कोविड हालातों के बाद बदली स्थितियां, न शिक्षक संतुष्ट, न बच्चे खुश

सर्वत्र शिक्षा की मंशा के साथ देश की राजधानी से लेकर मप्र की राजधानी तक से आवाजें उठती रही हैं, स्कूल चलें हम…! अभियान के बेहतर मकसद और इसके लिए की गई ईमानदार कोशिशों ने शिक्षा से जोडऩे की नई कवायदें और नतीजे दिए हैं। यह स्थिति बेहतर से बेहतरीन की तरफ जा ही रही थी कि अचानक कोविड हालातों ने इस रफ्तार के कदम रोक लिए। स्कूलों की तालाबंदी ने बच्चों की शैक्षिक प्रगति के रास्तों को अवरुद्ध करना शुरू किया है, लेकिन इसी के बीच से एक रास्ता निकलकर आया, स्कूल आपके द्वार…।

बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने से रोकने की मंशा के साथ छोटी कक्षाओं के बच्चों को उनके घर-आंगन में ही शिक्षकों की मौजूदगी और किताबों का ज्ञान हासिल होने लगा है। हालांकि इस स्थिति से न शिक्षक खुश हैं और न बच्चों को इससे संतुष्टि मिल पा रही है।

सागर जिले के घाटमपुर माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका सरोज प्रजापति की दिनचर्या अब बदली हुई है। पहले वे घर से स्कूल पहुंचकर बच्चों के आने का इंतजार करती थीं। उनके आने पर शुरू होता था कक्षाओं का दौर और वे पूरे स्कूल टाइम में बच्चों को परीक्षाओं के साथ आम जीवन में काम आने वाली बातों की तालीम देती थीं। सरोज शैक्षणिक कामों से हटकर सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़ी रही हैं। सांस्कृतिक दीक्षा की तरफ भी उनका बेहतर रुझान रहा है।

 

इसी के चलते वर्ष 2019 में उन्हें राज्यपाल द्वारा दिए जाने वाले शिक्षक सम्मान के लिए चयन किया गया था। हालांकि सितंबर 2020 में दिए जाने वाले इन पुरस्कारों का वितरण कोविड हालात के चलते अब तक नहीं हो पाया है, लेकिन सरोज प्रजापति के हौसले और जोश में अब भी कोई कमी नहीं है। वे अब नियमित रूप से अपनी कक्षा के बच्चों के घर-आंगन तक पहुंच रही हैं। एक क्षेत्र में निवास करने वाले कुछ बच्चों को जमा कर उनकी कक्षा शुरू हो जाती है।

अब पहले की तरह किसी छत के नीचे लगने वाली क्लास, ब्लैक बोर्ड, टेबल या दरियों के हालात बदले हुए हैं। अब खुली हवा, पेड़ों की छांव और खुले आकाश के नीचे कक्षाओं का संचालन हो रहा है। परीक्षाओं के लिए माकूल तैयारी हो सके, इस मंशा के साथ बच्चों को उनके घर-आंगन तक पहुंचकर तैयारी करने का सिलसिला फिलहाल कब तक चलेगा, इसको लेकर कोई निश्चित समयसीमा नहीं बताई जा सकती, लेकिन शिक्षिका सरोज प्रजापति कहती हैं कि शिक्षा के लिए किसी एक निश्चित स्थान की बाध्यता मायने नहीं रखती, बल्कि दिए जाने वाले शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्कारों के लिए हौसले की जरूरत है।

वे कहती हैं कि बदले हालात को बच्चों ने भी स्वीकार कर लिया है और अब वे अब अपने घर, आंगन, मुहल्ले या खेत-खलिहान में भी बैठकर ज्ञान अर्जित करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। सरोज कहती हैं कि हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहेंगे, अभी पाबंदियां हैं, लेकिन उनके नाम पर ठहरा नहीं जा सकता, उनके लिए रफ्तार नहीं रोकी जा सकती, चलते रहने से शिक्षा की गति बनी रहेगी और जब भी हालात सामान्य होंगे, विद्यार्थी खुद को मुख्यधारा से जुड़ा हुआ पाएंगे।

रानी रूपमति की नगरी मांडू के आसपास स्थित वादियों के बीच बसा गांव मगजपुरा। यहां के माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों को शिक्षा सूत्र में बांधे रखने की सरकारी जिम्मेदारी शिक्षक इरफान पठान को मिली हुई है। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित इरफान बच्चों को शिक्षा के गुणों से दो कदम आगे रखने में विश्वास रखते हैं।

इसी के चलते नवाचार के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। बच्चों को बेसिक शिक्षा के साथ आम जिंदगी में काम आने वाली नई बातों से वे अवगत कराते आए हैं। जिला मुख्यालय धार से कुछ ही दूरी पर बसे ग्राम मगजपुरा की वादियों में इरफान पठान को तालीम देते हुए दशक से ज्यादा समय गुजर गया है। पहले वे स्कूल में बच्चों के बीच हुआ करते थे, अब बच्चों को लेकर कभी खेत में तो कभी खलिहान में, कभी पेड़-पौधों के बीच तो कभी किसी टापूनुमा छोटी पहाड़ी पर अपनी कक्षा लगाए नजर आते हैं।

बदले नजारे से बच्चे संतुष्ट नहीं

स्कूल चलें हम, की बजाए, स्कूल आपके द्वार ने बच्चों के पढ़ाई के रिदम को बनाए रखने में जरूर महति भूमिका निभाई है। उन्हें विषय और परीक्षा संबंधी ज्ञान तो हासिल हो रहा है, लेकिन उनके स्कूल जाने की ललक को झटका भी लगा है और उनके स्कूली खिलंदड़पन को नुकसान भी हुआ है। घर से स्कूल तक जाने, कक्षाओं की उनकी गंभीरता और खेल मैदान की उनकी मस्ती को वे अब याद भी करने लगे हैं और अपनी नन्हीं जिंदगी में इसकी कमी को भी महसूस कर रहे हैं।

खान अशु

Adv from Sponsors