दरअसल, इनमें से कोई भी मामला असल मुद्दे से संबंधित नहीं था. असल मुद्दा यह था कि ब्रिटेन द्वारा ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज़ दिए जाने पर भारत के आपत्ति न जताने से कहीं हितों का टकराव तो नहीं था? भारत के पास दूसरा विकल्प यह था कि वह ब्रिटेन से कहता कि ललित मोदी को यात्रा की अनुमति न दी जाए. अगर ललित मोदी का अपनी पत्नी के इलाज के लिए उनके साथ पुर्तगाल जाना ज़रूरी था, जो पहली नज़र में सही प्रतीत होता है, तो ब्रिटिश सरकार द्वारा यात्रा की अनुमति न दिया जाना एक कठोर निर्णय होता.
हेराल्ड मैकमिलन 1950 के दशक के आ़िखरी दिनों में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे. किसी ने उनसे पूछा कि उन्हें किस बात से सबसे अधिक डर लगता है, विपक्ष से या अपनी ही पार्टी के लोगों से? उनका जवाब था, कार्यक्रम प्यारे, कार्यक्रम! 21 जून के योग दिवस के एक हफ्ते पहले की घटनाओं को देखर नरेंद्र मोदी भी मैकमिलन के उस वाक्य को दोहरा रहे होंगे. जो कार्यक्रम एक मामूली घटनाक्रम बनकर रह गया होता, उसने महाभारत जैसा विशालकाय रूप ले लिया. इससे यह भी पता चलता है कि आप कैबिनेट की ख़बरों पर नियंत्रण करके मीडिया को चटखारे लेने से रोक तो सकते हैं, लेकिन एक भूमंडलीकृत दुनिया में आपको पता नहीं चलता कि कौन-सी खबर कहां से बाहर निकल आए. राष्ट्र मंडल खेल घोटाला उस वक्त उजागर हुआ था, जब ब्रिटिश आयकर अधिकारियों ने लंदन की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी, जिसने मशाल हस्तांतरण का कार्यक्रम आयोजित किया था, के वैट भुनाने (रिक्लेम) पर सवाल उठाए थे. अगर हम केवल भारतीय मीडिया पर भरोसा करते, तो यह घोटाला कभी उजागर नहीं होता.
दि संडे टाइम्स ऐसा अख़बार है, जो ब्रिटेन में सांसदों के संभावित दुराचरणों की खोज में लगा रहता है. हालिया दिनों में अख़बार ने कीथ वाज़ से संबंधित एक घपला उजागर किया था. हालांकि, इस घपले का कोई प्रत्यक्ष भारतीय संबंध नहीं था. इस मामले में सवाल यह था कि क्या यहां वाज़ के हितों का टकराव (कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) था, क्योंकि उन्होंने यूके बॉर्डर एजेंसी के दफ्तर से गृह मंत्रालय की चयन समिति के अध्यक्ष की हैसियत से एक यात्रा दस्तावेज़ हासिल करने की कोशिश की थी. लोक आचरण के संसदीय आयुक्त अब इस मामले की जांच करेंगे. अब इस मामले को और तूल देना उचित नहीं है. लेकिन, इस बीच भारतीय मीडिया द्वारा दि संडे टाइम्स की इस छोटी-सी खबर पर राई का पहाड़ बनाया जा रहा है. कारण यह है कि वाज़ ने जिस व्यक्ति की खातिर यात्रा दस्तावेज़ हासिल करने के लिए हस्तक्षेप किया था, उसका नाम ललित मोदी था. ललित मोदी का पासपोर्ट ज़ब्त है. वह लंदन निर्वासन में एक सुखी जीवन बिता रहे हैं. ब्रिटेन से कहीं जाने के लिए उन्हें यात्रा दस्तावेज़ की ज़रूरत थी. यह ऐसा दस्तावेज़ है, जो ब्रिटेन में रह रहे देशविहीन लोगों को यहां से आने-जाने के लिए जारी किया जाता है.
वाज़ मोदी को यह दस्तावेज़ दिलवाने की वकालत कर रहे थे. उनका कहना था कि मोदी को पुर्तगाल जाकर उनकी पत्नी का कैंसर का चेकअप कराना था. इस पूरे प्रकरण में सुषमा स्वराज की जो भूमिका थी, वह यह थी कि उन्होंने कहा था कि अगर ब्रिटेन मोदी को यात्रा दस्तावेज़ दे देता है, तो भारत को कोई ऐतराज़ नहीं होगा. यह कहा गया कि उन्होंने सर जेम्स बेवन को फोन करके यह बात बताई. यह सीधे तौर पर अनुकंपा के आधार पर लिया गया एक फैसला था. इसका फैसला ब्रिटेन को लेना था. इसमें भारत की भूमिका केवल इतनी थी कि उसने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. लेकिन अ़फसोस, भारतीय राजनीति में कुछ भी सामान्य नहीं होता, खास तौर पर तब, जबकि संसद का नया सत्र सामने हो. इस मामले पर हर कोण से नज़र डाली गई. सुषमा स्वराज के पति, उनकी पुत्री और उनके भतीजे के मोदी से रिश्ते की बात कही गई. ललित मोदी के ल्बिज़ा (पुर्तगाल) में पार्टी करने की बात कही गई. ललित मोदी की नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज, अमित शाह एवं दूसरे लोगों के साथ तस्वीरें आम की गईं.
दरअसल, इनमें से कोई भी मामला असल मुद्दे से संबंधित नहीं था. असल मुद्दा यह था कि ब्रिटेन द्वारा ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज़ दिए जाने पर भारत के आपत्ति न जताने से कहीं हितों का टकराव तो नहीं था? भारत के पास दूसरा विकल्प यह था कि वह ब्रिटेन से कहता कि ललित मोदी को यात्रा की अनुमति न दी जाए. अगर ललित मोदी का अपनी पत्नी के इलाज के लिए उनके साथ पुर्तगाल जाना ज़रूरी था, जो पहली नज़र में सही प्रतीत होता है, तो ब्रिटिश सरकार द्वारा यात्रा की अनुमति न दिया जाना एक कठोर निर्णय होता. इसके लिए वाज़ को अपने कैबिनेट के साथियों से बातचीत करनी पड़ती. भारत में प्रशासनिक स्तर पर जो कमी है, वह यह है कि यहां मंत्रियों के आपसी हितों के टकराव की जांच के लिए कोई प्रणाली नहीं है. इस कमी को दूर करने की ज़रूरत है. प्रधानमंत्री के पास एक सुनहरा मौक़ा है कि वह सुशासन के लिए एक ऐसी प्रणाली स्थापित करें. कांग्रेस ने ऐसा कभी नहीं किया, शायद मोदी इसके लिए कुछ करें.