लॉक डाउन के चलते अपनों से न मिल पाने का मलाल, अब पूरी होंगी तमन्ना
भोपाल। करीब 50 दिन पूरे कर लॉक डाउन दबे कदमों से घर वापसी करने वाला है। इसके साथ ही अनलॉक की आजादियां और बिना पाबंदी की जिंदगी के दौर की कल्पना की जाने लगी है। आर्थिक और बाजारी व्यवस्थाओं के दुरुस्त होने के साथ अब उन महिलाओं और युवतियों के दिलों में भी अपनों से मिलने की उम्मीदें सिर उठाने लगी हैं, जो मायके से दूर ससुराल या कामकाजी व्यस्ताओं के चलते अपने घरों की तरफ कदम नहीं बढ़ा पाईं थीं। पहली जून से होने वाले अनलॉक के साथ इन्होंने अपने जरूरी कामों में सबसे पहले अपनों से मिलने की योजना बनाई है।
नाम ऐमन जफर
सुसराल इंदौर
मायका भोपाल
अचानक आए लॉक डाउन के फैसले ने मायके से मुलाकात की राह रोक रखी थी। इंदौर से भोपाल तक आना मुश्किल नहीं था, लेकिन पति और ससुर को घर में अकेले छोड़कर आने में इस बात की चिंता बनी हुई थी कि उनकी गैरमौजूदगी में खाने-पीने का क्या होगा। आम दिन होते तो खाने के इंतजाम होटल से हो जाया करते हैं, लेकिन लॉक डाउन में सबकुछ बंद होने के चलते यह संभावना भी छूटी हुई थी। इधर लॉक डाउन के दौर में मायके पहुंच जाने के बाद भी सिर्फ घर में कैद होकर रह जाने की बंदिशें थीं, जबकि मुश्किल से मिल पाने वाले समय में इस बात की कोशिश रहती है कि एक सफर में सभी अपनों से मुलाकात हो सके। ऐमन जफर कहती हैं कि अब सब कुछ सामान्य हो जाए तो अपनों से मिलने की कसक पूरी हो जाए और जिंदगी जीने के लिए नई तरावट हासिल हो सके।
नाम ममता यादव
कार्यस्थल भोपाल
मायका सागर
वैसे तो लंबे समय से अपने घर से दूर भोपाल में जॉब और खुद का कारोबार कर रही हैं। इस बीच जब भी अपनों से मिलने का ख्याल मन में आता था, तत्काल रवानगी हो जाया करती थी। लेकिन लॉक डाउन ने रास्ते रोके और ऐसे रोके कि अपनों की संगत की उम्मीदें ही छूटती गईं। लॉक डाउन के दौर में सफर पर पाबंदी नहीं थी, फिर भी इस बात का खौफ बना रहता था कि ऐसे हालात में बस या ट्रेन का सफर खुद के लिए और उससे ज्यादा अपनों के लिए किसी मुश्किल का कारण न बन जाए। ममता यादव कहती हैं कि अपनों से मुलाकात के मायने लंबी कार्य ऊर्जा होती है। दो माह से अपनों के बीच में न जा पाना एक अजीब सी नीरसता जैसा बन गया है। अनलॉक के फौरन बाद घर जाकर अपनों के बीच कुछ समय बिताने का इरादा है ताकि अपनों को भी खुशी मिल सके और अपने लिए भी तसल्ली की व्यवस्था हो सके।
नाम डॉ. इरशाद खानम
निवास उज्जैन
मुलाकात भोपाल
लॉक डाउन के हालात ने अपनों से मुलाकात, उनकी खैर-खैरियत और उनके दुख-सुख की शिरकत से कदम रोक रखे हैं। दो महीने के इस काल में कई मुश्किलें गुजर चुकीं, कई अपने जुदा हो गए, कुछ लोग बीमार भी हुए, जिनकी खैरियत लेने जाना जरूरी था, लेकिन हालात ऐसे नहीं थे कि कहीं जाया जा सके। डॉ. इरशाद कहती हैं कि कोरोना काल ने जिंदगी के तरीके ही बदल दिए हैं। न अपनों से मुलाकात के रास्ते और न ही तफरीह या सुकून के दो पल। अब अनलॉक की तरफ बढ़ते हालात से उम्मीद है कि सबकुछ पहले की तरह सामान्य होगा। वे कहती हैं कि पाबंदियों के हटने के साथ सबसे पहले उन्हें भोपाल पहुंचकर अपने करीबी लोगों से मुलाकात करना है, उनके दुख-दर्द को साझा करना है। दो माह से रुके इस जरूरी काम को अब पूरा करना ही सुकून दे पाएगा।