trilokpuriपिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा की बहुत-सी घटनाएं हो चुकी हैं. एक छोटी से छोटी क़ानून व्यवस्था की समस्या भी सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लेती है. आख़िर क्यों दो संप्रदाय विशेष के लोगों के बीच एक छोटी-सी कहासुनी भी सांप्रदायिक रंग में रंग जाती है? क्या केवल इसलिए कि दोनों अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हैं? या फिर इसके लिए पुलिस-प्रशासन की खोटी नीयत अथवा उसकी अक्षमता ज़िम्मेदार है? देश की राजधानी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में दीवाली की रात से चल रहा सांप्रदायिक तनाव आख़िर थमने का नाम क्यों नहीं ले रहा है? साफ़ तौर पर पुलिस की अकर्मण्यता और अक्षमता इस सबके लिए ज़िम्मेदार मानी जा रही है. दिल्ली पुलिस को देश की सर्वश्रेष्ठ पुलिस के रूप में शुुमार किया जाता है, लेकिन आप अंदाज़ा लगाइए कि जब देश की राजधानी में ही पुलिस-प्रशासन अपने नाकारेपन का सुबूत दे, तो उससे साफ़ जाहिर होता है कि मेरठ एवं मुजफ्फरनगर जैसी सांप्रदायिक हिंसा में क्या हुआ होगा?
अगर त्रिलोकपुरी की बात करें, तो यहां होने वाली हिंसा नियंत्रित करने में दिल्ली पुलिस के पसीने छूट गए और थक-हार कर प्रशासन को रैपिड एक्शन फोर्स एवं सीआरपीएफ तैनात करनी पड़ी. हालांकि इस हिंसा में अभी तक किसी के जान से मारे जाने की ख़बर नहीं है, लेकिन दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और दोनों समुदायों के पचास से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 23 अक्टूबर को दीवाली की रात क़रीब 8 बजे जब चारों ओर से पटाखे फूटने की आवाज़ें आ रही थीं और लोग दीवाली मनाने में व्यस्त थे, तभी दूसरी ओर पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी क्षेत्र के 20 ब्लॉक में दो समुदायों के बीच अचानक तनाव पैदा हो गया. कुछ ही देर में पथराव शुरू हो जाता है, जो तक़रीबन आधे घंटे तक जारी रहता है और उसके बाद कुछ पुलिसकर्मी मौक़ा-ए-वारदात पर पहुंच कर पथराव कर रहे लोगों को तितर-बितर करते हैं. उस समय तो मामला किसी तरह से शांत हो जाता है, लेकिन 24 अक्टूबर को यह तनाव एक बार फिर हिंसा में बदल जाता है और दोनों समुदायों के बीच भारी झड़पें शुरू हो जाती हैं, जो देर रात तक जारी रहीं. मामला जब पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गया, तो रैपिड एक्शन फोर्स और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर स्थिति संभाली. उत्तेजित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अश्रु गैस के गोले दागे गए.
त्रिलोकपुरी पूर्वी दिल्ली का वह क्षेत्र है, जहां हिंदुओं एवं मुसलमानों की मिश्रित आबादी है. 1984 में हुए सिख नरसंहार को छोड़ दिया जाए, तो सभी समुदायों के लोग यहां अमन-चैन के साथ वर्षों से रहते चले आ रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि त्रिलोकपुरी वही जगह है, जहां 1984 के दंगों में सबसे ज़्यादा सिखों को मौत के घाट उतारा गया था. त्रिलोकपुरी के कुछ ब्लॉकों में मुसलमानों की घनी आबादी है, जबकि हिंदू यहां बड़ी संख्या में हैं, जिनमें ज़्यादातर वाल्मिकी समुदाय के लोग हैं. इस हिंसा के पीछे वजह यह बताई जा रही है कि हिंदू-मुस्लिम समुदाय के कुछ युवक माता की चौकी के नज़दीक ही बैठकर शराब पी रहे थे, जिनमें पहले आपस में कुछ कहासुनी हुई और कुछ ही देर में उनके बीच मारपीट होने लगी. उसके बाद पथराव शुुरू हो गया. बताते हैं कि क़रीब एक महीने पहले यानी नवरात्र से अस्थायी रूप से ब्लॉक 20 में माता की चौकी लगाई गई थी, जहां कई दिनों से जागरण के साथ-साथ पूजा-अर्चना चल रही थी.
दरअसल, त्रिलोकपुरी के 20 ब्लॉक में प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के तहत कुछ लोगों ने एक कूड़ाघर को साफ़ करके वहां माता की चौकी स्थापना कर दी और फिर जागरण शुरू हो गया. तबसे वहां प्रतिदिन पूजा-अर्चना हो रही थी. माता की चौकी से कुछ ही क़दम की दूरी पर 20 ब्लॉक की मस्जिद स्थित है. मुसलमानों का कहना है कि उन्होंने महीने भर से चल रही माता की यह अस्थायी चौकी हटाने की मांग की, तो वहां कुछ लोगों ने यह कहकर उसका विरोध किया कि अब चौकी नहीं हटाई जाएगी. कुछ ही दिनों पहले दोनों समुदायों के प्रमुख लोगों के बीच इस मामले को लेकर एक बैठक हुई थी, जिसमें तय हुआ कि मस्जिद में नमाज़ एवं जागरण में पूजा का समय बदला जाए और वह बदला भी गया, लेकिन मुसलमानों का कहना है कि कुछ ही दूरी पर मस्जिद होने के कारण उन्हें नमाज़ पढ़ने में परेशानी होती है, क्योंकि माता की चौकी में बड़े-बड़े स्पीकर और लाउड स्पीकर लगे हैं, जिससे तेज़ आवाज़ आती है.
बहरहाल, घटना के एक सप्ताह के बाद भी दिल्ली पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स, दोनों मिलकर भी इलाके में पूरी तरह से शांति स्थापित नहीं कर पाईं. क्षेत्र में धारा 144 लागू करनी पड़ी. पुलिस ने उपद्रवियों पर नज़र रखने के लिए ड्रोन सिस्टम का सहारा लिया. बावजूद इसके इलाकाई लोगों को कई दिनों तक अपने घर में कैद रहना पड़ा. खाने-पीने की चीजों के दाम बहुत बढ़ गए. दूध
70-80 रुपये लीटर तक बिका. इलाके के आम नागरिक शांति चाहते रहे, लेकिन चंद स्वार्थी एवं उपद्रवी लोगों की वजह से दिल्ली का यह इलाका एक सप्ताह से भी अधिक समय तक हिंसा-उपद्रव के चंगुल में फंसा रहा.

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