घोटालों के आरोपों से घिरे लालू प्रसाद इन दिनों राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय हैं. हालांकि लालू की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं है. लालू के विरोधी जितनी ताकत से उन पर प्रहार करते हैं, लालू भी उन पर दोगुनी ताकत से हमला करते हैं. इन दिनों सुशील मोदी रोजाना लालू और उनके परिवार के सदस्यों पर घपले और घोटाले का आरोप लगा रहे हैं.
इन आरोपों की जद में लालू, राबड़ी देवी, उनके दोनों मंत्री पुत्र तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव भी आ चुके हैं. बेटी और सांसद मीसा भारती और दामाद शैलेश भी चपेटे में हैं. मीसा और शैलेश से आयकर विभाग पूछताछ कर रही है और अब ये दोनों ईडी के निशाने पर हैं. चारा घोटाले के देवघर से जुड़े मामले में लालू प्रसाद को भी अदालत में पेश होना है.
लालूू परिवार के प्रस्तावित सबसे बड़े मॉल का निर्माण अधर में लटक गया है. नीतीश कुमार को लेकर भी लालू प्रसाद इस समय बहुत ज्यादा आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं. लालू प्रसाद भले ही सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि नीतीश की तरफ जो डोरा डालता है, हम उस डोरे को ही काट देते हैं लेकिन सवाल यह है कि जब नीतीश ही डोरे के नजदीक जाने लगेंगे तो फिर लालू प्रसाद क्या करेंगे? लालू परिवार पर लग रहे घोटालों के आरोप पर नीतीश कुमार और न ही उनकी पार्टी कुछ बचाव कर पा रही है. नीतीश कुमार सोनिया गांधी के बुलावे पर नहीं गए और अगले ही दिन नरेंद्र मोदी के साथ भोज में शामिल हुए.
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि यह बहुत ही ठोस संदेश है कि नीतीश कुमार आने वाले दिनों में कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. लालू खेमे को लगता है कि नीतीश कुमार अपने सभी विकल्प खुले रखना चाहते हैं और जब जिस तरह के हालात बनेंगे उस हिसाब से फैसला ले सकते हैं. जानकार बताते हैं कि लालू प्रसाद को यह आभास है कि आने वाले दिन उनके लिए काफी कठिन होनेे वाले हैं.
अगर दोनों बेटों पर लगे आरोपों की कड़ी आगे बढ़ी तो चार्जशीट की भी नौबत आ सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने नौ महीने में चारा घोटाले से जुड़े सभी मामलों को निपटाने के लिए कहा है. अगर चारे में बात बिगड़ी तो लालू प्रसाद को फिर जमानत के लिए जद्दोजहद करनी पड़ सकती है. इसलिए इस दौर में लालू प्रसाद राजनीतिक तौर पर खुद को इतना मजबूत कर लेना चाहते हैं कि अगर कुछ बुरा भी हो तो कम से कम 2019 की लड़ाई में वे एक मजबूत ताकत बन कर उभर सकें.
लालू प्रसाद राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने के लिए 27 अगस्त को पटना में एक बड़ी रैली का ऐलान कर चुके हैं. वे इन दिनों पूरी पार्टी को इस रैली की तैयारी में झोंक चुके हैं. इस रैली के माध्यम से वे सूबे में अपनी राजनीतिक ताकत के प्रदर्शन की हसरत तो रखते ही हैं, साथ ही यह भी चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी को आगामी लोेकसभा चुुनाव में पटकनी देने की कवायद में वे केंद्रीय भूमिका निभाएं. इसलिए इस रैली में अखिलेश यादव के साथ मायावती को भी न्योता दिया गया है. उनका पूरा प्रयास है कि अखिलेश और मायावती दोनों मिलकर यूपी का लोकसभा चुनाव लड़ें. मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजने की बात भी कही जा रही है.
इससे लालू प्रसाद के दो हित एक साथ सधने वाले हैं. पहली बात तो यह होगी कि यूपी में विधानसभा चुनाव में जिस तरह वोटों का बंटवारा हुआ, वह रुक जाएगा. अगर अखिलेश, मायावती और कांग्रेस तीनों मिलकर यूपी में 2019 में उतरेंगे तो भाजपा को कड़ी चुनौती मिल सकती है. इसके इतर मायावती के बहाने लालू प्रसाद राजद से छिटके दलित वोटों को भी अपने पाले में कर सकते हैं. अब माय समीकरण को विस्तार देते हुए लालू प्रसाद अपना जनाधार इतना मजबूत कर लेना चाहते हैं कि विपरीत राजनीतिक हालात में भी उनका परचम लहराता रहे. जानकार बताते हैं कि लालू प्रसाद की नजर इस समय दलित व कुशवाहा वोटबैंक पर है.
सियासी जानकारों का मानना है कि अगर लालू प्रसाद को मायावती का खुला समर्थन मिल जाता है तो दलित वोटों को राजद के पाले में लाने में काफी आसानी होगी. लालू प्रसाद अगर मायावती को राजद कोटे से राज्यसभा भेजते हैं तो इससे दलितों में बहुत सकारात्मक संदेश जाएगा. बताते चलें कि इस समय दलितों के वोट पर सभी पार्टियों की नजर है. इस वोट बैंक पर भाजपा भी कड़ा होमवर्क कर रही है और इसका फायदा भी चुनावों में उसे मिला है.
नीतीश कुमार भी इस वोटबैंक में सेंधमारी कर चुके हैं. लालू प्रसाद चाहते हैं कि मायावती को आगे रखकर इस वोटबैंक का पूरा नहीं, तो कम से कम एक बड़ा हिस्सा अपने पाले में कर लें. बताया जाता है कि मायावती ने लालू प्रसाद की रैली में भाग लेने पर अपनी सहमति दे दी है. वहीं, कुशवाहा समाज के कई बड़े नेता भी लालू के संपर्क में हैं. इनमें कुछ नेताओं को सीधे राजद में लेने में पार्टी के अंदर परेशानी है, इसलिए रास्ता खोजा जा रहा है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
जानकार बताते हैं कि राजनीतिक संभावनाओं को खुला रखते हुए उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से संपर्क साधा जा रहा है. दोनों ही पार्टी के कई नेता एक दूसरे के संपर्क में हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने भी लालू पर लग रहे आरोपों पर कुछ खास टीका-टिप्पणी नहीं की है. नीतीश की तरह उपेंद्र कुशवाहा ने भी अंदरखाने अपने सारे विकल्प खुले रखे हैं. 2019 की लड़ाई को देखते हुए पार्टियां वेट एंड वाच की नीति पर अमल कर रही हैं.
इस बीच सूत्र बताते हैं कि कुशवाहा समाज के कई बड़े नेता जल्द उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में शामिल होने वाले हैं. इनमें नागमणि और भगवान सिंह कुशवाहा का भी नाम लिया जा रहा है. कहा जाए तो कुशवाहा समाज की गोलबंदी करने में उपेंद्र कुशवाहा लगे हैं. अगर यह सफल होती है तो यह लालू के लिए सकून वाली घटना होगी. कहा जाए तो लालू प्रसाद अपने माय यानि मुसलमान और यादव समीकरण में अब दलित और कुशवाहा को जोड़ने में लगे हैं.
एक ऐसा वोट बैंक का हथियार जो हर राजनीतिक लड़ाई में अजेय हो. सूत्रों पर भरोसा करें तो लालू प्रसाद इस सियासी हथियार को पाने के काफी करीब पहुंच चुके हैं और इंतजार केवल सही समय का हो रहा है. नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके हुंकार की ताकत इसी हथियार से निकल रही है. लालू को जानने वाले बताते हैं कि वे अंतिम समय तक उम्मीद नहीं छोड़ते हैं और इस बार तो लड़ाई आर-पार की है. हालांकि अभी सब कुछ परदे के पीछे है, लेकिन जब परदा उठेगा तब बिहार के सियासी संग्राम की एक अलग तस्वीर देखने को मिलेगी.