गांधी जी की यह प्रतिमा उनकी 1931 वाली उस तस्वीर के आधार पर बनाई जा रही है, जिसमें वह 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर खड़े हैं. तस्वीर में गांधी जी एक मोटी शॉल ओढ़े हुए हैं और धोती घुटनों तक पहुंची हुई है. अगले साल जब इस नौ फीट की प्रतिमा का अनावरण होगा, तो इस स्थान पर यह पहली प्रतिमा होगी, जो नंगे पैर होगी.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लंदन को बहुत ज़्यादा क्षति हुई थी. पार्लियामेंट और वेस्टमिनिस्टर एब्बी पर भी बम बरसाए गए थे. युद्ध समाप्त होने के बाद प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने एब्बी के पुनर्निर्माण के लिए देश के हर नागरिक से एक पाउंड का सहयोग देने की अपील की थी. उन दिनों एक पाउंड की रक़म आज के सौ पाउंड के बराबर थी. एब्बी के पुनर्निर्माण के लिए वह लाखों पाउंड इकट्ठा करने में सफल हुए थे.
एब्बी से लगे हुए पार्लियामेंट चौराहे पर चर्चिल की प्रतिमा स्थापित है. यह एक रौबदार और बड़ी प्रतिमा है, जिसका रुख दक्षिण दिशा में है. दक्षिण दिशा से ही लंदन पर हमले हो रहे थे. हालांकि इस चौराहे पर यह सबसे बड़ी प्रतिमा नहीं है, लेकिन सबसे किनारे होने और बाहर की तरफ़ इसका रुख होने की वजह से यह इस चौराहे की सबसे अधिक दिखाई देने वाली प्रतिमा है. इसका निर्माण आम जनता के चंदे से हुआ था, क्योंकि इस देश में करदाताओं के पैसों से मूर्तियां या प्रतिमाएं बनाने की परंपरा नहीं थी.
दक्षिण अफ्रीका में अमानवीय हालत में रह रहे और रंगभेद की राजनीति के शिकार भारतीयों के मुकदमों की वकालत के सिलसिले में वह अक्सर दक्षिण अफ्रीका से लंदन आते रहते थे. वर्ष 1915 में जब वह लंदन होकर भारत जा रहे थे, तो लंदन पहुंचते ही उन्होंने युद्ध के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी थी.
इस चौराहे पर स्थापित उन्नीसवीं शताब्दी के प्रधानमंत्रियों जैसे कि बेंजामिन डिजरेली, जॉर्ज कैनिंग और लॉर्ड पामर्सटन की प्रतिमाएं चर्चिल की प्रतिमा से बड़ी हैं. सबसे बड़ी प्रतिमा अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की है, जिन्हें एक कुर्सी के सामने खड़े दिखाया गया है. इन प्रतिमाओं के बीच केवल दो विदेशियों को जगह मिली है. उनमें से पहले हैं, दोनों विश्व युद्धों में भाग ले चुके एवं दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में 50 वर्षों तक सक्रिय रहे जनरल स्मट्स और दूसरे हैं, नेल्सन मंडेला. चूंकि मंडेला की प्रतिमा ही सबसे नीचे है और लोग आसानी से वहां तक पहुंच सकते हैं, इसलिए पर्यटक उनके साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं.
अब इस चौराहे पर महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित करने का प्रस्ताव है. यह प्रतिमा सुप्रीम कोर्ट से लगी नेल्सन मंडेला की प्रतिमा के नज़दीक होगी और इसकी पृष्ठभूमि में अब्राहम लिंकन होंगे, जबकि दाहिनी ओर मंडेला. थोड़ी ही दूरी पर जनरल स्मट्स होंगे. जब गांधी जी अपने 21 वर्षों के दक्षिण अफ्रीका प्रवास के बाद लंदन के रास्ते भारत जा रहे थे, तो स्मट्स ने कहा था, वह संत हमारे देश से दूर चला गया है. अब हमारी इच्छा है कि वह हमारे देश लौटकर न आए. स्मट्स संत (गांधी जी) को एक कठिन वार्ताकार और एक बहादुर योद्धा समझता था. इस तरह हम कह सकते हैं कि तीन दक्षिण अफीकी नेता इस चौराहे पर एक साथ खड़े दिखाई देंगे. गांधी खुद भी एक लंदन वासी थे. वह 126 वर्ष पहले 19 साल की आयु में लंदन पहुंचे थे. और, तीन साल बाद जब उन्होंने लंदन छोड़ा, तो वह न केवल एक अंग्रेजी बैरिस्टर (जैसा कि वह खुद भी दक्षिण अफ्रीका में बड़े गर्व से कहते थे) थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व परिपक्व भी हो गया था. लंदन में ही एक शाकाहारी भोजनालय की तलाश के दौरान उनकी मुलाक़ात स्थानीय लोगों के एक दिलचस्प और अपरंपरागत समूह से हुई. इस समूह में समाजवादी, प्राकृतिक इलाज के समर्थक एवं अराजकतावादी शामिल थे. ब्रिटेन में शिक्षा ले रहे भारतीयों में से शायद ही किसी का परिचय इस तरह के समूह से हुआ हो. गांधी जी ने लैटिन भाषा सीखी और लंदन की मैट्रिक परीक्षा पास की, ब्रह्मविद्यावादियों (थियोसोफिस्ट) की मदद से हिंदू धर्म का अध्ययन किया और क़ानून की किताबें पढ़ीं.
दक्षिण अफ्रीका में अमानवीय हालत में रह रहे और रंगभेद की राजनीति के शिकार भारतीयों के मुकदमों की वकालत के सिलसिले में वह अक्सर दक्षिण अफ्रीका से लंदन आते रहते थे. वर्ष 1915 में जब वह लंदन होकर भारत जा रहे थे, तो लंदन पहुंचते ही उन्होंने युद्ध के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी थी. अहिंसा का यह देवदूत न्यायोचित युद्ध को सही समझता था. दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन में शिरकत के लिए वह 1931 में अंतिम बार लंदन आए थे. ग़ौरतलब है कि कांग्रेस ने पहले गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने से इंकार कर दिया था, लेकिन जब तक वह कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में सम्मेलन में पहुंचते, तब तक धोखा हो चुका था. भारत में संवैधानिक सुधार की दिशा तय की जा चुकी थी, जिसके फलस्वरूप 1935 का गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित हुआ था. 1931 में बहस का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम का सवाल था, जो न तो 1931 में हल हुआ और न 1947 में. गांधी जी की यह प्रतिमा उनकी 1931 वाली उस तस्वीर के आधार पर बनाई जा रही है, जिसमें वह 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर खड़े हैं. तस्वीर में गांधी जी एक मोटी शॉल ओढ़े हुए हैं और धोती घुटनों तक पहुंची हुई है. अगले साल जब इस नौ फीट की प्रतिमा का अनावरण होगा, तो इस स्थान पर यह पहली प्रतिमा होगी, जो नंगे पैर होगी. साथ ही यह एक ऐसे व्यक्ति की प्रतिमा होगी, जो कभी भी किसी उच्च पद पर विराजमान नहीं रहा और यह किसी भारतीय की पहली प्रतिमा होगी. इस संबंध में गांधी स्टेचू मेमोरियल ट्रस्ट की भी स्थापना हो गई है, जिसकी वेबसाइट है http://www.gandhistatue.org हम आशा करते हैं कि हज़ारों लोग अपना छोटा-छोटा योगदान देंगे, जो लाखों पाउंड की रकम में बदल जाएगा.