lalu yadavराष्ट्रीय राजनीति में लालू प्रसाद की बड़ी और ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय जनता दल ने उन्हें भाजपा विरोधी गठबंधन को आकार देने की पहल करने के लिए अधिकृत कर दिया है. पटना में संपन्न हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में लालू प्रसाद को नौंवी बार निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने का औपचारिक ऐलान किया गया. अधिवेशन में उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में महा-गठबंधन की ऐतिहासिक जीत का नायक बताया गया, साथ ही उनसे इस राजनीतिक प्रयोग को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने के लिए भी कहा गया, जिसे लालू प्रसाद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. उन्होंने घोषणा की, भाजपा को बिहार से बाहर किया है और अब देश से बाहर करके ही दम लेंगे. इसके लिए मेरा अभियान अब आरंभ हो रहा है.

जिन नेताओं ने लालू प्रसाद से यह अभियान शुरू करने की अपील की, उनमें तेजस्वी प्रसाद यादव भी शामिल हैं. तेजस्वी का मानना है, देश लालू प्रसाद यादव की प्रतीक्षा कर रहा है. आप आइए, सभी को इकट्ठा कीजिए और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाइए. यह संसदीय चुनावी राजनीति की रणनीतिक अभिव्यक्ति रही, जिसमें लालू प्रसाद और उनके बहाने राजद को प्रासंगिक बनाने की उत्कट चाहत है. इस लिहाज से राजद की राजनीतिक पूंजी पिछड़े एवं अल्पसंख्यक समुदाय की गोलबंदी के ख्याल से अधिवेशन में कुछ विशिष्ट प्रस्ताव भी पारित किए गए.

राजद ने मुस्लिम मतदाता समूह को अपनी ओर खींचते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के दर्जे को लेकर मोदी सरकार के रुख की गहरी आलोचना की और इस मसले पर आंदोलन की चेतावनी भी दी. राज्य के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी के अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए दशकों पुराने पंद्रह सूत्रीय कार्यक्रम को नए सिरे से शुरू करने के प्रस्ताव को तो अधिवेशन ने स्वीकार कर ही लिया, राजद प्रमुख ने इसे आंदोलन का एक बड़ा मसला भी बताया.

राजद के राष्ट्रव्यापी आंदोलन का तीसरा बड़ा मसला जातीय जनगणना की रिपोर्ट का प्रकाशन और सरकारी सेवाओं में उसके अनुरूप आरक्षण का पुनर्निर्धारण है. वैसे तो राजद ने अपने प्रस्तावित आंदोलन के लिए महंगाई, केंद्र सरकार के किसान विरोधी फैसलों और उसकी भूमि अधिग्रहण नीति को भी मुद्दा बनाने की घोषणा की है, लेकिन राष्ट्रीय अधिवेशन में लालू प्रसाद के भाषण से यह तो सा़फ है कि उनका जोर अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों की गोलबंदी की प्रक्रिया तेज करने वाले उपर्युक्त तीन मसलों पर ही होगा. और, यह लालू प्रसाद की राजनीति के अनुरूप है.

लालू प्रसाद का संपूर्ण भाषण बिहार, महा-गठबंधन सरकार की सफलता, वादों और भाजपा विरोध पर ही केंद्रित रहा. लालू प्रसाद ने अपने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते को अटूट बताते हुए कहा कि सूबे में महा-गठबंधन की सरकार अगले बीस वर्षों तक चलेगी. राजद प्रमुख ने महा-गठबंधन के विरोधियों का मुंह बंद कराते हुए स्वीकार किया कि नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री उनकी राय लेकर ही कोई फैसला करते हैं. उनका कहना था, सब कुछ हमसे राय लेकर होता है, हम हर सवाल पर बात करते हैं. यह लालू प्रसाद को संविधानेतर सत्ता बताकर सरकार के कामकाज में उनके हस्तक्षेप संबंधी आरोप का जवाब था.

लालू प्रसाद यहीं नहीं रुके और उन्होंने पूछा, आरएसएस की क्या हैसियत है कि मोदी सरकार के मंत्री उसे अपने विभाग के कामकाज का हिसाब देते हैं? ग़ौरतलब है कि दरभंगा की दो ममता कार्यकर्ताओं को काम पर रख लेने की उनकी पैरवी पर बवाल मच गया था. इसी तरह पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) के उनके निरीक्षण को मुद्दा बनाने की राजनीति के जवाब में उन्होंने कहा, सबको मालूम है, किसकी बहन पीएमसीएच का निरीक्षण करती थी. यह भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी पर सीधा हमला था. एनडीए के पहले शासनकाल (नवंबर, 2005 से अक्टूबर, 2010) में परवीन अमानुल्लाह एवं रेखा मोदी ने पीएमसीएच का सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर कई बार निरीक्षण किया था और विभिन्न गड़बड़ियां सार्वजनिक की थीं.

नौकरशाह अफजल अमानुल्लाह की पत्नी परवीन बाद में जद (यू) विधायक और एनडीए-2 में समाज कल्याण मंत्री बनीं. रेखा मोदी को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का बहन बताया गया था. लालू प्रसाद ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन की वकालत की और इस सिलसिले में कुछ भी करने की खातिर खुद को तैयार बताया. राजद प्रमुख ने आरोप लगाया कि केंद्र की एनडीए सरकार बिहार के साथ भेदभाव कर रही है, मनरेगा एवं इंदिरा आवास जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं के धन में मनमानी कटौती की जा रही है. अधिवेशन में लालू प्रसाद ही नहीं, राबड़ी देवी एवं तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी राज्य में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति पर सरकार का जोरदार बचाव किया.

राबड़ी देवी ने राज्य में हुईं हत्या-रंगदारी की घटनाओं को राजनीतिक और जातीय रंग देने की कोशिश की. राजद के इस अधिवेशन ने सा़फ कर दिया कि लालू प्रसाद राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं और बिहार में राजद की कमान अपने छोटे पुत्र तेजस्वी के हाथों में सौंपने की रणनीति सरजमीं पर उतार रहे हैं. अधिवेशन के दौरान रघुवंश प्रसाद सिंह को छोड़कर किसी भी वक्ता से बड़ी हैसियत तेजस्वी को बख्शी गई. खुले अधिवेशन में स्वाभाविक तौर पर लालू प्रसाद को अंतिम वक्ता होना था, वह थे भी. लेकिन, उनसे पहले के तीन वक्ताओं का क्रम रहा, तेजस्वी प्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह एवं राबड़ी देवी. ज़ाहिर है, अब्दुल बारी सिद्दीकी, प्रभुनाथ सिंह, तस्लीमुद्दीन एवं जगदानंद सिंह के साथ-साथ रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे दिग्गजों को जता दिया गया कि उनकी राजनीतिक उम्मीदें अब सीधे तेजस्वी की सफलता से जुड़ी हैं और वही राजद का अगला नेतृत्व हैं.

राजद प्रमुख भी अपने लंबे संबोधन के दौरान बार-बार तेजस्वी का नाम लेते रहे. उन्होंने अपने भाषण में तेज प्रताप यादव के कार्यों की तारी़फ की, विशेषकर अवैध दवा कारोबार के खिला़फ स्वास्थ्य विभाग के अभियान को लेकर. राजद प्रमुख ने अपने भाषण में दल के किसी अन्य नेता के विचारों की कोई चर्चा नहीं की या उसकी ज़रूरत नहीं समझी. वक्ताओं का क्रम और अपने संबोधन में राजद प्रमुख का अपने पुत्रों (राबड़ी देवी के कारण परिवार कह सकते हैं) के नाम लेने तक सीमित रहना क्या अनायास था? नहीं, यह सायास था और इसका एक सुनिश्चित संदेश है. यह संदेश बहुत सा़फ तरीके से राजद ही नहीं, बिहार के राजनीतिक एवं प्रशासनिक (वजह, राजद सूबे के सत्तारूढ़ गठबंधन में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है) हलकों में चला गया.

इसके राजनीतिक निहितार्थ आने वाले दिनों में राजद और राजद बनाम नौकरशाही के आचरण में अभिव्यक्त हो सकता है. वस्तुत: इस अधिवेशन में परिवार की हैसियत बढ़ी और लालू-राबड़ी के बाद तेजस्वी को ही तवज्जो मिली. यह तवज्जो मंच पर दिखी, अधिवेशन स्थल पर दिखी और मीडिया में भी. लालू-राबड़ी के बड़े पुत्र एवं राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव के प्रति लोगों में आकर्षण तो था, लेकिन राजनीतिक तौर पर उनकी सक्रियता कहीं नहीं दिख रही थी. राज्य के मंत्री होने के नाते वह मंच पर मौजूद थे, लेकिन संबोधन का मा़ैका उन्हें नहीं मिला. लालू-राबड़ी ने अधिवेशन को संबोधित करने के लिए उन्हें कहा भी नहीं.

राजद के अधिवेशन में सात प्रस्ताव पारित किए गए. राजनीतिक प्रस्ताव में बिहार के भाजपा विरोधी महा-गठबंधन की तर्ज पर अन्य राज्यों में मोर्चा बनाने का आह्वान किया गया है. इसके लिए दल ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को राष्ट्र स्तर पर पहल करने और उस राजनीतिक मोर्चे का नेतृत्व संभालने को कहा है. दल का मानना है कि बिहार में लालू प्रसाद की भाजपा विरोधी राजनीतिक पहल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोक दिया. इसके अलावा देश में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने के साथ-साथ अल्पसंख्यक दलितों के लिए सरकारी नौकरी में तीन से चार प्रतिशत आरक्षण की मांग की गई है. दल ने इस मसले पर अपने अध्यक्ष की अगुवाई में आंदोलन करने का फैसला लिया है.

इसी तरह महंगाई, शिक्षा के भगवाकरण और किसानों के सवाल पर लालू प्रसाद के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का फैसला लिया गया. पारित प्रस्तावों में सबसे महत्वपूर्ण है दल का सांगठनिक प्रस्ताव. अधिवेशन में सांगठनिक प्रस्ताव पारित कर युवाओं को राजद से जोड़ने की बड़ी पहल करने के साथ-साथ दल की आंतरिक स्थिति में लालू नाम केवलम्‌ को संवैधानिक स्वरूप भी दिया गया. पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन कर 15 वर्ष के युवाओं (किशोर) को दल में शामिल करने का फैसला लिया है. ऐसा पार्टी को युवा लुक देने और विस्तार के ख्याल से किया गया. यह काम बिहार की महा-गठबंधन सरकार के उपमुख्यमंत्री एवं लालू-राबड़ी के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी प्रसाद यादव की पहल पर किया गया.

पार्टी के संविधान में एक और महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है कि राजद की संपत्तियों की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे. राजनीतिक एवं अन्य महत्वपूर्ण मसलों पर फैसले लेने के लिए एक कोर ग्रुप का गठन किया जाएगा. इस 11 सदस्यीय कोर ग्रुप की सिफारिशें भी राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति से ही लागू की जा सकेंगी. यानी जो कहें लालू, जो करें लालू.

सूबे में भले ही महा-गठबंधन सरकार है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, लेकिन विधानसभा में उनकी ताकत राजद से कम है. पार्टी एक दशक के बाद सत्ता में लौटी है और इस सत्ता-वापसी का उल्लास अधिवेशन में मौजूद सभी सात सौ लोगों के चेहरे पर दिख रहा था, तैयारियों और व्यवस्था में भी दिख रहा था. लेकिन, अधिवेशन में कई ऐसे संयोग रहे, जो राजद हलके में कांटे की तरह चुभते हैं. अधिवेशन में जिस चेहरे को सारी आंखें खोज रही थीं, वह हैं लालू-राबड़ी की ज्येष्ठ संतान मीसा भारती. मीसा पिछले दो वर्षों से राजद की आंतरिक राजनीति में काफी सक्रिय रही थीं.

गत संसदीय चुनाव भी उन्होंने लालू प्रसाद की उत्तराधिकारी के तौर पर पाटलिपुत्र से लड़ा था, लेकिन हार गई थीं. फिर विधानसभा चुनाव में उन्हें स्टार प्रचारक घोषित किया गया था. चुनाव के बाद सरकार में उनके शामिल होने की बात जोरों से उठी थी, जो आकार नहीं ले सकी. उन्हें राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात भी चली. राजद के वरिष्ठ नेता मोहम्मद इलियास हुसैन ने उनका नाम पेश किया था और कई विधायकों ने इसका समर्थन भी किया था, लेकिन लालू प्रसाद ने इस पद पर आसीन रामचंद्र पूर्वे को फिलहाल मुक्त करना ज़रूरी नहीं समझा. मीसा भारती का नाम हवा में रह गया.

सो, इस अधिवेशन से मीसा भारती अनुपस्थित रहीं. एक दिन पहले पुरानी कार्यकारिणी की बैठक में उपस्थित होने के बावजूद खुले अधिवेशन से इलियास हुसैन भी गायब रहे. यही नहीं, अधिवेशन से अनुपस्थित विधायकों की संख्या दर्जनों में रही, जिनमें अधिकांश पुराने विधायक हैं यानी दो दशक पुराने. अधिवेशन से नदारद रहने वाले उन विधायकों की संख्या भी अच्छी-खासी रही, जो लालू प्रसाद के वोट बैंक के सामाजिक समूहों से आते हैं. नई-नई जीत मिली है, सरकार मिली है. फिर इन छोटी-मोटी बातों पर कौन सोचता है, किसे फुर्सत है!

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