शाहजहांपुर में एक वक्त वह भी था जब उसके पास अपना कारखाना था जिसमें वह कालीन व कपड़ों की बुनाई कर हजारों रुपये कमाया करते थे. उसकी कमाई से उन लोगों ने खेती योग्य भूमि खरीदी मगर इसे प्रशासनिक उपेक्षा ही कहा जाएगा कि दबंगों ने समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति यानी कुष्ठ रोगियों को मारपीट कर खदेड़ दिया. लाखों की कीमत की मशीनें ही नहीं, भारी-भरकम भवन के खिड़की पल्ले तक चोरी कर लिए गए और उन बेचारों का यह कारखाना धीरे-धीरे ढहते हुए आज अपनी वीरानगी पर स्वयं आंसू बहा रहा है. शहर शाहजहांपुर से सटे निगोही मार्ग पर एक गांव है सतवां बुजुर्ग. इस मार्ग पर साल में तीन बार अधिकारियों, गणमान्य नागरिकों की गाड़ियां जरूर आती हैं. बस कहने को 26 जनवरी, 15 अगस्त, 02 अक्टूबर को सरकारी कार्यक्रम के अनुसार अधिकारी आदर्श गांधी कुष्ठ आश्रम में झंडारोहण करने व कुष्ठ रोगियों को फल दवाईयां बांटने जाते हैं, मगर हकीकत यह है कि अधिकारी जाते हैं नेहरू कुष्ठ आश्रम.
आखिर गांधी आश्रम है कहां? शायद इस बात की जानकारी वर्तमान जिला प्रशासन और संबंधित अधिकारियों को भी नहीं है. जबकि आदर्श गांधी कुष्ठ स्वरोजगार आश्रम वहीं कुछ दूरी पर स्थित है. दो एकड़ से अधिक भूमि पर खड़े लंबे चौड़े खंडहर बताते हैं कि यहां कभी कोई आश्रम था. 22 सितम्बर 1976 को इस भवन का उद्घाटन तत्कालीन स्वायत्त व कारागार राज्यमंत्री श्रीकृष्ण गोयल ने किया था. दूसरा भवन 1980 में बना जिसकी आधारशिला रोटरी क्लब स्कॉटलैंड के जिलाधीश श्यामलाल ने रखी. भवनों पर लगे पत्थरों पर लिखी इबारत इसकी विशालता का बखान करती है. झाड़-झंखाड़ से घिरे इन भवनों में एक दशक पूर्व ही लगी बड़ी-बड़ी मशीनों व करघों पर कालीन व वस्त्रों का निर्माण होता था. वे मशीनें आज नदारद हैं. यही नहीं, अलग-अलग बने आधा दर्जन से अधिक लंबे चौड़े भवन जिनमें कारखाने व कुष्ठ रोगियों के निवास हुआ करते थे, उनके खिड़की दरवाजे तक उखाड़ कर चोर ले गए.
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वहीं समीप स्थित नेहरू कुष्ठ आश्रम में बसने वाले राजाराम बताते हैं कि हम लोगन की बहुत खराब स्थिति है. मात्र वर्ष में तीन दिन अधिकारी आते हैं. उनके रहने की थोड़ी बहुत व्यवस्था तो स्वयंसेवी संगठनों द्वारा कर दी गई, मगर हम लोगों को खाने के लिए भीख मांगने के अलावा और कोई उपाय सूझता ही नहीं है. बता दें कि कुछ वर्ष पूर्व भी गांधी कुष्ठ आश्रम की हालत को लेकर आवाज उठाई गई थी लेकिन आज तक इसकी सुध नहीं ली गई. अब देखना है कि वर्तमान जिला प्रशासन इस आश्रम के प्रति क्या कार्रवाई करता है, ताकि एक बार फिर कुष्ठ रोगी पूर्व की भांति पुनः अपने बसेरे में रहकर रोजमर्रा के कार्यों को अंजाम देते हुए स्वावलंबी बन सकें.
कुष्ठ रोगियों को बसाने का बीड़ा उठाया तो मिल रही हैं धमकियां
चार दशक पूर्व जिले के कुष्ठ रोगियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से निर्मित कराए गए गांधी आदर्श कुष्ठ आश्रम की वीरानगी को खत्म करने के लिए कुछ दिनों से स्वयं को आश्रम की सचिव बताने वाली कुमारी महक ने फिलहाल जयपुर से यहां आकर अपना बसेरा बनाया हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके दादा नजीर आलम द्वारा बनाई गई सोसायटी के जरिए अथक प्रयासों के बाद इसका निर्माण कराया गया था. जब वह बड़ी हुईं तो उन्होंने अपने अन्य आश्रमों के साथ ही इस आश्रम की दुर्दशा को दूर करने का बीड़ा भी उठाया. जिसके चलते गणतंत्र दिवस पर सपा जिलाध्यक्ष तनवीर खां ने यहां पहुंचकर उन्हें शासन-प्रशासन से हर संभव मदद दिलाने का आश्वासन दिया. नगर विधायक सुरेश कुमार खन्ना ने भी उन्हें भविष्य में आश्रम के लिए सोलर लाईटें स्थापित कराए जाने का भरोसा दिया.
इसके इतर आश्रम की सचिव इस बात से बेहद परेशान और चिंतित दिखाई दीं कि उन्हें इस आश्रम को दोबारा संचालित करने की प्रक्रिया में आए दिन जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. कारण पूछने पर बताती हैं कि आश्रम की बेशकीमती संपत्ति पर दबंग भू-माफियाओं की नजरें गड़ी हुई हैं. उनकी मांग है कि आश्रम में एक पुलिस चौकी स्थापित कराई जाए. आश्रम की स्थापना के बारे में वह बताती हैं कि वर्ष 1976 में तत्कालीन राज्यमंत्री श्रीकृष्ण गोयल ने इसका शिलान्यास किया था. जिसकी पुष्टि वर्तमान में वहां स्थापित एक शिलापट से की जा सकती है. बाद में यहां लगभग 40 कुष्ठ रोगी हथकरघा, दरी कालीन आदि निर्मित कर अपना जीविकोपार्जन कर रहे थे. लेकिन बेसहारा कुष्ठ रोगियों की इस संपत्ति पर कुछ दबंग भू-माफियाओं की नजर पड़ी. माफियाओं ने रात में कई बार आश्रम में निरीह कुष्ठ रोगियों पर हमले कराए. यहां तीन बार डकैती भी पड़ी. थक हारकर एक-एक करके यहां से सभी कुष्ठ रोगी अन्यत्र पलायन कर गए. जंगल के बीच खंडहरनुमा इस दयनीय आश्रम में रात्रि के वक्त आश्रम की सचिव अकेली रहती हैं. वे कहती हैं कि ऊपर वाले के भरोसे मैं यहां कुष्ठ रोगियों को दोबारा बसाने का संकल्प ले चुकी हूं और इससे मैं पीछे नहीं हटूंगी.