मेरे चले जाने के बाद कोई भी एक व्यक्ति मेरा प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेगा, परंतु मेरा थोड़ा-थोड़ा अंश तुममें से अनेकों में रहेगा. यदि तुममें से प्रत्येक व्यक्ति ध्येय को प्रथम और स्वयं को अंतिम स्थान देगा, तो मेरे रिक्त स्थान की बहुत कुछ पूर्ति हो जाएगी. -गांधी.
उपरोक्त उद्धरण ‘बापू की शहादत’ शीर्षक से सर्वोदय जगत संख्या-40, में प्यारे लाल जी के लेख के आरंभ मे उद्धृत है. मुझे इस उद्धरण ने झकझोर दिया. बापू को अपने और अपने लोगों पर कितना गहरा विश्वास था. यह तो सही है कि उनके जाने के बाद कोई उनका प्रतिनिधित्व नहीं कर पाया. क्षमा कीजिए, संत विनोबा जी भी उनके संपूर्ण प्रतिनिधि नहीं थे, यद्यपि थे. मैं न एक एक्टिविस्ट हूं, न उस तरह से दीक्षित गांधीवादी हूं. एक लेखक हूं. उसी के चलते मैंने उनके बारे में लिखने का साहस किया. लेकिन मैं उनके वक्तव्य के दूसरे अंश के बारे में भारी हृदय से कहने की अनुमति चाहता हूं कि उनके इस विश्वास पर शायद हम खरे नहीं उतरे, उनका थोड़ा बहुत भी जो अंश है, उसको प्रमाणित करने में असफल रहे. उनके रिक्त स्थान की पूर्ति तो पूर्ति, उनके सम्मान की यथोचित रक्षा तक नहीं कर पाए.
हालांकि मैं यह जानता हूं कि हम जैसे नगण्य लोग, ध्येय को अपने से आगे नहीं रख पाए. इसके अनेक कारण हो सकते हैं, शायद वे व्यक्तिगत अधिक हैं. बापू समष्टिवादी थे और हैं, हम में से अधिकतर व्यक्तिवादी और स्वार्थी हैं. मैं अंदर ही अंदर यह मानता हूं कि हम बापू के सम्मान की या उनके इस संकल्प की रक्षा नहीं कर सके, वैसे उन्हें हमारे सहारे की आवश्यकता थी भी नहीं. जो यह समझते हैं कि हमारे किए उनका सम्मान बढ़ेगा या वे लोग जो सदा से विरोधी रहे, उनका अवमूल्यन कर देंगे, वे सब भ्रम में हैं. गांधी सेवा, त्याग,अहिंसा और समानता, शांति, समता और समन्व्य की सामर्थ्य से संपन्न हैं. वे लोग जो उनके गुणों के प्रति नकारात्मक रुख़ रखते हैं,जानते हैं कि वे चाहे जितनी ऊंची प्रतिमाएं गढ़वा लें, पर बापू का कृतित्व उन सब प्रतिमाओं से निरंतर ऊंचा होता जाएगा.
शायद माउंटबेटन हमसे अधिक जानते थे. जिस दिन बापू की हत्या हुई थी, वे उसी दिन मद्रास से लौटे थे. सीधे बिड़ला भवन पहुंचे थे,जहां बापू का शव था. इतनी भीड़ थी कि मुश्किल से अंदर जा सके थे. जब अंदर गए तब उनके चारों तरफ़ भीड़ इकट्ठी हो गई. एक युवक ने गुस्से से कहा, जिसने गांधी की हत्या की वह मुसलमान था. किसी कट्टरवादी का वाक्य रहा होगा. माउंटबेटन का जवाब था, ‘मूर्ख, सब कोई जानता है कि जिसने गांधी को मारा वह हिन्दू था.’ उनके स्टाफ़ में से किसी ने पूछा, ‘सर आप कैसे जानते हैं कि वह हिन्दू था?’ माउन्टबेटन का जवाब था, ‘जरूर वह हिन्दू ही होगा, मुसलमान होता तो सत्यानास हो जाता.’ माउन्टबेटन ने बिना सूचना के यह समझ लिया था कि हत्यारा हिन्दू था. यह बात देश के तब की हालत को पूरी तरह रेखांकित करती है.