दीवाली पर हमारी तरह हजारों के दिल जल रहे होंगे । और खुद से बस यही पूछते होंगे कि आखिर कहां हम से गलती हो गयी कि हमने अपने ही लोकतंत्र के आईने को इतना धुंधला कर दिया । हम इसके लिए अपनी कौम को तो दोष नहीं दे सकते । कौम को अपनी तरह से हांकने वाले, जी हां, अपनी तरह से हांकने वाले वे लोग जिन्होंने अपनी आंखों पर वोट की राजनीति का चश्मा चढ़ाया हुआ था उन्हीं लोगों ने देश में खरामा खरामा ऐसी स्थितियां पैदा कर दीं कि आज अगर एक प्रधानमंत्री अपनी मनमानी पर उतर भी आये तो हम सिर्फ चिल्लपौं करने के अलावा उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मैं यह कहने से पहले दस बार सोचता हूं और जेल भेजे जाने की नौबत तक सोचता हूं कि मैं अपने प्रधानमंत्री से नफ़रत करता हूं । इसमें कोई शक नहीं कि और भी हजारों लोग ऐसा ही सोचते होंगे ।
नरेंद्र मोदी मनोविज्ञानियों के लिए कौतूहल की चीज हो सकते हैं । लेकिन आरएसएस के लिए क्या हैं । वे तो इन दिनों आरएसएस को भी चक्करघिन्नी की तरह नचा रहे हैं । आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी में एक होड़ सी लगी है । दोनों अपनी अपनी मुद्राओं से समाज को लपेटना चाहते हैं । कुछ लोगों का मानना है कि यह दोनों की मिली-जुली चाल है । लेकिन हमारा मानना है कि मोदी की जगह कोई दूसरा नेता होता तो इसे मिली जुली चाल कहा जा सकता था । भागवत मुसलमानों को पोसना चाहते हैं । मोदी साफतौर पर दूसरा संदेश देना चाहते हैं। उनका नारा कुछ और है और क्रिया कर्म कुछ और । अब तो हालत यह हो गयी है कि हिंदूवादी संगठनों की तीसरी शक्ति ऐसी पैदा हो गयी है जिन्हें न आरएसएस चाहिए और न बीजेपी । वे बाकी का सारा काम कर डालेंगी और जिसको सबक सिखाना होगा, सिखा देंगी ।
इन दिनों नरेंद्र मोदी घबराये हुए हैं । आसन्न गुजरात चुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर है । आम आदमी पार्टी ने आकर सारा गणित बिगाड़ दिया है । कांग्रेस से निपटना तो बीजेपी या मोदी को आता है पर जो ‘राक्षस’ अपनी ही तरह तरकश से तीर निकाले उससे भी कैसे निपटें । 2024 से ज्यादा की चिंता में घिरे हैं इन दिनों मोदी । इसीलिए कभी केदारनाथ में हिंदुओं को ललचाने वाली टोपी और लबादा पहन कर पूजा-पाठ में जुटते हैं तो कभी अयोध्या में जाकर दीप जलाते हैं । मोदी अपनी जिद में एक ऐसा इतिहास लिख रहे हैं जो भविष्य में उन्हें नायक नहीं, लोकतंत्र का खलनायक सिद्ध करेगा ।
सवाल उन शक्तियों से है जो उन्हें रोकना चाहती हैं । वह शक्तियां कौन सी हैं और कहां हैं । कांग्रेस एक ऐसी नामाकूल सी शक्ति बन कर रह गयी है जिसे वक्त को कैश कराना नहीं आता । राहुल गांधी की सफल कही जाने वाली यात्रा के बावजूद ऐसे कांग्रेसियों की पार्टी में भरमार है जो वक्त की नजाकत नहीं समझते । गुजरात चुनाव और हिमाचल चुनाव में कांग्रेस की इल्ले पौं है । विपक्ष की बात न ही की जाए तो बेहतर है । मोदी मेहनती हैं उन्होंने विपक्ष और कांग्रेस की नब्ज पकड़ ली है । इनसे लड़ना मोदी के बाएं हाथ का खेल है । मोदी को यह भी जान पड़ने लगा है कि पसमांदा मुसलमानों के सामने फैलाया जाल भी काम आने वाला नहीं इसलिए अब सामने कुछ है तो हिंदुओं का बड़े पैमाने पर एकत्रीकरण और मुफ्त का अनाज पानी । कोई शख्स किसी कौम के लिए कैसे खतरा बनता जाता है इसे कोई तानाशाह अपने नशीले गुरूर की गिरफ्त में नहीं समझ सकता । गुजरात चुनाव में यदि सबक मिले और 2024 में हार मिले तो मोदी का गुरूर और नशा टूटेगा , शायद ! फिलहाल तो जो हो रहा है उसके संकेत भयानक होते दिख रहे हैं । मुसलमानों के सब्र की कब तलक परीक्षा ली जाएगी ।
बिहार में विनय महाजन की रिपोर्ट पर इस बार ‘लाउड इंडिया टीवी’ में चर्चा की गयी । हमेशा की तरह संतोष भारतीय के संचालन में अभय कुमार दुबे और राजद सांसद मनोज झा के बीच संवाद हुआ । लब्बोलुआब यह था कि बिहार में सबसे ज्यादा राजनीतिक चेतना होने और तमाम वर्ग के नेताओं की सत्ता आने के बावजूद बिहार आखिर वहीं का वहीं क्यों खड़ा है । बिहारियों की श्रमशक्ति दूसरे प्रांतों को बनाती है लेकिन बिहार फिर भी अपने स्वरूप को नहीं बदलता। सुशासन क्या है और जंगलराज क्या है । आज भी दूसरे प्रांतों में , खासतौर पर पंजाब में बिहारी ‘भैय्ये’ ही हैं। मनोज झा कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे पाये । बताया जाता है कि महाजन की रिपोर्ट में कुछ ऐसे तथ्य और आंकड़े हैं जिनसे हर कोई चकित है । बिहार की वास्तविकता का जो आकलन इस रिपोर्ट में किया गया है वह चौंकाने वाला है । अगर सवाल बिहार के विकास की रफ्तार पर है तो यही सवाल दूसरे अर्थों में देश में विकास, संविधान के प्रति भी जागरूकता, असंगठित क्षेत्र की माली हालत को सुधारने और सर्व धर्म समभाव की भावना लाने का है । इन सब पर काम कितना हुआ । नहीं हुआ तो रुकावटें कहां रहीं । यदि इन सब पर सही अर्थों में काम हुए होते तो क्या हम आज के नरेंद्र मोदी को उनकी धर्म-विशेष को लेकर मनमानी करते हुए पाते । शायद नहीं । मुझे लगता है बिहार के संदर्भ में कोई मनोज झा इन प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकता । अभय दुबे को स्वयं ही रिपोर्ट को समझ कर वस्तुस्थिति सामने रखनी चाहिए । उन्हें प्रश्न भी पता हैं और समाधान भी । संतोष जी पर कुछ गांधीवादियों का आरोप है कि वे गांधीवादियों को अपने शो में बुलाने से बचते हैं । ऐसा तो नहीं होना चाहिए। गांधी की अर्थव्यवस्था के विकास माडल पर भी अभय दुबे से चर्चा होनी चाहिए।
हमारा समाज इस स्तर पर आ गया है कि एक चैनल पर बीजेपी के प्रवक्ता ने कांग्रेस के प्रवक्ता को ‘दल्ला’ कहा तो पलट कर कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, तू दल्ला तेरा बाप दल्ला । यह वीडियो को खूब वाहवाही लूट रहा है । राम रहीम की चर्चाएं हो रही हैं । बताया जा रहा है कि आसाराम को भी छोड़ा जा सकता है । किस मुहाने पर आकर बैठ गये हैं हम ।
फिर अंत में वही सवाल मोदी को आसन्न चुनावों में रोकने की किसके पास क्या रणनीति है । कांग्रेस और विपक्ष से फिलहाल उम्मीद मत कीजिए । केवल चर्चाओं से न किसी भी की सत्ता आयी है और न किसी की गयी है । श्रवण गर्ग और अपूर्वानंद जैसे लोग हमारी इस बात को समझेंगे ।
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