कब्जा किया हुआ है. पलामू के पूर्व सांसद जोरावर राम ने बकायदा इसकी शिकायत मुख्यमंत्री, पुलिस सब से की. मुख्यमंत्री ने उक्तजमीन को कब्जा से छुड़ाने के लिए संबंधित अधिकारियों को पत्र भी लिखा. लेकिन पुलिस से लेकर बीडीओ और डीसी तक उस जमीन से अवैध कब्जा नहीं हटवा सके. अब इसके दो ही मायने हो सकते हैं. एक तो ये कि या तो पुलिस और अधिकारी भूमाफिया से मिले हैं या फिर झारखंड के भूमाफिया मुख्यमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर हैं. झारखंड में भूमाफियागिरी का यह एक नमूना भर है. यह कहानी बताती है कि झारखंड में क्यों नक्सलवाद की समस्या इतनी ज्यादा है. नक्सलवाद की समस्या का एक सीधा संबंध जमीन से भी है. और जब एक पूर्व सांसद, मुख्यमंत्री तक के पत्रों का असर नहीं होता, पुलिस और अधिकारी भूमाफिया के चंगुल से जमीन का कब्जा नहीं हटवा पाते हैं, तो ऐसे में झारखंड के ग्रामीण इलाकों की हालत क्या होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
झारखंड के भू-माफिया से पूर्व सांसद जोरावर राम इस कदर परेशान हैं कि उन्हें अपनी जमीन बचाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार से बार-बार गुहार लगानी पड़ रही है. आश्चर्य की बात है कि भू-माफिया पर नकेल कसने के बजाय सरकारी अधिकारी भी मूक-दर्शक बने हैं. सच्चाई ये है कि झारखंड में भू-माफिया ने अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा ली है कि पुुलिस व प्रशासन भी उनके खिलाफ कार्रवाई करने से बचती है.
पलामू के पूर्व सांसद जोरावर राम दलित समुदाय से हैं. डाल्टेनगंज से एक किलोमीटर दूर थाना चैनपुर में ग्राम शाहपुर गढ़वा रोड के समीप उन्होंने 1980 में अजायब दुसाध से 66 डिस्मिल जमीन खरीदी थी. इसका एक हिस्सा करीब 17 डिस्मिल जमीन नेशनल हाईवे की भेंट चढ़ गया, जिसका उन्हें पूरा मुआवजा भी मिला. इसके बाद उन्होंने बाकी बची जमीन पर कुछ कमरों का निर्माण कराया और चहारदीवारी करा दी. लेकिन करोड़ों रुपए की इस बेशकीमती जमीन पर भू-माफिया आयरश गिरोह सरगना मनोज शर्मा की नजर टिकी थी. जिला पलामू के खाता 132 में अजायब दुसाध वगैरह का 21 एकड़ 20 डिस्मिल जमीन थी. दरअसल 1922 में गांव में आयोजित एक पंचायत के अनुसार, इसमें हर प्लॉट में से आधी जमीन बढ़ई समुदाय के लोगों को दी जानी थी. रामधनी मिस्त्री और उनके पुत्र केदार शर्मा, भोला शर्मा एवं मनोज शर्मा ने अपने हिस्से की आधी से भी अधिक जमीन बेच दी थी. यहां तक कि उन्होंने अपने गोतिया की एक करोड़ रुपए की जमीन भी बेच दी. जब उनके पास एक छटांग जमीन भी नहीं बची, तो उन्होंने एक आयरश गिरोह बनाकर सरकारी प्लॉट पर कब्जा करना और लोगों से रंगदारी वसूलना शुरू कर दिया. 35 साल से जोरावर राम भू-माफिया से एक अंतहीन लड़ाई में उलझे हैं. हालांकि अपनी जमीन बचाने के लिए केस लड़ने के एवज में वे अब तक 50 लाख रुपए की जमीन तक बेच चुके हैं, लेकिन एक जिद है, जिसके आगे वे भू-माफिया के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोरे आश्वासन के सिवाय अब तक कोई मदद नहीं मिली है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 26 मई 2016 को गृह सचिव, झारखंड को इस संदर्भ में शीघ्र रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए थे. लेकिन आज तक न कोई रिपोर्ट भेजी गई और न ही कार्रवाई किए जाने की कोई सूचना ही दी गई. यहां तक कि मुख्यमंत्री रघुबर दास ने भी 2 दिसंबर 2015 को गृह विभाग को पत्र भेजकर इस मामले में सीआईडी जांच कराए जाने की मांग की थी. लेकिन इस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
27 जुलाई 2016 को जोरावर राम ने डीजीपी डीके पांडेय को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने विस्तार से भू-माफिया के काले कारनामों की जानकारी दी. उन्होंने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया कि आप अक्सर कहते हैं कि 2016 तक राज्य से उग्रवाद खत्म कर दिया जाएगा, लेकिन जब तक भू-माफिया क्षेत्र में फलते-फूलते रहेंगे, उग्रवाद पर आप कैसे नियंत्रण कर सकेंगे. पूर्व सांसद जोरावर राम कहते हैं, क्या इन उपायों से ही राज्य से नक्सलवाद खत्म होगा? राज्य के अधिकारी मुख्यमंत्री की सुनने को तैयार नहीं हैं. सरकारी जमीन पर भू-माफिया पुलिस संरक्षण में कब्जा करने में लगे हैं. राज्य में गरीब-गुरबों की आवाज नहीं सुनी जा रही है. अगर इनकी आवाज इसी तरह अनसुनी होती रही, तब क्षेत्र मेंनक्सलवाद तो और बढ़ेगा ही.
जोरावर राम बताते हैं, दो नवंबर 2016 को वे सीओ ऑफिस गए थे. सीओ ने फोन कर स्थल पर आने के लिए कहा. सीओ के साथ पूर्ति अधिकारी व कुछ पुलिस के जवान भी मौके पर मौजूद थे. केदार शर्मा और संतोष शर्मा स्थल पर ही सीओ से बक-झक करने लगे. उन्होंने सरकारी अधिकारियों के सामने मुझे जान से मारने की धमकी दी. वे किसी तरह भागकर अपनी गाड़ी में पहुंचे, जहां उनका बॉडीगार्ड मौजूद था. भू-माफिया के लोगों ने चारों तरफ से गाड़ी घेर ली और हाथापाई करने लगे. तब तक सभी सरकारी अधिकारी व पुलिस के जवान मौके से फरार हो गए थे. जोरावर राम कहते हैं, सरकारी अधिकारी मेरी जान क्या बचाते, वे अपनी जान बचाकर ही किसी तरह मौके से भागने में लगे रहे.
अब वे हताश, लाचार होकर भू-माफिया के डर से अपने घर में कैद रहने को मजबूर हैं. वे कहते हैं, अपनी जमीन पर जाता हूं, तो माफिया के आदमी जान से मारने की धमकी देते हैं. 27 अप्रैल 2016 को बदमाश लोगों ने उनके घर का कुछ हिस्सा व हाता भी ता़ेड दिया. पुलिस अधिकारियों से कई बार इन लोगों के खिलाफ शिकायत की, पर पुलिस उनकी नहीं सुनती. यह एक ऐसे दलित सांसद की कहानी है, तो साधारण गांव में रहने वाले दलितों का क्या हाल होगा, यह सोचना भी अंदाज से परे है.