सरकार भी एक बड़ी खरीददार है. उसके पास सेना है, पुलिस है, बहुत सारी जगहों में वह पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में जाती है, ये सारा सामान वह बिचौलियों या दलालों से क्यों खरीदे? वह क्यों नहीं अपनी प्राथमिकता ब्लॉक में लगने वाले इन उद्योगों को अपना मुख्य खरीद का साधन बनाए और उस ब्लॉक में जितनी तरह की फसलें होती हैं, उन फसलों का फिनिश प्रोडक्ट उन्हीं ब्लॉक में छोटे उद्योगों के माध्यम से सरकार के पास जाए? एक तो इससे किसानों के उत्पादन की खरीद की गारंटी मिल जाएगी और दूसरा यह कि बाज़ार में भी अच्छा माल जाने लगेगा.
प्रधानमंत्री जी, एक वर्ष बीत गया और जिस तेज़ी से आपने पिछले वर्ष देश के बढ़ने के लिए जो खाका तैयार किया, उससे ज़्यादा हमारे मीडिया के साथी उस नक्शे को प्रचारित करने में लगे हैं. मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं और मेरा यह भी मानना है कि आप में वह क्षमता है कि आप अपनी दिशा का सही निर्धारण कुतुबनुमा के ज़रिये या कंपास के ज़रिये हमेशा करते रहेंगे. कुतुबनुमा का मतलब कि आप यह कसौटी बनाएंगे कि आपकी योजनाओं का फायदा आपकी नज़र में सबसे आ़खिर ग़रीब आदमी को कितना हो रहा है.
लेकिन, मुझे एक बात समझने में थोड़ी परेशानी हो रही है. पिछले एक वर्ष में जो भी नक्शा आपने देश के सामने रखा और जिसे आप 16 तारीख से लेकर अब तक बताते आ रहे हैं, अपने द्वारा किए हुए कामों की गिनती गिनाते आ रहे हैं, वे सारे काम देश के लोगों की जिंदगी में बदलाव के साथ कहां जुड़ते हैं? आपने जो किया, वह सब करना आवश्यक था, पर ये सब थाली में चटनी, नमक और सलाद की तरह से हैं. थाली में मुख्य भोजन कहां है? मैं यह सवाल आपसे इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि पिछले सालों में पहली बार ऐसा लगा था कि आप कुछ ऐसा ज़रूर करेंगे, जिससे इस देश के 80 प्रतिशत लोगों की ज़िंदगी में थोड़ी-सी आशा की किरण जागेगी. आपको वोट भी उन 80 प्रतिशत लोगों ने ही दिया है, जो अपनी ज़िंदगी में बदलाव चाहते हैं.
प्रधानमंत्री जी, जब मैं यह कहता हूं कि देश के लोगों की ज़िंदगी में बुनियादी तौर पर बदलाव या उनकी थाली का मुख्य भोजन, तो मैं इस देश के उन लोगों की बात करता हूं, जिनकी ज़िंदगी इस देश के सबसे बड़े उद्योग खेती के ऊपर आधारित है और यह खेती शब्द स़िर्फ किसान से जुड़ा नहीं है. खेती शब्द इस देश के नौजवानों से जुड़ा है, इस देश की शिक्षा से जुड़ा है, इस देश के स्वास्थ्य से जुड़ा है, इस देश के विकास से जुड़ा है, इस देश के संचार से जुड़ा है. इसलिए, क्योंकि देश का सबसे बड़ा उत्पादन का यंत्र खेत, वह भी गांव में है और उससे जुड़े हुए नौजवान, वे भी गांव में हैं. उनकी सबसे बड़ी आशा थी कि उनकी ज़िंदगी के सामने जो अंधेरे की दीवार आ गई है, वह अंधेरे की दीवार आपकी कोशिशों से थोड़ी सा़फ होगी और उन्हें रास्ता मिलेगा.
लेकिन, पिछले दो बजट में इसका कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है. क्या खेती को उत्पादक बनाने का कोई तरीका बजट में दिखाई दिया? खेती की भूमि की मिट्टी का लेबोरेट्री में टेस्ट आवश्यक है, लेकिन सर्वप्रमुख नहीं है. प्रधानमंत्री जी, सर्वप्रमुख है कि खेती में लगने वाली चीजें, वह चाहे पानी हो, बीज हो, खाद हो और फिर बिजली हो, सिचाई हो और कटाई के बाद फसलों को बाज़ार में ले जाने लायक बनाने का मसला हो, ये सारी चीजें किसान को देने की कोई कोशिश मुझे किसी बजट में दिखाई नहीं दी. दूसरा, खेती से उपजे हुए प्रोडक्ट को, उत्पादन को बिचौलियों से बचाने की कोई कोशिश मुझे किसी बजट में दिखाई नहीं दी. सबसे बड़ी चीज, जो खेती से पैदा होने वाली उपज है, क्या उसका फिनिश प्रोडक्ट तैयार करने के कारखानों की श्रंखला देश के हर ब्लॉक में नहीं लगाई जा सकती? क्या ऐसे उद्योग नहीं लगाए जा सकते, जिनमें नौजवानों को शामिल किया जाए और वहां से फिनिश प्रोडक्ट निकल कर देश के बाज़ारों में जाए?
सरकार भी एक बड़ी खरीददार है. उसके पास सेना है, पुलिस है, बहुत सारी जगहों में वह पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में जाती है, ये सारा सामान वह बिचौलियों या दलालों से क्यों खरीदे? वह क्यों नहीं अपनी प्राथमिकता ब्लॉक में लगने वाले इन उद्योगों को अपना मुख्य खरीद का साधन बनाए और उस ब्लॉक में जितनी तरह की फसलें होती हैं, उन फसलों का फिनिश प्रोडक्ट उन्हीं ब्लॉक में छोटे उद्योगों के माध्यम से सरकार के पास जाए? एक तो इससे किसानों के उत्पादन की खरीद की गारंटी मिल जाएगी और दूसरा यह कि बाज़ार में भी अच्छा माल जाने लगेगा.
प्रधानमंत्री जी, यह सच है कि यह रास्ता बड़े कॉरपोरेट्स को नहीं सुहाएगा, लेकिन इस रास्ते से देश का सबसे बड़ा धन नौजवान और खेती उत्पादक बनने की दिशा में जाएंगे और तब हर गांव में सड़क भी पहुंचेगी, संचार के साधन भी पहुंचेंगे और आप जिस चीज का सपना देखते हैं सोलर पॉवर का, वह भी हर ब्लॉक में तेजी के साथ विकसित (डेवलप) होगा. बहुत सारी ऐसी कंपनियां हैं, जो विभिन्न ब्लॉकों में 10 मेगावाट, 20 मेगावाट, 25 मेगावाट का प्लांट लगा सकती हैं और लोग उनसे बिजली लेकर अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं.
प्रधानमंत्री जी, आज जिस तरह से शंखों का शोर आपके पास हो रहा है, आपको मेरी बात शायद नहीं सुनाई देगी, लेकिन मैं अपना कर्तव्य समझता हूं कि मैं ये बातें आपसे कहूं और आपसे यह आशा भी करूं कि आप वक्त रहते चेतेंगे और इस बुनियादी दिशा की तऱफ अपनी सरकार को ले जाने की बात करेंगे. अगर आप बुनियादी दिशा की तऱफ सरकार को ले जाने की बात नहीं करते, तो यह देश बहुत सारे लोगों से तो निराश हो चुका है. अगर आपसे भी निराश हुआ, तो फिर किसी के ऊपर विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा.
यह तरीका पूरी तरह से बड़े उद्योगों के खिला़फ भी नहीं है, कॉरपोरेट्स विरोधी भी नहीं है. सारी दुनिया का बाज़ार हमारे कॉरपोरेट्स के लिए खुला हुआ है और कॉरपोरेट्स इन्हीं छोटी-छोटी यूनिट्स से भारतीय कृषि उत्पादन के उत्पाद को खरीद कर दुनिया के बाज़ार में आसानी के साथ बेच सकते हैं. इससे भारतीय उत्पादन को दुनिया के बाज़ार में जगह मिलेगी, देश के बाज़ार में भी जगह मिलेगी और क़ीमतों को लेकर उनमें प्रतिस्पर्धा भी होगी. यह देश के किसानों के हित में है, देश की खेती के हित में है और देश के नौजवानों के हित में है. इससे एक दूसरा बड़ा लाभ यह होगा कि कृषि के ऊपर आधारित एक बड़ी संख्या उनकी है, जिनके पास खेती है ही नहीं, जिन्हें हम खेतिहर मज़दूर कहते हैं, उन्हें हम ब्लॉक लेवल के ऊपर उन सारे उद्योगों में खपा सकते हैं, जिनकी मैं बात कर रहा हूं. इतना ही नहीं, उद्योगों में खपाने के साथ आप उन्हें पशु धन के ऊपर आधारित उत्पादनों को बढ़ाने में आसानी के साथ लगा सकते हैं. और, इसका नतीजा यह होगा कि हमारे देश में बेरोज़गारी से लड़ने का एक हथियार देशवासियों को मिल जाएगा, पर इसमें आपकी मदद की ज़रूरत है, आपकी सहायता की ज़रूरत है और उन तरीकों से लड़ने की ज़रूरत है, जो देश में बेरोज़गारी बढ़ाने की बात करते हैं.
इसीलिए प्रधानमंत्री जी, मुझे यह बहुत अजीब लगता है कि थाली में मुख्य भोजन की जगह हमने चटनी बना दी, हमने सलाद काट दिया. हमने कुछ खीरा, कुछ प्याज, कुछ टमाटर रख दिया. इसको हम मुख्य भोजन बताकर लोगों को खिलाने की बात कर रहे हैं. इस देश के लोग पिछले 60-65 वर्षों के सताए हुए हैं. उन सताए हुए लोगों को क्या आप जिस अच्छे दिन की बात कर रहे हैं, उसकी तऱफ एक क़दम बढ़ाने में सहयोग नहीं दे सकते? मुझे विश्वास है कि आप यह कर सकते हैं, लेकिन आप कर नहीं रहे हैं. आपके पास इस देश में इन चीजों को लागू करने में आने वाली अड़चनों के बारे में सोचने और उन्हें दूर हटाने का वक्तही नहीं है. मुझे लगता है कि आपके मंत्रिमंडल में ऐसे लोग हैं, जो आपको रिजल्ट दे सकते हैं.
मैं आपको एक छोटा सुझाव देना चाहता हूं. कृपया अपने मंत्रिमंडल के राजनीतिक साथियों को टारगेट दीजिए, उसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर डालिए और उन्हें वक्त दीजिए. क्रमबद्ध ढंग से उनके फैसलों को पूर्ण करने का अधिकार दीजिए. उसके बाद या तो उन्हें ईनाम दीजिए या फिर उन्हें विनम्रता से हट जाने के लिए कहिए, ताकि दूसरे लोग आकर उस टारगेट को पूरा कर सकें. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री जी, आपको यह भी देखना होगा कि जिसने अपना टारगेट पूरा किया है क्या उसे आपकी तऱफ से तवज्जो मिल रही है? क्या आप उसे शाबाशी दे रहे हैं या आप उन्हें शाबाशी दे रहे हैं, जिन्होंने कुछ किया नहीं, और जो स़िर्फ आपकी परिक्रमा कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री जी, आज जिस तरह से शंखों का शोर आपके पास हो रहा है, आपको मेरी बात शायद नहीं सुनाई देगी, लेकिन मैं अपना कर्तव्य समझता हूं कि मैं ये बातें आपसे कहूं और आपसे यह आशा भी करूं कि आप वक्त रहते चेतेंगे और इस बुनियादी दिशा की तऱफ अपनी सरकार को ले जाने की बात करेंगे. अगर आप बुनियादी दिशा की तऱफ सरकार को ले जाने की बात नहीं करते, तो यह देश बहुत सारे लोगों से तो निराश हो चुका है. अगर आपसे भी निराश हुआ, तो फिर किसी के ऊपर विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा. अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप इतिहास में दर्ज होने वाले एक ऐसे विलक्षण प्रधानमंत्री माने जाएंगे, जो सामान्य जीवन से उठा, जो सर्वोच्च पद पर बैठा और जिसने इस देश के बदलाव के लिए कमाल का काम किया. मेरा ख्याल है, मुझे आपके उत्तर में मेरे द्वारा उठाए गए सवालों का कुछ सार्थक जवाब मिलेगा. मैं प्रतीक्षारत हूं.