भाजपा के प्रदेश प्रशिक्षण प्रमुख एवं निरसा से उम्मीदवार गणेश मिश्रा नया चेहरा नहीं कहे जा सकते हैं, क्योंकि निरसा में उन्होंने भाजपा के लिए काफी काम किया है. वह विकास का मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में उतरे हैं. गणेश कहते हैं कि वामपंथी विधायकों ने क्षेत्र के लिए आज तक आख़िर क्या किया? लंबे समय से विधायक हैं और निरसा की जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है.
लाल झंडे का गढ़ माने जाने वाले धनबाद के निरसा विधानसभा क्षेत्र में इस बार भगवा ध्वज लहराएगा या नहीं, यह कहना अभी तो मुश्किल है, लेकिन विकास के मुद्दे पर इस बार लाल झंडे को भगवा से कड़ी टक्कर मिलने के आसार हैं. भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान निरसा में जो प्रदर्शन किया था, अगर वह कायम रहा, तो इस बार यहां लाल झंडे का लहराना मुश्किल हो जाएगा. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को यहां कुल लगभग एक लाख 10 हज़ार वोट मिले थे और उसके लिए इससे बड़ी पूंजी क्या हो सकती है. पूरे झारखंड की तरह इस बार निरसा में भी मोदी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है. निरसा वामपंथी राजनीति का अखाड़ा माना जाता रहा है. 35 वर्षों के पश्चिम बंगाल के वामपंथी शासन का सबसे ज़्यादा असर अगर कहीं रहा, तो वह निरसा विधानसभा क्षेत्र ही है. 1977 से 2009 के बीच अगर 1985 में इंदिरा लहर को छोड़ दें, तो हर चुनाव में यहां वामपंथी ही जीते, चाहे वह फॉरवर्ड ब्लाक हो या एमसीसी. लेकिन, इस चुनाव में मामला कुछ अलग दिख रहा है.
भाजपा के प्रदेश प्रशिक्षण प्रमुख एवं निरसा से उम्मीदवार गणेश मिश्रा नया चेहरा नहीं कहे जा सकते हैं, क्योंकि निरसा में उन्होंने भाजपा के लिए काफी काम किया है. वह विकास का मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में उतरे हैं. गणेश कहते हैं कि वामपंथी विधायकों ने क्षेत्र के लिए आज तक आख़िर क्या किया? लंबे समय से विधायक हैं और निरसा की जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है. लोगों को सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य, सिंचाई सुविधा के अभाव एवं बेरोज़गारी आदि समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है. लोग लाल झंडे की राजनीति से उकता गए हैं और विकास चाहते हैं. उधर, फॉरवर्ड ब्लॉक की नेता एवं पूर्व मंत्री अर्पणा सेनगुप्ता कहती हैं, मेरे कार्यकाल में जितने विकास कार्य हुए, उतने किसी ने भी अब तक नहीं किए और मौक़ा मिला, तो इस बार विकास के मामले में निरसा पूरे प्रदेश में अग्रणी रहेगा. चाहे पेयजल की समस्या रही हो या बरबिंदिया पुल के अधूरे कार्य या फिर टॉल गेट का मामला, मैंने हमेशा जनता के साथ दिया है और देती रहूंगी. मेरा सपना है निरसा को अनुमंडल का दर्जा दिलाने का. मैंने विकास कार्यों को गति दी.
कांग्रेस की प्रत्याशी दुर्गा दास को भी अपने द्वारा कराए गए विकास कार्यों पर पूरा भरोसा है. वह 1993 से कांग्रेस सेवादल में सक्रिय हैं और 1995 में पंचायत अध्यक्ष बनीं और वर्तमान में निरसा से ज़िला परिषद की सदस्य हैं. दुर्गा दास के चुनाव मैदान में उतरने से एक नया मोड़ आ गया है. उनके पास अच्छा-खासा जनाधार है और कार्यकर्ता भी. दुर्गा दास बताती हैं कि क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या बेरोज़गारी है. तमाम संसाधन होते हुए भी स्थानीय लोगों को बेकारी की मार झेलनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान विधायक जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. यहां विकास पर कम और माफियागीरी पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. 68 पंचायतों वाले निरसा विधानसभा क्षेत्र में इस बार विकास मुख्य मुद्दा बना हुआ है और विकास कार्यों के सवाल पर वर्तमान विधायक पूरी तरह घिरते नज़र आ रहे हैं. मीडिया की बहुतेरी कोशिशों के बावजूद निरसा के वर्तमान विधायक अरूप चटर्जी उससे मिलने से कतरा रहे हैं.
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