भारत की दूसरी सबसे बड़ी सेक्स मंडी सोनागाछी की यौनकर्मी सरस्वती विश्वास अब इस बदनाम बस्ती में नहीं रहती. ऊषा मल्टीपर्पज़ को-आपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड से उसने ढाई साल पहले घर ख़रीदने के लिए दो लाख का कर्ज़ लिया. शरीर बेचकर ही सही, पर उसने ढाई साल में सारा कर्ज़ चुका दिया. 31 अगस्त को गिरवी रखे ज़मीन के काग़ज़ात लेने आई सरस्वती के चेहरे पर सिर से एक बड़ा बोझ उतरने की चमक र्सों देखी जा सकती है. बुरे दिनों में काम आने के लिए या इस दलदल से निकलकर बेहतर ज़िंदगी शुरू करने के लिए सरस्वती जैसी हज़ारों पतिताओं में बचत का नशा पैदा हुआ है. आज सरस्वती बरासात के पास एक साफ-सुथरी बस्ती में रहकर अपने दो भाइयों, एक बहन और दो बच्चों का पालन-पोषण कर रही है, हालांकि पेशे के लिए वह आज भी सोनागाछी में चोरी-चोरी आती है, पर समाज की नज़र में उसका सम्मान जस का तस है.
सोनागाछी की ही यौनकर्मी काजल दास ने तय कर लिया था कि वह अपनी बेटी सपना को इस पेशे से दूर रखेगी. मुर्शिदाबाद में एक रिश्तेदार के घर में उसका लालन-पालन हुआ. जवान होने पर उसकी शादी के लिए कुछ रुपये कम पड़ रहे थे. काजल ने दस साल पहले 1500 रुपये का कर्ज़ लिया, जिसे उसने 10.80 प्रतिशत ब्याज दर से 125 रुपये की मासिक क़िश्तों में चुकाया. अगर उसने यह कर्ज़ किसी स्थानीय महाजन से लिया होता, तो उसे हर माह 150 रुपये केवल ब्याज के ही देने पड़ते. बीमारी, बुढ़ापा और आक्सीजन में यौनकर्मियों को इन महाजनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. ये मनमाना नियम बनाते हैं और मनमाना सूद लेते हैं. मिसाल के तौर पर अगर कोई यौनकर्मी 500 रु का क र्ज़ लेती है तो उसे हर दिन 10 रुपये का ब्याज देना पड़ता है. करार के मुताबिक़ दो माह 12 दिन में कर्ज़ चुकाना होता है. अगर इस अवधि से दो-चार दिन भी ज़्यादा हो गये तो ज़ुर्माना लगा दिया जाता है. चटा सूद प्रणाली में 100 रुपये के क र्ज़ पर 30 दिनों तक रोज़ 20 रुपये सूद के देने होते हैं और यह शर्त होती है कि राशि एकमुश्त चुकाई जाएगी. सोचिए अगर कोई यौनकर्मी 1000 का कर्ज़ ले तो उसका कितना आर्थिक शोषण होता होगा. वर्ष 1995 में दुर्वार महिला समन्वय समिति के गठन के साथ ऊषा मल्टीपर्पज़ सोसाइटी भी बनी. हालांकि इसके पंजीकरण में कई बाधाएं आयीं. सोसाइटी के गठन के लिए एक धारा है कि इसे खोलनेवालों का चरित्र अच्छा होना चाहिए. यौनकर्मियों ने विरोध किया कि अच्छे चाल-चलन या चरित्र की कोई तयशुदा परिभाषा नहीं है. इस विवाद को दूर किया बंगाल सरकार के तत्कालीन सहकारिता मंत्री सरल देव ने. इसके अलावा सोसाइटी कम से कम 50 हज़ार रुपये की शुरुआती रक़म जमा करने के बाद ही शुरू की जा सकती है, पर यौनकर्मियों के पास महज़ सात हज़ार रुपए थे. मंत्री महोदय व सरकार के मानवतावादी रुख़ के चलते सोसाइटी का गठन हो पाया. इस तरह वेस्ट बंगाल को-आपरेटिव सोसाइटी एक्ट 1983 के तहत 1995 में सोसाइटी के गठन के बाद के तीन सालों में सदस्य संख्या 13 से बढ़कर 125 हो गयी. मार्च 1997 में सोसाइटी का मुर्नों 25, 343 रुपए दर्ज़ किया गया. वर्तमान में सोसाइटी का कुल कारोबार लगभग 11 करोड़ रुपए का है. पिछले 31 जुलाई तक कुल 3222 यौनकर्मियों ने ढ़ाई करोड़ का कर्ज़ लिया था. अब इसके सदस्यों की संख्या 12884 तक पहुंच गयी है. सोसाइटी की कार्यकारी पूंजी करीब सवा आठ करोड़ की है. सोसाइटी की सचिव ममता नंदी ने बताया कि पूरे राज्य में इसकी 12 शाखाएं खोलने की योजना है. 12 साल पहले केवल 13 सदस्यों को लेकर शुरू की गयी सोसाइटी के सदस्यों की संख्या 20 हज़ार करने का लक्ष्य रखा गया है. सोनागाछी प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ समरजीत जाना ने चौथी दुनिया को बताया कि दुर्गापूजा के बाद कूचबिहार, दीनहाटा, अलीपुरद्वार, इस्लामपुर और कांजीपाड़ा में सोसाइटी की शाखाएं चालू …..
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