भाजपा का राज: इलाहाबाद फिर से हो गया प्रयागराज

kumbh1भारतीय जनता पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रयागराज के कुम्भ को ‘चुनावी महारैली’ की तरह इस्तेमाल करने की तैयारी में है. कुम्भ का अवसर भाजपा के हाथ लग गया है और इसके जरिए वह अपना एकतरफा प्रचार अभियान चलाने और देशभर के लोगों तक अपना प्रभाव पहुंचाने की जबरदस्त कवायद कर रही है. इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने का फैसला भी इसी इरादे से हुआ. धार्मिक आस्था के कारण देशभर से करोड़ों लोग कुम्भ में आएंगे. उन करोड़ों हिन्दुओं तक सीधे पहुंचने और संवाद स्थापित करने का बेहतरीन मौका भाजपा खोना नहीं चाहती. कुम्भ मेले की तैयारी इसी वजह से करीब एक साल पहले से शुरू कर दी गई थी.

लोग इस बार कुम्भ आएंगे तो सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित इलाहाबाद को सम्पूर्ण रूप से व्यवस्थित प्रयागराज के रूप में देख कर जाएंगे. आस्थावान जनसमुदाय में भाजपा के प्रति सकारात्मक भाव को भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट के फायदे के रूप में देखती है. महाकुम्भ की महातैयारी कर रही भाजपा इसका राजनीतिक लाभ केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में देख रही है.

इलाहाबाद में कुम्भ को लेकर पिछले करीब सालभर से तोड़फोड़ चल रही है. पूरे इलाहाबाद को अतिक्रमण मुक्त करने का अभियान चल रहा है. अभी इलाहाबाद को देखें तो आपको किसी युद्ध से गुजरता हुआ इलाहाबाद दिखेगा. हर तरफ टूटी हुई इमारतों के मलबे, इमारतों को ढाहते बुल्डोजरों के शोर, धूल-गर्द और अफरा-तफरी. पूरा शासन-प्रशासन आपको इलाहाबाद में ही केंद्रित और सक्रिय दिखाई देगा.

हर दो-एक दिन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद और उनके मंत्री कुम्भ की तैयारियों का जायजा लेते हुए पाए जाते हैं. शासन के शीर्ष अधिकारियों की आमद-रफ्त लगातार बनी हुई है. राज्यपाल राम नाईक भी चैन नहीं ले रहे, वे भी कुम्भ की तैयारियों को देखने और जानकारियां प्राप्त करते रहने का सिलसिला बनाए हुए हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी.

भोसले भी कुम्भ की तैयारियों में व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं. अभी पिछले ही दिनों इलाहाबाद के सर्किट हाउस में कुम्भ की तैयारियों को लेकर हुई शीर्ष स्तरीय बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ राज्यपाल राम नाईक, मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले, न्यायाधीश विक्रमनाथ और योगी कैबिनेट के कई मंत्री, इलाहाबाद की महापौर और तमाम आला अधिकारी मौजूद थे. बैठक में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी, महामंत्री महंत हरिगिरि समेत कई प्रमुख साधु संत और मार्गदर्शक मंडल के सदस्य भी शामिल थे.

योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभालने के बाद से ही इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की भूमिका बांधनी शुरू कर दी थी. इलाहाबाद में हुई बैठक में राज्यपाल राम नाईक ने भी यह कहते हुए मुहर लगाई कि मेला प्राधिकरण का नाम भी प्रयागराज से ही है. इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने का प्रस्ताव मंगलवार 16 अक्टूबर को कैबिनेट बैठक में पारित कर दिया गया.

इसकी तैयारियों के तहत उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने राज्यपाल राम नाईक को पत्र लिख कर औपचारिक अनुरोध पहले ही पेश कर दिया था. इलाहाबाद की बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि संतों और अन्य प्रमुख लोगों ने इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किए जाने का प्रस्ताव रखा. इसे सरकार पहले ही प्रयागराज मेला प्राधिकरण का गठन कर सैद्धांतिक मंजूरी दे चुकी है. योगी ने उत्तराखंड के कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां कम से कम दो नदियों का संगम होता है, उसे प्रयाग कहा जाता है.

हिमालय से निकलने वाली देवतुल्य दो नदियों का संगम इलाहाबाद में होता है और यह तीर्थों का राजा है. इसलिए इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया जाना उचित है. उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद का नाम पहले प्रयाग ही था, लेकिन मुगल बादशाह अकबर ने वर्ष 1574 में इसका नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया था. इलाहाबाद 444 साल बाद फिर से प्रयागराज हो गया. मायावती और अखिलेश यादव ने भी अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कई जिलों के नाम बदले थे. मायावती ने अपने कार्यकाल में 11 जिलों के नाम दलित महापुरुषों के नाम पर किए थे.

स्पष्ट है कि सारे राजनीतिक दल अपने-अपने शासनकाल में कुम्भ का इस्तेमाल अपने-अपने तौर तरीके से करते रहे हैं. भाजपा के शासनकाल में हो रहे कुम्भ का भाजपा भी अपने तौर-तरीके से राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती है और उसका लाभ उठाने का जतन कर रही है. इसमें कोई दो मत नहीं कि इस बार का कुम्भ धार्मिक नजरिए से भले ही अर्धकुम्भ की श्रेणी में आता हो, लेकिन भव्य-तैयारियों का यह महाकुम्भ ही होने जा रहा है. यही वजह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक यत्र-तत्र-सर्वत्र कुम्भ को लेकर मीडियाई भाषा में ‘हाइप-क्रिएट’ कर रहे हैं.

अर्धकुम्भ को महाकुम्भ किए जाने की सरकारी घोषणा के राजनीतिक निहितार्थ समझ कर विपक्ष के कई दल बौखला उठे. कई नेताओं ने तो इस पर धार्मिक सवाल उठाए और संतों से भी सवाल उठवाए. लेकिन उससे भाजपा की तैयारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. अब विपक्ष भी अपने कोण से कुम्भ के राजनीतिक इस्तेमाल में लग गया है. विपक्ष का कहना है कि भाजपा राम मंदिर मसले को गौण करने के इरादे से कुम्भ पर लोगों का अधिक ध्यान आकृष्ट करने में लगी है.

भाजपा का कहना है कि राम मंदिर और कुम्भ दोनों ही मसले धार्मिक आस्था से जुड़े हैं, राजनीति से नहीं. राम मंदिर का मसला अदालत में है, लेकिन कुम्भ को लेकर विवाद उठाने वाले लोग ही दरअसल राजनीति कर रहे हैं. कुम्भ को लेकर हो रही राजनीति पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘हर चीज को राजनीतिक दृष्टि से देखना उचित नहीं है. कुम्भ धार्मिक आस्था का विषय है और इस पर संसारभर की नजर रहती है. कुम्भ मेले के माध्यम से इस बार स्वच्छ भारत के साथ-साथ एक श्रेष्ठ भारत का भी नजारा देखने को मिलेगा. इसमें राजनीति कहां है!’

लेकिन कुम्भ को लेकर चल रही तैयारियों और लिए जा रहे निर्णयों से राजनीति के कोण को अलग भी नहीं किया जा सकता. कुम्भ मेले के बाद ही देशभर में लोकसभा चुनाव होने वाला है. इस लोकसभा चुनाव में यह सवाल उठ रहा है कि भाजपा ने पांच साल के कार्यकाल में घोषित एजेंडे के मुताबिक क्या-क्या किया. न कश्मीर का मसला सुलझा, न कश्मीरी पंडितों की वापसी हुई, न धारा 370 या 35-ए पर कोई साफ तस्वीर सामने आई. सबसे बड़ा सवाल राम मंदिर को लेकर उठ रहा था, लेकिन भाजपा ने कुम्भ पर पूरी ताकत झोंक कर ‘हिन्दू-सेंटिमेंट’ को दूसरी दिशा में ले जाने का काम किया. चुनाव के वक्त प्रदेश और देशभर के लोगों में कुम्भ की यादें ताजा रहेंगी. एससी-एसटी एक्ट के बेजा इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाने की भाजपा सरकार की हरकत से लोगों में फैले गुस्से पर भी प्रयागराज का पानी डालने की रणनीति अख्तियार की गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कुम्भ के मद्देनजर सैकड़ों निर्माण कार्य हो रहे हैं. इनमें सड़कें, घाट, ओवर-ब्रिज और प्रयाग से जुड़ने वाली सभी सड़कों को अतिक्रमण-मुक्त करने का काम तेज गति से चल रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार मिल कर कुम्भ के आयोजन को अच्छे से अच्छा करने को लेकर दृढ़ है. मुख्यमंत्री ने यह भी दावा ठोका कि 15 दिसम्बर के बाद से गंगा नदी में गंदा पानी नहीं जाएगा और गंगा नदी के किनारे बसे गांवों को खुले में शौचालय से मुक्त ‘ओपेन डेफिकेशन फ्री’ (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया है. उन गावों के लोगों में गंगा को स्वच्छ रखने की जागरूकता भी फैलाई जा रही है.

मुख्यमंत्री ने साधु संतों से भी अपील की कि वे दिवंगत होने वाले साधु-संतों के शरीर गंगा में प्रवाहित न करें. कुम्भ के दरम्यान गंगा की धारा बनाए रखने के इंतजाम किए गए हैं. गंगा में आठ से 10 क्यूसेक जल उपलब्ध रहेगा. इसके अलावा कुम्भ मेले में बिजली, पानी, खाद्य आपूर्ति सहित सारी मूलभूत सुविधाओं का बंदोबस्त किया जा रहा है. करीब 3200 हेक्टेयर में आयोजित होने वाले कुम्भ मेले में स्वच्छता पर खास ध्यान रखा जाएगा. मेले में 1,22,000 शौचालय और 20,000 कूड़ेदान बनाए जा रहे हैं. मेले में 11,400 सफाई कर्मी तैनात किए जाएंगे. मेले में पहली बार विदेशी मुद्रा विनिमय के लिए तीन सेंटर बनाए जाएंगे. इसके साथ ही चार बैंकों की शाखाएं, 20 एटीएम और 34 मोबाइल टावर भी लगेंगे.

कुम्भ के आयोजन से प्रत्येक व्यक्ति को जोड़ने की राजनीतिक दूरंदेशी से प्रत्येक गांव से एक प्रतिनिधि को आमंत्रित किया गया है. इसके लिए स्पेशल ट्रेनें भी चलाई जाएंगी. 192 देशों के प्रतिनिधियों को भी कुम्भ मेले में आमंत्रित किया गया है, जिससे कुम्भ के भव्य आयोजन का प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में हो सके. प्रदेश सरकार कुम्भ मेले के दौरान लाइट-शो, सांस्कृतिक विरासत दर्शानेवाली पेंटिंग्स, प्रदर्शनी, डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माण के आयोजन के साथ-साथ देश दुनिया में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए वृहद मीडिया समागम की भी तैयारी में है. कुम्भ के दौरान लोग पहली बार किले के अंदर मौजूद अक्षय वट और सरस्वती के दर्शन भी कर पाएंगे.

48 दिन तक चलने वाले इस आयोजन से जुड़ी 445 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. कुम्भ मेले के लिए रोडवेज की 10 हजार बसें लगाई जाएंगी. रेल और सड़क मार्ग पर समुचित परिवहन सुविधा के साथ-साथ प्रयागराज को जल मार्ग से भी जोड़ा जाएगा. इलाहाबाद को हवाई मार्ग से जोड़ने का काम पूरा हो चुका है. कुम्भ मेले में विदेशी पर्यटकों के लिए छतनाग के आसपास टेंट सिटी बसाई जा रही है, जहां करीब पांच हजार कॉटेज बनाए जाएंगे और सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्‌डों पर विदेशी भाषाओं के जानकार गाइडों की तैनाती की जाएगी.

इस बार के कुम्भ मेले में 193 देशों से करीब 10 लाख पर्यटकों के आने की संभावना है. इनके आवागमन के लिए इलाहाबाद से वाराणसी के बीच शताब्दी स्तर की दो ट्रेनें चलाने की योजना है. इसके लिए ट्रैक को दुरुस्त करने का काम हो रहा है. इलाहाबाद से वाराणसी के बीच सड़कों पर फ्लाईओवर बनाने का काम हो रहा है. सड़कों को भी चौड़ा किया जा रहा है. इलाहाबाद में रेल मंत्रालय कुल 2,300 करोड़ की योजनाओं पर कार्य कर रहा है. इसके साथ ही केंद्रीय सड़क मंत्रालय भी 2,000 करोड़ रुपए की लागत से इलाहाबाद आने वाले मार्गों को दुरुस्त कर रहा है. इलाहाबाद में गंगा नदी पर 1905 में बने कर्जन रेलवे ब्रिज को स्काई-वॉक के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव भी है.

देश में केवल आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी स्थित गोदावरी नदी पर बने ब्रिज पर ही स्काई-वॉक की सुविधा मौजूद है. कुम्भ से पहले गंगा में इलाहाबाद से हल्दिया के बीच रिवर ट्रैफिक की शुरुआत हो रही है. केंद्र इस योजना पर 5,500 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है. शहर में इसके चार टर्मिनल बनाए जाएंगे. मेला क्षेत्र में 20 सेक्टर होंगे. हर सेक्टर में हजार से दो हजार तक रैन बसेरे बनेंगे. मेले के दौरान शहर के सभी प्रमुख ऐतिहासिक स्मारकों को बिजली से रौशन किया जाएगा. कुम्भ मेले में 12 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना जताई जा रही है.


आस्था की ज़मीन पर सियासत की फसल उगाने की तैयारी

2019 के लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में लोगों को व्यापक पैमाने पर अपने साथ भावनात्मक स्तर पर जोड़ने के लिए भारतीय जनता पार्टी हिन्दू आस्था से गहरे जुड़े कुम्भ को इस बार विशाल, विशेष और व्यक्तित्व केंद्रित करने की योजना बना रही है. कुम्भ के केंद्र में इस बार आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव, योग गुरु बाबा रामदेव, गंगा मुक्ति अभियान के गुरु स्वामी चिदानन्द सरस्वती समेत देश-दुनिया के प्रसिद्ध संत-महात्माओं के अलावा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत रहेंगे. इस बार भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्री 2019 के प्रयाग कुम्भ में शामिल हो रहे हैं.

कुम्भ मेला चार फरवरी 2019 से चार मार्च 2019 तक चलेगा. आध्यात्मिक तौर पर इस बार का कुम्भ अर्धकुम्भ की श्रेणी में है, लेकिन सरकार ने उसे पूर्ण कुम्भ का दर्जा दे दिया है. स्वाभाविक है कि इस महायोजन के पीछे 2019 के लोकसभा चुनाव की राजनीतिक मंशा निहित है. इस बार के कुम्भ में आध्यात्मिक संत-महात्माओं के अतिरिक्त बड़े राजनीतिक व्यक्तित्वों का भी जमावड़ा लगने जा रहा है. 2019 का कुम्भ एक बड़े राजनीतिक अखाड़े के रूप में दिखेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कई विश्व स्तरीय नेता भी कुम्भ में दिखेंगे. लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हो रहे कुम्भ मेले का भाजपा पूरा राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है, इसलिए मेले के आयोजन में धन की कोई दिक्कत नहीं होने दी जा रही है


.जंगल के पेड़ काट कर मनाएंगे हरित-कुम्भ..!

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बार कुम्भ मेले को हरित-कुम्भ के रूप में भी मनाने का दावा किया था. इसके लिए योगी की उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद सरस्वती के साथ बैठक भी हुई थी. तब योगी ने कहा था कि गंगा के किनारे-किनारे के क्षेत्र में जंगल लगाए जाएंगे. लेकिन सारे दावे ढाक के तीन पात ही साबित हुए. हरित-कुम्भ के दावे के बरक्स कुम्भ मेले की तैयारियों के लिए लकड़ी की जरूरतें लखीमपुर खीरी के संवेदनशील टाइगर जोन के वन से पूरी की जा रही हैं. लखीमपुर खीरी वन रेंज के बफर जोन में लकड़ी की कटाई अंधाधुंध हुई. लखीमपुर के दुधवा टाइगर रिजर्व के बफर जोन के भीरा और मैलानी रेंज की लकड़ियां इलाहाबाद भेजी गईं. इन्हीं लकड़ियों से अस्थाई पुल बनाए जा रहे हैं.

लकड़ी की सप्लाई उत्तर प्रदेश वन निगम के जरिए हो रही है. इलाहाबाद के लोक निर्माण विभाग ने वन निगम के महाप्रबंधक को 14 फुट के 400 और 12 फुट के 100 स्लीपरों की औपचारिक मांग भेजी थी. ये सारे स्लीपर दुर्लभ साल की लकड़ी के होंगे. वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि कटान में छायादार परिपक्व पेड़ भी अंधाधुंध काटे गए. इसी बहाने भ्रष्ट वन अधिकारियों और स्थानीय अधिकारियों के भी वारे-न्यारे हुए. कटे हुए पेड़ों की कटाई-छंटाई लखीमपुर के निकट छाउछ की आरा मशीनों पर कराई गई. इसी चक्कर में दुधवा टाइगर रिजर्व से जुड़े मैलानी रेंज की खरेटहा बीट कंपार्टमेंट 9,7 और 1-ए के अलावा दक्षिण भीरा कंपार्टमेंट 14 और 15 में टाइगर कंजर्वेशन योजना के तहत लगे पेड़ों की भी कटान हो गई.


कुम्भ के धन पर पसरे भ्रष्टाचार के कुम्भकर्ण

कुम्भ की तैयारियों को लेकर प्रदेश और केंद्र दोनों सरकारों ने खजाना खोल रखा है. लेकिन भ्रष्ट अधिकारी और दलाल धर्म-धन को भी हड़पने का पाप करने से परहेज नहीं कर रहे. ‘पापियों’ कुम्भ की तैयारियों की शुरुआत ही वाहनों और उपकरणों की खरीद में घोटाले के साथ की. इलाहाबाद नगर निगम ने कूड़ा उठाने वाले वाहनों की खरीद में घोटाले किए. इलाहाबाद की महापौर योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता नंदी हैं. वाहनों की खरीद के लिए टेंडर प्रक्रिया में शामिल महेंद्रा एंड महेंद्रा कंपनी के रिजनल मैनेजर ने इलाहाबाद के कमिश्नर को पत्र लिखकर घपले की जांच कराने की मांग कर दी.

रिजनल मैनेजर ने उस पत्र की प्रति मुख्यमंत्री, नगर विकास मंत्री और शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव को भी भेज दी. शिकायत में कहा गया कि टेंडर प्रक्रिया में महेंद्रा एंड महेंद्रा गाड़ियों की कीमत सबसे कम दी गई थी, लेकिन कम दर देने के बावजूद नगर निगम ने टाटा कंपनी के वाहन खरीदने को मंजूरी दे दी. केवल इस एक फैसले से इलाहाबाद नगर निगम को दो करोड़ 37 लाख 26 हजार 658 रुपए का नुकसान हुआ.

इसी तरह कुम्भ के लिए पीडब्लूडी के ठेकों में भी खूब अनियमितताएं हुईं. साल की लकड़ी के स्लीपरों की खरीद में नियमों की अनदेखी कर अत्यंत महंगे दाम पर खरीद की गई. इसकी शिकायत अदालत तक पहुंची. कुम्भ के लिए संगम पर बनाए जाने वाले पैन्टून पुलों के लिए साल की लकड़ी के स्लीपरों की खरीद में हुए घोटाले के खिलाफ लखनऊ के एक एनजीओ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल कर के सीबीआई जांच की मांग की. कुम्भ में पैन्टून पुलों के लिए अरुणाचल प्रदेश वन निगम के जरिए कोलकाता की दो निजी फर्मों से लकड़ी खरीदी जा रही है.

गुवाहाटी हाईकोर्ट तक मामला ले गई गैर सरकारी संस्था ‘नेशनल एसोसिएशन फॉर वेलफेयर ऑफ यूथ’ का कहना है कि दोनों फर्मों को 88 करोड़ की खरीद का ठेका बिना किसी टेंडर के ही दे दिया गया. दूसरे राज्यों की तुलना में प्रति घन मीटर 250 रुपए अधिक कीमत देकर अरुणाचल से यह लकड़ी खरीदी गई. पंजाब ने साल के स्लीपर के लिए प्रति घन मीटर 1,57,964 रुपए का रेट दिया था, लेकिन पीडब्लूडी के अफसरों ने अरुणाचल से 1,58,250 रुपए पर स्लीपर खरीदने का निर्णय कर लिया. एडवांस के तौर पर बिना बैंक गारंटी के 20 करोड़ रुपए अरुणाचल को दे भी दिए. संस्था का कहना है कि अब तक 50 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं. जबकि महज 25 करोड़ की लकड़ी की आपूर्ति हो सकी है. 15 अक्टूबर तक सारे स्लीपरों की सप्लाई हो जानी थी, लेकिन नहीं हुई.

यह भी विचित्र ही है कि लकड़ियों की खरीद की प्रक्रिया से वन विभाग को अलग रखा गया. जबकि वर्ष 2013 के कुम्भ में दूसरे प्रांत से लकड़ी खरीदने के लिए यूपी वन निगम को नोडल संस्था बनाया गया था. लेकिन उस नियम को ताक पर रख कर पीडब्लूडी के अफसरों ने इस साल अरुणाचल प्रदेश वन निगम से सीधे संवाद साधा. यूपी वन निगम के प्रबंध निदेशक ए के द्विवेदी ने इस बार भी कुम्भ के लिए पंजाब से लकड़ी खरीदने की सिफारिश की थी. घोटाले पर सरकार चुप्पी साधे है. कुम्भ मेले की तैयारियों से जुड़े अधिकारी यह मानते हैं कि स्लीपर की खरीद में घोटाले की शिकायत मिली है और मामले की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी गई है. इसके आगे अधिकारी कुछ भी नहीं कहते.

कुम्भ मेले में सड़क सुरक्षा संकेतकों की खरीद के लिए दिए गए ठेके में भी एक अमेरिकी कंपनी को भरपूर फायदा पहुंचाने का आरोप है. अभी कुम्भ शुरू भी नहीं हुआ कि कुम्भ के घोटालों की सीबीआई से जांच कराने की मांग भी होने लगी. कुम्भ की तैयारी के तहत सड़कों पर लगाए जाने वाले सुरक्षा संकेतकों की प्री-बिड में अमेरिकी कंपनी को खूब फायदा पहुंचाया गया. प्री-बिड में आधा दर्जन विभिन्न कंपनियों ने हिस्सा लिया था. अमेरिकी कंपनी के आगे अधिकारियों के ‘नतमस्तक’ होने के बारे में मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव समेत कई अन्य अधिकारियों को बताया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.


आस्था के नाम पर सपाई खा गए थे लाखों का नाश्ता

2019 के कुम्भ की तैयारियों को लेकर हुई प्राथमिक दो बैठकों में ही सपा सरकार के मंत्री और अफसरों ने मिल कर दो लाख 67 हजार 400 रुपए का खाना और नाश्ता चट कर लिया था. सपा सरकार जाने ही वाली थी, तो मंत्री और अफसर सत्ता जाते-जाते भी कुछ बटोर लेना चाहते थे. दिसम्बर 2016 में मुख्य सचिव की बैठक और अखाड़ा परिषद के साथ जिला प्रशासन की बैठक में खाने और नाश्ते के नाम पर घोटाला किया गया. भोजन और नाश्ते पर अनापशनाप कीमतों को दर्ज कर उसका भुगतान कर दिया गया. मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में 1200 रुपए प्रति प्लेट की दर से 150 लोगों ने खाना खाया.

इसका बिल एक लाख 80 हजार रुपए आया. अखाड़ा परिषद के साथ हुई बैठक में नाश्ते पर 87,400 रुपए का खर्च दिखाया गया. उसी दिन गंगा पूजन के नाम पर भी सवा तीन लाख रुपए खर्च किए गए. 29 संत महात्माओं को शॉल देने के नाम पर 1.60 लाख रुपए खर्च किए गए. इलाहाबादी अमरूद की खरीदारी पर 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हजारों रुपए का खर्च दिखाया गया और 57 हजार रुपए के लड्‌डू प्रसाद के लिए मंगवाए गए.


सपा-काल में भी हड़पा गया था कुम्भ का धन

सत्ता गलियारे के उच्च पदस्थ अधिकारी कहते हैं कि कुम्भ मेले के बाद कुम्भ का धन खाने का अध्याय खुलेगा. इसके पहले सपा के शासनकाल में कुम्भ का धन हड़पे जाने की मोटी फाइल सरकार के पास लंबित है. कुम्भ-भ्रष्टाचार की फाइलें खुलेंगी तो दोनों काल के भ्रष्टाचार सामने आएंगे. सपा काल की अनियिमतताएं तो काफी हद तक उजागर हो चुकी हैं.

सपा सरकार के कार्यकाल में हुए कुम्भ मेला घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग होती रही है. महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट में भी सपा कार्यकाल के कुम्भ मेला घोटाले की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. कुम्भ मेले के कर्ताधर्ता तत्कालीन मंत्री आजम खान थे. सपा सरकार के कार्यकाल में 14 जनवरी 2013 से 10 मार्च 2013 तक इलाहाबाद के प्रयाग में महाकुम्भ हुआ था. कुम्भ मेले के लिए अखिलेश सरकार ने 1,152.20 करोड़ दिए थे.

कुम्भ मेले पर 1,017.37 करोड़ रुपए खर्च हुए. यानि, 1,34.83 करोड़ रुपए बच गए. अखिलेश सरकार ने इसमें से करीब हजार करोड़ (969.17 करोड़) रुपए का कोई हिसाब (उपयोग प्रमाण पत्र) ही नहीं दिया. अखिलेश सरकार ने कुम्भ मेले के लिए मिली धनराशि में केंद्रांश और राज्यांश का घपला करके भी करोड़ों रुपए इधर-उधर कर दिए.

कुम्भ मेले में अनियमितताओं को लेकर कैग ने तत्कालीन सपा सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे. अखिलेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान कुम्भ मेला आयोजन कमिटी के अध्यक्ष थे. अखिलेश सरकार ने पूरा मेला केंद्र सरकार के धन से ही निपटा दिया और पूरा श्रेय खुद ले लिया. जबकि 70 फीसदी खर्च राज्य सरकार के जिम्मे था.

अफसरों ने कागजों में एक ही वक्त में कई मजदूरों को दो-दो जगह काम करते दिखाया. ऐसा ही ट्रैक्टरों के साथ किया गया और सरकारी फाइलों में एक नम्बर के ट्रैक्टर से एक साथ दो जगह काम दिखाया गया. मेले में सड़क चौड़ी करने, मरम्मत से लेकर घाटों के निर्माण, बैरिकेडिंग तक हर काम में घोटाला हुआ.

अफसरों ने ठेकेदारों की कमाई कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सीएजी रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई थी. रिपोर्ट में शहर, मेला स्थल और रेलवे स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की गई थी, लेकिन सभी कंट्रोल रूम आपस में जुड़े ही नहीं थे. इस वजह से रेलवे स्टेशन पर पुलिस को शहर की भीड़ का अनुमान नहीं लगा और हादसा भी हो गया था. कुम्भ के लिए खरीदी गई दवाओं में आधी से ज्यादा का इस्तेमाल नहीं हुआ.


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