ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, इंडिया की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश को कई वर्षों से लगातार देश के अतिभ्रष्ट राज्यों की बिरादरी में शामिल किया जाता रहा है, लेकिन राज्य सरकार के कर्णधारों और समाज के ठेकेदारों को अपनी बदनामी का यह प्रमाणपत्र देखकर भी शर्म नहीं आती. इस रिपोर्ट को लेकर सत्ताधारी भले ही आपत्ति करें, असहमति जताएं, लेकिन आएदिन राज्य शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार के मामले जिस प्रकार खुलकर सामने आते हैं, उनसे तो यही पता चलता है कि मध्य प्रदेश इस देश का सर्वाधिक भ्रष्ट राज्य है.
प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए पुलिस, लोकायुक्त और दूसरे कई सरकारी विभाग काम करते हैं. कुछ मामले उजागर भी होते हैं, लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचार बरकरार है. हाल ही में लोकायुक्त-पुलिस ने धार में पदस्थ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री अजय कुमार श्रीवास्तव के इंदौर स्थित निवास पर छापा मारा और वहां लगभग पांच करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का पता चला.
इंदौर संभाग में शाजापुर के कार्यपालन यंत्री चंद्रमोहन गुप्ता, आर सी चौदाह, मंडला के उपयंत्री आर सी टेमरे, टाइमकीपर रमेश मालवीय, ग्वालियर के कार्यपालन यंत्री के सी अग्रवाल, वी के जैन, रतलाम के कार्यपालन यंत्री तिवारी, ग्वालियर के सहायक यंत्री आर एस भदौरिया, जी एस अग्रवाल, मुरैना के सहायक यंत्री ओ पी गुप्ता और टीकमगढ़ के कार्यपालन यंत्री राजेंद्र प्रसाद सुहाने के अलावा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कई छोटे-बड़े अफसरों के खिला़फ घपलों-घोटालों के मामले लोकायुक्त में चल रहे हैं. आम जनता को पानी पिलाने की सेवा देने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की कार्यशैली इतनी गड़बड़ है कि जनता को चाहे पानी मिले या न मिले, लेकिन अफसरों के घर सदा पैसों की बारिश होती रहती है.
11 लाख रुपये के पत्थर स्कूटर पर ढोए : बाण सागर सिंचाई एवं जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में जल संसाधन विभाग के कई इंजीनियरों पर घपलों-घोटालों का आरोप लग चुका है. विभाग के छोटे अधिकारियों ने तो भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान क़ायम कर डाले हैं. बाण सागर परियोजना के कटनी वन मंडल में लगभग 10 हज़ार हेक्टेयर वन क्षेत्र और ग़ैर वन क्षेत्र में भूमि कटाव रोकने के लिए 4.50 करोड़ रुपये की एक परियोजना मंजूर हुई थी. इसके तहत खेतों में मेढ़ बंधन, नदी के रास्ते पर पत्थरों की भराई और वृक्षारोपण के लिए बीज छिड़काव आदि काम होने थे, लेकिन इन सभी कामों में जमकर लूट हुई. वन मंडल अधिकारी स्तर के एक अफसर ने 11 लाख रुपये के पत्थर खरीदने और उनकी ढुलाई बजाज स्कूटर द्वारा करने के प्रमाण लगाकर हिसाब-किताब पूरा कर दिया. एक नागरिक की शिकायत पर उच्चाधिकारियों ने जब जांच की तो भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. इस मामले में एक रेंजर भी संदेह के घेरे में आया. बाण सागर परियोजना की नहरों से जल रिसाव रोकने के लिए पिचिंग बनाने के लिए 11 लाख रुपये के पत्थरों की ढुलाई के भुगतान के बिलों की जब जांच की गई तो पता चला कि पत्थरों की ढुलाई 3 किलोमीटर तक ट्रकों के ज़रिए की गई. जिन ट्रकों के नंबर दिए गए थे, ट्रांसपोर्ट अधिकारी कार्यालय से मालूम हुआ कि वे स्कूटर और मोटरसाइकिल के हैं. इस प्रकार स्कूटर और मोटरसाइकिल से हज़ारों टन पत्थर ढोने का कमाल कर दिखाया गया.
मुर्दों को लाखों रुपये का भुगतान : बाण सागर परियोजना क्षेत्र की कृषि भूमि को पानी के रिसाव से बचाने के लिए खेतों में मेढ़ बनाने का काम सरकारी सहायता से किया गया. लेकिन यह काम कितना काग़ज़ी हुआ है, इसका प्रमाण इसी से मिलता है कि मेढ़ बंधन का काम उन किसानों ने किया, जिनकी मृत्यु वर्षों पहले हो चुकी है. जांच में पता चला कि मेढ़ बंधन की मज़दूरी के रूप में वन विभाग ने 32 लाख रुपये का भुगतान कर डाला. यह भुगतान ज़्यादातर उन किसानों के नाम हुआ, जिनकी मृत्यु हो चुकी है.
नमक और हल्दी की खाद : वृक्षारोपण के लिए पौधों की जड़ों में वन विभाग ने 3 लाख रुपये की हल्दी और नमक की खाद डालने का कमाल किया. जबकि खाद के रूप में कभी हल्दी और नमक का इस्तेमाल नहीं होता.
कपिलधारा कार्यक्रम में घोटाला : राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण इलाक़ों में जल स्रोतों के संरक्षण और नए जलस्रोत तैयार करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश में कपिलधारा कार्यक्रम चलाया जा रहा है, लेकिन यह कार्यक्रम भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ रहा है. सतना ज़िले के उचेहरा जनपद की ग्राम पंचायत मानकपुर में दस साल पहले बने एक पुराने कुंए को नवनिर्मित कुंआ बताकर सरकार से 70 हजार रुपये की सहायता ले ली गई. इस मामले में सरपंच और सचिव के साथ सरकार के सहायक अभियंता भी शामिल बताए जाते हैं.
खनिज रॉयल्टी चोरी : मध्य प्रदेश में खनिज उत्खनन और व्यापार में भ्रष्टाचार की जड़ें पाताल तक फैली हुई हैं. सरकारी अफसरों की मिलीभगत से खनिज ठेकेदार और व्यापारी मालामाल हो जाते हैं तथा सरकारी खज़ाने को हर साल करोड़ों रुपये की खनिज रॉयल्टी का चूना लगता है. पिछले दिनों कटनी में 80 लाख रुपये से अधिक की रॉयल्टी चोरी करने वाले रेलवे के एक खनिज ठेकेदार को राज्य के खनिज विभाग ने संरक्षण देकर यह बता दिया है कि रॉयल्टी चोरी कोई गंभीर मामला नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो ने इस मामले में जालसाजी का अपराध दर्ज़ कर लिया है. भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार, कटनी में ठेकेदार के पी अवस्थी ने वर्ष 2003 से 2009 के बीच रेलवे को 3 लाख 12 हज़ार 625 घनमीटर गिट्टी की आपूर्ति की थी. आपूर्ति के समय ही ठेकेदार ने गिट्टी की खनिज रॉयल्टी खनिज विभाग में जमा होने की रसीद भी दी थी, जो मंडल रेल प्रबंधक (कार्य.) मध्य रेल जबलपुर के नाम से थी. ठेकेदार के फर्ज़ीवाड़े का उस समय खुलासा हुआ, जब रेलवे ने अंतिम बिलों के भुगतान के पूर्व कलेक्टर (माइनिंग) कटनी द्वारा रॉयल्टी भुगतान का परीक्षण कराया. जांच करने पर पता चला कि रेलवे ठेकेदार ने रॉयल्टी की जो नौ रसीदें मंडल रेल प्रबंधक (कार्य.) जबलपुर को भेजी थीं, उनमें से सात फर्ज़ी थीं. खनिज विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से हुई रॉयल्टी चोरी के मामले में एक शिकायत के बाद राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को जांच में ठेकेदार के खिला़फ 81 लाख 20 हज़ार 312 रुपये की रॉयल्टी चोरी के साक्ष्य मिले. जांच अधिकारियों ने पाया कि सरल क्रमांक 3 से 9 तक की रॉयल्टी क्लियरेंस सर्टिफिकेट न तो खनिज कार्यालय कटनी द्वारा जारी किए गए हैं और न ही इन दस्तावेजों पर खनिज विभाग के किसी अधिकारी-कर्मचारी के हस्ताक्षर या लिखावट के कोई सबूत हैं. ईओडब्ल्यू ने आरोपी ठेकेदार के खिला़फ धारा 420, 467, 468, 471 और खान खनिज विकास विनियमन अधिनियम की धारा 4(1) एवं धारा 21, मप्र गौण खनिज अधिनियम की धारा 53 के तहत अपराध दर्ज़ किया है.
बांध में दरार : निर्माण कार्यों की गुणवत्ता में अगर कमी आती है तो उससे वहां हुए भ्रष्टाचार की पोल खुल जाती है. मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में घोड़ाडोंगरी ब्लाक के ग्राम शोभापुर में सरकारी जल संसाधन विकास विभाग ने एक बांध बनाया था और हर साल वह इस बांध की मरम्मत भी करता है, लेकिन 2006 में हुई तेज़ बारिश से बांध में दरारें पड़ गईं. विभाग के इंजीनियरों ने फौरी तौर पर दरारों की मरम्मत करके बांध को मज़बूत बनाने का दावा किया, लेकिन दो वर्ष बाद ही इस बांध में फिर से दरारें दिखाई देने लगी हैं. दरारों से पानी का रिसाव हो रहा है और किसानों को सिंचाई के लिए पानी दिया जाना बंद हो गया है, क्योंकि बांध की सुरक्षा के लिए विभाग ने इस वर्ष जल स्तर में दो मीटर की कमी कर दी है. दूसरी ओर बांध क्षेत्र के कई ग्रामीण अपना घर छोड़कर दूर जा बसे हैं. उनका कहना है कि दरारें पड़ने से बांध कमज़ोर हो गया है और वह कभी भी टूट सकता है.