महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकपाल बिल पारित होने और क़ानून बनने के बाद इसकी जानकारी लोगों के पास कैसे जाएगी? मुझे याद है जब सूचना का अधिकार क़ानून बना था, बहुत कम लोग उसका इस्तेमाल करते थे. लोगों को ये भी पता नहीं था कि सूचना के अधिकार क़ानून का फार्म कैसे भरा जाए और दफ़्तरों से कैसे जानकारी ली जाए. हमने तो इस पर एक सीरीज़ तक चलाई, लोगों को शिक्षित किया और आज भी लोग आरटीआई के इस्तेमाल करने के तरी़के के बारे में चिट्ठियां लिखकर जानकारी चाहते हैं. आरटीआई क़ानून ने या सूचना के अधिकार क़ानून ने लोगों को बहुत ज़्यादा ताक़त दी है. क़ानून अपने आप में परिपूर्ण नहीं है, लेकिन जो भी है वो लोगों के हित में इस्तेमाल हो रहा है.
जनलोकपाल की लड़ाई आख़िर देश की जनता ने जीत ली. श्रेय अन्ना हजारे को दिया गया. देना स्वाभाविक है, क्योंकि अन्ना हजारे अगर अनशन नहीं करते तो यह बिल संसद में पास नहीं होता. न कांग्रेस की ख्वाहिश थी और न भारतीय जनता पार्टी की ख्वाहिश की थी कि यह बिल बने, क्योंकि बहुतों को भ्रम था कि वे अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, इसलिए कहीं लोकपाल उनके लिए परेशानी का सबब न बन जाए. पर स्थितियां ऐसी बनीं कि सारे दलों को लोकपाल बिल पास करना पड़ा. समाजवादी पार्टी ने अपने विरोध को दर्शाया और तर्क दिया कि इस बिल के पास होने से यह भावना बढ़ेगी कि सारे राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचारी हैं या चोर हैं. समाजवादी पार्टी ग़लत नहीं सोच रही है. दरअसल, राजनीतिज्ञों की छवि ही ऐसी बन गई है कि किसी को राजनीति में कोई ईमानदार दिखाई ही नहीं देता. कहा जाता है कि एक मछली तालाब को गंदा कर देती है, लेकिन यहां तो तालाब को गंदा करने में मछलियों में होड़ मची हुई है कि कौन सबसे ज्यादा गंदा करता है. हो सकता है अब थोड़ी सावधानी बरती जाए कि लोकपाल नाम का एक संवैधानिक संगठन है, जिसमें अगर शिकायत जाएगी तो शिकायत पर गंभीरता से जांच होगी और जिनके ख़िलाफ़ शिकायत है, वे क़ानून के घेरे में आ जाएंगे.
लेकिन कैसा लोकपाल, कैसे पास हुआ, कौन इसके पीछे है, किसको श्रेय मिले आदि सवाल अब अपनी आख़िरी सीमा पर आ गए हैं. अब सवाल है कि लोकपाल के आगे क्या? क्या अन्ना लोकपाल के आगे कोई आंदोलन चलाएंगे. या जैसा कि अन्ना ने एक शब्द इस्तेमाल किया है कि वाच डॉग. जिसके तहत हर ज़िले में कमेटियां बनाकर ज़िम्मेदारी सौंपकर वे फिर देखेंगे कि वह कमेटियां कैसा काम कर रही हैं. संसद में भी कुछ लोगों ने कहा और देश में बहुत लोग यह कहते हैं कि लोकपाल संस्था में काम करने वाले क्या ईमानदार होंगे? इसके लिए अब वे लोग न्यायपालिका का उदाहरण देने लगे हैं और ख़ासकर ऊपर के स्तर की न्यायपालिका, जिसमें सुप्रीम कोर्ट शामिल है, कि जब सुप्रीम कोर्ट के जजों के ऊपर भी आरोप लगने लगे हैं तो ईमानदार लोकपाल कहां से आएगा?
दरअसल, ईमानदारी तलाशना इसलिए मुश्किल हो गया है क्योंकि लोगों की नज़रें वहीं तक जा रही हैं, जहां तक भ्रष्टाचार जा रहा है. इस भ्रष्टाचार के दायरे के बाहर का इंसान लोगों को दिखाई ही नहीं देता. अच्छे लोग हैं नहीं. जो हैं वे अपमानित होते हैं. उन्हें कोई रुकने नहीं देता. उनके ऊपर झूठे आरोप लगाए जाते हैं,
लिहाज़ा ईमानदार सत्ता के दायरे से बाहर हो जाता है. इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या अच्छे लोग मिल पाएंगे? क्या जिस तरह लोकपाल के पास लोगों के बारे में शिकायतें या उनके पास फैसला आएगा तो क्या लोकपाल सही फैसला देगा या लोकपाल भी मैनेज हो जाएगा? सवाल-सवाल-सवाल. लेकिन अब सवाल पूछने का समय नहीं है. जब संस्था बनेगी और संस्था काम करेगी, तब देखना पड़ेगा कि समस्याएं क्या आती हैं और जो समस्याएं आती हैं, उनका सामना लोकपाल नाम की संस्था किस तरह करती है? लोकपाल को इस बात का भी ध्यान रखना प़डेगा कि लोगों को परेशान करने वाली या दुश्मनी निकालने वाली शिकायतें किस तरह पहचानी जाएं? इस तरह की संस्थाओं का इस्तेमाल जलन में, झग़डे निपटाने में और दुश्मनियां निकालने में काफ़ी किया जाता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकपाल बिल पारित होने और क़ानून बनने के बाद इसकी जानकारी लोगों के पास कैसे जाएगी? मुझे याद है जब सूचना का अधिकार क़ानून बना था, बहुत कम लोग उसका इस्तेमाल करते थे. लोगों को ये भी पता नहीं था कि सूचना के अधिकार क़ानून का फॉर्म कैसे भरा जाए और दफ़्तरों से कैसे जानकारी ली जाए. हमने तो इस पर एक सीरीज़ तक चलाई, लोगों को शिक्षित किया और आज भी लोग आरटीआई के इस्तेमाल करने के तरी़के के बारे में चिट्ठियां लिखकर जानकारी चाहते हैं. आरटीआई क़ानून ने या सूचना के अधिकार क़ानून ने लोगों को बहुत ज़्यादा ताक़त दी है. क़ानून अपने आप में परिपूर्ण नहीं है, लेकिन जो भी है वो लोगों के हित में इस्तेमाल हो रहा है. ये अलग चीज़ है कि कुछ लोग इसका दुरुपयोग भी कर रहे हैं, ब्लैकमेल करने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. पर शायद ये हर लोकतांत्रिक सिस्टम में होता है कि कुछ लोग हर चीज़ का इस्तेमाल अपने निजी फ़ायदे के लिए करते हैं. इसी तरह लोकपाल के बारे में लोगों को शिक्षित करना एक ब़डा काम है. मुझे ये नहीं लगता कि सरकार इसमें कोई मदद करेगी. मुझे यह भी नहीं लगता कि कोई ब़डी संस्था इसमें आर्थिक मदद करेगी. लेकिन कुछ लोगों को आगे आना ही होगा, जो लोकपाल के शिक्षण का काम करें. हिंदुस्तान के लोगों को समझाएं कि इस तरह का यह क़ानून है और इस तरह इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. लोकपाल देश की जनता के लिए महत्वपूर्ण क़ानून है. इस क़ानून का प्रचार करने, इस क़ानून के बारे में जानकारी देने के लिए बहुत सारे लोगों को आना प़डेगा और ख़ासकर उनको, जिन्होंने लोकपाल और अन्ना को एक माना है. उन्हें ये बताना प़डेगा कि वे राजनीतिज्ञों पर नज़र रखने वाले इस क़ानून के प्रचारक हैं और बहुत सारे लोगों को इसके बारे में शिक्षित करना प़डेगा. ये बहुत महत्वपूर्ण काम है. मुझे लगता है कि भारत के लोग लोकपाल क़ानून को जनता तक पहुंचाने में एक उत्साही आंदोलनकारी का रोल अवश्य निभाएंगे.
लोकपाल के आगे की ज़िम्मेदारी जनता की है
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