चुनाव क्षेत्र के निर्धारण और लोक-उम्मीदवार की तलाश का काम काफ़ी पहले से शुरू करना होगा. ऐसे क्षेत्र जहां हमारी ओर से सघन कार्यक्रम चल रहे हैं या जहां हमारे साथी आम लोगों में भरोसेमंद हैं और उनके प्रयास से लोकसमिति या ग्रामसभाओं का संगठन बन चुका है. हमारे इस नए पुरुषार्थ के लिए सबसे अधिक उपयुक्त क्षेत्र होंगे. लोक उम्मीदवार के चयन के लिए नीचे के स्तर से लोगों की आम सहमति के बल पर उम्मीदवार चयन की जो व्यवस्थित प्रक्रिया पहले सोची गई थी. 
मै यह महसूस करता हूं कि किसी प्रकार के जन-आंदोलन का आह्वान देकर उसे प्रभावशाली रूप में लागू करने के पहले हमें राष्ट्र के सामने अपनी पवित्रता दिखानी पड़ेगी, हमें अपने बीच अनुभवसिद्ध कार्यकर्ताओं का समूह जुटाना होगा, जो आज की ऐसी परिस्थिति में सच्चे सत्याग्रह का उदाहरण प्रस्तुत कर सकें-जबकि सत्याग्रह शब्द अन्य लोगों के कारनामों के चलते बदनाम और बेइज्ज़त हो चुका है. सत्याग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए हमें व्यक्ति-गत सत्याग्रह का सिलसिला शुरू करना होगा, जिसके सत्याग्रही वही लोग होंगे, जिन्होंने एक निश्‍चित निष्ठा पत्र पर अपने हस्ताक्षर करके अपनी सत्याग्रह की निष्ठा की पुष्टि की हो और जो राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा मान्य किए गए हों. यह सत्याग्रह उपवास अथवा नागरिक अवज्ञा या दोनों के मिले-जुले रूप में होगा. सत्याग्रह में शामिल होने वालों की संख्या चाहे 50 हो या 10 हज़ार हो, लेकिन मुख्य विशेषता सत्याग्रहियों की मुख्य गुणवत्ता होगी, संख्या नहीं. सत्याग्रह का केंद्रबिंदु ऐसा होगा, जो एक ओर तो सामान्य आदमी के रा़ेजमर्रा के जीवन को स्पर्श करने वाला और दूसरी ओर वह लोकतंत्र की बुनियादी निष्ठा से जुड़ा होगा. वह भ्रष्टाचार अथवा पुलिस के ग़ैर-क़ानूनी तरी़के से संबंधित हो सकेगा, क्योंकि ये मुद्दे आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करने लगे हैं. यदि हम लोगों को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित कर सकें, तो अन्य ऐसे प्रश्‍न भी लिए जा सकते हैं, जिनका जनजीवन पर असर पड़ सके. मैं इस संदर्भ में एक बात विशेष ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि जो लोग क्षेत्र-विशेष में स्थानीय कार्यक्रम चलाने में सक्षम सिद्ध होंगे और आस-पास के लोगों पर अपना ख़ासा-अच्छा प्रभाव तथा नेतृत्व की धाक जमा लेंगे, उनके कारण अपने-आप एक राष्ट्र-स्तरीय प्रभाव नहीं पैदा होगा. गांधी जी अथवा जयप्रकाश जैसे जनप्रिय नायक के अभाव में राष्ट्र-स्तर का जो नेतृत्व खड़ा होना है. वह तभी संभव है, जबकि व्यक्तिगत सत्याग्रह के द्वारा कुछ लोग सामान्य स्तर से उभरकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकें. ऐसे व्यक्तियों की उभरती टीम को अपने ध्येय के प्रति अडिग निष्ठा और लक्ष्य प्राप्ति के लिए अंतिम क्षण तक जूझने की संकल्प-शक्ति दिखानी होगी, तभी राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त हर एक व्यक्ति और हर एक स्थिति के प्रति दोषदर्शन की मन: स्थिति बदलेगी.
राजनीतिक हस्तक्षेप
कुछ लोगों के विचार के अनुसार अगला आम चुनाव दो दृष्टियों से बहुत महत्पूर्ण होगा. अगले चुनाव तक यदि लोगों के सामने वर्तमान परिस्थिति को बदलने का कोई कारगर विकल्प नहीं दिखाई देता, तो वे यह मानने के लिए मजबूर हो जाएंगे कि इस देश में लोकतांत्रिक प्रणाली से अब काम बनने वाला नहीं है. विपक्ष आज इतना बिखर चुका है कि सभी विपक्षी दल आपस में मिलकर भरोसा दिलाने लायक विकल्प नहीं बन सकते. ऐसी परिस्थिति में उचित फेर-बदल करके लोक-उम्मीदवार की संकल्पना को आजमाने की गहरी आवश्यकता है. विमला ठकार ने इस संकल्पना के बारे में कुछ विस्तार से विचार किया है और श्री मनुभाई पंचोली ने तो एक गांधीवादी दल गठित करने का ही सुझाव दिया है. दोनों के बीच एक बात सामान्य है कि आज की राजनीति में हस्तक्षेप करने और अपेक्षित विकल्प की ओर बढ़ने की भारी आवश्यकता है. कुछ मित्र सोचते हैं कि लोकसभा में एक सौ सांसद पहुंचने चाहिए. यदि लोकसभा में 25 सांसद भी लोक-उम्मीदवार के रूप में पहुंच जाएं तो उसका असर दिखाई देगा. कम संख्या होने पर छवि स़िर्फ आंशिक होगी. इस तरह की कोशिश से कम-से-कम तीन प्रकार स्थिति बनेगी.
1              एक नई क़िस्म के उम्मीदवारों का अभ्युदय होगा, जो अपने लक्ष्य के प्रति अडिग निष्ठा वाले और ईमानदार होंगे.
2              नीचे से एक ऐसे संगठन का आधार खड़ा होगा, जो क्रमश: नीचे से ऊपर तक पहुंचेगा-ऊपर से नीचे नहीं, क्योंकि उस संगठन के नेता स्वयं सत्ता प्राप्त करने में रुचि नहीं रखेंगे.
3              चुनाव प्रचार का एक ऐसा ढंग सामने आएगा जिसमें भारी ख़र्च करके मतदाता को झांसा देने के बदले मतदाता की सहमति की प्रक्रिया से चुनाव जीतने की अनुकूलता स्थापित होगी. यद्यपि प्रादेशिक विधानसभाओं के चुनाव में हस्तक्षेप करने की बात भी नज़र में है, लेकिन जैसे व्यापक प्रभाव की आज आवश्यकता है. वह राष्ट्र-स्तर यानी लोकसभा स्तर पर ही संभव हो पाएगा.
चुनाव क्षेत्र के निर्धारण और लोक-उम्मीदवार की तलाश का काम काफ़ी पहले से शुरू करना होगा. ऐसे क्षेत्र जहां हमारी ओर से सघन कार्यक्रम चल रहे हैं या जहां हमारे साथी आम लोगों में भरोसेमंद हैं और उनके प्रयास से लोकसमिति या ग्रामसभाओं का संगठन बन चुका है. हमारे इस नए पुरुषार्थ के लिए सबसे अधिक उपयुक्त क्षेत्र होंगे. लोक उम्मीदवार के चयन के लिए नीचे के स्तर से लोगों की आम सहमति के बल पर उम्मीदवार चयन की जो व्यवस्थित प्रक्रिया पहले सोची गई थी. उसे लागू करने के पहले नीचे से ऊपर तक लोकसमितियों का व्यवस्थित संगठन खड़ा करना होगा. संगठन का ऐसा ढांचा वस्तुत: आज किसी भी क्षेत्र में मौजूद नहीं है. इसके लिए मौजूदा परिस्थिति में हमे कोई और आसान तरीक़ा ढू़ढ निकालना है. चूंकि, चुनाव क्षेत्र में अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवार रहेंगे ही, इसलिए सर्वसम्मति या सर्वानुमति की आशा नहीं रखी जा सकती. ख़ासा बहुमत लोक-उम्मीदवार के पक्ष में हो, यही देखना होगा.
उम्मीदवार की चयन प्रक्रिया को कार्यरत रखने के लिए प्रादेशिक स्तर पर एक समिति होगी. एक समिति राष्ट्र-स्तर की भी होगी, जो अंत में उम्मीदवार की पात्रता की छानबीन करके उसे अपनी स्वीकृति देकर संपूर्ण सूची की विधिवत घोषणा करेगी. एक सर्वसामान्य कार्यक्रम होगा, जिसको सभी उम्मीदवार अंगीकार करेंगे और जो लोग चुनाव जीतेंगे वे स्वाभाविक ढंग से विधानसभा अथवा संसद में एक गुट की तरह कार्य करेंगे. चयन समिति का कोई भी सदस्य अपनी उम्मीदवारी के लिए आवेदन नहीं देगा. जिस उम्मीदवार का चयन किया जाएगा, वह प्रकट रूप में भरोसेमंद सामाजिक चारित्र्य का होगा.

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