भगवान शिव के अनेक रुप हैं. उनकी आराधना करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अकालमृत्यु जैसे भय समाप्त हो जाते हैं. भगवान शिव देवों के देव महादेव कहे जाते हैं. भगवान शिव को अनेकों नामों से पुकारा जाता है. भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं. इनमें से तीसरा है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं जो मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है. यह ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी होने के कारण बारह ज्योतिर्लिंगों में विशेष महत्व रखता है. वेद-पुराण, महाभारत और कालीदास जैसे महाकवियों की रचनाओं का इस मंदिर की दीवारों पर महावर्णन मिलता है. महाकालेश्वर के बारे में शिवपुराण में वर्णित कथा इस प्रकार है. शिवपुराण में कहा गया है कि अवंती नगरी भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. पवित्र अवंती नगरी में शुभ कर्मपरायण तथा सदा वेदों के ध्यान में लगे रहने वाले एक उत्तम ब्राह्मण रहते थे. उनका नाम वेदप्रिय था. ब्राह्मण देव सदैव शिव की उपासना में लगे रहते थे. वे अपने घर में अग्नि की स्थापना कर प्रतिदिन अग्निहोत्र और वैदिक कर्मों के अनुष्ठान में लगे रहते थे. वे प्रतिदिन पार्थिव लिंग का निर्माण कर शास्त्रिय विधि से पूजन करते और हमेशा उत्तम ज्ञान की प्राप्ति के लिए तत्पर रहते थे.
ब्राह्मण वेदप्रिय को चार पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई. उनका नाम देवप्रिय, प्रियमंधा, संस्कृत और सुवृत था. रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम का एक अधर्मी असुर रहता था. उसने धर्म और धर्मात्माओं पर आक्रमण कर दिया. उस असुर को ब्रह्मा जी से अजेय होने का वर प्राप्त था. राक्षस सेना लेकर उज्जैन के पवित्र और कर्मनिष्ठ ब्राह्मणों पर अत्याचार करने के लिए निकल पड़ा. असुर की आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में प्रलयकाल की तरह उत्पात मचाने लगे. उनके विनाशकारी उपद्रव से भी शिव जी के भक्त भयभीत नहीं हुए. जब नगर के सभी ब्राह्मण घबराने लगे, तब उन चारों शिव भक्त भाईयों ने सभी को आश्वासन देते हुए कहा कि आप लोग भगवान शिव पर भरोसा रखें. उसके बाद वे शिवभक्त शिव का पूजन कर उनके ध्यान में लीन हो गए. दैत्य दूषण ध्यान मग्न ब्राह्मणों को देख कर ललकारते हुए अपने सैनिकों से बोला कि इन्हें बांधकर मार डालो. दैत्य ने देखा कि ब्राह्मण इससे तनिक भी भयभीत नहीं हुए. उसने जैसे ही शिव भक्तों के प्राण हरने के लिए शस्त्र उठाया, ठीक तभी उनके द्वारा पूजित उस पार्थिव लिंग की जगह गड्ढा बन गया और उस गड्ढे से विकराल रूप धारण किए भगवान शिव प्रकट हुए.
उन्होंने दैत्यों से कहा, दुष्टों तुम जैसे हत्यारों के लिए ही मैं महाकाल बनकर प्रकट हुआ हूं. मेरे भक्तों से दूर चले जाओ. इस प्रकार महाकाल भगवान शिव ने अपने हुंकार मात्र से ही उन दैत्यों को भस्म कर डाला. दूषण की कुछ सेना को भी उन्होंने मार गिराया और कुछ स्वयं ही भाग खड़े हुए. भगवान शिव ने दूषण नामक राक्षस का वध कर दिया, जिस प्रकार सूर्य के निकलते ही अंधकार दूर हो जाता है, ठीक उसी प्रकार भगवान आशुतोष को देखकर सभी दैत्य भाग जाते हैं. देवताओं ने प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाए और आकाश से फूलों की वर्षा की. महाकालेश्वर ने भक्तों से कहा वर मांगों. भगवान की वाणी सुनकर ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहा-दुष्टों को दंड देने वाले महाकाल शंभु आप हम सबको इस संसार-सागर से मुक्त कर दें. हे भगवान शिव आम जनता के कल्याण तथा उनकी रक्षा करने के लिए यहीं हमेशा के लिए विराजिए. प्रभु आप अपने भक्तों का सदा उद्धार करते रहें. उस गड्ढे के चारों ओर लगभग तीन-तीन किलोमीटर भूमि लिंग रूपी भगवान शिव की स्थली बन गई. भगवान शिव इस पृथ्वी पर महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए. महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का दर्शन करने से स्वप्न में भी किसी प्रकार का दुख अथवा संकट नहीं आता. कोई भी मनुष्य जो सच्चे मन से महाकालेश्वर लिंग की उपासना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कैसे पहुंचे
आप रेल, हवाई और सड़क के रास्ते से जा सकते हैं. आप ट्रेन से जाना चाहें तो देश के किसी भी प्रमुख स्टेशन से इंदौर, रतलाम या भोपाल जा सकते हैं. फिर वहां से बस या टैक्सी लेकर उज्जैन जा सकते हैं. हवाई यात्रा के लिए देश के किसी भी एयरपोर्ट से यहा का नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर है.
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