माननीय प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी
नमस्कार,

आपने लोकसभा को भी आपके राजनीतिक दल की चुनावी सभा में परिवर्तित कर दिया, और कहा कि “जितना किचड उछालोगे उतनाही कमल खिलेगा” और “मुझे 140 करोड जनसंख्या के देश की जनता के आशिर्वाद का कवच है. ” यह बात गलत है, क्योंकि अभितक के भारतीय चुनाव में किसी भी दल को शत-प्रतिशत मतदाताओं ने मत देने का कोई भी रेकॉर्ड नही है. और रही बात आपके दल की तो उसे अभितक 31% मतो का प्रतिशत से निचे ही लोगों ने मत दिया है. उनसठ प्रतिशत लोग आपके सांप्रदायिकता के, और पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करने के कारणों से आपके दल के खिलाफ हैं. और जबतक आप गौतम अदानी जैसे लोगों की मदद करने का काम करते रहेंगे. और 140 करोड जनसंख्या के देश में ध्रुवीकरण की राजनीति करते रहोगे, तबतक आपको और आपके दल को शत-प्रतिशत मतदान कभी भी संभव नहीं हो सकता है यह वास्तव है.


आपातकाल में जेल में आपके ( आर एस एस ) बुजुर्गों को मैंने शेकडो बार कहा था कि “भारत जैसे बहुधर्मिक और विभिन्न भाषाओं तथा सांस्कृतिक परम्परा को देखते हुए, सिर्फ हिंदुत्व के अजेंडा से इतनी विशाल और विभिन्नता वाले देश में आपको कभी भी राजनीतिक स्तर पर सभी लोगों का समर्थन नही मिल सकता.” लेकिन हिंदुत्ववादीयो के दिल और दिमाग में भी विश्व के किसी भी प्रकार के जाती – वर्ण श्रेष्ठता का गोबर भरा होने के कारण, फिर वह नाजी हिटलर – मुसोलीनी या सावरकर – गोलवलकर हो, सभी के सभी संकिंर्ण मानसिकता के बिमारी से ग्रस्त होने के कारण. उन्हें धर्म – जाती, वर्ण जैसे सांप्रदायिक जूनून से मुक्त करना बहुत ही मुश्किल काम है. जो आपके बारे में मे भी शतप्रतिशत लागू है. क्योंकि आपके ही कथनों के अनुसार आपने उम्र के 17 साल में गृहत्याग कर के संघ की दिक्षा ली है. और अब आप सत्तर साल से भी अधिक उम्र के होने के कारण अब आपसे किसी भी तरह के बदलाव की उम्मीद करना ठीक नहीं होगा.


इसी वजह से आप पर कोई भी संकट आता है, तो सिधा आप हमारे देश के 140 करोड जनसंख्या के देश के लोगों का सुरक्षा कवच की आडमे चले जाते हो. लेकिन आप ने आजसे इक्कीस साल पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात के दंगों के दौरान कौन सा मुख्यमंत्री के कर्तव्यों का निर्वहन किया ? जिससे आपको 140 करोड़ लोगों का सुरक्षा कवच प्राप्त हो सकता है ? और बात आपको तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा है कि ” आपने राजधर्म का पालन नहीं किया है.” और ‘क्राईम अगेंस्ट ह्यूमानिटी’ जैसे जस्टिस वी. के . अय्यर, जस्टिस पी. बी. सामंत, जस्टिस होस्बेट सुरेश,प्रसिद्ध वकील के. जी. कन्नाबरियन, प्रोफेसर घनश्याम शाह और प्रोफेसर तनिका सरकार और पूर्व आई ए एस अधिकारी अरुणा राय तथा पूर्व डीजीपी श्री. के. एस. सुब्रमण्यम जैसे प्रतिबध्द लोगों के द्वारा अपने अथक प्रयासों से बना, 507 पन्नौकी गुजरात दंगों के रिपोर्ट में, आप ने और आपके मातहतों के द्वारा इक्कीस साल पहले क्या – क्या कोताही बरती गई ? और उस कारण हजारों लोगों को जान से मारने से लेकर शेकडो औरतें को बेआबरू करने के उदाहरण मौजूद हैं. और उनमें से अहमदाबाद की मध्यवर्ती जगह चमनपूरा की गुलबर्ग सोसाइटी और उसमे भारतीय संसद के पूर्व सांसद एहसान जाफरी और उनके साथ अन्य 67 लोगों को दिनदहाड़े जिंदा जलाने का जधन्य कांड करने वाले अपराधियों को सजा दिलाने के लिए एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी 23 सालों से विभिन्न अदालतों से दिलाने के लिए गुहार लगाते लगाते अभी एक फरवरी को 87 साल की उम्र में मर गई ,, बिल्किस बानो, बुराहऊद्दिन शेख जैसे लोग आज भी न्यायालय की सिढीया चढ- उतर रहे हैं. और उसके बावजूद आप 140 करोड जनसंख्या के देश के लोगों के सुरक्षा कवच की बात कर रहे हो ?


जबसे केंद्र की आप सत्ता में आए हो तबसे गीनकर एक चौथाई आबादी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. और आप आपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस देश की एक चौथाई जनता, जो कुलमिलाकर सभी अल्पसंख्यक समुदायों को मिलाकर होती है. चालिस करोड़ आबादी को असुरक्षित मानसिकता में डालने के बाद भी आप अपने सुरक्षा कवच के लिए 140 करोड जनसंख्या के आंकड़े कहा से लेकर बोल रहे हो ? बचें हुए सौ करोड़ों में से भी सिर्फ 37 – 4 %लोगों ने आपकी पार्टी को वोट दिया है. 62-6 मतलब दो तिहाई लोग नही चाहते है कि आप और आप का सांप्रदायिकता की मानसिकता वाले दल ने इस देश की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह आप लोग नही कर सकते. लेकिन जिस तरह से कश्मीर में तीन प्रतिशत वोट हासिल करने वाले लोगों को भी पार्लमेंट के भीतर बैठने की व्यवस्था है. तो आप 37-4 % वोटो के बल पर 140 करोड जनसंख्या के देश के प्रधानमंत्री बन बैठे हो. मतलब आपको भारत की दो तिहाई जनता का सुरक्षा कवच प्राप्त नही है. यह बात ध्यान में रखते हुए संसद जैसे सर्वोच्च सभागार में बोलने की आदत डालिए. और एक सटोडियो के बचाव में आनेके लिए इतने चिल्ला – चिल्ला कर बोलने की क्या आवश्यकता है ?


आपने अपने पहले ही चुनाव में कहा है कि “मैं न किसी को खाने दुंगा और न ही खुद खाऊँगा”.तो फिर जब की पूरी दुनियां में जगजाहिर हो चुका है कि गौतम अदानी ने क्या – क्या आर्थिक कलाबाजियां करके अपने पैतिस साल के औद्योगिक सफर में विश्व के तीन नंबर पर और भारत के एक नंबर पर आने वाली यात्रा अगर बहुत ही मेहनत और इमानदारी के रास्ते से हुई है. तो उसके सफर की निस्पक्ष जांच कर के भारत की आने वाली पीढ़ी के लिए कितना बड़ा प्रेरणा का उदाहरण मिल जा सकता है ?
अदानी समूहों के सर्वेसर्वा गौतम अदानी भी, हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के जवाब में भारत के उपर हमला कह रहा हैं. मतलब यह देश न होकर आपकी या गौतम अदानी की प्रायव्हेट लिमिटेड कंपनी हो गया है. और साथ – साथ भारत का सर्वोच्च सभागार जिसमें इस देश के कानून बनाने का काम किया जाता है. वहां अदानी शब्दों का कामकाज में से निकला जाने की कृती को क्या कहेंगे ? क्या आदनी भारत की संसद को भी खरीद चुका है ? राहुल गांधी एक दिन पहले अदानी उद्योग समूह की आर्थिक घोटालों की चर्चा करते हैं. और सुना है कि हमारे पिठासिन अध्यक्ष महोदय ने अदानी से संबंधित टिप्पणीया संसद की कार्यवाही से हटाने की कृती किस बात का परिचायक है ? और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने इतना लंबे तकरिर में जवाहरलाल नेहरू नाम क्यों नहीं रखा जाता है ?

जैसे बेसिररपैर के मुद्दे पर बेमतलब के मुद्दे पर संसद का बहुमुल्य समय बर्बाद करने की कृती को संसदीय रेकॉर्ड में दर्ज करने का मतलब, वह अध्यक्ष न हो कर किसी एक दल को बचाने के लिये प्रयास कर रहे हैं. जो कि पिठासिन अध्यक्ष की जिम्मेदारी थी, कि प्रधानमंत्री संसद में चल रहे मुख्य मुद्दे पर जवाब दे. उल्टा उन्होंने एक शब्द से भी अदानी शब्द का प्रयोग नहीं किया. मतलब हमारी संसद संसद न होकर एक सत्ताधारी दल की इकाई बनकर रह गया है. मतलब आपने हमारे देश की सभी संविधान संरक्षण के लिए बनाये गये सभी संस्थानों की गारीमा खत्म कर के उन्हें अपने मनमर्जी से उनका इस्तेमाल करने की शुरुआत की है. हालांकि कुछ हदतक गत दस सालों में आपकी कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता जरूर है, क्योंकि हमारे देश की प्रमुख एजेंसियों से लेकर, वित्तीय संस्थाओं, मिडिया, और अब न्यायव्यवस्था को लगातार मिल रही धमकियों से हमारे देश के जनतंत्र का आखिरी खंबो मे से एक को कमजोर करने के लिए विशेष रूप से लगातार कानून मंत्री, गैरकानूनी हरकतों को किए जा रहे हैं. और इसी से तंग आकर कुछ दिनों पहले चार न्यायाधीशों ने अपने सरकारी आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा था. “कि हमारे उपर काफी दबाव है. ” इससे पूर्व भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा कोई भी उदाहरण नज़र नहीं आता है. क्या यह हमारी न्यायिक व्यवस्था में फैला भय का लक्षण नहीं है ?


आजसे नौ साल पहले नागपुर में,(1 दिसंबर 2014 ) सीबीआई स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश ब्रजगोपाल हरकिशन लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत की स्पेशल स्टोरी कारवान नाम के अंग्रेजी पत्रिका में 20 नवंबर 2017 के अंक में ” A Family Breaks Its Silence : Shocking details emerge in death of judge presiding over Soharabuddin trial”! This was followed, a day later, by another piece : ” Chief Justice of Maharashtra Hai Court Mohit Shah offerd Rs 100 crore to my brother for a favourable judgment in Soharabuddin case : Late Judge Loyas sister”.और अब तो इस विषय पर “Who Killed Judge Loya? ” इस टाइटल से 315 पन्नौकी एक किताब भी निरंजन टकले नाम के पत्रकार ने प्रकाशित की है. जिसका भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.


और सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस चलमेश्वर के आवास पर, दिल्ली में इसी केस को लेकर प्रेसवार्ता आयोजित की गई थी. लोया भी भारत के 140 करोड जनसंख्या के देश के एक नागरिक थे. तथा उनके मृत्यू के सिलसिले में प्रेसवार्ता करने के लिए बैठें चारों जजों की नागरिकता भारतीय ही थी. और सबसे महत्वपूर्ण बात आजभी, ब्रजगोपाल हरकिशन लोया के सभी रिश्तेदार भी भारत के ही नागरिकों में शुमार होते हैं. और जिस गुजरात दंगों के दौरान 2000 से अधिक लोगों को मारने काम आपके मुख्यमंत्री रहते हुए खुलेआम हुआ है. और इशरत जहाँ सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी और उनके सहयोगी तुलसी प्रजापति का एंनकाऊटर में हत्या कर दी गई वह भी.


और आपने अपने जीवन में पहली बार 10 अक्तुबर 2001 के दिन गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण के बाद 2002 के 27 फरवरी को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में एस 6 कोच में जलाये गए 59 प्रवासी भी भारतीय नागरिक थे. और उसके बाद 28 फरवरी को उनकी लाशों को लेकर खुले ट्रकों में अहमदाबाद के सड़कों पर जुलूस निकालने वाले भी भारत के नागरिक थे. और उन्हें यह सब कुछ करने की छूट देने वाले भी भारत के ही नागरिक थे. जिनकी इस कृति के कारण हजारों लोगों की मौत हो गई और कई औरतें के साथ बलात्कार किया गया वह भी भारत के नागरिक थे. और इस कारण, एकाएक आपकी चौवालिस इंची छाती छप्पन इंची बन गई और दंगे में शामिल बाबू बजरंगी से लेकर माया कोडनानी और हजारों की संख्या में शामिल लोग भी, भारत के नागरिक थे. और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “आपने राजधर्म का पालन नहीं किया,” और सोनिया गांधी ने आपको “मौत का सौदागर कहा है” जिन्हें आपने पांच करोड़ गुजरातना अपमान करने की बात कही है. मरने वाले 2000 लोग भी भारत के नागरिक थे. और मारने वाले भी 140 करोड जनसंख्या के देश के नागरिकों में शामिल थे. और वर्तमान समय में भारत के अल्पसंख्यक समुदायों की जनसंख्या लगभग एक चौथाई हिस्सा है. जो आपके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण असुरक्षित मानसिकता में जिने के लिए मजबूर है. और वह भी भारत के नागरिकों में शामिल होते हुए. आप भरी लोकसभा में दावा कर रहे हैं कि आपको 140 करोड जनसंख्या के सुरक्षा कवच प्राप्त है. मतलब चालिस करोड़ से अधिक जनसंख्या असुरक्षित मानसिकता में जिने के लिए मजबूर रहते हुए आप 140 करोड जनसंख्या के सुरक्षा कवच का दावा कैसे कर सकते हो ?


उसी सांप्रदायिकता के आधार पर आपके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई है. और भारतभक्त ‘गौतम अदानी’ के प्रायव्हेट जेट में बैठकर आपने देश के चुनाव प्रचार के इतिहास में सब से अधिक जनसभाओं को संबोधित करने का रेकॉर्ड बनाकर, 2014 का लोकसभा में सिर्फ 31 % भारत के मतदाताओं के मतों से पहली बार आपको भारत के प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है. और इसीलिये आपने लोकसभा के सिढी पर साष्टांग दंडवत करकेही प्रवेश करने की कृती संपूर्ण दुनिया ने देखा है. क्योंकि आपने भी सोचा नहीं होगा कि सचमुच ही आप 140 करोड़ जन संख्या के देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंच सकते हो. लेकिन 69 % लोगों ने अलग – अलग दलों को वोट देने के कारण ही आपको 31 % वोट मिलने के बावजूद आप देश के प्रधानमंत्री बनने की संभावना प्राप्त हुई है. यह संसदीय राजनीति की बहुत बड़ी खामियों में से एक है .
वहीं बात दुबारा 2019 के चुनाव प्रचार में आपके दल को 37-4 % ही वोट मिले. और आप 140 करोड जनसंख्या के देश के प्रधानमंत्री बनने के कारण आज आप 140 करोड जनसंख्या के लोगों का कवच मुझे प्राप्त है,जैसा बोल रहे हो यह साफ गलत है. आज भी आपको 63 % लोगों का मतलब दो-तिहाई लोग नही चाहते है “कि आप के जैसे सांप्रदायिकता के ध्रुवीकरण करकेही सत्ता में जाने की कोशिश करने वाले को 63 % लोग नहीं चाहते कि आप देश के प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त हो. ” यह हमारे देश के चुनाव की प्रक्रिया की सबसे बड़ी खामियों में से एक है. उसके बावजूद आपने भरी-पूरी लोकसभा में गलत दावा किया पेश किया है.
“कि मुझे इस देश के 140 करोड जनसंख्याका सुरक्षा कवच प्राप्त है “. अचानक सुरक्षा की बात कहाँ से आ गई ? यह तो मैंने केला खाया नही कहानी के जैसा दिखाई दे रहा है. अभि आपको कौनसा खतरा दिखाई दे रहा है ? जिससे 140 करोड जनसंख्या के देश के लोगों के सुरक्षा कवच की बात हो रही है. आपकों खुद को अच्छी तरह से मालूम है कि आप को कितने और कौन लोग पसंद कर रहे हैं. फिर भी आप संपूर्ण देश की आबादी को आपकी सुरक्षा कवच की उपमा देना कही आपकेही अपने असुरक्षित मानसिकता का परिचायक है.


अदानी भी हिंडेनबर्ग के रिपोर्ट को भारत के उपर हमला कह रहा हैं. और एक आप हो कि भरी लोकसभा में मुझे 140 करोड जनसंख्या के देश की जनता का सुरक्षा कवच प्राप्त है. दोनों दोस्तों को इस तरह की हरकतों को देखते हुए दाल में कुछ काला है, ऐसा लगता है. क्या बात है कि दोनों के दोनों देशों के आड में चले जा रहे हो ?
हालांकि आपने 2014 में पहली बार सत्ता में आने के तुरंत बाद ही हमारे जांच एजेंसियों को तुरंत ही अलग – अलग लोगों के उपर छापे डालने के कामों में लगा दिया है. तो एक छापा गौतम अदानी के प्रतिष्ठानों पर भी होता, तो देश और दुनिया को पता चल जाता कि आप सचमुच ही निस्पक्ष भाव से राजकाज कर रहे हो. यह आपकी छवी के लिए भी ठीक रहेगा. लेकिन जांच का मतलब खाली खानापूर्ति नही मामला आंतरराष्ट्रीय स्तर की एजेंसी हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के द्वारा उजागर करने का होने के कारण जांच भी आंतराष्ट्रीय स्तर की ही होना चाहिए. जिसके निस्पक्ष होने के बारे में कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए.


क्योंकि हमारे देश की एजेंसियों के बारे में आप खुद ही पोपट की उपमा दे चुके हैं. और वह गत दस सालों से अपनी पोपट की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं. यह किसी से अधिक आपको पता है, इसलिए सचमुच आप जमीन पर खड़े हो तो आंतरराष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी के द्वारा अदानी उद्योग समूह के आर्थिक घोटालों की जांच करने के लिए शुरुआत कर देनी चाहिए. क्योंकि आप लोकसभा में विरोधी दलों के नेताओं को गांधी पढ़ने की सलाह देते हुए देखा तो लगा कि आपने गांधीजी को पढा है. और बहुत ही अच्छा लगा कि आपने गांधी को पढा है. तो गांधी सत्य ही इश्वर या इश्वर ही सत्य मानने वाले लोगों में से एक थे. और राम ही उनके आराध्य दैवत थे. जिनके खानदान का विश्व प्रसिद्ध वचन प्रसिद्ध है “प्राण जाए पर वचन ना जाए रघुकुल रिति सदा चली आई “


और गत चालिस साल से भी अधिक समय से आप और आप की राजनीतिक पार्टि की, संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियो के केंद्रीय मुद्दे में, राम के नाम पर राजनीतिक सफर करने वाले लोगों को, झुठ का सहारा लेना कहा तक उचित है ? क्योंकि आने वाले समय में आप को प्रभू श्रीराम के राम मंदिर का निर्माण करने के बाद ही चुनाव प्रचार जो करना है. तो आने वाले चुनावों में आप को जनता के सामने गौतम अदानी के साथ आपके संबंधों को लेकर जवाब देना होगा. और वह भी भगवान राम की कसम खाकर इतना पक्का. अन्यथा लोग समझेंगे कि आप राम के नाम पर सिर्फ राजनीति कर रहे हो. जो गाँधीजी ने कभी भी नहीं कीया था. उनका राम तो “रघुपति राघव राजाराम और पतितपावन सिताराम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान.” जैसी सर्व धर्म समभाव की भावना का संदेश देने वाली प्रर्थना रोज अपनी प्रार्थना सभा में गाते थे. क्या आप को उनकी प्रिय प्रर्थना पसंद है ? अगर पसंद है तो पटना के आपके दल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इस गित को गाने वाली कलाकार को रोका गया है . और सचमुच पसंद है तो इतनी सांप्रदायिकता की राजनीति आप क्या गांधी जी को पढ़ने के बाद कर रहे हो ? और अगर आप ऐसा कर रहे हो तो आपको शायद गलत फहमी हो गई है, आपने गांधी जी की जगह बॅरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर और गुरू गोलवलकर को पढ़ने के बाद ही सांप्रदायिकता के राजनीतिका रास्ता अपनाया है. जो भारत के और एक बटवारे का कारण बन सकता है.


क्योंकि 1947 के बटवारे के पिछे भी यही प्रचार सांप्रदायिक ताकतों ने करने के कारण ही बटवारे की नौबत आई थी. और आप लोग पुनः उसी प्रकार अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भयभीत करने के लिए लगातार अलग – अलग हथकंडे अपनाकर समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को डराने का सब से बड़ा उदाहरण भारतीय पुलिस सेवा के सब से जांबाज पुलिस अफसर श्री. जुलियस रिबोरो के हालही के 86 साल की उम्र होने के बावजूद “अपने को ख्रिश्चन होने के नाते असुरक्षित महसूस होने की बात उजागर करने की बात को देखते हुए ” मुझे एक भारतीय नागरिक होने के नाते बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हो रही है. जिस आदमी ने आपके गृहराज्य गुजरात के डीजीपी से लेकर पंजाब के डीजीपी की भूमिका तथा क्रोएशिया के एंबेसडर रहते हुए, अपने जान को खतरा होने के बावजूद ( सबसे पहले जलंधर के पुलिस मेस में, उनके उपर हमला हुआ, और तुरंत वह और उनकी पत्नी को उन्होंने जमीन के समांतर लेटने की कोशिश की तो बाल – बाल बच गए, और उसके बाद क्रोएशिया एंबेसडर रहते हुए भी उनके उपर खालिस्तानी आतंकवादियों ने दुसरे हमले में उन्हे जान से मारने की कोशिश की. जिसमें उन्हें पेट के हिस्से में एक गोली लगी है, जिससे उनकी मुत्र की थैली फट गई है. और उसे सिलने की वजह से उन्हें बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है. जो उन्होंने मुझे बाकायदा अपना शर्ट बनियान खोलकर बताया है. हम दोनों 1999 में राजस्थान में एक कार्यक्रम में दोनो मेहमानों नाते साथ-साथ थे. और एकही कमरे में हम दोनों को ठहराया गया था. तब यह सब सुनने के बाद मैंने उन्हें पुछा कि आपको अभी कोई सरदार सामने देखने से कैसे लगता है तो उन्होंने बताया कि कुछ नही लगता क्योंकि आखिर मै एक शिपाई हूँ और हमें किसी भी कौम या जाति के बारे में सहृदयता से ही देखने की ट्रेनिंग दी जाती है इसलिए मुझे किसी सरदार को देखकर कभी गुस्सा नहीं आता है!
मैं जुलियस रिबोरो के उस लेख को देखते हुए, उसे संपूर्ण चालिस करोड अल्पसंख्यक समुदायों की मिलीजुली प्रतिक्रिया मानता हूँ. तो आपके 140 करोड जनसंख्या के देश के सुरक्षा कवच का दावा कहा तक उचित है ? जिस देश में सभी अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी तथा महिलाओं की संख्या को मिला लिया जाता है तो नरेंद्र मोदीजी के सुरक्षा कवच के लिए पंधरा – बीस प्रतिशत भी लोगों का समावेश नहीं हो सकता है. और देश के धन्नासेठों के साथ और समस्त उंची जातियों के लोगों की आर्थिक वृद्धि करने के लिए पूरी तरह जूट जाने वाले आदमी को सुरक्षा कवच कम- से- कम इस देश की 140 करोड जनसंख्या के लोगों से उम्मीद करना कृतघ्नता के मनोवृत्ति का परिचायक है. और अपने आपको भरमाने से लेकर देश की जनता की अपमान करने की कोशिश का परिचायक है. इससे आपके अंधभक्त लोकसभा में बेंच जरूर ठोकेंगे. लेकिन संकट की घड़ी में कोई आगे आकर अपनी जान जोखिम में डाल कर रत्ती भर की मदद करने के लिए आगे आने वाले नहीं हैं.
आप लोगों ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथ में जबरदस्त धनुष की दोरी खिचते हुए बाहुबली राम के चित्र रथयात्राओ में संपूर्ण देश में प्रचारित कीए है. तो आपने कौन सा गांधी पढा है ? यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है. क्योंकि दुष्यंत कुमार की गजल से लेकर आपके सभी संदर्भ आपही को उल्टा मुश्किलों में डालने वाले आपने या आपके भाषण तैयार करने वाले लोगों की नासमझी के कारण आपके मदद मे नही दुष्यंत कुमार काम आ सकता है. और गांधी तो आपके समस्त घोर सांप्रदायिक राजनीति के लिए बहुत ही मुश्किल की हस्ति को आपने लोकसभा में विपक्ष के सदस्यों को गांधी पढ़ने की सलाह देते हुए ऐतिहासिक गलती की है. और यह सिर्फ एक बार नहीं आपने बार – बार इस तरह की गलतियों को किया है. आप जिस आत्मविश्वास से अलेक्जेंडर से लेकर इतिहास और भूगोल के बारे में समय-समय पर अलग – अलग जनसभाओं में बोलते हुए, बाबर के बारे में कहा और आपकी सबसे बड़ी कमजोरी जवाहरलाल नेहरू के सिर्फ भारत एक खोज और पढ़ने की आदत नहीं तो श्याम बेनेगल का उसी किताब पर भारत एक खोज टीवी सिरियल है उसे ही देख लिजिये .


और इसिलिये बहुत ही गलत जानकारी देने के कारण आपके गांधी पढ़ने की सलाह भी संशय निर्माण कर रही है. क्योंकि आपने सचमुच ही गांधी पढ़ने का कष्ट किया होता तो गुजरात के दंगों को रोकने का काम हर संभव प्रयास करना चाहिए था, न कि उसे हवा देने की गलती की होती . तो वाल्मिकी के पूर्व आयुष्य के डकैती के जीवन का प्रायश्चित करने के रुप में मे ही वाल्मीकि रामायण लिखने का प्रयास किया है. लेकिन आपने तो अभितक गुजरात दंगों की गलती की माफी तक मांगने का कष्ट नहीं किया है. और भरी लोकसभा में आप गांधी को पढ़ने की सलाह देना कहा तक उचित है ?
और कुछ क्षणों के लिए मान लिया जाये कि आप गांधी जी का अध्ययन करने वाले लोगों में से एक हो, तो फिर 140 करोड़ जनता ने अपनी मेहनत से पसीना बहाने के बाद जमा किया हुआ पैसा, जो विभिन्न बैंकों में तथा जीवन बीमा कंपनी में अपनी बुढापे की जिंदगी में काम आयेगा, इस उम्मीद के साथ इसे रखने के विश्वास को, कमजोर करने की कृती. मतलब गौतम अदानी की कंपनीयोमे पैसे लगाने का फैसला किसके कहने से लिया गया है ? और वह भी हजारों करोड़ रुपए का. और आज हमारे देश के सभी वित्तीय संस्थाओं की विश्वसनीयता संशय के घेरे में क्यों आ गई है ? अब आम आदमी अपने पैसों को इन बैंकों में पहले जैसा विश्वास के साथ क्यों जमा नहीं कर पा रहे ?
एक सामान्य आदमी अपने घर बनाने के लिये, बैंक से कर्ज लेने के पहले कितने कागजी कार्रवाई और कितनी औपचारिकताओं से गुजरता है ? और गौतम अदानी एक झटके में एक लाख करोड़ रुपये, आसानी से इन्हीं बैंकों से कैसे और कौन सी गॅरंटी पर लेता है ? और किसके कहने पर ?


1988 में अदानी समूह अधिकृत रूप से रजिस्ट्री होता है. और पैतिस सालों के भीतर दुनिया के तिसरे नंबर पर आ जाता है. और भारत का पहले नंबर पर आने वाली बात ( हम पैदा हुए तबसे टाटा – बिर्ला यह नाम सुनते आ रहे हैं. )लेकिन गौतम अदानी दुनिया के औद्योगिक इतिहास का अजब का उदाहरण है.
2014 से आपने सत्ता में आने के बाद, कितने लोगों को ईडी, सीबीआई के द्वारा मनिलॉंडंरिंग के नाम पर छापेमारी कर के कारवाई की है ? लेकिन सबके पैसे को इकट्ठा किया तो भी गौतम अदानी के आर्थिक घोटालों की तुलना में एक चौथाई हिस्सा भी नहीं दिखाई देता है. फिर भी आप भरी लोकसभा में नेहरू, गांधी से लेकर कई – कई नाम आपने लिए है. लेकिन एक शब्द से भी गौतम अदानी का नाम न लेने की वजह क्या है ? दोनों सदनों की चर्चा तो अदानी उद्योग समूह के आर्थिक घोटालों को उजागर करने के हिंडेनबर्ग रिपोर्ट को लेकर ही तो थी. उसका जवाब देने की जगह “तुम्हारे पांव के निचे कोई जमीन नहीं” जैसे जुमले बाजी की जगह, अगर आप के पांवों के निचे जमीन है. जैसे दुष्यंत कुमार जैसे क्रांतिकारी कवि की कविता लेकर हमेशा के जैसे फस गए.
अब मै उसी कविता को पूरी देना चाहता हूँ, ताकि देश को पता चलना चाहिए कि असल में मामला क्या है? यह कविता दुष्यंत कुमार के साये में धुप नाम के 64 पन्नौकी कविता संग्रह में प्रकाशित आखिरी 64 वी कविता है.

“तुम्हारे पांवों के निचे कोई जमीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं
मै बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूँ,
मै इन नजारों का अंधा तमाशबीन नही
तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह,
तू एक जलिल सी गाली से बेहतरीन नही
तुम्ही से प्यार जताए तुम्ही को खां जाए,
अदिब यो तो सियासी है, पर कमिन नही
तुझे कसम है खुदा की बहुत हलाक न कर
तू इस मशीन का पूर्जा है, तू मशीन नही
बहुत मशहूर है, आए जरूर आप यहां,
ये मुल्क देखने लायक तो है, हसीन नही
जरा – सा तौर – तरीकों में हेरफेर करो
तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नही. “

इस पूरी कविता को पढ़ने के बाद नरेंद्र मोदी के साहित्य, इतिहास, भूगोल के ज्ञान के अज्ञानता का परिचायक है. यह कविता तो शतप्रतिशत उन्हें ही हरतरह से फिट बैठती है. मतलब अपने आधे-अधूरे संदर्भ देकर वह संसद या सभाओं में धाक जमाना चाहते हैं. लेकिन धाक तो दूर की बात है, उल्टा जग हसाई होती है.


तो सिधा – सिधा जवाब दो इधर-उधर की बात करने में ही एक घंटे से अधिक समय गवाने का मतलब क्या है ? नरेंद्र मोदीजी आपकों दोनों सदनों में चिल्ला – चिल्ला कर बोलते हुए देखकर मुझे आप के तबीयत की चिंता होने लगी है. क्योंकि आप सत्तर वर्ष पार कर चुके हैं. इसलिये और भी अधिक चिंता होती है. आपके पिछली सिटोपर बैठे हुए लोग, लाख अपनी बेंचो को थपथपाकर आपको उकसाने की कृती कर रहे थे. लेकिन उनके अपने सत्ता के हिसाब होंगे. लेकिन आप तो ठहरें फकिर आदमी, नहीं आपके आगे कोई हैं, और नही पिछे. तो फिर यह सब, वह भी देश के नाम पर, क्या गौतम अदानी उद्योग समूह की कंपनियों के शेयरों के मूल्य, झुठमुठ के बढाने ? और हमारे देश के लोगों की मेहनत का पैसा, इस तरह के जुआरी के हाथ में सौपना कहा तक उचित है ? आपने तो कहाँ था “कि मैं नहीं खाऊँगा और न ही किसी को खाने दूंगा. ” क्या गौतम अदानी अनशन ( जैनियों की भाषा में प्रायोपवेशन ) पर बैठे-बैठे ही, जो विश्व के सबसे बड़े अमिरो में शामिल हो गए ?

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