयों का
हिसाब-किताब न तो शासन ने दिया और न मेलाधिकारी कार्यालय हरिद्वार ने. यही नहीं, शासन ने भी
हिसाब-किताब की खोजबीन का कोई सार्थक प्रयास किसी जांच एजेंसी से नहीं कराया. ऐसी परिस्थिति में जनहित एवं राजस्व हित में गंभीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की उच्चस्तरीय जांच केंद्र सरकार की एजेंसी सीबीआई से कराई जाए. चूंकि आवंटित धन केंद्र सरकार का था, इसलिए इसके खर्च के हिसाब-किताब की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराना न्याय हित में आवश्यक है. सूचना आयुक्त ने इस संबंध में अपीलार्थी से प्रार्थना-पत्र देने को कहा है.
ग़ौरतलब है कि धर्मशाला माई गिंदा कुंवर बरेली ट्रस्ट सुभाष घाट हरिद्वार के ट्रस्टी रमेश चंद्र शर्मा ने कई आरटीआई याचिकाओं के ज़रिये शासन और मेलाधिकारी से महाकुंभ के विभिन्न अधूरे निर्माण कार्यों के बारे में जानकारी मांगी थी. जब उन्हें सूचनाएं नहीं मिलीं, तो उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील कर दी. शर्मा का कहना था कि कुंभ मेले के आयोजन के लिए केंद्र से मिले 180 करोड़ रुपये का कोई हिसाब-किताब नहीं है. कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार को मेले के आयोजन के लिए 565 करोड़ रुपये का अनुदान दिया था. मेले के दौरान लोकहित के 54 कार्य पूरे नहीं हो सके. इससे दुनिया भर से हरिद्वार आए लाखों श्रद्धालुओं को असुविधाओं का सामना करना पड़ा. कैग की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि राज्य सरकार के 34 विभागों के 311 कार्यों के लिए 565 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिनमें से 180 करोड़ रुपये के 54 कार्य अधूरे रह गए. जानकारी होने पर भी तत्कालीन राज्य सरकार ने मामले की जांच नहीं कराई. सूचना आयुक्त ने रमेश चंद्र शर्मा की ओर से उठाए गए विषयों पर संज्ञान लिया और मामले का निस्तारण करते हुए कहा कि इतनी बड़ी धनराशि का हिसाब न तो शासन दे रहा है और न मेलाधिकारी कार्यालय. उन्होंने कहा कि आश्चर्य की बात तो यह है कि शासन इस मामले की जांच कराना भी उचित नहीं समझ रहा. इसके बाद आयोग ने सीबीआई जांच की सिफारिश करते हुए मुख्यमंत्री के सचिव को अपने पत्र की प्रति भेज दी. मुख्यमंत्री के सचिव को निर्देश दिए गए हैं कि इस मामले को मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाए, ताकि वह मामले की सीबीआई जांच का फैसला ले सकें.
राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा के आदेश पर कुंभ मेला अधिकारी सह लोक सूचनाधिकारी ने आवेदक रमेश चंद्र शर्मा को जो सूचनाएं मुहैया कराई हैं, उनसे सा़फ है कि शासन महाकुंभ-2010 में हुई 180 करोड़ रुपये की अनियमितताओं के प्रति बेपरवाह रहा. 54 अधूरे निर्माण कार्यों की लागत के 180.07 करोड़ रुपये नोडल अधिकारियों की लापरवाही के चलते तब मेलाधिकारी कार्यालय में जमा नहीं कराए गए और न शहरी विकास विभाग ने शासन की किसी भी एजेंसी से इसकी जांच कराने की ज़िम्मेदारी निभाई. यही नहीं, सूचनाएं देने के लिए आवेदक को पौने पांच साल तक टरकाया जाता रहा. रमेश चंद्र शर्मा ने जुलाई 2010 में महाकुंभ के बाबत सूचनाएं मांगी थीं, जिनमें से कुछ इस साल तीन मार्च को राज्य सूचना आयोग के दखल के बाद मिल सकीं. रमेश चंद्र शर्मा ने पूछा था कि बची हुई 180.07 करोड़ रुपये की धनराशि में से कितनी धनराशि किस रूप में शहर के विकास में इस्तेमाल हुई है और अवशेष धनराशि किस खाता संख्या के माध्यम से राजकोष में जमा कराई गई.